Sunday 2 October 2011

19वीं शताब्दी में हिन्दी भाषा में इतिहास लेखन


मो0 जि़या खलिद
शोध छात्र,
डी0ए0वी0 कालेज, आजमगढ़

प्राचीन काल के भाारतीय इतिहास का मुख्य स्रोत मंे संस्कृत भाषा थी, मध्यकाल में फारसी और ब्रिटिश काल में अंगे्रजी रही । हिन्दी में इतिहास लेखन 18वीं और 19वीं शताब्दी में हुआ जिसके कारण हिन्दी में इतिहास लेखन बड़ा दुष्कर है क्योंकि हिन्दी में इतिहास लेखन के लिए मूल स्रोतों के लिए अच्छी संस्कृत, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान आवश्यक है। लेकिन धीरे-धीरे हिन्दी में भी लेखन कार्य हुआ बडी संख्या में मूलस्रोतों से हिन्दी में अनुवाद हुआ। जो आज भी देश-विदेश की विभिन्न पुस्तकालयों में है। इनको आधार बनाकर शोध लेख में हिन्दी इतिहास लेखन परम्परा को उदघाटित करने का प्रयास किया गया है।

          हिन्दी में इतिहास लेखन  1800 ई0 में फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना के साथ शुरू हो जाता है जिसमें हिन्दी के प्रारम्भिक विद्वान लल्लू लाल, मंुशीसदासुख लाल, इंशाअल्लाह खाँ का नाम आता है। यह प्रयास बड़ी धीमी गति से  फारसी और संस्कृत ग्रन्थों के अुनवाद के रूप में शुरू हुआ लेकिन जैसे-जैसे हिन्दी में स्रोत उपलब्ध होते गये हिन्दी में भी इतिहास लेखन का प्रचलन तेजी से बढ़ा। हिन्दी भाषा में कुछ इतिहास लेखन को काल क्रमानुसार प्रस्तुत किया जा रहा है।

