Saturday 2 January 2010

माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों में मूल्यों की शिक्षा


जय प्रकाश पटेल व डाॅ0 रेखा शुक्ला,
शोध छात्र, उ0प्र0 राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद।
रीडर-शिक्षा संकाय, हण्डिया पी0जी0 काॅलेज हण्डिया, इलाहाबाद।



वर्तमान समय में आवश्यकता इस बात की है कि युवा एवं प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को उनके विकास के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध कराया जाए। तभी उसके अन्दर सीखने की भावना जागृत होगी तथा शिक्षा का औचित्य भी प्रासंगिक होगा। बालक को शिक्षा द्वारा ही सुसंस्कृत बनाया जा सकता है। अगर हम बालकों को शिक्षा के साथ-साथ मूल्यों की ओर प्रेरित करें तो हम अपनी संस्कृति के अस्तित्व को बनाये रख सकते हैं अन्यथा बालक के अन्दर अनास्था, अनिच्छा आदि के भावों के घर कर जाने के कारण वह दुराचरणों से ग्रस्त हो जाएगा जिससे बालक का विकास अवरुद्ध हो जाएगा।यह सत्य है कि जब बालक का विकास होगा, तभी परिवार समाज और राष्ट्र विकसित होगा।
मूल्य -टंसनम(वेल्यू) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के टंसमतम शब्द से मानी जाती है। यह वस्तु की उपयोगिता व्यक्त करता है। मूल्य के लिए संस्कृत में ‘इष्ट’ शब्द आया है जिसका अर्थ है ‘‘वह जो इच्छित है अर्थात् जो इच्छाओं, आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करे वही मूल्य है।’’1वह जो इच्छित है, हमारी इच्छाओं की पुष्टि का प्रयास करते हैं, ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करते हैं और ज्ञान के आधार पर चेतन अवस्था में लक्षणार्थ इच्छाओं की प्राप्ति का लक्ष्य है, मूल्य कहा जा सकता है। मूल्य मानव जीवन तथा समाज के प्रत्येक आयाम से सम्बन्धित है। मनुष्य की इच्छाओं और आकांक्षाओं को नियन्त्रित करने का साधन मूल्य है। मूल्य व्यक्ति के जीवन को आदर्श का मार्ग प्रशस्त करते हैं। मूल्य व्यक्ति एवं समूह को भौतिक व सामाजिक रूप से समायोजित करने का साधन है। जिनके माध्यम से मनुष्य अपनी एवं सामाजिक प्रगति की अभिव्यक्ति कर पाता है। स्टेनली के अनुसार-‘‘मूल्यों का निर्माण मनुष्य की रुचि द्वारा होता है। मूल्यों के अन्तर्गत मनुष्य द्वारा इच्छित वस्तु की परख या मूल्यांकन आता है।2
पिल्क महोदय के मतानुसार- ‘‘हम वास्तव में जिसे सम्मान देते हैं,या महत्वपूर्ण समझते हैं वही मूल्य है। यह मानवीय संरचना की अभिप्रेरणात्मक विमा है। वे व्यवहार के लिए अभिप्रेरणा स्रोत हैं। ये वे मानवरूपी मानदण्ड हैं जिनसे मानव प्रत्यक्षीकृत क्रिया विकल्पों में से चयन करते समय प्रभावित होता है।’’3 सी0बी0 गुड ने कहा है ‘‘मूल्य चारित्रिक विशेषता है जो मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सौन्दर्य बोध की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। लगभग सभी विचार मूल्यों के अभीष्ट चरित्र को स्वीकार करते है।’’4 प्रो0 रमन बिहारी लाल ने लिखा है कि ‘‘किसी समाज के वे विश्वास, आदर्श, नैतिक नियम और व्यवहार मानदण्ड जिन्हें समाज के व्यष्क्ति महत्व देते हैं और जिससे उनका व्यवहार निर्देशित एवं नियंत्रित होता है, उस समाज और उसके व्यक्तियों के मूल्य होते हैं।’’5
