Friday 1 July 2011

मुक्त विश्वविद्यालयों में प्रचलित अधिन्यास एवं क्रेडिट प्रणाली


सुनील कुमार यादव 
शोध छात्र 
निदेशक डाॅ0 जे0पी0मौर्य
यू0पी0आर0टी0ओ0यू0 इलाहाबाद 

भारत जैसे विकासशील एवं विशालकाय राष्ट्र में शिक्षा की भूमिका रजनी में शशि के समान प्रतीत होती है।  हमारे देश में जनतन्त्रात्मक शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार हो रहा है, जिसमें समानता का अधिकार समाहित है परन्तु बढ़ती आबादी एवं घटते संसाधन के कारण हम अपने अधिकार को पाने में विफल हैं।  अब प्रश्न उठता है कि सम्पूर्ण समाज को किस तरह से सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा शैक्षिक समानता प्रदान की जाये।  आज हम यदि शैक्षिक दृष्टि से विचार करें तो प्रतीत होता है कि भारत कि विशाल जनसंख्या को औपचारिक अथवा परम्परागत शिक्षा समान रूप से सबको नहीं प्रदान हो सकती अतः अनौपचारिक तथा निरौपचारिक शिक्षा प्रणाली को अपनाया गया।  निरौपचारिक शिक्षा के परिणाम स्वरूप मुक्त शिक्षा अथवा दूरस्थ शिक्षा का उद्भव हुआ।  दूरस्थ शिक्षा का प्रथम उदाहरण स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय जेल से पं0 जवाहर लाल नेहरू द्वारा अपनी पुत्री इन्दिरा जी को लिखे पत्र एवं प्रथम शिक्षार्थी के रूप में महाभारत का चरित्र एकलव्य दृष्टिगत होता है।
यह दूरस्थ शिक्षा विश्वविद्यालयी रूप में 1969 ई0 में ग्रेट ब्रिटेन में आयी और इसे विश्व का प्रथम मुक्त विश्वविद्यालय का गौरव प्राप्त है, जो अपने संगठनात्मक स्वरूप एवं निदर्श के लिए अनुकरणीय था।  भारतीय पक्ष से यदि अवलोकन किया जाय तो 1982 में स्थापित आंध्र प्रदेश मुक्त विश्वविद्यालय दृष्टिगत होता है।  तत्पश्चात् 1985 में इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा की गयी।  इस प्रकार कई राज्यों में इन विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी।  जिससे पूरे भारत वर्ष में शिक्षा का व्यापक प्रचार प्रसार किया जा रहा है।  इन विश्वविद्यालयों की उपयोगिता निम्न बिन्दुओं से दृष्टिगत है।
1. शिक्षार्थी केन्द्रित शिक्षा का व्यवस्थापन।
2. पाठ्यक्रम चयन में लोचनीयता।
3. उत्कृष्ठ शिक्षण सामग्री की उपलब्धता।
4. मुक्त विश्वविद्यालय के शिक्षार्थी अन्य संस्थाओं के शिक्षार्थी हो सकते है।
5. सेवा काल में भी शिक्षा की व्यवस्था।
6. पाठ्य सामग्री एवं नियत कार्य की व्यवस्था विश्वविद्यालय में प्रवेश के समय ही।
इस प्रकार मुक्त विश्वविद्यालयी शिक्षा प्रणालियाँ ‘‘शिक्षा सबके लिए सबके द्वार के’’ कथन एवं वर्तमान माँग को पूर्ण कर रही है।  इन प्रणालियों की कुछ प्रविधियाँ बहुत ही रूचिपूर्ण एवं अधिगमित हैं यथा ग्रेडिंग, अधिन्यास, क्रेडिट प्रणाली आदि।
अधिन्यास (।ेेपहदउमदज) अथवा गृह कार्य (भ्वउम ॅवता) या सात्रिक कार्य आदि शब्दों का प्रयोग मुक्त विश्वविद्यालयों में नियत कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है।  शिक्षकों द्वारा अपने शिक्षार्थियों को अभ्यास द्वारा अधिगम के लिए दिये जाने वाले कार्य ही नियत कार्य अथवा अधिन्यास है, जो आदि और आज भी परम्परागत शिक्षण संस्थानों का महत्वपूर्ण अंग था और है।  आज मुक्त विश्वविद्यालयों द्वारा भी इस प्रणाली को अपनाया जा रहा है।  जिससे दूरस्थ शिक्षार्थी को प्रतिपुष्टि प्रदान की जाती है।  अधिन्यास प्रणाली का चुनाव दूरस्थ शिक्षाविदों द्वारा निम्न लाभों के परिणाम स्वरूप किया गया है।