भारत का आरम्भिक इतिहास- जो ब्रिटिश काल में हिन्दी में इतिहास की पुस्तक थी। जिसमें आधुनिक भारतीय इतिहास 1934 ई0 तक का वर्णन है। यह पुस्तक आधुनिक भारतीय इतिहास के संबंध में प्रमुख स्रोत है।1 अंग्रेजों के अधीन लिखा गया हिन्दी में इतिहास निश्चित रूप से साम्राज्यवादी दृष्टिकोण रखता था और लेखक इतिहास लेखन के पुनीत कार्य के विशिष्ट गुणों की आहवेलना करके इसे लिखा था। इसी ग्रंथ में मेयो की प्रशंसा में लिखा है-‘‘लार्ड मेया ने जेलखानों के सुधार कि ओर ध्यान दिया अभाग्य वश इस पुनीत कार्य के संबध में ही उसकी जान गई। सुधार के संबंध में वे अंडमान या डाडमिल टापू गया। निरीक्षण करके लौट ही रहा था कि एक पठान कैदी उसके पीठ में छूरा मार दिया। इस हत्याकाण्ड की खबर से प्रजा को बहुत दुःख हुआ। निर्दयी कैदी को यह खबर ही नही थी कि वह देश के कितने बडे़ शुभचितंक की जान ले रहा है।2 इस प्रकार के साम्राज्यवादी दृष्टिकोण के इतिहास लेखन ने इतिहास लेखन के मानक को दुर्बल किया परन्तु इतिहास लेखन चलता रहा।
इसी प्रकार ‘‘भारतीय इतिहास की मीमांसा’’ हिन्दी में एक महत्वपूर्ण इतिहास ग्रंथ है। जिसके लेखक जयचन्द्र विद्यालंकार एक निर्भीक लेखक हैं। इस ग्रंथ में आर्यो से लेकर महाजनपद युग, भारत के उत्तर पश्चिमी पड़ोसी क्षेत्र, पूर्वी मध्यएशिया, सातवाहन काल का वर्णन के साथ ही क्षेत्रीय इतिहास के अन्तर्गत गंगापार का हिन्द, गुप्त साम्राज्य, भारत की तुर्क सल्तनते, मध्ययुग के प्रादेशिक राज्यों का विस्तृत और रोचक वर्णन है कुल मिलाकर हिन्दी इतिहास लेखन का एक समग्र गं्रथ। वैदिक काल के संबंध में लिखते है ‘‘घोड़ा आर्यो की मुख्य सवारी थी यहाँ तक की पीपल के पेड़ों तले जब इनके पड़ाव लगते तब उन पेड़ों के नीचे घोड़े (अश्व) बांधे जाने के कारण उनका नाम अश्वत्थ पड़ गया3
हिन्दी इतिहास लेखन में डाॅ0 राजेन्द्र नागर का नाम उल्लेखनीय है। जिन्होंने प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार विंसेएट स्मिथ की प्रमुख अंग्रेजी कृति ‘‘महान मुगल अकबर, का हिन्दी में अनुवाद करके हिन्दी इतिहास लेखन परम्परा को समृद्ध किया। वास्तव में स्मिथ अकबर के चरित्र से बहुत प्रभावित था उसे उसके बारे में लेखन की प्रेरणा तब मिली उसी के शब्दों में ‘‘विलियम स्लीमैन के इस उत्साहपूर्ण कथन से कि 80 सम्राटों में अकबर मुझे सदैव वैसा ही लगा जैसा कवियों में शेक्सपीयर6
1927 ई0 में हिन्दी में समग्र इतिहास लेखन को प्रचलन तेजी से हुआ इसी कड़ी में श्री आचार्य कृत भारतवर्ष का इतिहास उल्लेखनीय है। यह भी वृहत इतिहासग्रन्थ है जो 10 भागों में विभक्त है और इतिहास के सभी पहलुओं को समेटे हुए है। महाभारत से शुरू करने के पीछे उनका तर्क है कि ‘‘भारतीय राजनैतिक इतिहास का केन्द्र दिल्ली बहुत प्राचीन काल से है। दिल्ली नगर की नीव सम्राट युघिष्ठिर ने रक्खी थी। दिल्ली को सबसे पहले भारतवर्ष की राजधानी बनने का सौभाग्य है8
हिन्दी इतिहासकारों ने अधिकाधिक अनुवाद कर मूल स्रोतों को हिन्दी में एकत्रित किया। इसी उद्देश्य से फोर्टविलियम कालेज की स्थापना हुई थी। इस परिपे्रक्ष्य में गौरीचन्द्र, हीराशंकर ओझा, मुंशी देवी प्रसाद, राजा लक्ष्मणसिंह और शिवप्रसाद सिंह सितारे हिन्द का नाम उल्लेखनीय है।
इसी क्रम में मो0 हबीब और खलीक अहमद निजामी की कृति ‘‘दिल्ली सल्तनत’’ है। जिसका हिन्दी में अनुवाद प्ण्ब्ण्भ्ण्त् के अन्तर्गत विशेश्वर प्रसाद ने कुशलत से किया है। इसमें इस्लाम के आरम्भ से लेकर 1526 ई0 तक की घटनाओं का वर्णन है।9 इसी प्रकार ‘‘ए0एल0 बाशम का अ˜ुत भारत’’ का हिन्दी अनुवाद वैंकेटेश चन्द्र पाण्डेय ने कुशलतापूर्वक किया है। यह गं्रथ मुसलमानों के आगमन से पूर्व भारतीय उप-महाद्वीप का एक सर्वेक्षण ग्रंथ है।10 एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘मुगल साम्राज्य का उत्थान और पतन’ डाॅ0 राम प्रसाद त्रिपाठी की मूल अंग्रेजी का अनुवाद कालिदास कपूर ने किया है। इसमें मुगल साम्राज्य के उत्थान और पतन के कारकों को सूक्ष्मता से विश्लेषित किया गया है। भाषा पर उनकी पकड़ अ˜ुत थी चीजों को बड़ी खूबी के साथ समझ कर तार्किक ढंग से लिखते थे।12
