Monday, 2 January 2012

सन्त काव्य में नारी विषयक दृष्टिकोण


ललित वत्स रायजादा

भक्तिकालीन साहित्य में भारतीय नारी का जो स्वरूप प्राप्त होता है, वह इतिहास की दीर्घावधि का फल है। इस कालावधि में सामाजिक जीवन का स्वरूप अनेक बार परिवर्तित हुआ। सन्तों ने नारी के दो रूपों की अवधारणा की है- एक तो उसका कामिनी रूप है जिसे सन्तों ने गर्हित और त्याज्य बताया है, दूसरा उसका सती रूप है जो सन्तों के लिए बड़ा मान्य और ग्राह्य है। सन्त काव्य में नारी विषयक इसी दृष्टिकोण का अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है।

संतों द्वारा नारी का उल्लेख मुख्यतः नारी निन्दा तथा आत्मा-परमात्मा के प्रेम-मिलन एवं विरह के प्रतीक के रूप में किया गया है। आत्मा तथा परमात्मा के मध्य संबंध को दाम्पत्य-रति के रूप में प्रतिबिम्बित किया है। नारी-निन्दा विषयक प्रसंग में, उसे माया तथा वासना का प्रतीक मानते हुए उससे सर्वथा मुक्त रहने का परामर्श दिया गया है। उनके द्वारा जब किसी विरहिणी अथवा सौभाग्यशालिनी नारी का वर्णन प्रस्तुत किया जाता है या वे किसी पारिवारिक परिवेश का चित्रांकन करते है तो ऐसे स्थलों पर नारी शब्द का प्रयोग उनके द्वारा प्रतीकात्मक रूप में किया गया है। नारी के संयोग तथा वियोग का वर्णन संत कवियों ने आत्मा-सम्बन्ध के संदर्भ में किया है। आत्मा की वियोगावस्था का ज्ञान कराने के लिए ही संतों ने नारी का विरहिणी रूप वर्णित किया है। उनकी दृष्टि में परमात्मा रूपी प्रियतम से आत्मा रूपी प्रियतमा विलग हो गई है और इस प्रकार की वियुक्तावस्था में वह प्रिय के साथ सम्मिलन स्थापित करने हेतु व्याकुल हो उठती है। संत कबीर कहते है-
‘‘दुलहिनी गावहु मंगलचार। हम घरि आये हो राजा राम भरतार।।’’
कबीर ने नारी को नरक का कुण्ड बताया है तथा परनारी को पैनी छुरी माना है। उनकी धारणा है कि परनारी के ही कारण रावण जैसे महाप्रतापी राजा का विनाश हुआ। संत कबीर ने स्पष्ट शब्दों में नारी के कनक और कामिनी रूप की निन्दा की है। कबीर ने जहाँ नारी के निन्दित रूप को व्यक्त किया है, वहाँ उनका प्रयोजन नारी के कामिनी रूप से ही है। ‘नारी कुंड नरक का, बिरला थंभै बाग। कोई साधू जन ऊबरै, सब जग मूवा लाग’।। नारी के एक और रूप का वर्णन करते हुए कबीर कहते है-
‘नारी की झांई परत, अंधा होत भुजंग। कहे कबीर तिन कौन गति, जो नित नारी संग’।।
कबीर ने नारी को अवगुणों का मूल कहा है, नारी से बचने की चेतावनी देते है-
‘नारि नसावै तीनि गुन, जेहि नर पासै होई। भगति मुकति निज ग्यान मैं, पैसि नसकई कोई’।।
‘एक कनक अरू कामिनी, दोइ अगिन की झाल। देखे ही तैं परजरै, परसां ह्वै पैमाल’।।
कबीर पतिव्रता नारी को बड़ा गौरव देते है। इसी भावना के कारण वे सती को
साधु, शूर, संत आदि की श्रेणी में रखते हैं-
‘साथ सती और सूरमा, ज्ञानी और गजदन्त। एते निकसि न बाहुरे, जो जुग जायँ अनन्त’।।
सूर ने भी नारी के कामिनी रूप की निन्दा की है-
‘सुकदेव कहयौ, सुनौ हो राव। नारी नागिनि एक सुभाव।
नागिनि के काटैं विप्र होई। नारी चितवन नर रहै भोई।
सन्त रैदास ने भी परनारी-प्रणय की निन्दा की है, लेकिन सौभाग्यवती नारी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने उसे संसार में सर्वाधिक सुखी बताया है।
गुरुनानक की मान्यता है कि जो नारी अपने प्रिय को पहचानती है, वह सौभाग्यवती है और जिसने अपने प्रिय को नहीं पहचाना, वही कुरूप, कुटिल, कुलक्षिणी और कुनारी है। गुरुनानक की चेतना निन्दा और प्रशंसा के जंजाल में नहीं फँसी है। वे निन्दा के स्थान पर निन्दित कर्म को त्यागने का परामर्श देते है तथा कुमारी और सती सुहागिन नारियों की सजल मन से प्रशंसा करते है।
सन्त कवि दादू ने नारी के कई रूप बताये हैं। उन्होंने नारी को कहीं कामिनी कहा है तो कहीं भामिनी, मोहिनी रूप की निन्दा की है, जबकि उन्होंने विरहिणी, आज्ञाकारिणी, सती, पतिव्रता आदि नारी रूपों के प्रति अत्यन्त आदर-भावना व्यंजित की है। दादू ने भी कबीर की तरह कटु होकर भामिनी की बड़ी भत्र्सना की है।
‘दादू नारी पुरिष कौ, जाणै जे बसि होई। पिव की सेवा ना करै, कामणिगारी सोइ’।।
इसके विपरीत पति के प्रति निष्ठावान नारी को दादू अद्वितीय मानते है-
‘दादू भावै पीव कौं, ता सम और न कोई’।।
सन्तों में सुन्दरदास ने नारी की व्यापकता के साथ निन्दा की है। ‘नारी-निन्दक संतों के शिरोमणि संत सुन्दरदास है’। सुन्दरदास के सन्दर्भ में कहा गया यह कथन
निराधार नहीं है। जिन अंगों की सुन्दर व्यंजना करते-करते कविगण न तो कभी ऊबते है और न कभी थकते है, उन्हीं अंगों का जब सुन्दरदास वर्णन करते है तब उस वर्णन को देखकर तथा उसे भावित कर मन में बड़ी वितृष्णा पैदा होती है। संत सुन्दर दास ने नारी के प्रत्येक अंग को नरक के समान कहने में भी तनिक संकोच नहीं किया है-
