Monday 1 October 2012

16वीं-17वीं शताब्दी में सहसराम की सूफी परम्परा: एक अवलोकन


नोमान अहमद
       सहसराम को विशेष प्रसिद्धि शेरशाह की कर्मस्थली के रूप में मिली।1 बावजूद इसके यह प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण रहा है। इसके दक्षिण में फैली कैमूर की पहाडि़यों से नवपाषाणिक उपकरणों तथा अशोक के शिलालेख2 की प्राप्ति हो चुकी है। मध्यकाल में तुर्कों के आगमन से जहां राजनैतिक, आर्थिक केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी वहीं धार्मिक जीवन में एक नवीन धर्म यानि इस्लाम का प्रवेश हुआ। इस नवीन धर्म ने जाति-पाति, छुआछूत, भेदभाव, अंधविश्वास, मूर्तिपूजा तथा बहुदेववाद जैसी पुरानी मान्यताओं को चुनौती दी तथा एकेश्वरवाद, मानवीय समानता, आपसी भाईचारा तथा व्यक्तित्व की गरिमा जैसे नए मूल्यों को भारतीय लोकजीवन में प्रस्तुत किया।6 सामाजिक, धार्मिक क्षेत्र में आए इस संक्रमण को दूर कर सामंजस्य स्थापित करने का कार्य सूफी तथा भक्त संतों ने किया।7
मध्यकाल में भारत में अनेक सूफी सिलसिलों का आगमन हुआ जिनमें 14 प्रमुख रहे।8 इनमें से भी चिश्तिया, सुहरावर्दिया, कादिरीया, शत्तारिया, नक्सबंदिया आदि को विशेष प्रसिद्धि मिली।9 बिहार के सहसराम में भी कई सिलसिलों के सूफी आए लेकिन इनमें से विशेष प्रसिद्धि चिश्तिया, मदारिया तथा फिरदौसिया सिलसिलों को ही मिली।11 विभिन्न सूफी सिलसिलों की अलग पहचान उनके पोशाक, आचार-विचार, इबादत की पद्धति आदि से होती थी।12 इनके आध्यात्मिक क्रियाकलाप यथा फिक्र (ध्यान) तथा जिक्र (स्मरण) के तरीके भी अलग होते थे।13 सूफी सिलसिलों को मुख्य रूप से हम दो भागों में बांट सकते हैं। बाशरा और बे शरा वर्ग के सूफी।14 बा शरा यानि शरियत को मानने वाले सूफी सिलसिलों की ही प्रधानता रही है जबकि बे शरा वर्ग में कलंदर आते हैं, जो घुमक्कड़ संत होते थे।15 सहसराम के सूफी बाशरा वर्ग में ही आते हैं। इन सूफियों के इबादतगाह विभिन्न नामों से जाने जाते हैं। जैसे- जा़विया, तकिया, दायरा, जमाअतखाना, खानकाह आदि।16 सहसराम में आज भी इनके नाम पर कई मुहल्लों के नाम हैं जैसे- खानकाह, दायरा, तकिया, शाहजलाल पीर तकिया, चमरतकिया आदि।17
सहसराम में आने वाला सर्वप्रथम सूफी सिलसिला चिश्तिया रहा जिसका आगमन चैदहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुआ।18 निजामुद्दीन औलिया के खलीफा शैख सिराजुद्दीन अली, जिनको औलिया साहब ने पूरब जाने को कहा था, उन्हीं के शिष्यों ने सहसराम को अपनी सरजमीं बनाया। हालांकि बिहार, बंगाल और पाण्डुआ के चिश्ती सूफियों के बीच बेहद करीबी संबंध रहे हैं।19 इन सूफियों ने सहसराम का चुनाव अपेक्षाकृत छोटे तथा कम भीड़-भाड़ वाले शहर होने के कारण ही किया था ताकि इनके एकांत आध्यात्मिक जीवन में इबादत करने के लिए भरपूर समय मिल सके। यह वही आधार था जिस आधर पर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर का, हमीद्दुद्दीन नागौरी ने नागौर का, बाबा फरीद ने पाक पाटन का तथा निजामुद्दीन औलिया ने ग्यासपुर का चुनाव किया था।20