हिन्दी इतिहास लेखन परम्परा में डाॅ0 हेरम्ब चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कृति ‘मुगलकालीन इतिहासकार’, इतिहास लेखन कीे एक महत्वपूर्ण कृति है इसका महत्व इतिहास लेखन मंे इसलिए भी बढ़ जाता है कि इस पुस्तक का विषय वस्तु ही इतिहासकारों के जीवन से संबंधित विभिन्न इतिहासकारों के गुण दोष उनकी शैलियों का विस्तृत विवरण है।12 इस परम्परा में मंुशी देवीप्रसाद का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने जहाँगीरनामा, शाहजहाँनामा, औरंगजेबनामा नामक ग्रंथो का हिन्दी मंे अनुवाद किया देवीप्रसाद चूंकि फारसी उर्दू के विद्वान थे इसलिए इनके हिन्दी अनुवाद में उर्दू फारसी और अरबी शब्दों की भरमार है। जिससे साधारण पाठकांे को धाराप्रवाह पढ़ने और समझने में कठिनाई होती है। इन सबके बावजूद देवी प्रसाद के ग्रंथ महत्वपूर्ण हैं औरगंजेबनामा से  ‘दारा ने लाहौर पहुँचकर 20 हजार सवार एकत्र कर लिए और बहादुर खाँ और खलीलुल्ला खाँ के सतलज से उतरने की खबर सुनकर रास्ता रोकने के लिए दाऊद खाँ के साथ बहुत से आदमी व्यास नदी पर भेज दिये। पीछे से सिपहर दाराशिकोह को भी भेजा गया। बादशाह ने यह सुनकर राजा जयसिंह को भी अगले लश्कर में शामिल किया। दारा यह जानकर लाहौर में भी न टिका और मुल्तान की ओर चला गया। इन्हीं दिनों महाराजा जसवंत सिंह भी शर्माये हुआ अपने वतन आया। बादशाह ने कसूरा माफ करके उसे दिल्ली भेज दिया।‘13
19वीं शती0 हिन्दी इतिहास लेखन में कुछ महत्वपूर्ण आयामा का निर्धारण किया और इतिहास में राजा-महाराजा, दरबारी क्रिया कलापों से हटकर समाज के निम्न वर्गो को भी महत्व दिया जाने लगा। कृषक, मजदूरों, शिल्पियों, एवं आदिवासियों के जीवन को इतिहासलेखन का केन्द्र बना दिया गया। इसी तरह के इतिहासकार है शिवतोष दास जिन्होंने ‘‘स्वतंत्रतासेनानी वीर आदिवासी’’ नामक पुस्तक में इस सिद्धांत के अन्तर्गत उन वीर आदिवासियों का उल्लेख किया है जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से मोर्चा लिया था। ’’इतिहास केवल कुछ घटनाओं का पोथा या पुलिन्दा नहीं बल्कि उन घटनाओं की आत्मा होता है। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास विशेषकर उस इतिहास की जो अंग्रेजों ने लिखा है सबसे दुःखद स्थिति यह है कि उसे शरीर और आकार तो दे दिया गया किन्तु उसकी आत्मा छीन ली गई। परिणाम यह हुआ कि इतिहास के सामान्य पाठकों को वीर बिरसा मुण्डा और भील विद्रोही ताँतियों को संगाठित करने वाले क्रांतिवीर वासुदेव बलवंत फाड़के डाकू या लुटेरे दीखने लगे। ऐसे आत्महीन इतिहास का लेखन जिस तरह अंग्रेजों ने करवाया उसे समझे बिना हमने उसे मान लिया न केवल माना बल्कि अगली पीढि़यों को हम वह पढ़ाने भी लगे। इस इतिहास से देशभक्त आदिवासी सपूतों का नाम भी मिटा दिया14
अपने इस शोध लेख में इस निष्कर्ष पर पहुुँचा कि हिन्दी में स्रोतों का अभाव तो है परन्तु कठिन प्रयास करने के बाद हिन्दी इतिहास लेखन के स्रोत को एकत्रित एवं संकलित कर उसका विश्लेषण और तुलानात्मक अध्ययन के बाद हिन्दी इतिहास लेखन को और अधिक समृद्ध बनाया जा सकता है। साथ ही इतिहास के विषयवस्तु को राजमहल अमीरों और सामंतो के चंगुल से निकालकर कृषक मजदूर निम्न वर्ग के आदिवासियों के जीवन और उनके संघर्ष की गाथाओं को इतिहास लेखन कि विषय वस्तु बनाना होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. भारतवर्ष का प्रारम्भिक इतिहास (भारत में ब्रिटिश कालीन उच्च शिक्षा की पुस्तक)-1934 राजकीय लाइबे्ररी इलाहाबाद में उपलब्ध है।
2. भारतीय इतिहास की मीमांसा लेखक जयचंद्र विद्यालंकार हिन्दी भवन जालंधर,  1960 पेज 33
3. महान मुगल अकबर मूल लेखक विंसेण्ट ए0 स्मिथ अनुवादक-डाॅ0 राजेन्द्र नाथ नागर हिन्दी समिति सूचना विभाग उ0प्र0 लखनऊ प्रथम संस्करण 1967 पेज 7
4. ‘‘भारतवर्ष का इतिहासलेखक आचार्य रामदेव जी गुरूकुल वि0वि0 काँगड़ी प्रथम संस्करण मार्च 1927
5. दिल्ली सल्तनतखलीक अहमद निज़ामी अनुवादक विशेश्वर प्रसाद प्रथम हिन्दी संस्करण 1978, पेज 168
6. अद्भुत भारत ए0एल0 बाशम अनुवादक वेंकेटेश चन्द्र पाण्डेय प्रकाशक-शिवलाल अग्रवाल  आगरा, पेज 1
7. मुगल साम्राज्य का उत्थान और पतन डाॅ0 राम प्रसाद त्रिपाठी अनुवादक कालिदास कपूर प्रकाशक सेण्ट्रल बुक डिपो इलाहाबाद 1961 पेज 219
8.‘‘मुगलकालीन इतिहासकार’’डाॅ0 हेरम्ब चतुर्वेदी प्रकाशित राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव इलाहाबाद पेज 14
9. ‘‘औरंगजेबनामा’’साकी मुस्तैदखाँ अनुवादक मंुशी देवी प्रसाद पंचशील प्रकाशन जयपुर पेज 138
10.स्वतंत्रता सेनानी वीर आदिवासी लेखक शिवतोषदास प्रकाशन-किताबघर अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली। मुद्रक-चोपड़ा प्रिटंर्स शहदारा नई दिल्ली। प्रथम संस्करण 1994, पेज 9