‘उदर में नरक, नरक अध द्वारन में, कुचन में नरक, नरक भरी छाती है।
कंठ में नरक, गाल, चिबुक नरक किंब, मुख में नरक जीभ, लालहु चुचाती है
नाक के नरक, आँख, कान में नरक बहै, हाथ पाऊँ नख-सिख, नरक दिखाती है।
सुन्दर कहत नारी, नरक को कुंड मह, नरक में जाइ परै, सो नरक पाती है’।
नारी रूप के निन्दक सुन्दरदास की चेतना जब पतिव्रता नारी की ओर उन्मुख होती है, तब वे उसके प्रति अत्यन्त विनीत दिखायी पड़ने लगते हैं। उन्होंने अपनी वाणी में सती और पतिव्रता नारी की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। सुन्दरदास ने पतिव्रता के लिए पति का ही सर्वस्व माना है -
पति ही सू प्रेमहोई, पति ही सू नेम होई। पति ही संू छेम होइ, पति ही संू रत है
पति बिनु पति नाहिं, पति बिनु गति नाहिं। सुन्दर सकल विधि, एक पतिव्रत है।।’’
संतों ने जहाँ पर माता का उल्लेख किया है, वहाँ वह सम्मान-भावना का बोधक है। कबीर ने माता की क्षमाशीलता को उद्दिष्ट करके हरि को जननी के रूप में भावित किया है- हरि जननी मैं बालिक तेरा, काहे न औगुण बकसहु मेरा
मलूकदास की दृष्टि में नारी मिसरी की छुरी है, जो संसार को भ्रमित करती है-‘‘एक कनक और कामिनी, यह दोनों बटपार। मिसरी की छुरी गर लायके, इन मारा संसार।।
संतों ने ईश्वर भक्ति के ही संदर्भ में नारी की अवतारणा की है। चँूकि नारी बड़ी आकर्षणमयी होती है, उसका कामाकर्षी रूप साधारण साधक को साधना से विचलित कर देता है, इसीलिए निर्गुण संतों ने नारी के कामिनी रूप की बड़ी भत्र्सना और अवमानना की है परन्तु ये नारी के पतिव्रत और सती रूप की उपेक्षा नहीं कर सके हैं। समस्त संत नारी के पतिव्रत और सती रूप के प्रति अत्यन्त विनीत हैं, क्योंकि ऐसी नारियाँ मंगलविधायिनी शक्ति से सम्पृक्त होती हैं। इसीलिए नारी के कटु निन्दक कबीर पतिव्रता कुरूप नारी पर भी करोड़ों रूपसियों को न्यौछावर करने में जरा सा भी नहीं हिचकिचाते हैं।
पतिव्रता मैली भली काली कुचिल कुरुप, पतिव्रता के रूप पर बारौ कोटि सरूप।।
संदर्भ सूची
1. कबीर ग्रन्थावली: साखी- 20/15
2. संत बानी संग्रहः भाग- एक, पृ.‘54
3. कबीर साखी संग्रह- पृ 155
4. सं. सिंह जयदेव /डाॅ. सिंह वासुदेव, साखी, कामी नर कौ अंग, पृ.-173
5. -----वही----पृ, 174
6. कबीर साखी संग्रह, पृ. 23
7. सूरसागर (ना.प्र.स.), नवमस्कंध, पद सं.--446
8. दादू दयाल की बानीः भाग एक, 8/54
9. -------वही--------पृ 8/33
10. डाॅ. गोस्वामी कृष्णा, संतकाव्य में नारी, पृ.-116
11. सुन्दर विलास, पृ-47
12. सुन्दर विलास- सुन्दरदास, पृ 72
13. कबीर ग्रन्थावली, परिशिष्ट, पद 111
14. मलूकदास जी की बानी, शब्द-2, पृ. 12

डाॅ. ललित वत्स रायजादा
डी.ई.आई., प्रेम विद्यालय,
दयालबाग, आगरा, उ0प्र0

पातंजल-योग-परम्परा में चित्त का स्वरूप




MkW- vuhrk Lokeh
lgk;d vkpk;kZ] bUæizLFk efgyk egkfo|ky;]

fnYyh fo'ofo|ky;] fnYyhA

          iratfy ds vuqlkj ^;ksxf'pÙko`fÙkfujks/k* vFkkZr~ ^fpÙk dh o`fÙk;ksa ds fujks/k* dk uke gh ;ksx gSA vr,o fpÙk ds iw.kZ Kku ,oa fo'ys"k.k ls gh ;ksx&izkfIr lEHko gSA oLrqr% Kku] bPNk vkSj ladYi ds leqPp; dk uke fpÙk gSA izÑfr esa lÙo] jtl~ rFkk rel~ f=xq.k fo|eku jgrs gSaA izÑfr dk izFke dk;Z fpÙk lÙoxq.kiz/kku gSA izd`fr ds bl izFke fodkj fpÙk dk D;k Lo:i gS\ fpÙk dk ifjek.k D;k gS&v.kq] eè;e vFkok foHkq\ fpÙk dk O;kikj dSls gksrk gS\ ,d O;fDr esa ,d fpÙk gksrk gS vFkok vusd fpÙk\ fpÙk Lora= gS vFkok ijra=\ ,sls vusd iz'u ekuo eu dks m}sfyr djrs gaSA vr% bu lHkh iz'uksa dk lek/ku vko';d gSA
        izLrqr 'kks/k i= ds }kjk bu lHkh iz'uksa dk lek/ku djus dk iz;kl fd;k x;k gSA blds vfrfjDr izLrqr 'kks/k i= ds vUrxZr ckS)ksa ds fpÙk lEcU/kh fl)kUr dk [k.Mu djrs gq, ;ksxkpk;ks± ds fpÙk lEcU/kh er dh LFkkiuk dks izLrqr fd;k x;k gS ftlls fpÙk ds fo"k; esa izpfyr er oSfHkUU; dk fujkdj.k fd;k tk ldsA

