Monday 1 July 2013

संयुक्त प्रान्त में किसान आन्दोलन (सन् 1919 ई0-1922 ई0 के मध्य)


आशुतोष कुमार तिवारी

संयुक्त प्रान्त का विकास एक दीर्घकालीन प्रक्रिया थी, जो 1765 ई0 से शुरू होकर 1902 में इस समस्त क्षेत्र का नाम ‘यूनाइटेड प्राविन्सेज आॅफ आगरा एण्ड अवध’ पड़ा जो 1937 ई0 में मात्र ‘यूनाइटेड प्राविन्सेज’ रह गया।1
इस क्षेत्र के अधिग्रहण की लम्बी प्रक्रिया के कारण यहाँ विभिन्न प्रकार की भू-व्यवस्थाएँ अस्तित्व में रही2, जो निम्नलिखित हैं:-
1. बनारस की स्थायी भू-व्यवस्था।
2. आगरा प्रान्त की महालवाड़ी व्यवस्था।
3. अवध प्रान्त की ताल्लुकेदारी व्यवस्था।
4. पहाड़ी क्षेत्र की भूव्यवस्था।
इन समस्त भू-व्यवस्थाओं में प्राप्त अधिकारों के आधार पर काश्तकारों की विभिन्न श्रेणियाँ अस्तित्व में आयी3, जैसे-
1. स्थायी भूधृति वाले काश्तकार
2. निश्चित दर वाले काश्तकार
3 विशेष शर्ताें पर भू अधिकार धारण करने वाले काश्तकार (अवध)
4. पूर्व भू-स्वामी काश्तकार
5. दाखिलकारी काश्तकार
6. पुश्तैनी काश्तकार
7. गैर दाखिलकारी काश्तकार या ऐच्छिक काश्तकार।
इन समस्त काश्तकारों में सर्वाधिक दयनीय स्थिति गैरदाखिलकारी काश्तकार की थी। इन ऐच्छिक काश्तकारों का जीवन जमींदारों के रहमोकरम पर था। इनसे मनमाने तरीके से लगान की वसूली होती थी तथा विभिन्न प्रकार के करों, उपकरों का बोझ था।
सन् 1919 ई0 का वर्ष राजनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा। समकालीन अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय एवं स्थानीय परिस्थितियों ने ऐसी पृष्ठभूमि तैयार कर दी कि अवध का काश्तकार वर्ग अपनी दुर्दशाग्रस्त स्थिति में सुधार के लिए व्यग्र हो उठा। चूँकि तत्कालीन समय में भूमि ही सामाजिक स्तर का निर्धारक था, रोजगार का आधार था तथा लोगों में अपनी बचत निवेश करने का महत्वपूर्ण साधन था। ऐसी स्थिति में भूमि की माँग में तेज वृद्धि हुई थी। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिक क्षेत्र एवं सैन्य क्षेत्र से बहुत सारे लोग निष्कासित हुए तथा ये लोग भी भूमि प्राप्त करने में लग गए। इस स्थिति में भूमि की माँग में हुई वृद्धि का अवध के ताल्लुकेदार वर्ग ने खूब भुनाया तथा काश्तकार वर्ग का खूब आर्थिक शोषण हुआ।
सन् 1918 ई0 में मानसून की गड़बड़ी के कारण ये स्पष्ट हो चुका था कि फसल अच्छी नहीं होगी तथा कृषक वर्ग अत्यन्त दयनीय स्थिति में पहुँच गया। कृषक आन्दोलन की नींव सर्वप्रथम अवध क्षेत्र में इसलिए दिखती है क्योंकि अवध का क्षेत्र दबे कुचले काश्तकारों एवं सर्वशक्तिशाली ताल्लुकेदारों का क्षेत्र था। ऐसे में काश्तकारों के शोषण का कोई अन्त नहीं था। चूँकि अवध के क्षेत्र में अधिकाँश काश्तकार गैर दाखिलकारी काश्तकार थे और इन्हें इस बात का भय सदा बना रहता था कि कहीं उन्हें बेदखल न होना पड़े, इसी बेदखली के भय ने तमाम बुराइयों को जन्म दिया।4
काश्तकार इतना दबा कुचला था कि अपने ताल्लुकेदारों से अपने अधिकारों की कौन कहे? बात-चीत करने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। ताल्लुकेदारी व सरकारी कर्मचारियों के गठबंधन के साथ बेवश काश्तकार एक फसल से दूसरी फसल तक सदा असुरक्षा एवं कर्ज का शिकार था। काश्तकारों पर बेदखली की तलवार लटकती रहती थी।5