मूल्य किसी वस्तु या स्थिति का वह गुण है जो समालोचना व वरीयता प्रकट करता है। यह एक आदर्श या इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए व्यक्ति जीता है। भारतीय समाज में मूल्य सत्य, अहिंसा, आध्यात्मिकता, विश्वबन्धुत्व, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक जीवन शैली आदि हैं। इन्हीं मूल्यों से भारतीय शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य निर्धारित होते हैं।
प्रायः लोग सोचते हैं कि सभी मूल्य प्रकृति से नैतिक होते हैं तथा मूल्यों पर आधारित निर्णय का अर्थ नैतिकता के आधार पर निर्णय लेना हैं। वास्तव में अनेक मूल्य नैतिकता के क्षेत्र से बाहर होते हैं। जिसमें ज्ञानात्मक, सौन्दर्यात्मक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, सृजनात्मक एवं मानवीय मूल्य मुख्य है।
ज्ञानात्मक मूल्य- इसके अन्तर्गत किसी भी क्रिया के सिद्धान्तों के प्रति खोज को सम्मिलित करते हैं। इसमें वास्तविक ज्ञान, ज्ञान प्राप्ति के साधन एवं प्रमाणिक ज्ञान आदि विषय आते हैं।
आर्थिक मूल्य- आर्थिक मूल्य से तात्पर्य उन मूल्यों से है जो उसे आर्थिक क्षेत्र में दिशा निर्देशन करते हैं। समस्त समाज तथा उसकी कार्यप्रणाली आर्थिक मूल्यों पर आधारित है। अतः आर्थिक मूल्य को हम मुद्रा और धन एकत्र करने की प्रवृत्ति से मान सकते हैं।
सौन्दर्यात्मक मूल्य- सौन्दर्य मूल्यों से तात्पर्य उन मूल्यों से जो उसे सौन्दर्यबोध के क्षेत्र एवं क्रियाओं के चयन में मदद करते हैं। ये वे मानदण्ड हैं जिनसे हम सुन्दरता का निर्णय करते हैं अर्थात् इसके अन्तर्गत हम सुन्दरता के प्रति प्रेम, त्रित्रकला, संगीत, नृत्य, कविता निर्माण, कला एवं साहित्य के प्रति प्रेम आदि भावनाओं को सम्मिलित करते हैं। व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सुन्दर वस्तु से पे्रम करें व जिस धरातल पर रहता है उसे स्वच्छ एवं सुन्दर बनाये रखने का प्रयास करे।
सामाजिक मूल्य- जिसमें व्यक्ति समाज को महत्वपूर्ण स्थान देता है। इन मूल्यों में बुजुर्ग व्यक्तियों का सम्मान, समाज सेवा, संस्कृति का संरक्षण आदि सम्मिलित करते हैं। यह वह मूल्य होते हैं जिनके द्वारा व्यक्ति, समाज के कल्याण की कल्पना करता है इस सम्बन्ध में फिलन्क का विचार है कि ‘‘मूल्य वह प्रभावीकृत मानक है जिससे व्यक्ति अपनी रुचियों से प्रभावित होता है और अपने प्रत्यक्षीकरण के अनुरूप विभिन्न क्रियाओं का चयन करता है।’’
