Sunday 2 October 2011

हिन्दू धर्म: समाज का नैतिक कत्र्तव्य


 डाॅ0 ए0के0 झा 
रीडर, समाजशास्त्र विभाग,
दी0 द0 उ0 रा0 स्ना0 महाविद्यालय, सैदाबाद, इलाहाबाद।
अरूणेन्द्र राय
शोधकर्ता, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर।


          यह माना जाता है कि हिन्दू धर्म की व्याख्या करना बहुत कठिन है। फिर भी, हम यह कह सकते हैं कि हिन्दू धर्म में कुछ विशिष्ट मूल केन्द्रीय विश्वास पद्धतियाँ हैं, ये हैं- ब्रह्म, आत्मा, कर्म, धर्म, मोक्ष की धारणा, और शुद्धि और अशुद्धि के विचार। हिन्दू धर्म में अनेक सम्प्रदाय और देवी-देवता हैं। हिन्दू जीवन पद्धति के दर्शन इस धर्म की सामाजिक संस्थाओं में होते हैं। हिन्दू धर्म विश्व के तमाम महान धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। धर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखा जाए तो उसमें अनेक आन्दोलन हुए हैं और अनेक बाहरी और आंतरिक ताकतों से इसका टकराव हुआ है। इसके अतिरिक्त देश में भाषाई और क्षेत्रीय भिन्नताओं के होते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर सभी हिन्दू लोग एक सूत्र में बंधे हुए हैं।
भारत के 80 फीसदी से भी अधिक लोग हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं। फिर भी हिन्दू धर्म भारत तक ही सीमित नहीं है, हिन्दू धर्म को मानने वाले हिन्दू बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बर्मा, (म्यमार), इण्डोनेशिया, पूर्व और दक्षिण अफ्रीका, कैरिवियाई द्वीप समूह, गुयाना, फिजी, इंग्लैण्ड, अमेरिका व कनाडा और विश्व के अन्य अनेक देशों में भी फैले हुए हैं।
हिन्दू धर्म के अनेक ग्रन्थों का निचोड़ है, जैसा कि एम0एन0 श्रीनिवास और ए0एम0 शाह (1972) ने कहा है।1  हिन्दू  धर्म के सिद्धान्त किसी एक अकेले ग्रन्थ में से नहीं लिए गए, न ही हिन्दू धर्म का कोई एक अकेला ऐतिहासिक संस्थापक है। हिन्दू धर्म में अनेक धार्मिक ग्रंथ मिलते हैं। ये हैं - वेद, उपनिषद, वेदान्त, धर्मशास्त्र, निबोध, पुराण इतिहास, दर्शन, अगानास, महाभारत, रामायण आदि। हिन्दू धर्म में देवता भी एक नहीं, अनगिनत हैं और हिन्दू होने के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि व्यक्ति देवता के सार में विश्वास करें। इसलिए हिन्दू धर्म को धर्मशास्त्रीय, आध्यात्मिक या स्थानीय स्तरों पर मानने के लिए विविध प्रकार के पारस्परिक सम्पर्क के रूप में देखा जा  सकता है।
हिन्दू धर्म विश्वास और व्यवहार के विविध घटकों को जोड़कर उन्हें एक समूचे रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें समूचा जीवन आ जाता है। इसमें धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक और कलात्मक पक्ष आ जाते हैं। इसलिए हिन्दू धर्म की कोई सटीक व्याख्या या परिभाषा नहीं की जा सकती। लेकिन, हाँ, कुछ ऐसी सामान्य विशेषताओं को अवश्य बताया जा सकता है, जो अधिकांश हिन्दुओं में पायी जाती है। हिन्दू धर्म विश्व के तमाम महान धर्मों में सबसे पुराना धर्म है।2 सामाजिक उद्विकास और परिवर्तन की प्रक्रिया में हिन्दू धर्म में विभिन्न सम्प्रदाय बन गये। प्रत्येक सम्प्रदाय के अपने अलग देवी-देवता और ग्रन्थ हैं। लेकिन सभी हिन्दू सम्प्रदायों के मूल में कुछ स्थाई विश्वास पद्धतियाँ मिलती हैं। जो ब्रह्मा, आत्मा, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की हिन्दू अवधारणाओं और शुद्धि-अशुद्धि के विचारों पर केन्द्रित हैं।
हिन्दू लोक एक चिरंतन, अनन्त और सर्वव्यापी शक्ति में विश्वास करते हैं जिसे वे ब्रह्म कहते हैं। यह ब्रह्म जीवन के प्रत्येक रूप में विद्यमान है। ब्रह्म और आत्मा का संबंध हिन्दू धर्म का मुख्य सरोकार रहा है।3 वैसे, इस सम्बन्ध को लेकर अलग-अलग तरह से विचार या मत प्रचलित हैं। एक मत के अनुसार परमेश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है और ब्रह्म सम्पूर्ण और निर्गुण हैं, लेकिन अधिकांश अन्य मत परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, और  एक ओर ब्रह्म के साथ तो दूसरी ओर आत्मा के साथ परमेश्वर के सम्बन्ध को मानते हैं। आत्मा को अविनाशी माना जाता है और वह मनुष्य, पशु या दैवीय रूप धारण करने के एक अंतहीन चक्र से गुजरती है और यह पिछले जन्म के अच्छे या बुरे कर्म के अनुपात से प्रभावित होती है। बुरे या अच्छे का निर्णय धर्म के आधार पर होता है।
धर्म के अनेक मिश्रित अर्थ निकलते हैं। इसमें ब्रह्मांडीय, नैतिक, सामाजिक और वैधानिक सिद्धान्त आते हैं जो एक व्यवस्थित संसार की धारणा को आधार प्रदान करते हैं।4 सामाजिक संदर्भ में, धर्म सदाचारी जीवन की परिभाषा में धर्म परायणता के आदेश का प्रतीक है और स्पष्ट कहा जाए तो, धर्म का सम्बन्ध सामाजिक व्यवहार के उन नियमों से है जिन्हें पारम्परिक रूप में वर्ण आश्रम और गुण के संदर्भ में प्रत्येक व्यक्ति (कर्ता) के लिए निर्धारित किया गया है। आसान शब्दों में कहें तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए आचार का एक तरीका है जो सर्वाधिक उपयुक्त हैः यह उस व्यक्ति का स्वधर्म होता है।
वास्तव में, धर्म सदाचारी जीवन की आधारशिला है। इस तरह धर्म में आर्थिक और राजनीति लक्ष्यों और आनन्द को प्राप्त करने का युक्ति संगत प्रयास, शामिल रहता है। जीवन के लक्ष्य (पुरूषार्थ) में मोक्ष अर्थात् अंतज्र्ञान के माध्यम से जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति भी शामिल रहती है। अर्थ और काम को समेटे हुए धर्म जीवन का एक महान रूप है और मोक्ष उसका विकल्प है।5
संदर्भ ग्रन्थ-सूची
1.श्रीनिवास,एम0एन0 रिलीजन एण्ड सोसाइटी अमंगद कुर्गस आॅफ साउथ इण्डिया, 1952।
2.गोल्डेन वाईजर , रिलीजन एण्ड सोसाइटी 1917।
3.कपूर, त्रिभुवन  रिलीजन एण्ड रिचुअल इन रूरल इण्डिया 1988,।
4.लोंग, एण्ड्रयू , दि मेकिंग आॅफ रिजिनल1898।
5.माथुर, के0एस0 , मीनिंग आॅफ हिन्दूइज्म ए माॅलवा विलेज 1961।