सहकारी अमला भी जमींदारों/ताल्लुकेदारों का ही भक्त था। पटवारी यद्यपि होता था सरकारी कर्मचारी, परन्तु वो जमींदारों/ताल्लुकेदारों के लिए मोहर्रिर का भी कार्य करता था। गलत इन्दराज करना, दस्तावेजों को ताल्लुकेदारों के अनुकूल बनाए रखना ही मानो इनका मूल मकसद हो।6
काश्तकारों को ताल्लुकेदारोंकी तमाम उचित अनुचित सुख-सुविधाओं का ख्याल रखना होता था। मोटरवान, घोड़ावान, हथियावान, बाजावान आदि जैसे न जाने कितनी अदायगियाँ करनी होती थी। ताल्लुकेदार के यहाँ बच्चा हो, शादी हो या मृत्यु हो काश्तकार को अदायगी करनी होती थी।7 बेगार तो करन ही था चाहे जो मजबूरी हो अन्यथा तत्क्षण न्याय करते हुए ताल्लुकेदारों के कारिन्दे काश्तकारों की धुनाई शुरू कर देते थे।
अपने को बेदखली से बचाने के लिए गैर दाखिलकारी काश्तकार हर संभव प्रयास करता थ। रकम सेवई के नाम पर सस्ते दाम पर घी उपलब्ध कराता तथा फल, सब्जी, अनाज, भूसा पत्ती जैसी अदायगियाँ करता रहता था। इनके अतिरिक्त नजर शुल्क के नाम पर विभिन्न वसूलियाँ होती थी जैसे मकान या पशु का बाड़ा बनाने पर, कोई वृक्ष लगाने पर, बाग लगाने पर या कुआँ, तालाब खुदवाने पर बिना अनुमति ऐसा करने पर ताल्लुकेदार/जमींदार द्वारा जुर्माना लगाया जाता था।8 वी0एन0 मेहता (तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर)-अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया कि काश्तकारों की स्थिति इतनी दुर्दशा ग्रस्त थी कि वो बेटी बेचने जैसी जघन्य सामाजिक एवं धार्मिक अपराध करने को बाध्य था।9
पुराने जमाने में तालाब व जंगल आदि का प्रयोग स्वतंत्र रूप से होता था परन्तु अब ये जमींदार की सम्पत्ति हो गए। इनके प्रयोग के लिए नजराने वसूले जाते। तालाबों को पाटकर खेत बना दिए गए जिससे सूखे की स्थिति में काश्तकार के पास सिंचाई का कोई साधन न था।
इस प्रकार गैर दाखिलकारी काश्तकारों के अन्तहीन शोषण ने इनका जीवन अत्यन्त दुःखद बना दिया था तथा इसी अन्तहीन शोषण ने इन गैर दाखिलकारी काश्तकारों में वर्गचेतना भरी व मूक किसान अपने अधिकारों के लिए उठ खड़ा हुआ।
बिहार प्रान्त के चम्पारन में गाँधी जी द्वारा किए गए सत्याग्रह ने भी अवध क्षेत्र के काश्तकारों में अपनी समस्याओं से निजात पाने के लिए एकजुट होने हेतु प्रेरित किया। किसानों के लिए गाँधी किसी मसीहा से कम नही थे।10 सन् 1917 ई0 में किसानों ने सर्वसाधारण ग्रामीण ने अवध किसान संघ की नींव रखी। जिसकी प्रथम बैठक प्रतापगढ़ जिले के रूरे नामक स्थान पर हुई जिसके नेताओं में ठाकुरदीन, सूरज प्रसाद, बाबा रामचन्द्र, वृजपाल सिंह व मादारी पासी थे।
बाबाराम चन्द्र ने किसानों के लिए निम्न कार्यक्रम तय किया-
1. निर्धारित समय से पूर्व लगान अदायगी।
2. जंगली इलाकों को मवेशियों के चारागाह के लिए आरक्षित किया जाए।
3. राहत की व्यवस्था एवं कुएँ की खुदाई का अधिकार प्राप्त हो।
4. बगीचे की व्यवस्था हो।
5. आधी जमीन में अनाज वाली फसले और आधी में कपास की खेती हों तहसील में मिले खोले जायें जिससे से निष्कासित लोगों को काम मिल सके।
6. हर तीन कोस पर बीज या अनाज डीपों खोले जाय।
7. उपदेशिकाओं के माध्यम से स्त्री शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
दूसरी तरफ शहरी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं द्वारा भी यू0पी0 किसान सभा की स्थापना 1918 ई0 में की गई जिसके अगुवा नेताओं में पुरूषोत्तम दास टण्डन, मदन मोहन मालवीय, मोती लाल नेहरू व इन्द्र नारायण द्विवेदी प्रमुख थे। इस आन्दोलन का प्रमुख केन्द्र इलाहाबाद था। इस संगठन ने किसानों की समस्या के समाधान के लिए प्रयत्न किए परन्तु किसी से सीधे संघर्ष की बात नहीं की।11