राजनैतिक मूल्य- राजनैतिक मूल्य से तात्पर्य पद प्रतिष्ठा प्रभुत्व एवं शक्ति रखने में रुचि रखने की भावना से है। देश भक्ति, राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय संचेतना आदि वह मूल्य है जिन्हें हम राजनैतिक मूल्यों की श्रेणी में रखते हैं। इनका उद्देश्य व्यक्ति को योग्य नागरिक बनाना होता है जिससे वह अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरुक हो सके।
धार्मिक मूल्य- भक्ति, धर्मनिरपेक्षता, सभी धर्मों का आदर करना आदि धार्मिक मूल्यों में समाहित किया गया है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राज्य में व्यक्ति का धार्मिक विकास किया जाना चाहिए साथ ही उसके अन्दर कट्टर धार्मिक दृष्टिकोण उत्पन्न नहीं होना चाहिए।
सृजनात्मक मूल्य- इसके अन्तर्गत विचारों की मौलिकता अविष्कारों के प्रति रुचि तथा विज्ञान एवं तकनीकि के प्रति रुचि सम्मिलित करते हैं। सृजनात्मकता एक विशेष ढंग में चिन्तन करने का तरीका होता है। यह वह योग्यता है जो व्यक्ति को किसी समस्या का विद्वतापूर्ण समाधान खोजने के लिए नवीन ढंग से सोचने तथा विचार करने में समर्थ बनाती है।
मानवीय मूल्य- इसके अन्तर्गत दरिद्रों व असहायों की निःस्वार्थ भाव से सेवा, समाज में अपनी स्थित को बढ़ाने के लिए उत्साह आदि की भावनाओं को सम्मिलित करते हैं। हमारा भारत तो वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करता है अतः उन्हीं मूल्यों को महत्व दिया जाना चाहिए जिनके पालन से मनुष्य जाति का समग्र रूप से भला हो। इन मूल्यों में प्रेम सहानुभूति, सहयोग, ईमानदारी, समानता, भतृत्व, शान्ति और सह अस्तित्व को विशेष महत्व देते हैं। मानवीय मूल्य के पालन से ही शोषण रहित मानव समाज और युद्ध रहित विश्व समुदाय का निर्माण हो सकता है।
शोध का उद्देश्य- मानव के प्रत्येक कार्य उद्देश्य परक होते हैं। इस शोधकार्य में भी शोधकर्ता ने निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किया-
1. माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं के मूल्यों का अध्ययन करना।
2. माध्यमिक स्तर पर कलावर्ग के छात्र-छात्राओं से विभिन्न मूल्यों में वरीयता ज्ञात करना।
3. माध्यमिक स्तर पर विज्ञान वर्ग के छात्र-छात्राओं से विभिन्न मूल्यों में वरीयता ज्ञात करना।
4. माध्यमिक स्तर पर वाणिज्य वर्ग के छात्र-छात्राओं से विभिन्न मूल्यों में वरीयता ज्ञात करना।
न्यादर्श- प्रस्तुत शोध जनपद इलाहाबाद के चार माध्यमिक विद्यालयों (पब्लिक इण्टर काॅलेज मोतिहाँ, सरदार बल्लभ भाई पटेल इण्टर काॅलेज जलालपुर, जरिबंधन इण्टर काॅलेज बैजनाथगंज एवं किसान इण्टर काॅलेज बरेस्ता कलां) से कुल दो सौ छात्र-छाताओं को चयनित किया गया है। छात्र-छात्राओं का चयन यादृच्छिक न्यादर्श विधि से किया गया है।
विभिन्न संकायों में न्यादर्श के रूप में चयनित छात्र-छात्राएँ
क्र0स0 संकाय छात्र छात्रा कुल छात्र-छात्रा
1. विज्ञान 50 25 75
2. कला 50 25 75
3. वाणिज्य 25 25 50
योग 125 75 200