          Hkkjrh;&n'kZu ds ifjizs{; esa ns[kus ij fpÙkLo:i ds fo"k; esa er&oSfHkUU; izkIr gksrk gSA fpÙk dk Lo:i U;k;&oS'ksf"kd lEer v.kq&ifjek.k okyk gS1 vFkok lka[;lEer eè;e&ifjek.k okyk gS] vFkok bu nksuksa ls vfrfjDr ehekaldlEer foHkq&ifjek.k okyk gS&bl 'kadk ds lek/kkukFkZ okpLifrfeJ }kjk rÙooS'kkjnh esa fpÙkifjek.k ds fo"k; esa vU; nk'kZfud lEer foizfrifÙk;ksa dk fujkdj.k izLrqr fd;k x;k gSA fpÙk ds ^foHkqifjek.k* dk [k.Mu djrs gq, dgk x;k gS fd nsg&izns'k esa gh fpÙk ds lHkh dk;Z ns[ks tkus ls nsg ls ckgj fpÙk ds ln~Hkko esa dksbZ izek.k ugha gSA2 blh izdkj fpÙk ds ^v.kqifjek.k* dk [k.Mu djrs gq, dgk x;k gS fd fpÙk ^v.kqifjek.k* okyk Hkh ugha gS] vU;Fkk nh?kZ'k"dqyh ¼ekyiw,½ dks [kkrs le; ;qxir~ :ikfn ik¡pks Kku ugha gks ldsaxs vkSj u gh ;qxir~ gksus okys Kkuksa esa vuqHkwr ugha gksus okys Øe dh dYiuk djus eas dksbZ izek.k gSA vkSj u gh ,d v.kq eu dk ukuk ns'korhZ vusd bfUnz;ksa ds lkFk lEcU/k gks ldrk gSA3 fpÙk ds eè;e&ifjek.k dk leFkZu djrs gq, dgk x;k gS fd vUrrksxRok ;g Lohdkj fd;k tkrk gS fd fpÙk 'kjhj ds ifjek.k ds cjkcj ^eè;eifjek.k* okyk gS vkSj fpÙk ?kVizklknorhZ iznhi dh rjg ladkspfodkl'khy gSA ^eè;eifjek.k* okyk fpÙk Øe'k% iqfÙkdk ¼e/kqeD[kh½ vkSj gfLr'kjhj ¼gkFkh ds 'kjhj½ dk vkJ; ikdj ladqfpr vkSj fodflr gksrk gSA4 vr% fpÙk dk vkdkj vFkkZr~ ifjek.k 'kjhjifjek.k ds gh cjkcj gS] ,slk lka[;kpk;Z ekurs gSaA Hkk";dkj ds vuqlkj ?kV vFkok jktizlkn esa j[krs gq, nhid dh Hkk¡fr ladkspfodkl'khy fpÙk 'kjhj ds ifjek.k ds vkdkj okyk gSA vkSj ,slk ekuus ij gh fpÙk dk vkfrokfgd Hkko vkSj nsgkUrjlalj.k miiUu gksrk gSA5 Hkk";dkj ds vuqlkj vkpk;Z iratfy dk ;g vk'k; gS fd fpÙk rks foHkq gS] fdUrq lka[;n'kZu esa tks ladksp fodkl'khyrk cryk;h x;h gS] og fpÙk dh o`fÙk dk LoHkko gS fpÙk dk ughaA6 fpÙk dks vkpk;Z iratfy ds er esa] tks foHkq dgk x;k gS] mlls ;g vFkZ ugha ysuk pkfg, fd ,d gh fpÙk loZ= fo|eku gS] D;ksafd vkpk;Z gfjgjkuUn vkj.; us bl foHkqRo ls lw=dkj vkSj Hkk";dkj dk D;k rkRi;Z gS] dks bl izdkj Lohdkj fd;k gS fd fpÙk vkdk'kkfn dh Hkk¡fr loZ= fo|eku ugha gS] vfirq lfØ;] vewrZ] gLrkfn ls vifjes;] nh?kZ gzLokfn vkdkjksa ls eqDr rFkk czãk.MLFk leLr inkFkks± ls vck/k :i ls lEc) gSA blh dkj.k mls foHkq dgk tkrk gS vuUr vkdk'k dh rjg loZ= O;kid gksus ls ughaA7 ,slk fopkj djus ls Hkh fpÙk dk ;gh Lo:i fu/kkZfjr gksrk gSA lka[;&;ksx er esa fpÙk f=xq.kkRed&izÑfr dk lcls izFke fodkj gSA blh ckr dks ge bl izdkj Hkh dg ldrs gSa fd tM+&rÙo dqy pkSchl gSaA muesa ls izd`fr vO;Dr rFkk xq.kksa dh lkE;koLFkk ek= gksus ds ukrs iq#"k ds iz;kstu dh iwfrZ djus esa 'kwU; gSA 'ks"k tks rsbZl O;Dr&rÙo gaS] muesa ls fpÙk ds lw{ere gksus ds ukrs vU; dksbZ rÙo mldk ck/k ugha dj ldrkA fpÙk czãk.M o LFkwy leLr inkFkks± dks vck/k :i ls tkuus ds fy;s leFkZ lk/ku gSA bruk ek= gh fpÙk ds foHkqRo dk rkRi;Z gSA vkdk'kkfn dh Hkk¡fr loZO;kid ekuus ij fpÙk dks ,d gh ekuuk iM+sxkA ,d ekuus ij vla[; O;fDr;ksa ds 'kjhjksa ls mldk lEcU/k Lohdkj djuk iM+sxkA ,slh voLFkk esa ,d O;fDr ds fpÙk esa lkfÙod&deZ] Kku] oSjkX;] ,s'o;Z vkSj /keZ ds mn; gksus ls lHkh izk.kh Kkuh] oSjkX;oku~ vkSj /kekZRek gks tk,¡xs] rFkk ,d O;fDr ds fpÙk esa fpÙk ds rkefld /keZ vKku] voSjkX;] vUkS'o;Z vkSj v/keZ ds mn; ls lHkh vU; izk.kh Hkh vKkuh] vfojDr] vuh'oj rFkk v/kehZ gks tkus pkfg,] lkFk gh izfr 'kjhj }kjk fd, gq, iki&iq.; dh O;oLFkk Hkh u gks ldsxh rFkk ,d O;fDr ds lq[kh ;k nq%[kh gksus ls vU; lc O;fDr;ksa dks Hkh lq[kh ;k nq%[kh gks tkuk pkfg, fdUrq izR;{kkfn izek.kksa ls izfr izk.kh ds lq[k&nq%[k] Kku&vKku] oSjkX;&voSjkX;] /keZ&v/keZ vkfn dh fHkUurk Li"V izrhr gksus ls fpÙk dks ,d Lohdkj ugha fd;k tk ldrkA
          Jhckyjkeksnklhu us vius ^ikratyn'kZuizdk'k* esa Hkk";kuqlkjh okpLifrfeJ ds ^foHkqRoa eul%* }kjk izfrikfnr eu ds foHkqRo i{k ij vlgefr O;Dr djrs gq, lka[;&;ksx esa fpÙk ds ^eè;eifjek.k* dk erSD; O;Dr fd;k gSA izks- foeyk d.kkZVd }kjk viuh ckyfiz;k Vhdk esa ckyjkeksnklhu ds dFku dk lkjka'k bl izdkj izLrqr fd;k x;k gS&
          ^eu ds foHkqRo* dh vo/kkj.kk rks izoknek= gS] okLrfod ughaA Lo;a iratfy dks Hkh eu dk foHkqRo ekU; u gksxk] D;ksafd lka[;&;ksx lekurU=k gSA ;ksx ds vuqlkj eu ds foHkqRo dk izfriknu rks Hkk";dkj dh cqf) dh mitek= gSA D;ksafd lka[;;ksxer esa izÑfr dks NksM+dj dk;Z:i egnkfn lHkh inkFkZ ifjfPNUu gSaA dksbZ Hkh foHkq ¼O;kid½ rÙo fØ;ker~ vFkok mRifÙker~ ugha gks ldrk gSA blhfy;s u O;kidRoa eul% dj.kRokfnfUnz;Rok}k*] ^lfØ;Rokn~ xfrJqrs%*& bu nks lka[;lw=ksa ds }kjk eu ds foHkqRo dk fujkdj.k fd;k x;k gS rFkk ^u fuHkkZxRo r|ksxkn~ ?kVor~*& bl lka[;lw= ds }kjk egf"kZ dfiy us v{kiknlEer eu ds v.kqRookn dk [k.Mu djrs gq, eu ds ^eè;eifjek.k* dks fl)kfUrr fd;k gSA lka[;&;ksx ds lekurU=k gksus ls ;ksx dks Hkh eu dk ^eè;eifjek.k* LohÑr gS] ,slk ekuuk vkSfpR;iw.kZ gSA8 D;ksafd ;ksx&n'kZu izÑfr vkSj iq#"k dks ewyHkwr lÙkk ds :i esa Lohdkj djrk gS vr,o ;s nksuksa gh foHkq rÙo gSaA fpÙk dk foHkqRo lEHko ugha gS D;ksafd dksbZ Hkh ifj.kfer oLrq foHkq ugha gks ldrhA bl izdkj eu dk ^eè;eifjek.k* fl) gks tkus ij eu esa fØ;koÙokfn /keks± dh Hkh lgt laxfr gks tkrh gSA
          fu"d"kZ :i esa ;gh dgk tk ldrk gS fd lka[;;ksx ds vuqlkj fpÙk dks ^eè;eifjek.k* ekuus esa fdlh Hkh izdkj dh folaxfr ugha gSA vr,o Hkk";dkj us fpÙk ds ^eè;eifjek.k* dk [k.Mu djus ds fy;s fdlh Hkh rdZ dks miU;Lr ugha fd;k gSA bl izdkj ckyjkeksnklhu us LofpUru dks& ^vr,o pk∙Lojcks/kdekpk;ZinksiknkufeR;ya cgquk* & bR;kdkjd milagkjkRed okD; }kjk iznf'kZr fd;k gSA9
          lw=dkj o Hkk";dkj Hkh fpÙk dks la[;k esa cgqr rFkk izfr 'kjhj fu;r ekurs gSaA bUgksaus cU/ku ds dkj.kksa dks f'kfFky djus vkSj izpkj ds laosnu dks tkuus ls la;eflf);qDr ;ksxh ds LofpÙk dk ij'kjhj esa izos'k djuk fy[kk gSA10 ;fn lw=dkj ,d gh fpÙk dks loZ= fo|eku rFkk lc 'kjhjksa ls lEc) ekurs rks ,slk ugha fy[krsA D;ksafd ml fLFkfr esa ;ksxh dk fpÙk O;kid gksus ls loZdky esa gh ij'kjhj esa izfo"V gksrkA ,slh voLFkk esa la;e iz;ksx dk o.kZu O;FkZ gks tkrk gSA Hkk";dkj ds }kjk iz;qDr 'kCnksa ls Li"V gS fd fpÙk izfr 'kjhj fu;r gS] D;ksafd LofpÙk dks Lo'kjhj ls fudkyuk rHkh gks ldrk gS] tcfd fpÙk 'kjhj ds vUnj gh lhfer ifjek.k okyk gksA loZ= O;kid vkdk'k dks dksbZ ;ksxh vius 'kjhj ls ckgj ugha fudky ldrk] rFkk vkdk'k ds leku izFke gh loZxr gksus ls mls vU;ksa ds 'kjhj esa izos'k djkus dk Hkh fodYi ugha mBrkA ;s leLr /keZ fdlh fu;r ifjek.k okyh oLrq ds gh gksrs gSa] lOkZ= fo|eku oLrq ds ughaA Hkkst us bfUæ;ksa ds ekxZ ls fpÙk dk fo"k;ksa dh vksj izlkj djuk rFkk jlogk vkSj izk.kogk ukfM+;ksa dk gksuk Hkh fy[kk gSA11 Hkk";dkj ,oa okpLifrfeJ ds vuqlkj ;ksxh dks fpÙk ds vkokxeu ds ukM+h&ekxZ dk ifjKku gksuk Hkh vko';d gSA bl izdkj fpÙk dk vuqlj.k djus okyh bfUnz;k¡ Hkh nwljs ds 'kjhj esa rÙkr~ fufnZ"V LFkkuksa esa izfo"V gks tkrh gSaA12 izlkj vkSj ogukfn /keZ fdlh ifjfPNUu ifjek.k ;qDr oLrq ds gksrs gSa] loZ= fo|eku oLrq ds ughaA
          lka[;;ksxfl)kUr ds vuqlkj fpÙk LorU= gS vkSj izR;sd iq#"k ds fy;s i`Fkd~&i`Fkd~ gSA13 fpÙk dks oLrq dk Kku djus ds fy;s vko';d gS fd og oLrq ls mijaftr gks tk;sA vFkkZr~ tc fpÙk oLrq ls mijDr gks tkrk gS] rc og oLrq Kkr gks tkrh gS vkSj tc rd fpÙk oLrq ls mijDr ugha gksrk] rc rd oLrq fpÙk dks vKkr jgrh gSA Hkk";dkj ds vuqlkj oLrq ds Lo#i ds Kkr vkSj vKkr gksus ds dkj.k fpÙk ifj.kkeh fl) gksrk gSA14 vFkkZr~ dHkh fpÙk oLRokdkjkdkfjr jgrk gS vkSj dHkh oSlk ugha jgrkA blls fl) gksrk gS fd fpÙk dk Lo:i ifj.kr gksrk jgrk gSA ;gh fpÙk dh ifj.kke'khyrk gSA izk;% ikraty;ksx ds leLr O;k[;kdkjksa }kjk fpÙk ds ifj.kkfeRo dks Lohdkj fd;k x;k gSA15
ckS)ksa ds fpÙk lEcU/kh fl)kUr dk [k.Mu o ;ksxkpk;ks± }kjk Loer LFkkiuk
          Hkk";dkj O;kl] ckS)ksa ds fpÙk&lEcU/kh fl)kUr dks Lohdkj u djrs gq, [k.Mu djrs gSa&

ikraty;ksx ds vuqlkj fpÙk dk Lo:i
ckS)ksa ds vuqlkj fpÙk dk Lo:i
1-
fpÙk ,d gS] 'kq) lÙo :i gSA
fpÙk {kf.kd gSA
2-
fpÙk vusdkFkZ gSA  
fpÙk izR;sd vFkZ esa fu;r gSA
3-
fpÙk LFkk;h gS] vofLFkr gSA
fpÙk foKku Lo:i gS vuofLFkr gSA
4-
fpÙk Kkuxzkgd :i gSA
fpÙk Kku:i gSA
5-
fpÙk LOkizdk'kd ugha gSA
fpÙk Loizdk'kd o fo"k;ksa dk Hkh izdk'kd gSA
ckS) er % fpÙk uked inkFkZ izR;sd inkFkZ ds fy;s vyx&vyx fu;r gS dsoy ^Kku* :i gS vkSj dsoy ,d {k.k rd jgus okyk gSA
[k.Mu % ckS)ksa ds vuqlkj ;fn fpÙk izR;sd Ks; ¼inkFkZ½ ds fy;s fu;r] dsoy Kku #i ,oa {kf.kd gS rc rks lHkh fpÙk ,dkxz gh gS] dksbZ fpÙk dHkh fof{kIr gks gh ugha ldrkA16 vFkkZr~ muds er dks ekuus ij rks fpÙk dh fof{kIrrk gh loZFkk vuqiiUu gks tk;sxhA bl izdkj mUgsa lekf/k vkSj ,dkxzrk dh vko';drk gh ugha jg tk;sxhA tc fpÙk lnk ,dkxz gh gS rc ,d {k.k ds fy;s fpÙk ,d oLrq dks gh ns[ksxk vkSj og mldh ,dkxzkoLFkk gksxh vFkkZr~ fpÙk lnk lekf/kLFk gh jgsxkA
          ckS)ksa ds vuqlkj tc bl fpÙk dks vU; lHkh fo"k;ksa ls vkâr dj fdlh ,d inkFkZ esa lekfgr fd;k tkrk gS rc ,dkxz gksrk gSA17 Hkk";dkj ds vuqlkj bl er ls rks muds Loer dk gh [k.Mu gks tkrk gS D;ksafd rc rks fpÙk izR;sd vFkZ ds fy;s fu;r ugha gqvkA18
foKkuoknh ckS) % izFke fodYi ^rqY;&Kku&izokg* ds :i esa fpÙk dks ,dkxz ekurk gSA19 buds vuqlkj ,dkxzrk iwjs Kku&izokg&:i fpÙk dk /keZ gSA20
[k.Mu % Hkk";dkj ds vuqlkj izokgfpÙk vFkkZr~ Kkuizokg ^,d* :i esa fLFkr gh ugha gksrk] {kf.kd gksus ds dkj.kA21 {kf.kd gksus ds dkj.k ml izokgfpÙk dk ,d va'k gh ,d {k.k esa fLFkr jg ldsxk vU; va'k rks ml {k.k esa vuqifLFkr gh jgsaxsA blfy;s ^,d* :i esa bl izokgfpÙk dk vfLrRo gh ugha gSA blfy;s ^,dkxzrk* izokgfpÙk dk /keZ ugha gks ldrkA
f}rh; fodYi % ,dkxzrk Kkuizokg:i fpÙk ds fdlh ,d va'k dk /keZ gSA22
[k.Mu % rc rks os Kkuizokgka'k:ih lHkh fpÙk] pkgs leku izdkj ds Kku ds :i esa izokfgr gks jgs gksa vFkok fHkUu izdkj ds Kku ds :i esa] mudk izR;sd va'k ,d&,d vFkZ ds fy;s fu;r gksus ds dkj.k ^,dkxz* gh gqvkA bl izdkj bl fodYi dks Lohdkj djus esa rks fof{kIrfpÙkrk vFkkZr~ fpÙk esa fof{kIr gksus dh lEHkkouk gh ugha jg tkrhA23 blfy;s fl) gqvk fd fpÙk ,d gS] LFkk;h gS vkSj vusd inkFkks± ds Kku ds fy;s gksrk gSA24
nksuksa izdkj ds ckS)erksa dk lkekU;:i ls [k.Mu %
          Hkk";dkj dgrs gSa fd ;fn ,d gh fpÙk ls vlEc) loZFkk vyx&vyx Kku mRiUu gksrs gksa ¼1½ rks fQj Hkyk dSls vU;fpÙk }kjk ns[ks x;s inkFkZ dk Lej.k djus okyk vU; fpÙk dSls gks ldrk gS\25 ¼2½ vU; fpÙk ds }kjk vftZr deZlaLdkjksa dk QyHkksx djus okyk vU; fpÙk dSls gksxk\26 bl vuqiifÙk dk ckS)ksa ds }kjk dksbZ lek/kku Hkh fd;k tk;s rks og Hkzked&lek/kku ^xkse;ik;lh;* U;k; dks Hkh frjLd`r djrk gSA27 U;k;kHkklRosu rrks∙;f/dRokn~A28 ^xkse;ik;lh;U;k;* D;k gS\ ;g ,d izdkj dk Hkzked rdZ gksrk gSA bls ik'pkR; rdZi)fr esa Fallacy of undistributed middle’ dgrs gSaA bldk Lo:i bl izdkj gS&
          ik;la xkse;e~   &               [khj ¼Hkh½ xkscj gS]
          xO;Rokr~A                      xO; ¼xks fodkj½ gksus ds dkj.kA
          ;|n~ xkse;a rÙkn~ xO;e~A         tks&tks xkscj gS] og&og xO; gSA
          ik;lefi xO;e~]                [khj Hkh xO; gSA
          vr% ik;lefi xkse;e~A          blfy;s [khj Hkh xkscj gSA
          blds vfrfjDr ckS)ksa dh ekU;rk esa vU; vlaxfr;k¡ Hkh gSA ,d izk.kh esa fHkUu&fHkUu vkSj vusd fpÙk ekus tkus ij ^vius vki* dk Hkh vuqHko ugha gks ldrkA29 dSls\ bl izdkj ls fd ftls ^eSaus* ns[kk Fkk] og ^eSa* Nw jgk gw¡A ftls ^eSaus Nqvk Fkk] og ^eSa* ns[k jgk gw¡&bu iz;ksxksa esa ^eSa* :i dk vuqHko] lHkh vuqHkoksa ds fHkUu jgus ij Hkh Kkrk ¼fpÙk½ esa ,d :i ls ¼vfHkUu½ #i ls mifLFkr jgrk gSA30 ,d gh :i ls vuqHkw;eku ^eSa* :i dk vuqHko ¼vusd½ vyx&vyx fpÙkksa esa fLFkr jgrk gqvk ,d lkekU;Kkrk dk cks/k dSls djk ldrk gS\31 vkSj ;g vfHkUuLo:i ^eSa* :i dk Kku ¼lcds½ futh vuqHko dk fo"k; gSA32 vkSj ^izR;{kizek.k* dk egÙo vU; izek.kksa ds }kjk de ugha fd;k tk ldrk D;ksafd vU; ¼lc½ izek.k ^izR;{k* ds cy ls gh O;ogkj esa vk ikrs gSaA33 blfy;s fpÙk ^,d* ^vusdkFkZ* vkSj ^LFkk;h* gSA34
foKkuoknh ckS)er % fpÙkkReoknh oSukf'kdksa dh ;g vk'kadk gks ldrh gS fd fpÙk gh vfXu ds leku Loizdk'kd vkSj fo"k;izdk'kd Hkh gSA35
[k.Mu % ;ksxn'kZu esa fpÙk dks Loizdk'kd ugha ekuk x;k gSA lw=dkj ds vuqlkj n`'; gksus ds dkj.k fpÙk viuk izdk'kd ugha gks ldrk gSA36 Hkk";dkj ds vuqlkj fpÙk Loizdk'kd ugha gS] tSls vU; bfUnz;k¡ vkSj 'kCnkfn fo"k; ^n`';* gksus ds dkj.k Loizdk'kd ugha gSA37 bl fo"k; esa iwoZi{k dh vksj ls vfXu dk n`"VkUr fn;k tkrk gS fd&ftl izdkj vfXu ^ijizdk'kd* gksus ds lkFk&lkFk Loizdk'kd Hkh gksrh gS] oSls gh fpÙk Hkh gSA rks bldk [k.Mu Hkk";dkj djrs gSa fd fpÙk ds izlax esa ^vfXu* n`"VkUr ugha gSA38 Hkko ;g gS fd vfXu Hkh Loizdk'kd ;k LokHkkl ugha gS] blfy;s og Hkh vuqnkgj.k gh gSA D;ksafd vfXu Hkh vius vizdkf'kr :i dks izdkf'kr ugha djrkA39 tUekU/k O;fDr ds fy;s vfXu dk :i Hkh ?kV :i ds leku vizdkf'kr jgrk gSA blfy;s ^Loizdk'krk* vfXu esa loZFkk vuqiiUu gSA40
          bl izdkj Hkk";dkj&O;kl us fpÙk dk vR;Ur lw{e fo'ys"k.k fd;k gSA ;ksx&n'kZu esa fpÙk 'kCn ds LFkku ij eu 'kCn dk Hkh iz;ksx fd;k x;k gSA ;|fi fpÙk eu ls fHkUu vU; vUrfjfUnz; gSA ;ksxlw=dkj }kjk iz;qDr fpÙk 'kCn ls vfHkizsr eu gS] blesa lUnsg fdlh dks Hkh ugha gksuk pkfg;s] D;ksafd dbZ ckj os ,d gh izdj.k esa fpÙk vkSj eu nksuksa 'kCnksa dk iz;ksx djrs gSaA mnkgj.kkFkZ& eS=h] d#.kk vkfn o`fÙk;ksa dks os fpÙk&izlknu vFkok fpÙk dh ,dkxzrk dk mik; Lohdkj djds izPNnZufo/kj.kkH;ka ok izk.kL; ,oa fo"k;orh ok izo`fÙk#RiUukeul% fLFkfrfucfU/kuh bR;kfn41 dgrs gq, os izk.kk;ke ,oa fo"k;orh izo`fÙk dks eu dh fLFkjrk dk mik; crkrs gq, fpÙk ds LFkku ij eu 'kCn dk iz;ksx djrs gSaA Hkk";dkj O;kl Hkh iwoksZDr izPNnZufo/kj.kkH;ka ok izk.kL; dh O;k[;k ds le; ^ok* in }kjk fufnZ"V fpÙk izlknu ds gh brj mik; dks Li"V djrs gq, rkH;ka ok eul% fLFkfra lEikn;sr~A42 'kCnksa }kjk fpÙk&izlknu ,oa eu dh fLFkjrk dks vfHkUu Lohdkj dj fy;k gSA ftlls Li"V gksrk gS fd Hkk";dkj us eu ,oa fpÙk dks i;kZ;okph gh Lohdkj fd;k gSA O;kl dh ;g ekU;rk vuqfpr ugha gSA D;ksafd Lo;a lw=dkj us Hkh vfxze lw= fo"k;orh ok izo`fÙkeZul% fLFkfrfucfU/uh esa fpÙk&izlknu ,oa eu ds fLFkfr& fucU/ku dks vfHkUu gh ekuk gSA bl izdkj izk.kk;ke ds Qy dk funsZ'k djrs gq, iqu% lk/kuikn ds vUr esa lw=dkj eu esa ^/kkj.kk gsrq ;ksX;rk* dks Qy ekurs gSaA43 rFkk mUgha ds vuqlkj /kkj.kk fpÙk dk ns'k fo'ks"k esa cU/k gSA44 vr% ;g Lohdkj fd;k tk ldrk gS fd ;ksxlw=dkj o Hkk";dkj dh n`f"V ls eu vkSj fpÙk vfHkUu gS vFkok mUgksaus eu ds fy;s Hkh fpÙk in dk iz;ksx fd;k gSA
       milagkj&fu"d"kZr% ikraty ;ksxn'kZu ds lexz vè;;u ls ;gh fu.khZr gksrk gS fd lw=dkj] Hkk";dkj] o`fÙkdkj ,oa Vhdkdkj fpÙk dks izfr 'kjhj fu;r] ,dns'kh] la[;k esa cgqr rFkk leLrczãk.Mxr fdlh Hkh inkFkZ dks la;e ds iz;ksx ls lk{kkr~ dj ysus dh ;ksX;rk ds dkj.k foHkq ekurs gSaA45 ,slk u ekuus ij 'kkL= esa tks dSoY;koLFkk esa fpÙk dk Lodkj.k esa izfoy; ekuk gS og Hkh ugha cu ldsxkA46 D;ksafd ml voLFkk esa ,d fpÙk ds gh leLr 'kjhjksa ls lEc) gksus ds dkj.k ;fn fpÙk dk izfoy; gksxk] rks lkjs gh iq#"kksa dks dSoY; dh flf) gks tk,xh rFkk lalkj dk mPNsn gks tk,xk] vkSj ;fn fpÙk dk izfoy; ugha gksxk rks lalkj dq'ky&vdq'ky] fl)&vfl) lcds fy, cuk gh jgsxk] Qyr% bl ;ksx'kkL= esa tks dSoY; dk mins'k izfrikfnr d;k x;k gS] og fdlh Hkh iq#"k dk dSoY; laHko u gks ldus ls vfl) vkSj O;FkZ gks tk,xkA vr% fpÙkksa dks izfr 'kjhj fu;r] ,dns'kh] vla[; rFkk l`f"V dk ije lkfÙod vkSj lw{ere rÙo gksus ds dkj.k vf[ky fo'o ds fdlh Hkh inkFkZ dks izdkf'kr djus dh lkeF;Z okyk gksus ls gh foHkq ekuk x;k gS] tks ;qfDrlaxr gSA

lUnHkZ&
1 (i)      rnHkkokn.kq eu%A oS- lw- 7@1@23
(ii)     ;FkksDrgsrqRokPpk.kqA U;k- lw- 3@2@63
2      nsgizns'kofrZdk;Zn'kZukn~ nsgkn~cfg% ln~Hkkos fpÙkL; u izek.kefLrA r- oS- 4@10
3      u pSrn.kqifjek.ke~] nh?kZ'k"dqyhHk{k.kknkoi;kZ;s.k KkuipdkuqRiknizlÄõkr~A u pkuuqHkw;&ekuØedYiuk;ka izek.kefLrA u pSde.kq euks ukukns'kSfjfUnz;Sji;kZ;s.k lacU/egZfrA ogh
4      rRifj'ks";kRdk;ifjek.ka fpÙka ?kVizklknofrZiznhior~A ladkspfodklkS iqfÙkdkgfLrnsg;ks&jL;ksRiRL;srsA 'kjhjifjek.kesokdkj% ifjek.ka ;L;sR;ijs izfriUuk%A ogh
5      ?kVizklkniznhidYia laÄxkaspfodkf'k fpÙka 'kjhjifjek.kkdkjek=kfeR;ijs izfriUuk%A
       rFkk pkUrjkHkko% lalkj'p ;qDr bfrA ;ks- Hkk- 4@10
6      o`fÙkjsokL; foHkqukf'pÙkL; lÄ~dkspfodkf'kuhR;kpk;Z%A ;ks- Hkk- 4@10
7      fpÙka u fnxf/dj.ka oLrq dkyek=kO;kihfØ;k:iRokn~A u áewÙk± fpÙka gLrkfnfHk% ifjes;e~] rLekÙkL; nh?kZLoRoknhfu u dYiuh;kfuA fnxo;ojfgrRokr~ fpÙka foHkq&loZHkkoS% lg lEcU/or~A u p foHkqRoa loZs'kO;kfiRoa O;olk;:iRokPpsrl%A Hkk- 4@10
8]9     izks- foeyk d.kkZVd] ikraty;ksxn'kZue~] ckyfiz;k Vhdk] i`- 1538&39] dk0fg0fo0] okjk.klh]] 1992
10 (i) cU/kdkj.k'kSfFkY;kRizpkjlaosnukPp fpÙkL; ij'kjhjkos'k%A ;ks- lw- 3@38
(ii)    deZcU/k{k;kRLofpÙkL; izpkjlaosnukPp ;ksxh fpÙk Lo'kjhjkfUu"d`"; 'kjhjkUrjs"kq fuf{kifrA ;ks- Hkk- 3@38
11     fpÙkL; ;ks∙lkS izpkjks ân;izns'kkfnfUnz;}kjs.k fo"k;kfHkeq[;su izljLrL; laosnua Kkufe;a fpÙkogk ukMh vu;k fpÙka ogfr] b;a p jlizk.kkfnogkH;ks ukMhH;ks foy{k.ksfrA jk- ek- o`- 3@38
12 (i) fuf{kIra fpÙka psfUnz;k.;uqirfUrA ;ks- Hkk- 3@38
(ii)     bfUnz;kf.k p fpÙkkuqlkfj.kh ij'kjhjs ;Fkkf/"Bkua fufo'kUr bfrA r- oS- 3@38
13     rLekRLorU=kks∙FkZ% lOkZiq#"klk/kj.k% LorU=kf.k p fpÙkkfu izfr iq#"ka izorZUrsA ;ks- Hkk- 4@16
14     v;LdkUref.kdYik fo"k;k v;% l/keZda fpÙkefHklEcè;ksijat;fUrA ;su p fo"k;s.kksijDra fpÙka l fo"k;ks KkrLrrks∙U;% iqujKkr%A oLrquks KkrkKkrLo#iRokr~ ifj.kkfe fpÙke~A ogha 4@17
15 (i) vr ,o fpÙka ifj.kkehR;kg&oLrqr bfrA r- oS- 4@17
(ii)     vrks KkrkKkroLrqdRokU;Fkk∙uqiiÙ;k fpÙkL;ksijkxk[;ifj.kke% fl) bR;FkZ%A ;ks- ok- 4@17
(iii)    bfUnz;}kjk fpÙkkf/k"Bkuxrk fo"k;kf'pÙkekÑ"; mij×t;fUr&Lokdkjr;k ifj.ke;UrhR;FkZ%A mijkxkis{ka fpÙka fo"k;kdkja Hkofr u Hkofr okA vrks KkukU;Roa izkI;ek.ka fpÙka ifj.kkehfr vuqHkw;rsA Hkk- 4@17
(iv)    rLekr~ oLrquks KkrkKkrLo:iRokr~ ifj.kkfe fpÙke~A ;ks- fo- 4@17
(v)    oLrqrks KkrkKkrLo:iRokr~ ifj.kkfe fpÙke~A uk- Hk- o`- 4@17
(vi)    vr ,o fpÙka rnFkksZijkxeis{; dnkfp}Lrq tkukfr dnkfpÂsfr KkrkKkrfo"k;RokRifj.kkehfr Hkko%Ae-iz- 4@17
(vii)   vusu fpÙkaifj.kkfe KkrkKkrfo"k;RokPNªks=kkfnofnfr fpÙkL; ifj.kkfeRos∙uqekueqDra HkorhR;fHklfU/k%;ks-lq- 4@17
(viii)   ,oa p fo"k;L; KkrkKkrRokU;Fkk∙uqiÙ;k fpÙkL;ksijkxk[;ifj.kke% fl)%A ;ks- iz- 4@17
(ix)    vrks Kkrk∙Kkrfo"k;r;k fpÙka ifj.kkE;ihfr Hkko%A ;ks- fl- p- 4@17
16     ;L; rq izR;FkZfu;ra izR;;ek=ka {kf.kda p fpÙka rL; loZeso fpÙkesdkxza ukLR;so fof{kIre~A ;ks- Hkk- 1@32
17     ;fn iqufjna loZr% izR;kg`R;SdfLeUuFksZ lek/kh;rs rnk HkoR;sdkxzfeR;rksA ;ks- Hkk- 1@32
18     u izR;FkZfu;re~A ogh
19     ;ks∙fi ln`'kizR;;izokgs.k fpÙkesdkxza eU;rsA ogh
20     rL;Sdkxzrk ;fn izokgfpÙkL; /eZ%A ogh
21     rnSda ukfLr izokgfpÙka {kf.kdRokr~A ogh
22     vFk izokgka'kL;So izR;;L; /eZ%A ogh
23     l loZ% ln`'kizR;;izokgh ok foln`'kizR;;izokgh ok izR;FkZfu;rRoknsdkxz ,osfr fof{kIr& fpÙkkuqiifÙk%A ogh
24     rLeknsdeusdkFkZeofLFkra fpÙkfefrA ogh
25     ;fn p fpÙksuSdsukufUork% LoHkkofHkUuk% izR;k tk;sjUuFk dFkeU;izR;;n`"VL;kU;% LerkZ Hkosr~A ;ks- Hkk- 1@32
26     vU; izR;;ksifpÙkL; p dekZ'k;L;kU;% izR;; miHkksDrk Hkosr~A ogh
27     dFkafpr~ lek/kh;ekueI;srn~ xkse;ik;lh;a U;k;ekf{kifrA ogh
28     nz"VO;] r- oS- 1@32
29     fdap LokRekuqHkokig~uof'pÙkL;kU;Ros izkIuksfrA ;ks- Hkk- 1@32
30     dFke~\ ;ngenzk{ka rr~ Li`'kkfe ;PpkLizk{ka rr~ i';kehR;gfefr izR;;% loZL; izR;;L; Hksns lfr izR;f;U;HksnsuksifLFkr%A ;ks- Hkk- 1@32
31     ,dizR;;fo"k;ks∙;eHksnkRek∙gfefr izR;;% dFkeR;UrfHkUus"kq fpÙks"kq orZekua lkekU;esda izR;f;uekJ;sr~\ ogh
32     LokuqHkoxzká'pk;eHksnkRek∙gfefr izR;;%A ogh
33     u p izR;{kL; ekgkRE;a izek.kkUrjs.kkfHkHkw;rsA izek.kkUrja p izR;{kcysuSo O;ogkja yHkrsA ogh
34     rLeknsdeusdkFkZeofLFkra p fpÙke~A ogh
35     oSukf'kdkuka fpÙkkReokfnukfefr 'ks"k%A fpÙkeso LoL; fo"k;L; p izdk'kdefXuon~Hkfo";fr] Ñreifj.kkfeuk∙U;susR;k'kadk oSukf'kdkuka L;kfnR;FkZ%A ;ks- ok- 4@19
36 (i) u rRLokHkkla n`';Rokr~A ;ks- lw- 4@19
(ii)     rfPpÙka LokHkkla Loizdk'kda u Hkofr iq#"kos|a Hkorhfr ;kor~] dqr\ n`';Rokr~ ;fRdy n`';a rn~nz"V`os|a n`"Va ;Fkk&?kVkfn] n`';a p fpÙka rLek LokHkkle~A Hkks- o`- 4@19
(iii)    rfPpÙko`fÙk:ia u LokHkkla u Loizdk'ka Loxkspjizdk'ka fouk u izdk'kO;ogkj{kee~A uk- Hk- o`- 4@19
(iv)    rfPpÙko`fÙk:ia u LokHkkla u Loizdk'ka HkofrA vkdk'ka Loizfrf"Bfefror~A Loxkspjizdk'ka fouSo izdk'kO;ogkjkTtkukehPNkehR;kfn:iSn`Z';r;kuqHkokfnR;FkZ%A Hkk- x- o`- 4@19
(v)     :ih ?kV bfror~ lq[;ga] Øq)ks∙ga] 'kkUra es eu bfr n`';RokfPpÙka LokHkkla Loizdk'k u HkorhR;FkZ%Ae-iz- 4@19
(vi)    rfPpÙka LokHkkla Loizdk'kda u Hkofr fdUrq iq#"kos|a dqrks n`';rokr~A p- 4@19
(vii)   ^?kVks∙;a :ioku~* bfror~ ^lq[;ge~* ^Øq)ks∙ge~* ^'kkUra es eu%* bfr n`';RokfPpÙka LokHkkla Loizdk'ka u HkofrA ;ks- lq- 4@19
(viii)   ;Fkk bfUnz;kf.k 'kCnkn;'p n`';RokUu LokHkklkfu rFkk rr~euksfi u LokHkkla Hkofr n`';RokfnR;FkZ%A;ks-iz- 4@19
(ix)    rfPpÙka u LokHkkla u Loizdk'ka] LoLokFkZxkspjo`Ù;Hkkodkys vkReo LoLokFkZ;ksHkkZldfefr ;kor~A;ks-fl-p- 4@19
37     ;Fksrjk.khfUnz;kf.k 'kCnkn;'p n`';RokUu LokHkklkfu rFkk euks∙fi izR;srO;e~A ;ks- Hkk- 4@19
38     u pkfXuj=k n`"VkUr%A ogh
39 (i) u áfXujkReLo#ieizdk'ka izdk'k;frA ogh
(ii)     'kwU;oknh ckS) vkpk;Z ukxktqZu us Hkh fpÙk ds }kjk vkRe&izdk'ku ds fy;s fn;s x;s vfXu ds n`"VkUr dk [k.Mu fd;k gS& fo"keksiU;klks∙;a ákRekua izdk'k;R;fXu%A u fg rL;kuqiyfC/k n`"Vk relho dqEHkL;A foxzgO;korZuh 35
(iii)    vXU;knkS p LoHkklRoeso ukLrhfr o{;fr] vrks u r=kkfi O;fHkpkj%A n`"VkUrs p loZnSo Loizdk';RokHkkoks∙LrhfrA ;ks- ok- 4@19
40      vfXuukZ=kn`"VkUr% LoHkklL;ksnkgj.ke~] 'kCnkfnonXus #i/eksZ∙fXufu"Bks ok ?kVk|kifrrks ok p{kq"kSo izdk';rsA u áfXufu"B#ia rstks/eZHkwrekReLo:iizdk'ka izdk'k;frA Hkk- i`- 4@19
41     ;ks- lw- 1@34&35
42     ;ks- Hkk- 1@34
43     /kkj.kklq p ;ksX;rk eul%A ;ks- lw- 2@53
44     ns'kcU/kf'pÙkL; /kkj.kkA ogha 3@1
45     nz"VO;] lw= Hkk"; vkSj o`fÙk 3-19-2] 4-4] 15]16]21
46 (i) rs iap Dys'kk% nX/chtdYik ;ksfxu'pfjrkf/dkjs psrfl izyhus lg rsuSokLra xPNfUrA ;ks- Hkk- 2@10
(ii)     rs lw{ek% Dys'kk ;s okluk#is.kSofLFkrk u o`fÙk#ia ifj.kkeekjHkUrs rs izfrizlosu izfrykseifj.kkesu gs;kLR;DrO;k%ALodkj.kfLer;ka d`rkFk± lokluafpÙka ;nkizfo"Va Hkofr rnk dqrLrs"kkafuewZykukalaHko%AHkks-o`- 2@10
lUnHkZ xzUFk&
1-        vuUrnso] inpfUnzdk] ok.kh foykl ;U=ky;] Jhjaxe~] 1911
2-        vkj.;] gfjgjkuUn] HkkLorh] pkS[kEHkk izdk'ku]okjk.klh ] 1935
3-        bZ'ojÑ".k] lka[;dkfjdk ¼okpLifrfeJlkÄ~[;rÙodkSeqnhlfgr] ia- f'koukjk;.k'kkfL=kfojfpr lkjcksf/kuhO;k[;klfgr½ pkS[kEck fo|kHkou] okjk.klh]] 2001
4-        d.kkZVd] Mk- ¼dq-½ foeyk] ikraty;ksxlw=ko`fÙk% jkekuUn;frfojfprk^ef.kizHkk*;qrklikBHksn ^lqfiz;k∙∙[;fgUnhO;k[;ksisrk p] Ñ".knkl vdkneh]] okjk.klh]] 1996
5-        d.kkZVd] Mk- foeyk] ikraty;ksxn'kZue~ ¼izFke[k.M&prqFkZ[k.M½ rÙooS'kkjnh&;ksxokfÙkZdsfr&Vhdk};ksisra O;klHkk";e~] likBHksnckyfiz;k∙∙[; fgUnhO;k[;;k foHkwf"kre~] dk0fg0 fo0] okjk.klh]] 1992
6-        >ydhadj] U;k;&dks'k]Hk.Mkjdj vksfj;.Vy fjlpZ bULVhV~;wV] iwuk
7-        ukjk;.krhFkZ] ;ksxfl)kUrpfUnzdk] eksrhyky cukjlhnkl] okjk.klh ]la- 2014
8-        HkV~V]ukxs'k] ukxs'kHkV~Vh;&y?kq&;ksxlw=ko`fÙk (la- egknso'kkL=h) fu.kZ; lkxj izsl] eqEcbZ] 1917
9-        Hkkokx.ks'k] Hkkokx.ks'kh;&;ksxlw=ko`fÙk] ¼la- egknso 'kkL=h½ fu.kZ; lkxj izsl] eqEcbZ] 1917
10-       Hkkstjkt] jktekrZ.M&o`fÙk la- Mk- jke'kadj HkV~Vkpk;Z Hkkjrh; fo|k izdk'ku] okjk.klh]] 2001
11-       egf"kZ O;kl] ikraty;ksxn'kZu ;ksxlw=kO;klHkk";lfgr] pkS[kEHkk lqjHkkjrh izdk0] okjk.klh] 2002
12-       feJ] cynso] ;ksxiznhfidk] pkS[kEHkk izdk'ku] okjk.klh]] 1987
13-       feJ] okpLifr] ikraty;ksxn'kZu ¼rÙooS'kkjnh lfgr½] Hkkjrh; fo|k izdk'ku] fnYyh]] 1998
14-       ;fr] jkekuUn] ef.kizHkk] fo|k foykl izsl] okjk.klh] 1903
15-       èojhUnz] /keZjkt] osnkUrifjHkk"kk ¼O;k-½ Mk- xtkuu 'kkL=h ] pkS[kEck izdk'ku okjk.klh ] 2020
16-       ljLorh jk?kokuUn] ikraty&jgL; (lkax;ksxn'kZue~)] pkS[kEHkk izdk'ku] okjk.klh ] 1935
17-       ljLorh]lnkf'kosUnz];ksxlw=e~(;ksxlq/kkdjlfgr)] pkS[kEHkk laLÑr laLFkku okjk.klh]fo-la- 2058]
18-       Patanjali, Patanjali Yoga Sutras, Sri Ramakrishna Math, Chennai , 2007
19-       Rukmani,T. S., Yogasutrabhasya vivarana of Sanskrit           (Vivarana text with English translation, and critical notes alongwith text and English translation of Patanjali’s Yogasutras and Vyasbhasya) (Vol-I-II), Munsiram Manoharlal Publications, New Delhi, 2001