1. अधिन्यास के द्वारा छात्रों को पाठ्य वस्तु समझने में सहायता होती है।
2. नियत कार्य मूल्यांकन के समय अनुदेशों द्वारा दी गयी टीकायें शिक्षार्थी के लिए निर्देशन का कार्य करती है।
3. नियत कार्य द्वारा शिक्षार्थियों को स्वयं करके सीखने का अवसर मिलता है।
4. नियत कार्य शिक्षार्थियों के व्यक्तिगत अनुभवों को प्रोत्साहित करते हैं।
वस्तुतः अधिन्यास कार्य स्व अनुदेशन सामग्री की विभिन्न इकाइयों के अन्त में मुद्रित होते हैं अथवा प्रश्न पत्र के रूप में शिक्षार्थियों को अलग से प्रदान किये जाते हैं।  दूरस्थ शिक्षार्थियों को इसे पूरा करके दूरस्थ शिक्षा अध्ययन केन्द्रों पर जमा करना होता है।  जिसे अध्ययन केन्द्रों द्वारा अनुदेशकों से जाँच करवाकर ग्रेड सहित अधिन्यास को शिक्षार्थियों को वापस कर दिया जाता है।  दूरस्थ शिक्षा संस्थायें प्राप्त ग्रेड को मुख्य परीक्षा में प्रवेश की अर्हता स्वीकार करती हैं।  दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में अधिन्यास कार्य न केवल अधिगम को प्रभावी एवं दृढ बनाते हैं वरन दूरस्थ अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
नियत कार्य दूरस्थ शिक्षा में देने का मुख्य उद्देश्य शिथार्थियों के ज्ञान अवबोध की पुष्टि एवं पुनरावृत्ति तथा परिमार्जन करना है।  ये शिक्षार्थियों को अध्ययन के प्रति अभिप्रेरित करके उनमें आत्म विश्वास जागृत करते है तथा भावी अध्ययन हेतु आवश्यक शैक्षिक निर्देशन प्रदान करते हैं।
प्रायः सभी शिक्षा संस्थाओं द्वारा पाठ्यक्रम को एक निश्चित समय में पूर्ण करने के लिए अलग-अलग विधा को अपनाया जा रहा है।  जबकि मुक्त विश्वविद्यालयों द्वारा पाठ्यक्रम की पाठ्यसामग्री को शिक्षार्थी द्वारा कितने समय में पूरा किया जायेगा इसके व्यवस्थापन के लिए श्रेयता प्रणाली (क्रेडिट प्रणाली) विधा का प्रयोग किया जाता है।
क्रेडिट प्रणाली अथवा श्रेयता प्रणाली का अभिप्राय है कि एक शिक्षार्थी एक क्रेडिट के स्व अध्ययन में लगभग 30 घण्टे का समय लगायेगा।  एक क्रेडिट के लिए निर्धारित 30 घण्टे की अध्ययन अवधि परम्परागत विश्वविद्यालय में एक सप्ताह के अध्ययन अवधि के समकक्ष है।
मुक्त विश्वविद्यालय में 5 घण्टे की अध्ययन अवधि के अनुसार छः कार्य दिवसों के लिए कुल 30 घण्टे का समय अपेक्षित रहता है।  इस नियत समय में पाठ्य सामग्री का अध्ययन एवं मनन आॅडियो तथा वीडियो सामग्री का प्रयोग, निर्देशन अनुदेशन सत्रीय कार्य आदि को पूरा करना आदि समाहित रहता है दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में यह अपेक्षित रहता है कि उपरोक्त सभी प्रकार से शिक्षार्थी ज्ञान प्राप्त करेगा।  जो सारणी से स्पष्ट है-
श्रेयांक प्रणाली (ब्तमकपज ैलेजमउ)
क्रमांक कार्यक्रम श्रेयांक
1 त्रिवर्षीय स्नातक कार्यक्रम 120
2 द्विवर्षीय स्नातक कार्यक्रम 64
3 दो वर्षीय बी.एड. पाठ्यक्रम 44
4 तीन वर्षीय एम.बी.ए. 96
5 तीन वर्षीय एम.सी.ए. 96
6 एक वर्षीय बी. लिब. 36
7 एक वर्षीय एम. लिब. 48
8 एक वर्षीय डिप्लोमा 32-48
9 छः माह का प्रमाण पत्र 16-24
10 दो वर्षीय एकल विषय प्रमाण पत्र 48

प्रस्तुत सारणी से अलग-अलग पाठ्यक्रम के लिए श्रेयांकों के निर्धारण की इस व्यवस्था से प्रत्येक शिक्षार्थी को कितना समय अपने शैक्षिक कार्य को पूरा करने के लिए देना होगा।  इसका आकलन शिक्षार्थी स्वयं कर सकता है।  किसी भी शैक्षिक कार्य को पूरा करने शिक्षार्थी को सत्रीय कार्य एवं सत्रांत कार्य में अलग-अलग सफलता प्राप्त करना होता है।
इस प्रकार मुक्त विश्वविद्यालय में नियत कार्य द्वारा शिक्षार्थी को अधिगम के लिए प्रेरित किया जाता है तथा श्रेयता प्रणाली उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य से अवगत कराया जाता है।  अधिन्यास, क्रेडिट, ग्रेडिंग आदि प्रक्रियाओं के माध्यम से मुक्त विश्वविद्यालय अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का सफल प्रयास करते हैं।  इस शिक्षा संस्थाओं द्वारा राष्ट्र एवं समाज के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षिक दृष्टि से समाज में उपयोगी नागरिकों का निर्माण किया जा रहा है।
अतः कहा जा सकता है कि मुक्त विश्वविद्यालय राष्ट्र एवं समाज की शैक्षिक आवश्यकता की पूर्ति में पूर्ण रूप से तत्पर हैं।
चमन का अमन बढ़ा देंगे ये।
वतन को शैक्षिक फूलों से सजा देंगे ये।।
इनके क्रिया-कलापों के कायल हैं हम।
सितारों की तरह लोगों में रोशनी जला देंगे।।
- सन्दर्भ ग्रन्थ सूची -
1. गुप्ता, एस0पी0 तथा अल्का गुप्ताः मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा इलाहाबाद, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद. 2007
2. गुप्त, एस0पी0ः सांख्यिकी विधियाॅं, इलाहाबाद, शारदा पुस्तक भवन, 2005.
3. गर्ग, एस0सी0 व अन्यः (स0) ओपन एण्ड डिस्टेन्स ऐजूकेशन इन ग्लोबल एनवायरमेण्ट, न्यू देल्ही, बीवा बुक्स, 2006.
4. जायसवाल, रश्मिः सरस्वती शिशु मन्दिर के अध्यापकों के व्यावसायिक संतुष्टि का अध्ययन-शोध प्रबन्ध 2007 कानपुर विश्व वि0
5. कीगन, डी0ः फाउन्डेशन आॅफ डिस्टेन्स ऐजुकेशन, लन्दन, रूटलेज, 1990.
6. शर्मा, आर0ए0ः दूरवर्ती शिक्षा, मेरठ, सूर्या पब्लिकेशन, 1996.
7. साहू, पी0के0ः ऐजूकेशनल टेक्नोलाजी इन डिस्टेन्स, न्यू देल्ही, अरावली, 1999.
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9. तिवारी सुनीलः उच्च शिक्षा प्राप्त छात्रों मेें बेरोजगारी की समस्या का अध्ययन 2005
10. यादव सियारामः दूरवर्ती शिक्षा विनोद पुस्तक मन्दिर आगरा, 2002.

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