प्रयुक्त उपकरण- प्रस्तुत अध्ययन में उपकरण के रूप में शाह (1985) द्वारा निर्मित मूल्य परीक्षण मापनी का प्रयोग किया गया है। इस परीक्षण का प्रशासन विद्यार्थियों के विभिन्न मूल्यों के मापन के सन्दर्भ में किया गया है। इस मूल्य परीक्षण में कुल आठ मूल्य हैं। मूल्य मापी की विश्वसनीयष्ता को ज्ञात करने में शाह ने दो विधियाँ प्रयुक्त किया है।-
1. अर्द्ध विच्छेद विधि। 2 पुनर्परीक्षण विधि।
विभिन्न मूल्यों के विश्वसनीयता गुणंक इस प्रकार पाए गए-
मूल्य अर्द्ध विच्छेदन पुनर्परीक्षण विधि
एक माह पश्चात तीन माह पश्चात
ज्ञानात्मक मूल्य .66 .79 .63
आर्थिक मूल्य .78 .82 .69
सौन्दर्यात्मक मूल्य .81 .83 .76
सामाजिक मूल्य .74 .76 .69
राजनैतिक मूल्य .67 .66 .88
धार्मिक मूल्य .82 .79 .70
सृजनात्मक मूल्य .72 .62 .54
मानवीय मूल्य .71 .64 .66
विभिन्न मूल्यों के सन्दर्भ में मूल्य परीक्षण की विश्वसनीयता 0.01 स्तर पर सन्तोष जनक पाई गयी। वैधता ज्ञात करने के लिए प्रयुक्त की गयी वैधता 15 मनोविशेषज्ञ के निर्णय के आधार पर की गयी। साथ ही यादृच्छिक विधि से 25 विद्यार्थियों का चयन किया गया जिसका वैधता गुणांक .78 प्राप्त हुआ।
विश्लेषण एवं परिणाम- मूल आकड़े किसी कथानक को व्यक्त करने में सक्षम नहीं होते है जब तक उनका सांख्यकीय विश्लेषण न किया जाए। आकड़ों का विश्लेषण करने के लिए जटिल समस्याओं का सरलीकरण करके उनकी व्याख्या पुनः निर्धारण करना अनिवार्य होता है।
कला, विज्ञान एवं वाणिज्य संकाय में अध्ययनरत विद्यार्थियांे के मूल्य
पाठ्यक्रम
मूल्य कला संकाय विज्ञान संकाय वाणिज्य संकाय
मध्यमान वरीयताक्रम मध्यमान वरीयताक्रम मध्यमान वरीयताक्रम
ज्ञानात्मक मूल्य 25.52 1 28.26 1 27.44 2
आर्थिक मूल्य 23.77 6 24.64 3 29.38 1
सौन्दर्यात्मक मूल्य 24.90 3 24.41 4 22.21 5
सामाजिक मूल्य 23.96 5 21.41 7 22.16 6
राजनैतिक मूल्य 24.81 4 22.14 5 24.14 3
धार्मिक मूल्य 21.85 8 20.73 8 22.68 4
सृजनात्मक मूल्य 23.72 7 27.81 2 22.12 7
मानवीय मूल्य 25.24 2 21.76 6 21.74 8
उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि ज्ञानात्मक मूल्य को कला एवं विज्ञान वर्ग के छात्रों ने सबसे अधिक महत्व दिया जबकि वाणिज्य वर्ग के छात्रों ने दूसरे स्थान पर महत्व दिया। आर्थिक मूल्य को वाणिज्य वर्ग के छात्रों ने सर्वाधिक स्थान दिया जबकि कला वर्ग के छात्रों में छठें एवं विज्ञान वर्ग के छात्रों में तीसरे क्रम पर है। सौन्दर्यात्मक मूल्य कला वर्ग में तीसरे, विज्ञान वर्ग में चैथे एवं वाणिज्य वर्ग में पाँचवे स्थान पर है। सामाजिक मूल्य कला वर्ग में पाँचवें वाणिज्य वर्ग में छठें एवं विज्ञान वर्ग में सातवें स्थान पर है। राजनैतिक मूल्य वाणिज्य वर्ग में तीसरे कला वर्ग में चैथे और विज्ञान वर्ग में पाँचवे स्थान पर है। धार्मिक मूल्य वाणिज्य वर्ग में चैथे और विज्ञान एवं कला वर्ग में आठवें स्थान पर है। सृजनात्मक मूल्य विज्ञान वर्ग में दूसरे और कला एवं वाणिज्य वर्ग में सातवें स्थान पर है। इसी प्रकार मानवीय मूल्य कला वर्ग के छात्रों ने दूसरे स्थान पर, विज्ञान वर्ग के छात्रों ने छठें स्थान पर और वाणिज्य वर्ग के छात्रों ने आठवें स्थान पर महत्व दिया है।
निष्कर्ष- मानव जीवन में मूल्यों का विशेष महत्व है। हमारी गौरवमयी संस्कृति की आधारशिला भी आदर्शवाद व उच्च नैतिक मूल्य रहें हैं। जिन्होंने भौतिक सुखों की अपेक्षा आध्यात्मिक ज्ञान, स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ एवं संकुचित दृष्टिकोण व उपभोक्तावादी विचारों के स्थान पर सादा जीवन उच्च विचार से पूर्ण परम्परा के निर्वाह की पे्ररणा देते रहें हैं। वर्तमान समय में भौतिकता की चकाचैंध में मूल्यों का हªास तीव्र गति से हो रहा है। मूल्यों के अवमूल्यन का प्रभाव किसी एक क्षेत्र में नहीं बल्कि समाज के प्रत्येक स्तर पर दृष्टिगोचर हो रहा है। आज के समय में सबसे बड़ी आवश्यकता है, विज्ञान एवं तकनीकी के विकास के युग में मूल्यों के विकास पर भी समुचित ध्यान दिया जाए। शिक्षा ही व्यक्ति तथा समाज में खुशहाली, कल्याण एवं विकास लाने में सहायक होती है। यह मूल्यों के सार्थक दिशा में विकास से ही सम्भव हो सकता है।
प्रस्तुत शोध कार्य से ज्ञात हुआ कि कला वर्ग के विद्यार्थियों ने ज्ञानात्मक मूल्य को प्रथम वरीयता दिया जबकि धार्मिक मूल्य को बहुत कम महत्व दिया। वाणिज्य वर्ग के विद्यार्थियों ने आर्थिक मूल्य को प्रथम वरीयता दिया जबकि मानवीय मूल्य को बहुत कम महत्व दिया। इसी प्रकार विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों ने ज्ञानात्मक मूल्य को प्रथम स्थान दिया जबकि धार्मिक मूल्य को बहुत कम महत्व दिया।
सन्दर्भ ग्रन्थ
1. त्यागी एवं पाठक- शिक्षा के सामान्य सिद्धान्त, विनोद पुस्तक मन्दिर आगरा, पृ0-558
2. डाॅ उपध्याय प्रतिभा - भारतीय शिक्षा में उदीयमान प्रवृत्तियाँ, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद, पृ0-174
3. प्रो0 पाण्डेय रामशकल - मूल्य शिक्षण, अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा, पृ0-02
4. डाॅ0 दूबे सत्य नारायण - मूल्य शिक्षा, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद, पृ0-03
5. प्रो0 लाल रमन बिहारी - शिक्षा के दार्शनिक एवं समाज शास्त्रीय सिद्धान्त, रस्तोगी प्रकाशन, मेरठ, पृ0-517
6. डाॅ0 सक्सेना सरोज - शिक्षा के दार्शनिक एवं समाजशास्त्रीय आधार, साहित्य प्रकाशन आगरा, पृ0-259
7. प्रो0 गुप्ता एस0पी0 - आधुनिक मापन एवं मुल्यांकन, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद,
8. राय पारसनाथ -अनुसंधान परिचय
9. कौल लौकेश - शैक्षिक अनुसंधान की कार्यप्रणाली, विकास पब्लिशिंग हाऊस प्रा0 लि0
10. प्रो0 गुप्ता एस0पी0 - सांख्यिकीय विधियाँ, शारदा पुस्तक भव, इलाहाबाद।
11. सिंह अरुण कुमार - मनोविज्ञान, समाजशास्त्र एवं शि़क्षा में शोध विधियाँ मोती लाल बनारसी दास