यू0पी0 किसान संघ के उपाध्यक्ष गौरीशंकर मिश्र ने ग्रामीण भाषा में किसानों के लिए प्रतिज्ञा पत्र तैयार किया।12
1. हम किसान सच बोलब: झूठ न बोलब, दुःख के बात सच-सच कहब।
2. हम केहूँ के मारी-गारी न सहब, केहूँ पर हाथ न छोड़ब, लेकिन जब केहूँ जिलेदार या सिपाही मारे बदे हाथ उठाई, उनकर दस-पाँच जने मिल के हाथ पकड़ लेब। जब केहूँ गारी देई हम सबन मिलकर मना करब अगर न मानि है तो पकरि के अपने ठकुरे के पास ले जाब।
3. खेत के लगान ठीक वक्त पर भुगतान करब, लगान के रसीद जरूर लेब। आपन गाँव भर मिल के ठकुरै यहाँ जाय के लगान देब।
4. हथियावान, घोड़ावान, मोटरवान वगैरह गैर कानूनी टैक्स न देब बेगार बिना मजदूरी न करब। अगर कौनो किसान के ताल्लुकेदा के सिपाही पकडि़है तो गाँव भर मिल के पहले किसान के छोड़ाय के तब भोजन करब।
5. आपस में झगड़ा न करब और कबो जो झगड़ा होय जायी त पंचायत में तय कय लेब। आपस में एक दूसरा के मदद करब।
6. सरकारी सिपाही से डरब न और अगर जुलुम करिहै, उन्हें हम रोकब केहूँ के जुलुम न सहब।
तोहार सेवक-गौरी शंकर मिश्र
बी0ए0, एल-एल बी0 हाईकोर्ट
उ0प्र0 सं0 प्रा0 किसान सभा, प्रयाग
किसान आन्दोलन व कांग्रेस का सम्बन्ध अभी तक बहुत धनिष्ठ नहीं था परन्तु असहयोग आन्दोलन के दौर में दोनों कांग्रेस व किसान एक-दूसरे के पूरक हो गए।13 जून 1920 में बाबा रामचन्द्र अपने किसान अनुयायियों के साथ इलाहाबाद गए तथा विभिन्न कांग्रेसी नेताओं से मिले और अपनी समस्याओं से अवगत कराया। पी0डी0 टण्डन, जवाहर लाल नेहरू व गौरी शंकर मिश्र से विशेष आग्रह किया कि वो प्रतापगढ़ का दौरा करके उनकी स्थिति का प्रत्यक्ष अवलोकन करें।14
किसानों के आग्रह के कारण पी0डी0 टण्डन, जवाहर लाल नेहरू व गौरीशंकर मिश्र और के0के0 मालवीय प्रतापगढ़ पहुँचे। किसानों के उत्साह का ठिकाना न था। किसानों के इस उत्साह एवं दयनीय दशा ने जवाहर लाल नेहरू को किसानों के साथ हमेशा के लिए जोड़ दिया।
धीरे-धीरे अवध किसान सभा कांग्रेस एवं किसान के गठबंधन का सशक्त प्रतीक हो गई। किसानों के अन्दर अपार उत्साह था। उनको लग रहा था कि गाँधी जी के साथ जुड़कर वो अपनी समस्याओं का समाधान निकाल लेंगे। औपनिवेशिक सरकार के विरूद्ध शुरू हुआ असहयोग आन्दोलन किसानों को भी अपने शोषकों से मुक्ति का शंखनाद प्रतीत हुआ। किसानों की गतिविधियाँ उग्र होने लगी। बाबा रामचन्द्र ने किसानों को नियंत्रित करने का प्रयास किया और किसानों से निम्न अदायगियाँ करने हेतु कहा15-
1. प्रति हल 15 सेर भूसा।
2. एक बोझ पुआल व एक बोझ गन्ना।
3. खेती के सीजन में एक हरी अदा हों।
4. बेगारी हो पर इस अवसर पर मजदूरी के रूप में 2 सेर अनाज या 3 आना से 5 आना/दिन हिसाब से अदायगी हो।
5. जो गाय, भैंस रखते हो उनको प्रतिवर्ष एक रूपये का घी बाजार से दूनी मात्रा में देना था।
6. होली के अवसर पर ठाकुर को एक रूपये की भेंट दी जाय।
किसान आन्दोलन के कार्यक्रम व कार्यप्रणाली को लेकर यू0पी0 किसान सभा और अवध किसान सभा का मार्ग अलग हो चुका था। यू0पी0 किसान सभा संविधानवादी रुख अपनाते हुए कोंसिल चुनाव में भागीदारी की सीख दे रही थी। दूसरी तरफ अवध किसान सभा ने कांग्रेस कार्यक्रम अपनाते हए चुनाव के बहिष्कार का प्रचार किया। असहयोगियों ने किसानों की समस्या को दूर करने का एकमात्र मार्ग स्वराज बताया।16 इन्द्रनारायण द्विवेदी ने असहयोग आन्दोलनकारियों पर किसानों को बरगलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जब इलाहाबाद में किसान सभा कार्य कर रही थी तो नए किसान सभा के स्थापना की क्या जरूरत थी।17