सहसराम के प्रमुख सूफियों में चन्दनशहीद पीर, शाह बुढ़न, शाह शम्शुलहक, शाह जलाल, शाह मदारसलान, शैख अब्दुर्रहमान, शाह मुस्तफा, बिजली शहीद, रहमान शहीद, अंजान शहीद आदि का नाम लिया जा सकता है।21 चन्दन शहीद पीर के सखावत के चर्चे तो विख्यात हैं। कनिंघम ने चन्दन शहीद के बारे में लिखा है कि, पीर बाबा बनारस में रहते थे। वहीं चन्दन नाम के एक हिन्दू ने पीर बाबा से नाराज होकर उनका सिर काट दिया। बाबा बिना सिर के ही दौड़ने लगे और दौड़ते हुए सहसराम की कैमुर की पहाड़ी पर पहुँच गए। थकान महसूस होने पर बाबा ने एक औरत से पान मांगा। औरत ने जबाव दिया कि बाबा बिना सर के आप पान कैसे खाएंगे। औरत की बात सुनकर बाबा वहीं गिर पड़े जहां आज उनकी मजार है।22 चन्दन शहीद को श्यामबहादुर बौद्ध ऋषि मानते हैं।23 ठीक शिरडी के साईं बाबा की तरह चन्दन शहीद की प्रसिद्धि हिन्दू-मुस्लिम सारे वर्गों के बीच है। इनके नाम पर वह पहाड़ी चन्दन शहीद की पहाड़ी कहलाती है।24 चिश्तियता सूफी शाह बुढ़न के नाम पर एक अन्य पहाड़ी जानी जाती है जिसे बुढ़न पहाड़ कहते हैं।25
ये चिश्तिया सूफी इब्न अल अरबी के वहदत उल वुजूद के सिद्धान्त के मानते थे। ये सारी चीजों में खुदा का अक्स मानते थे (हुमा अस्त)।26 इसलिए इन्होंने मानवता की सेवा की तथा गरीबों, असहायों तथा मजलूमों के प्रति करूणा व्यक्त की। ये सूफी इंसानियत के दर्द को अपने सीने में रखते थे। किसी सूफी को शैख बनने के लिए मानवता की सेवा आवश्यक थी।27 इनका यह भी मानना था कि एक सच्चा सूफी वही है जो लोगों द्वारा सताए जाने पर भी उसका बुरा नहीं चाहता और अपनेे तौर-तरीके में सब्र से काम लेता है।28 किसी के सामने अपनी मदद के लिए हाथ फैलाने वाले दरवेश को ये सूफी नफरत के काबिल मानते थे।29 इन चिश्ती सूफियों का यह भी मानना था कि एक साथ इन्सान, खुदा और दौलत दोनों से दिल नहीं लगा सकता।30 शासक वर्ग से संबंध रखने में सहसराम के सूफी अधिक व्यावहारिक थे क्योंकि इन्होंने मदद ए मआश कुबुल किया था।
सहसराम के चिश्तिया सूफी भी खुदा और खुद को खुश रखने का सबसे आसान और बेहतर तरीका मुहब्बत यानि शाश्वत प्रेम को मानते थे।31 हालांकि यह इश्क, इश्क मजाजी से इश्क हकीकी की ओर जाता था जिसके मार्ग में सालिक के सामने कई बाधाएं आती थीं। इन बाधाओं को पार कर शरीयत, तरीकत, मारीफत तथा हकीकत के चरणों से होता हुआ वह इश्क हकीकी को प्राप्त करता था जिस चरण में वह सब कुछ भूलकर वज्ल (आनन्द) की अनुभूति प्राप्त करता था। वज्ल के इस हालत में सालिक (साधक) सब कुछ भूल जाता था, उसका स्वतंत्र अस्तित्व मिट जाता था और वह अपने आपको ईश्वर में विलीन मान लेता था।
सहसराम के चिश्तिया सूफियों ने भी समा को जारी रखा जिसे ये अल्लाह की इबादत का हिस्सा मानते थे। इन सूफियों ने अपनी सादगी, करुणा, मानवीय प्रेम और आडंबरहीन जीवन शैली से आमजन को अपनी ओर आकर्षित किया। इनकी खानकाहों में हर समय लोगों की भीड़ लगी रहती थी। लोग इनके उपदेशों और शिक्षाओं को सुनते तथा आध्यात्मिक शान्ति और संतोष का अनुभव करते। इन सूफियों के खानकाहों से गरीबों को भोजन और कपड़े भी वितरित किए जाते थे। आज भी इन सूफियों के उर्स (बरसी) पर देग बनते हैं और भोजन को लोगों में वितरित किया जाता है। आज भी हिन्दू जन कई सूफियों के मजारों की देखरेख स्वयं करते हैं और इनके प्रति अपनी श्रद्वा और भक्ति का इजहार करते हैं। एक ऐसे समय में जब दुनिया में मानवीयता और आपसी सौहार्द के ऊपर खतरे मंडरा रहे हांे तथा अलगाववाद और कट्टरता बढ़ रहे हों वैसे समय ये सूफी संत आज भी हमारी सामाजिक संस्कृति को बचाए हुए हैं। इसलिए इन सूफियों की शिक्षाओं को समझने और आत्मसात करने की जरूरत है जिनका एक ही उद्देश्य था निष्काम या निस्वार्थ मानवीय प्रेम।।
संदर्भ सूची
1. त्रिपाठी आर0पी0, राइज़ एण्ड फाल मुगल इम्पायर वाल्यू-1, पृ0 94
2. थापर रोमिला, अशोका एण्उ दि डिक्लाइन आॅफ द मौर्याज़, आक्सफोर्ड, 1961
6. हबीब, इरफान, भारतीय इतिहास में मध्यकाल, दिल्ली
7-Tarachand, Ifluence of Islam on Indian Culture, Allahabad, 1946.
8. Abul Fazal-Ain-e-Akbari.
9.Rizvi, S.A.A.-A History of Sufism in INdia.
10,14.Askari, S.H.-Islam and Muslims in Medieval Bihar, Patna, 1989, Page, 14.
11,18,21. Askari, S.H.-Islam and Muslims in Medieval Bihar, Patna, 1989, Page, 23.
12,13. Askari, S.H.-Islam and Muslims in Medieval Bihar, Patna, 1989, Page, 28.
15. Satishchandra-Med. India, from Sultanat to Mughal Part-I, Page-244.
17.See City Map of Sasaram for it.
19. Askari, S.H.-Islam and Muslims in Medieval Bihar, Patna, 1989, Page, 24.
20. Satistichandra-Med. India from Sultanat to Mughal, I, Page 245.
22. Kaningham, It is mentioned in Shyam Bahadur's Article also.
23. See Shyam Bahadur's Article, "Some Traditions and Legends about Sasaram". Published in Journal of the Bihar Research Society, Patna, 1945.
24. The encyclopaedic district Gazetters of India, Vol. 8
25. Ibid.
26. Askari, S.H.-Islam and Mushlims in Medieval Bihar, Patna, 1989, Page, 40.
27. Hamid Kalandar-Khairul Mazalis, 23rd Mazlis.
28,30. Amir Hasan Sizzi-Fawaid-ul-Fawaid.
29. Hamid Kalandar-Khair-ul-Mazalis-31st Mazlis.
31. Amir Khurd-Siyar-ul-Aulia.

नोमान अहमद
शोध छात्र, मध्यकालीन/आधुनिक इतिहास विभाग,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद