Sunday 2 October 2011

नव संस्कृति निर्माण में मीडिया की सशक्त भूमिका


कचंन सिंह
शोध छात्रा,
उ0 प्र0 रा0 ट0 मु0 विश्वविद्यालय, इलाहाबाद

          मीडिया प्रौद्योगिकी के अधिकाधिक प्रयोग के कारण मानव जीवन की गतिविधियों में क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं। आदिकाल से चली आ रही संस्कृति की मुख्य धारा अब परिवर्तित होती जा रही है। इस परिवर्तन का मुख्य कारण है सांस्कृतिक हस्तान्तरण। प्रत्येक पीढ़ी, पारम्परिक संस्कृति में जो उसे विरासत में मिलती है, अपने ज्ञान और अनुभव को जोड़ती है। इस प्रकार वह प्राचीन संस्कृति में अपने ज्ञान अनुभव जोड़कर अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित करती है। सांस्कृतिक हस्तान्तरण का यह क्रम पीढ़ी दर पीढ़ी निर्बाध से चलता रहता है। इस हस्तान्तरण की प्रक्रिया में एक समय ऐसा आता है जब प्राचीन संस्कृति का मूल स्वरूप परिवर्तित हो जाता है। यही परिवर्तित संस्कृति समाज में नव संस्कृति के रूप में प्रतिष्ठित होती है। नव संस्कृति का तात्पर्य संस्कृति की नवीनता से है। मानव का यह स्वभाव है कि वह समानुकुल परिवर्तनों को सुविधानुसार आत्मसात करता है।
आधुनिक युग की जीवन शैली इतनी जटिल हो गयी है कि मनुष्य कम से कम समय में, अपने सारे निर्धारित कार्य सम्पन्न करना चाहता है। इस आपा-धापी और समायाभाव का प्रभाव उसकी जीवन शैली पर पड़ता है और वह जीवन-यापन की प्राचीन मान्यताओं को भुलाकर अपनी सुविधानुसार जीवन शैली अपनाता है। इस प्रकार उसके दैनिक आचरण के तरीके बदल जाते हंै। खान-पान, पहनावा, संस्कार आदि सभी बदल जाते हैं। आज मनुष्य के पास भोजन करने तक का भी समय नहीं है किन्तु जीवन के लिए भोजन की आवश्यकता को देखते हुए  ’’फास्ट फूड’’ संस्कृति अपना ली गयी है। इसमें भोजन बनाने, खाने और उसे पचाने में अपेक्षाकृत कम श्रम, समय व्यय करना पड़ता है। आवश्यक पौष्टिक तत्वों का समावेश करके वह कम समय में ही अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना चाहता है। यही स्थिति पहनावे- वेषभूषा, संस्कृति आदि में भी देखने को मिलती है।
आज के युग में मनुष्य वैज्ञानिक उपकरणों पर निर्भर है। इससे भी हमारी संस्कृति में परिवर्तन आए हैं और प्राचीनता की जगह आधुनिकता का वर्चस्व दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इसमें मीडिया की भूमिका अति महत्वपूर्ण दिखाई पड़ती है। ‘‘ संचार तकनीक के विकास ने जिस क्षेत्र को सर्वाधिक प्रभावित किया  के विकास के साथ हुआ। संचार तकनीक के विकास से पत्रकारिता की गति बढ़ी हैए पत्रकारिता विधा के नये आयमों का विकास और इसमें अमूल चूल परिवर्तन हुआ हेै।’’1 मीडिया प्रौद्योगिकी के अधिकाधिक प्रयोग का प्रभाव समाज की अर्थ-व्यवस्था एवं प्रशासनिक व्यवस्था पर व्यापक रूप से दिख रहा है। प्राचीनतम संस्कृति अब आधुनिकतम हो गयी है। नव संस्कृति के विभिन्न कारकों की अगर बात की जाए तो अनेक कारकों में से कुछ इसमें बेहद महत्वपूर्ण हंै। जैसे आधुनिकता, औद्योगीकरण अर्थव्यवस्था, खान-पान आदि ये सब नव संस्कृति की ही देन है। मीडिया प्रौद्योगिकी के अधिकाधिक प्रयोग के कारण मानव जीवन की विभिन्न गतिविधियों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आयें हैं। इसका प्रभाव समाज की अर्थ व्यवस्था एवं प्रशासनिक व्यवस्था पर व्यापक रूप से पड़ा है। व्यापारिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों में मीडिया ने एक विशेष स्थान अर्जित कर एक नई व्यवस्था का सूत्रपात किया है। ये नई व्यवस्था ही आधुनिक संस्कृति है। जिसे नव संस्कृति की संज्ञा दी जा सकती है और इस संस्कृति का जन्म, संरक्षण एवं पोषण सब मीडिया द्वारा ही हो रहा है। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि नव संस्कृति के संवाहक के रूप में मीडिया सशक्त भूमिका निभा रहा है। इसके विविध रूप संस्कृतिक संचार में सहायक हंै। सर्वप्रथम ग्राम्य संस्कृति से उपजी पारम्परिक मीडिया ने इसमें अपनी अलग भूमिका निभाई। इसने देशवासियों के धार्मिक, सांस्कृतिक ऐतिहासिक एवं सामाजिक जीवन के निकट पहुॅच कर बतो को लोगों तक पहुुचना इनकी विषय वस्तु जन सामान्य की परंपरा, रीतिरिवाज, उत्सव और समारोह से सम्बद्ध बातें होती हैं। इसमें रोचकता और अपनापन होता है। लोक कलाओं का उद्भव और विकास अनपढ़, अकृत्रिम ग्रामीण जनता के बीच हुआ। ग्रामीण परिवेश के  संचार के पारम्परिक माध्यमों में पाठकों, श्रोताओं, दर्शकों से तादात्म्य स्थापित कर लेने की अद्भुत क्षमता होती है। जैसा कि मैक ब्राइड आयोग का कथन है कि- ‘‘जन सामान्य के प्रति अपने व्यापक आकर्षण और लाखों निरक्षर लोगों के गहनतम संवेगों को छूने के अपने गुण की दृष्टि से गीत और नाटक का माध्यम अद्वितीय होता है।’’
विश्व के सभी अविकसित एवं विकासशील राष्ट्रों में, नशा उन्मूलन, साक्षरता अभियान, पोलियो उन्मूलन, एड्स नियंत्रण आदि कार्यक्रमों की सफलता बहुत हद तक इन पारम्परिक माध्यमों पर ही निर्भर करती है। धार्मिक अन्धविश्वास, कुपोषण, दहेज आदि सामाजिक बुराइयों के विरूद्ध जागृति पैदा करने में पारम्परिक माध्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण है। पारम्परिक मीडिया की इस प्रभाव क्षमता से प्रभावित होकर इलेक्ट्राॅनिक मीडिया भी इसे आत्मसात कर रही है। पारम्परिक मीडिया अपनी संस्कृति का सफलता पूर्वक संचार करती है। यही कारण है कि नवीन सकारात्मक सांस्कृतिक परिवर्तनों का प्रचार-प्रसार भी पारम्परिक मीडिया द्वारा ही किया जाता है। इससे यह स्पष्ट हैे कि नव संस्कृति के संवहन में पारम्परिक मीडिया की महती भूमिका है। इसके तत्पश्चात् बात आती है प्रिन्ट मीडिया की। इसके बारे में स्पष्ट करते हुए डाॅ0 अर्जुन तिवारी ने लिखा है, ‘‘लोक मानस को अभिव्यक्ति करने की जीवन्त विधा ही पत्रकारिता है। जिससे सामयिक सत्य मुखरित होते हैं। समय और समाज के सन्दर्भ में सजग रहकर नागरिकों में दायित्व बोध कराने की कला को पत्रकारिता कहते है। जन संवेदना के संचार का सर्वसुलभ प्रभावकारी जन माध्यम ही पत्रकारिता है।’’2
युगबोध के प्रमुख तत्वों के साथ ही मानवता के विकास और विचारोत्तेजन का राजमार्ग ही पत्रकारिता है जिससे जन जीवन पल-पल उद्वेलित होता रहता है। समाज, संस्कृति, साहित्य, दर्शन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रसार के चलते मानव संघर्ष,, क्रान्ति, प्रगति, दुर्गति से प्रभावित जीवन सागर में उठने वाले ज्वार भाटा को दिग्दर्शित करने वाली पत्रकारिता अत्यन्त महत्वपूर्ण हो चुकी है। जनता, समाज, राष्ट्र और विश्व को गरीबी का भूगोल, पूंजीपतियों का अर्थशास्त्र और नेताओं का समाजशास्त्र पढ़ाने में पत्रकारिता ही सक्षम है। इस जीवन्त विद्या से जन-जन के सुख-दुख, आशा, आकांक्षा को मुखरित किया जाता है। पत्रकारिता अपने सांस्कृतिक परिवेश से पूर्ण रूप से प्रभावित होती है। समाचार पत्रों के आकार-प्रकार, मेकअप और प्रस्तुतीकरण में निरंतर हो रहे परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन के ही परिचायक हंै। वर्तमान समय की पत्रकारिता में तकनीकी और प्रौद्योगिकी परिवर्तन स्पष्ट हैं। भारतीय परिवेश में जिस हिन्दी भाषा में ज्ञान, दर्शन, और रचनात्मक सृजन के मानदण्ड रचे गये हों उसके लिये यह स्वाभाविक है कि अब वह आधुनिक तकनीकों से अपना तालमेल बनाये। आधुनिक तकनीक नव संस्कृति की संवाहक है और उससे तालमेल बिठाकर पत्रकारिता भी नव संस्कृति की संवाहक बन गयी है।
सूचना तकनीक के अधिकाधिक प्रयोग और विशेष रूप से इंटरनेट के विस्तार के कारण सारी दुनिया के दृष्टिकोण में तेजी से बदलाव आ रहा है। जिस गति से विश्व में सूचनाओं का आदान-प्रदान हो रहा है। उसी अनुपात में इंटरनेट एक क्रान्तिकारी माध्यम के रूप में उभर रहा हैं। इसका लोगों, परिवारों, पूरे समाज, अर्थ-व्यवस्था और देशों की प्रशासनिक व्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है। प्रिन्ट मीडिया भी इससे अलग नहीं है। प्रिन्ट मीडिया में काम करने वाले लोग दिनों-दिन  जानकारी और स्रोत के लिए इंटरनेट को अपनाने लगे हंै। राष्ट्रीय, प्रादेशिक अथवा क्षेत्रीय स्तर का शायद ही कोई ऐसा समाचार पत्र हो जिसने इंटरनेट को न अपनाया हो। इस प्रकार नव संस्कृति की पहचान बन चुकी आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी का आश्रय लेकर अब प्रिन्ट मीडिया भी अपने प्राचीन मूल्यों, आदर्शों को संशोधिक करके सूचना शिक्षा एवं मनोरंजन का व्यवसाय करने लगी है। पहले पाठकों की रूचि परिष्कृत करने के लिये समाचार पत्रों का प्रकाशन होता था। अब पाठकों की रुचि का सर्वेक्षण करके उसके अनुरूप समाचार पत्रों का प्रकाशन किया जाने लगा है। पाठकों की रुचि नव संस्कृति को अपनाने में ज्यादा है। इसीलिये अब समाचार पत्र एवं पत्रिकएँं को नव संस्कृति के संवाहक के रूप में प्रस्तुत कर रहे है। अतः यह स्पष्ट है कि आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग करके प्रिन्ट मीडिया नव संस्कृति की प्रमुख संवाहक बन गयाहै। प्रिन्ट मीडिया के द्वारा शिक्षित जनमानस की विचारधारा में परिवर्तन लाकर उन्हें नव संस्कृति के प्रसार में वैचारिक योगदान के लिये प्रेरित किया जाता है। यह एक स्पष्ट प्रमाण है कि प्रिन्ट मीडिया आधुनिक युग में नव संस्कृति की प्रमुख संवाहक है तो वहीं लेक्ट्रानिक मीडिया ने इसमें चार चांद लगा दिये हं। संचार के इलेक्ट्रानिक माध्यमों में रेडियो, सिनेमा और टेलीविजन अन्य की अपेक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण और सर्वसुलभ हैं इनके द्वारा सांस्कृतिक संचार का कार्य विश्वव्यापी और प्रभावी हो गया है। जहाॅ तक हिन्दी पत्रकारिता का सावल है-‘‘संचार क्रान्ति की आधुनिक तकनीक हिन्दी पत्रकारिता के लिए साधन मात्र है जिसका सकारात्मक उपयोग ही मंगलकारी है। हिन्दी पत्रकारिता का उद्देश्य जन चेतना का प्रसार, अन्याय का प्रतिकार और भ्रष्टाचार को उजागर करना है। यही उसका साध्य है।’’3
वर्तमान संचार क्रान्ति की अग्रदूत सूचना प्रौद्योगिकी ने रेडियो को एक नये दौर में पहुॅचा दिया है। इससे रेडियो द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों में गुणात्मक सुधार हुआ है। श्रोताओं की संख्या में वृद्धि हुई है। अपने श्रोताओं तक सूचनाओं के प्रसार तथा शिक्षाप्रद एवं मनोरंजक कार्यक्रमों के प्रसारण द्वारा समाज के सर्वांगीण विकास में रेडियो एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है, तो वहीं आधुनिक संचार क्रान्ति में टी0वी0 की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। टी0वी0 किसी राष्ट्र की प्रगति का प्रामाणिक व्याख्याता है। ये राष्ट्र के सांस्कृतिक स्वरूप का दर्पण है। मनुष्य के दैनिक जीवन में टी0वी0 की घुसपैठ ने जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इसके माध्यम से हमारे जीवन में सूचनाओं का विस्फोट हो रहा है। जिस गति से वर्तमान विश्व में टी0वी0 का विकास हुआ है। उसी गति से विश्व की संस्कृति भी परिवर्तित हुई है। तात्कालिकता, घनिष्ठता और विश्वसनीयता के कारण टी0वी0 सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में सर्वाधिक सशक्त भूमिका का निर्वाह कर रहा है। वहीं सिनेमा का प्रयोग प्रायः मनोरंजन के लिये ही किया जाता है। इसकी आवश्यकता की अनुभूति तब होती है जब व्यक्ति थक जाता है। ये मस्तिष्क को खुराक देता है और हृदय को आन्दोलित करता है। यह ऐसा प्रभावकारी माध्यम है जो शिक्षित-अशिक्षित, धनी-निर्धन, नर-नारी तथा सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। राष्ट्रीय एकता, अछूतोद्धार, नारी जागरीण, अन्याय, शेषण, भाषावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद जैसे प्रश्नों पर जन-जन को जागृत करने वाला माध्यम सिनेमा ही हैं। ललित कलाओं के संगम के रूप में प्रदर्शित सिनेमा सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक चेतना का साधन तो है ही, जनता को प्रशिक्षित करने की भी उसमें अद्भुत क्षमता है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि अपने इन बहुआयामी गुणों के कारण सिनेमा संचार का एक सशक्त माध्यम है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चाहे पारम्परिक मीडिया हो, या इलेक्ट्रानिक मीडिया अपनी प्रसार सीमा के अन्तर्गत सभी अपने प्रभाव क्षमता का पूर्ण उपयोग करके नव संस्कृति के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहें हैं।
संन्दर्भ ग्रंथ
1. डा0 शशि भूषण कुमार ‘शशि ’, शोध संचयन (पत्रिका), जनवरी 2010,पृष्ठ-103
2. डा0 अर्जुन तिवारी, जन संचार समग्र, पृष्ठ-64
3. डा0 शशि भूषण कुमार ‘शशि ’ , शोध संचयन, जनवरी 2010, पृष्ठ-107