अब किसान, सभी के आकर्षण का मुख्य बिन्दु था। प्रश्न मात्र ये था कि कौन क्या सोचकर किसानों की बात कर रहा है। मोती लाल नेहरू व मदन मोहन मालवीय, दोनों ने प्रतापगढ़ स्टेशन पर जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ताल्लुकेदारों को लगान के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया जाना चाहिए। साथ ही ये भी कहा कि किसान अन्याय खुद मत करें पर अन्याय बर्दाश्त भी न करें। वास्तव में शहरी नेताओं द्वारा व्यक्त किए गए विचार किसानों को प्रभावित करने के लिए थे। उनको ये अंदाजा नहीं था कि ये किसान इस कदर उग्र हो जाएंगे।18 बाबा रामचन्द्र ने भी कांग्रेस कार्यक्रम को अपनाते हुए 29 दिसम्बर, 1920 को रूदौली में किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसान स्वदेशी और बहिष्कार को अपनाए जिले के विभिन्न अधिकारियों व पुलिस के जुल्म बर्दाश्त न करें। रामचन्द्र ने गाँधी जी की भाषा बोलते हुए कहा कि सरकार विश्वासघाती है और आतताई और मैं तब तक दम नहीं लूँगा जब तक इन्हें बाहर नहीं खदेड़ देता।19
दिसम्बर 1920 व जनवरी 1921 में अयोध्या में आयोजित किसान सम्मेलनों में 80 हजार से एक लाख लोगों की भीड़ जुटी थी। धीरे-धीरे किसानों को अपनी शक्ति का एहसास होने लगा था। किसानों को लगने लगा कि उनकी एकजुटता उन्हें वो सब कुछ उपलब्ध करा देगी जो अभी तक उनके लिए सपना था।20
यद्यपि कांगे्रस ने किसानों को सलाह दिया था कि जब तक स्वराज्य न प्राप्त हो जाय तब तक वे अपना प्रोग्राम स्थगित रखें व असयोग आन्दोलन के प्रोग्राम का अपना लें।21 वास्तविकता यह भी थी कि किसान भले ही असयोग आन्दोलन के साथ जुड़े थे, परन्तु उनकी मुख्य चिंता नजराना व बेदखली थी। किसान भले ही गाँधीवादी कार्यक्रम अपना रहे थे, परन्तु गाँधी जी के मूल सिद्धान्तों (सत्य-अहिंसा) से वे अनभिज्ञ थे। किसानों का गाँधी जी पर ये भरोसा था कि वे सताए हुए लोगों के सहायक है। यही कारण था कि गाँधीजी का जयकारा लगाते हुए ताल्लुकेदारों महाजनों व बनियों पर हमला किया गया।22
किसानों की उग्र गतिविधियों एवं वर्ग चेतना को देखकर सरकारी काफी व्यग्र हो गयी थी विभिन्न अधिकारियों ने इस सारी समस्या की जड़ असहयोग आन्दोलनकारियों को बताया। अधिकारियों का कहना था कि किसानों के अंदर जमींदार वर्ग के प्रति पहले से आक्रोश था जिसका लाभ उठाकर असहयोगियों ने बवंडर खड़ा कर दिया।23 यही बात है कि फैजाबाद के कमिश्नर महोदय ने अपनी रिपोर्ट में कही कि किसान आंदोलन की दो धाराएँ दिखती है। प्रथम वकीलों और किसानों का दल है जो काश्तकारों की स्थिति में सुधार के लिए संवैधानिक मार्ग अपनाने पर बल दे रहा है। दूसरा दल असहयोग आन्दोलनकारियों का है जिसका प्रतिनिधित्व बाबा रामचन्द्र कर रहे हैं। इन लोगों की गतिविधियाँ काफी उग्र एवं खतरनाक है। सरकारी अधिकारियों को बेइज्जत करना, शांति स्थिति को भड़काना और भूराजस्व इकट्ठा करने में कठिनाई पैदा करना इनका मुख्य काम है।24 ये किसान सभा निम्न कार्य कर रहे थे-
1. जमींदारों के कारिन्दों के विरूद्ध हिंसात्मक कार्यवाही करना।
2. उन काश्तकारों के विरूद्ध हिंसा का प्रयोग जो अपने को इस आन्दोलन से अलग किए हुए थे या जमींदार समर्थक थे।
3. जमींदारों की सीर भूमि पर कार्य करने से इन्कार करना।
4. सभाओं में सम्मिलित होने के लिए सब काम छोड़कर चल देना।
5. कुछ मामलों में लगान नादायगी के मामले भी प्रकाश में आए।
6. रेलवे में बिना टिकट यात्रा करना।
7. जमींदारों की सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाना।
किसानों की उग्र गतिविधियों से मात्र सरकार ही बेचैन न थी बल्कि कांग्रेस के शीर्ष नेता भी चिन्तित थे। 22 जनवरी, 1921 को जवाहर लाल नेहरू ने फैजाबाद का दौरा किया एवं हिंसा की निंदा की। गाँधी जी ने फरवरी 1921 में यू0पी0 का भ्रमण किया एवं अवध क्षेत्र की किसान गतिविधियों पर क्षोभ व्यक्त किया। उन्होंने इस बात में संदेह व्यक्त किया कि किसान अपने संगठित शक्ति का उचित प्रयोग कर पाएँगे। गाँधी जी इस बात से काफी क्षुब्ध थे कि उनके नाम पर हत्या ‘लूट’ आगजनी व हिंसात्मक कार्यवाहियाँ हुई।
गाँधी जी ने किसानों के लिए निम्न निर्देश जारी किए25
1. हम किसी को चोट नहीं पहुँचाएँगें।
2. हम दुकानों को नहीं लूटेंगे।
3. हम अपने विरोधियों को दयाभाव से प्रभावित करेंगे न कि शारीरिक शक्ति द्वारा या नाई व धोबीवंद या पानी की सप्लाई रोककर।
4. हम सरकार का कर नहीं रोकेंगे न ही जमींदार का लगान रोकेंगे।
5. किसान आन्दोलन किसानों के भले के लिए और जमींदारों के साथ बेहतर रिश्तों के लिए होना चाहिए। किसानों को अपने समझौते के प्रति ईमानदार होना चाहिए। किसानों को अपने समझौते के प्रति ईमानदार होना चाहिए चाहे वो लिखित हो या अलिखित।
6. उन्होंने यहाँ तक कहा कि जमींदारों के कुछ उत्पीड़न को भी सह लेना चाहिए क्योंकि वे भी खुद गुलाम है। सरकार जमींदार काश्तकार को लड़ाना चाहती है।
7. यदि जमींदारों के विरुद्ध कोई समस्या हो तो मोतीलाल नेहरू को इसकी रिपोर्ट करे और उनकी सलाह माने।
8. हम इस समय सविनय अवज्ञा आन्दोलन नहीं कर रहे, इसलिए सरकार की आज्ञा माननी चाहिए।
9. यदि हमारा कोई नेता गिरफ्तार होता है तो हमें उस गिरफ्तारी का विरोध नहीं करना चाहिए। गिरफ्तारी का विरोध नहीं करना चाहिए। गिरफ्तारी का विरोध करने से हमारा आन्दोलन कमजोर होगा।
10. हमें न्यायालय की स्थापना नहीं करनी चाहिए, बल्कि विवादों को व्यक्तिगत मध्यस्थता द्वारा हल करना चाहिए।
11. सर्वाधिक महत्वपूर्ण है हिंसात्मक कदापि न करें।
जवाहर लाल नेहरू ने ताल्लुकेदारों/जमींदारों से भी काश्तकारों से मिलजुलकर रहने के लिए कहा। इन्होंने किसानों से संयम रखने की अपील की ताकि गाँधीजी का स्वराज्य प्राप्त कर सके। कांग्रेस संगठन व उसका शीर्ष नेतृत्व जहाँ एक तरफ किसानो को संयमित करने का प्रयास कर रहा था वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के अन्दर इस बात की सुगबुगाहट शुरू हो गई कि किसानों को रोका नहीं गया तो यह अतिवादी रूख अख्तियार कर सकते हैं। गाँधी ने स्पष्ट कहा कि यदि किसान हिंसात्मक कार्य करते रहेंगे तो वे इस आन्दोलन से अपने को अलग कर लेंगे।26
दूसरी तरफ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने जमींदारों को आश्वस्त करते हुए बारदोली में प्रस्ताव पास किया कि कांग्रेस उनके कानूनी अधिकारों पर हमला नहीं करेगी और विवाद को समझौते द्वारा सुलझाने का प्रयास करेगी।27
सरकार ने दमनात्मक रूख अख्तियार किया व धीरे तमाम किसान नेता जेल में ठूँस दिए गए। सरकारी रिपोर्टों में इन किसानों आन्दोलनकारियों को लूटेरा, बदमाश के रूप में दर्ज किया जाता था। कांग्रेस ने भी धीरे-धीरे अपने को किसान आन्दोलन से अलग कर लिया। एक तरफ सरकारी दमन दूसरी तरफ कांग्रेस की बेरुखी ने किसान आन्दोलन को निराश के गर्त में डाल दिया।
बाबा रामचन्द्र ने कांग्रेस की बेरूखी के लिए वकीलों और शहरी नेताओं को जिम्मेदार ठहराया।28 दूसरी तरफ सरकार कांग्रेस पर भी इस बात के आरोप लगा रही थी कि कांग्रेस किसानों की आर्थिक समस्या को राजनीतिक मोड़ देकर अपना उल्लू सीधा कर रही है।29
विधान परिषद में गवर्नर ने कहा कि काश्तकारों ने न तो सरकार पर हमला बोला है न यूरोपियनों पर बल्कि उनके मुख्य निशाने पर जमींदार है जो कि उनकी समस्याओं के लिए उत्तरदायी है। ये समस्या मुख्यरूप से आर्थिक, सामाजिक है न कि राजनीतिक अवध के सम्पन्न जमींदारों की बड़ी प्रतिष्ठा रही है व उदारचित्त रहे हैं। ये बात अवश्य है कि कभी-कभी उनके कारिन्दे अत्याचार के कृत्य कर जाते हैं।30
यू0पी0 का तत्कालीन गवर्नर बटलर अवध पालिसी का बहुत बड़ा समर्थक था। ऐसे में उससे किसी बहुत बड़े सुधार की अपेक्षा नहीं थी। प्रतापगढ़ की किसान समस्या के समाधान एवं रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए प्रतापगढ़ के डिप्टी कमिश्नर की एन0 मेहता को नियुक्त किया गया था। मेहता महोदय ने निष्पक्ष ढंग से जांच करते हुए कृषक समस्याओं को स्पष्ट करते हुए अत्यन्त ईमानदारी पूर्ण रिपोर्ट सोंपी परन्तु फैजाबाद के कमिश्नर साहब ने इसे पक्षपात पूर्ण माना तथा ये आरोप लगाया कि इसमें मात्र किसान समस्याओं को ही अनुरेखित किया गया है। बटलर महोदय ने इस रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया।
ऐसा नहीं था कि ब्रिटिश सरकार अवध क्षेत्र की स्थिति से अवगत नहीं थी, परन्तु कारण ये था कि कोई भी ऐसा प्रयास जो काश्तकारों की स्थिति में सुधार करता ताल्लुकेदारों को नाराज करता। 1916 ई0 में यू0पी0 के लेफ्टिनेंट गवर्नर मेस्टन ने कहा कि भूस्वामी स्वराजियों के विरुद्ध सरकार के रक्षक है। हम कुछ ऐसा नहीं करेंगे जिससे वो नाराज हो जाय व इन अनुत्तरदायी राजनीतिज्ञों (स्वराजियों) का साथ पकड़ ले।31
जमींदार वर्ग भी इस किसान आंदोलन के लिए कांग्रेस को दोषी मानते थे। जमींदारों को पता था कि सरकार कांग्रेस के नाम पर जमींदारों का साथ देगी। इन लोगों ने कांग्रेस पर इस बात का दोष32 मढ़ा कि वो वर्गयुद्ध भड़का रही है और बोल्शेविज्म का प्रचार कर रही है। सरकार किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए दोहरी चाल चली। एक तरफ तो दमनात्मक रूख अपनाकर किसानों में आतंक कायम किया वही दूसरी तरफ काश्तकारी विधान में संशोधन की बात शुरू कर किसानों में आशा की अलख जगाई।33 सरकार इस बात के लिए प्रयत्नशील थी कि अवध माल गुजारी संशोधन अधि0 1886 में संशोधन कर काश्तकारों को कांग्रेस से अलग किया जाए। जिस विधान परिषद का विकास सरकार के इच्छानुसार हुआ था, वो इस समय जमींदारों के प्रभुत्व में थी। जमींदार ताल्लुकेदार वर्ग वर्षों से जिन अधिकारों का उपभोग कर रहा था उसमें कटौती को तैयार नहीं था। ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन (ताल्लुकेदारों का संगठन) ने इस बात पर आक्रोश जारी किया कि किसान वर्ग जमींदारों/ताल्लुकेदारों को नष्ट करने जैसी बोल्शेविक विचारधारा से काम कर रहा है। ऐसे इनको दी गई छूट इन्हें और ज्यादा प्रोत्साहित करेगी।34
सरकार की तरफ से अवध मालगुजारी अधि 1886 में सुधार के प्रयास 1921 में शुरूआत से ही हो चुकी थी। रेवेन्यू बोर्ड ने काश्तकारों में निम्न संस्तुतियाँ की।35
1. काश्तकार को उचित लगान पर भूमि की सुरक्षा मिले।
2. काश्तकार के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी को भूमि में पुश्तैनी हक मिले।
3. भूस्वामियों को काश्तकारों को बेदखल करने खुदकाश्त भूमि को सीर में तब्दील करने व मकान आदि के लिए भूमि प्राप्त करने का अधिकार हों।
चूँकि विधान परिषद के चुनाव में कांग्रेस ने भागीदारी नहीं की थी इसलिए जमींदारों को 100 निर्वाचित सीटों में से 60 पर विजय प्राप्त हुई तथा लिबरल उम्मीदवारों को 9 सीटें मिली थी। स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी जमींदारों का काफी प्रभाव था। यद्यपि लिबरल नेताओं ने इस बात के आरोप लगाए कि पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार व पुलिस बल ने जमींदारों के लिए समर्थन जुटाया। लिबरल नेबाओं ने किसानों के हित में भरपूर प्रयास किया, परन्तु जमींदार बहुमत वाले सदन एवं सरकार के ताल्लुकेदार समर्थक रूख के कारण कोई बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ।
अवध माल गुजारी अधि0 द्वारा निम्न परिवर्तन किए गए-
1. काश्तकारों के लगान निर्धारण की अवधि सात वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गई।
2. लगान के दर में उचित निर्धारण के लिए एक स्पेशल अधिकारी नियुक्त रोस्टर ईयर व्यवस्था शुरू की गई।
3. इस अधिनियम द्वारा ये तय किया गया कि वैधानिक काश्तकारों को आजीवन भू अधिकार उपलब्ध कराया गया, जिसके लगान की समीक्षा प्रति दस वर्ष बाद होगी।
4. लगान का निर्धारण ताल्लुकेदार काश्तकारों के बीच आपसी सहमति से या कोर्ट द्वारा तय किया जाएगा।
5. लगान बढ़ोत्तरी की सीमा उठा ली गई।
6. ताल्लुकेदार/जमींदार के लिए अनिवार्य किया गया कि वो काश्तकार को लगान अदायगी की पूर्ण रसीद दें।
7. नजराना को अवैध कर दिया गया।
8. जमींदार की खुदकाश्त भूमि सीर के रूप में दर्ज होगी।
9. जमींदारों के भू अधिग्रहण सम्बन्धी अधिकार को, उन्न्त कृषि, मकान बनाने, बाग लगाने आदि के लिए स्वीकार किया गया।
10. इस नवीन विधान द्वारा उपकाश्तकारों को भी दो वर्ष हेतु भू अधिकार की सुविधा दी गई।36
अवध किसान आन्दोलन व अवध मालगुजारी संशोधन अधिनियम 1921 का सीधा सम्बन्ध था। किसान, जमींदार, ताल्लुकेदार, कांग्रेस, सरकार एवं लिबरल सभी के अपने-अपने लक्ष्य थे परन्तु इतना निश्चित था कि काश्तकारों की वर्ग चेतना ने उसे केन्द्र में ला दिया था और उसकी समस्याओं की अवहेलना करना कठिन हो गया। बटलर जैसे अवध पालिसी समर्थक अंग्रेज अधिकारी द्वारा ये कहा जाना कि भूमि व्यवस्था में सुधार सम्बन्धी प्रस्तावों को ताल्लुकेदार स्वीकार करें अन्यथा राजस्व बोर्ड के सम्पूर्ण प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया जाएगा। कांग्रेस एवं किसान गठजोड़ से सरकार अत्यन्त व्यग्रता की स्थिति में थी तथा इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए हर संभव प्रयत्न कर रही थी। निश्चित रूप से संयुक्त के अवध क्षेत्र में वर्ग चेतना का प्रयोग पूरी तरह सफल था।
सन्दर्भ ग्रन्थ
1. उ0प्र0 राजकीय अभिलेखागार के द्वार पर।
2.Mishra, B.R. Land Revenue Policy in the United provinces under British rule Page 40-45
3.Ibid P. VII
4.Mehta Report, Revenue Deptt. F.N. 753 B.N. 6U.P.S.A. Lucknow.
5.Congress Agrarian Enguiry committee Report, 1936 being the report of the committee appointed by the united proviness provincial congress committee to enquiry in the Agrarian situation in the province? 1936 Page 65.
6.Reeves P.D. - Land lords & Govt. in Uttar Pradesh, Page 24.
7.Mehata Report, Page, 34 F.N. 753, B.N. 6 Revenue Deptt. U.P.S.A. Lucknow.
8.I bid P/34
9.Ibid p/10
10.Kumar Kapil, The peasant interpretation of Gandhi & non cooperation in oudh 1920-22 p/2
11.कुमार कपिल-किसान विद्रोह कांग्रेस एवं अंग्रेजी राज, पृ0 95
12.सिंह महेन्द्र प्रताप-उत्तर प्रदेश में किसान आन्दोलन, पृ0 65
13.मेहता रिपोर्ट थ्ण्छण् 753ए ठण्छण् 6 त्मअमदनम क्मचजजए न्ण्च्ण्।ण् स्नबादवूण्
14.सिंह महेन्द्र प्रताप-उत्तर प्रदेश में किसान आन्दोलन, पृ0 65
15.नेहरू जवाहर लाल-मेरी कहानी, पृ0 74-75
16ण्ैपककपहनपए डं्रपक . ।हतंतपंद न्दतमंतज पद छवतजी प्दकपंए 1920.22
17ण्त्ममअमे च्क्ण् स्ंदक सवतके व िळवअज पद न्जजंत च्तंकमेीए च्. 134ए 83
18ण्स्मंकमतए 18 श्रनदम 1920 छडडस्ए छमू क्मसीपण्
19.आज, 3 अक्टूबर 1920 छडडस्ए छमू क्मसीपण् कुमार कपिल,किसान विद्रोह, कांग्रेस एवं अंग्रेजी राज, पृ0 116
20.कुमार, कपित-किसान विद्रोह, कांग्रेस एवं अंग्रेजी राज, पृ0 116
21.Causes of recent dirtubences, riots at Raebareli, General Administration department, file no. 50/1921, U.P.S.A. Lucknow. P. 657, 659.
22.Leader, 18 June 1920.
23.Independent Jan, 281921
24.Report of the Administration of the U.P. of Agra & oudh 1920-21 P./22
25.General Administration Deptt, F.N. 50/1921 P/989
26.Independence Feb. 10, 1921, Leader June 18, 1921.
27.Pandey Gyan - Peasant Revolt & Indian Nationalism, P. 159
28.Independent 6 Feb. 1921.
29.Siddiqui Mazid - Agrarian unrest in North India 1920-1922, P-174
30-dqekj dfiy] fdlku fonzksg] dkaxzsl ,oa vaxzsth jkt] i`0 112
31.Procedings of Degislative council of the U.P. Vol. I, 31 Jan - 12 March 1921.
32.Singh Ashok Kr. - Peasants revolt & agrarian reformn P 63
33.Srivastava Sushil - Conflicts in Anagrarian Society in Avadh, P. 263
34-dqekj dfiy] fdlku fonzksg] dkaxzsl ,oa vaxzsthjkt] i`0 93
35.Ibid P-193.
36.Landlords & Govt. in Uttar Pradesh, Page 96.

डाॅ0 आशुतोष कुमार तिवारी
जे0आर0एफ0/एस0आर0एफ0
मध्य/आधुनिक विभाग
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद