Tuesday 31 March 2009

महिलाओं के संरक्षण हेतु कटिबद्ध अन्तर्राष्ट्रीय विधि


नीलम सिंह
शोध छात्रा, विधि विभाग,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद |


           समाज में सभी व्यक्ति समान नहीं होते हैं। यही बात अन्तर्राष्ट्रीय समाज पर भी चरितार्थ होती है। नारी समाज का अंग है, जो प्रकृतिवश या गहरी रूढि़यों के कारण दुर्बल है। समाज ने स्वार्थवश नारी को मात्र भोग-विलास की वस्तु मान लिया जिसके फलस्वरूप उसकी स्थिति दयनीय हो गयी। लिंग पर आधारित भेदभाव और अस्वीकार्य असमानताएँ सभी देशों में आज भी विद्यमान है। दुनिया का शायद ही कोई देश हो जहाँ महिलायें पुरुषों के साथ समान अधिकार का उपयोग करती हों। समाज का कोई ऐसा क्षेत्र और विश्व का कोई ऐसा भाग नहीं है जहाँ महिलाओं को प्रताडि़त न किया जाता हो। महिलाओं के साथ भेदभाव और उन्हें हाशिये पर कर दिये जाने का कार्य बड़ी दक्षता और सम्मानजनक तरीके से किया जाता रहा है।
इसे दृष्टिगत करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय विधि ने महिलाओं के अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की। जो भेदभाव न करने के सिद्धान्त पर आधारित है। महिलाओं के अधिकार के अभिवर्धन के प्रति चिन्ता अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने वास्तव में द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के समय से किया है। मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा थी कि सभी मानव स्वतन्त्र पैदा हुए हैं और गरिमा एवं अधिकारों में समान हैं तथा सभी व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के (जिसमें लिंग पर आधारित भेदभाव भी शामिल है) सभी अधिकारों एवं स्वतन्त्रताओं के हकदार हैं। फिर भी महिलाओं के प्रति विभेद जारी रहा, अस्तु संयुक्त राष्ट्र की महासभा नें 7 दिसम्बर, 1967 को महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव की समाप्ति की घोषणा को अंगीकार किया और घोषणा में प्रस्तावित सिद्धान्तों के कार्यान्वयन के लिए महिलाओं के विरूद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर अभिसमय को 18 दिसम्बर, 1979 को स्वीकार किया गया।1
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के संरक्षण का विधिक विकास: संयुक्त राष्ट्र के अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर उभार के पूर्व भी महिलाओं का संरक्षण अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सरोकार का विषय रहा है, यद्यपि यह बहुत सीमित रूप  में था। 1902 में सम्पन्न ’हेग अभिसमय’ विवाह, विवाह-विच्छेद और अवयस्कों की संरक्षकता से सम्बंधित विधियों के विरोध में होने की विवेचना करता है। महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित करने हेतु पुनः श्वेत दास के अवैध कारोबार को रोकने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय करार, 18 जुलाई 1904 को हुआ। प्रोटोकाल जो 4 मई, 1949 को लेक सक्सेस, न्यूयार्क में हस्ताक्षरित किया गया के द्वारा संशोधित किया गया। इस प्रकार महिलाओं के संरक्षण हेतु कटिबद्ध अन्तर्राष्ट्रीय विधि में विभिन्न अभिसमयों तथा सम्मेलनों का आयोजन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किया गया।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर में महिलाओं का संरक्षण2: अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं का संरक्षण एक अहम् विषय रहा है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से लेकर आज तक इनके संरक्षण को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। सन् 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर की प्रस्तावना में महिलाओं के समानता के अधिकार की घोषणा की गई है। इसके अतिरिक्त चार्टर के विभिन्न अनुच्छेदों में महिलाओं के अधिकारों का प्रावधान किया गया है। महिलाओं की राष्ट्रिकता को लेकर मान्टी विडियो अभिसमय; 1933 मान्टी विडियो अभिसमय राष्ट्रिकता के मामले में लिंग की समानता के सिद्धान्त को दृढ़ता से प्रतिपादित करता है। इस अभिसमय में प्रावधानित किया गया है कि राष्ट्रिकता के मामले में लिंग पर आधारित कोई भेद-भाव राष्ट्रों के विधान या उनके व्यवहार में नहीं होगा।3 व्यक्तियों के अवैध व्यापार पर रोक एवं अन्य लोगों की वेश्यावृत्ति द्वारा शोषण पर अभिसमय; 1949 इस अभिसमय के पूर्व भी महिलाओं एवं बच्चों के अवैध व्यापार के दमन पर अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय; 1921 तथा पूर्ण आयु की महिलाओं के अवैध व्यापार के दमन पर अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय; 1933 प्रमुख थे। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शोषण को प्रभावशाली ढंग से दूर करने के उद्देश्य से व्यक्तियों के अवैध व्यापार तथा वेश्यावृत्ति के शमन पर इस अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय को 2 दिसम्बर, 1949 को अपनाया गया। इसके अन्तर्गत किसी भी ऐसे व्यक्ति को दण्डित करने का प्रावधान किया गया है जो वेश्यावृत्ति के प्रयोजन हेतु किसी अन्य व्यक्ति चाहे वह उसकी सम्मति से ही क्यों न हो, प्राप्त करता है, फुसलाता है या लाता है एवं उसका शोषण करता है।4 इसके अतिरिक्त वेश्यागृह को चलाने, उसका प्रबन्ध करने, वित्तीय सहायता देने एवं वेश्यावृत्ति के प्रयोजन के लिये इमारत आदि किराये पर देने को भी दण्डित किया गया है।5 पुरूष एवं महिला कर्मकारों के समान मूल्य के कार्य के लिए समान वेतन अभिसमय; 1951 संयुक्त राष्ट्र चार्टर की प्रस्तावना में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि महिलाओं एवं पुरूषों को एक समान अधिकार होंगे। आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् द्वारा इस बात पर जोर दिया गया कि बिना किसी विभेद के महिलाओं को पुरूष कर्मकारों के समान पारिश्रमिक दिया जाये। यह प्रावधान समानता के अधिकार को बढ़ावा देने के लिए नियोजन और पदोन्नति के सम्बन्ध में महिलाओं के लिए हितकर है। महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों पर अभिसमय;1952 महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों पर अभिसमय एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। जिसमें महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों के विषय में प्रावधान किए गये हैं। इस अभिसमय के प्रथम तीन अनुच्छेदों में महिलाओं को निम्नलिखित अधिकार प्रदान किये गये हैं-मतदान देने का अधिकार, निर्वाचन के लिए पात्रता तथा लोकपद धारित करने का अधिकार।
विवाहित महिलाओं की राष्ट्रीयता पर अभिसमय ; 1957 महिलाओं की प्रास्थिति पर कमीशन द्वारा 29 जनवरी, 1957 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा विवाहित महिलाओं की राष्ट्रीयता का अभिसमय अंगीकार किया गया। इसमें यह प्रावधानित किया गया है कि राज्य पक्षकार के राष्ट्रीयता वाली महिला तथा विदेशी के मध्य विवाह अथवा विवाह-विच्छेद तथा पति की राष्ट्रीयता में परिवर्तन से पत्नी की राष्ट्रीयता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।6 महिलाओं के विरूद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर अभिसमय; 1979 इस अभिसमय के अन्तर्गत महिलाओं के विरूद्ध सभी भेदभाव समाप्त करके पुरूषों के साथ शिक्षा नियोजन, स्वास्थ्य, देखभाल तथा आर्थिक एवं सामाजिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में समान अधिकार के उपाय राज्यों द्वारा किये जाने का संकल्प लिया गया।7 महिलाओं तक स्वास्थ्य, सुरक्षा, सुविधायें पहुँचाना, गर्भावस्था, प्रसवकाल, जन्मोत्तरकाल में मुफ्त चिकित्सा सुविधा, पर्याप्त पोषण आहार की सुविधा प्रदान किया जाना भी इसमें सम्मिलित है।8 राज्य ऐसे सभी उपाय करेंगे जिससे ये उपबन्ध ग्रामीण महिलाओं पर भी प्रयोज्य हो।
महिलाओं के हितों के संरक्षण को प्रावधानित करने वाली विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय घोषणायें: महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करने के लिए दो घोषणायें प्रमुख हैं- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ; 1948 व महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव के समापन की उद्घोषणा 1967। स्त्रियों एवं पुरूषों के बीच समानता को बढ़ावा देने और स्त्रियों की प्रास्थिति को सुधारने की प्रेरणा संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा से प्राप्त हुई। इस घोषणा में महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के अधिकारों की प्राप्ति का हकदार माना गया है। महासभा द्वारा यह निश्चय किया गया कि महिलाओं के विकास हेतु दीर्घकालिक एकीकृत योजना प्रारम्भ और क्रियान्वित की जाये। इसके लिए महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव के समापन के लिए एक घोषणा 1967 में उद्घोषित की गई। जिसमें महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव करने वाली विधियाँ, प्रथायें, विनियमों एवं अभ्यासों को समाप्त करने के सभी उपयुक्त उपाय किये जायेंगे। इसके अतिरिक्त सिविल क्षेत्र में पुरूषों के समान अधिकार, उन्हें सम्पत्ति प्राप्त करने, उसको प्रशासित करने, उपभोग करने, व्ययन करने तथा उत्तराधिकार में प्राप्त करने का अधिकार विहित है एवं दण्ड संहिता के वे सभी उपाय जो स्त्रियों के विरूद्ध भेदभाव का गठन करते हैं निरसित कर दिये जायेंगे। महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव के समापन की उपरोक्त उद्घोषणा महिलाओं के लिए समान अधिकार के सिद्धान्त के सूत्रीकरण हेतु संयुक्त राष्ट्रसंघ और दूसरे अंगों के प्रयत्नों की पराकाष्ठा है।
महिलाओं से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदायें: अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने हेतु विभिन्न प्रसंविदायें की गई जिनमें दो प्रमुख हैं-सिविल तथा राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा 1966, तथा आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की प्रसंविदा 1966।
सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों की प्रसंविदा में यह प्रावधान है कि राज्य पक्षकार पुरूषों और स्त्रियों के समान अधिकारों को सुनिश्चित करेंगे।9 आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा 1966 में यह प्रावधान है कि स्त्रियों की प्रास्थिति पर आयोग को यह आदेश दिया गया था कि वह परिषद को राजनीतिक, आर्थिक, सिविल, सामाजिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं के अधिकार के सम्वर्धन हेतु संस्तुति और प्रतिवेदन दे।
महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन: विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से भी महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण प्रदान किया गया जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं- तेहरान अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन 1968: 22 अप्रैल, 1968 से 13 मई 1968 तक हुए तेहरान घोषणा ने अपने 15 वें बिन्दु में महिलाओं के अधिकारों पर बल दिया एवं कहा कि महिलाएँ विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अब भी भेदभाव की शिकार है, उसका समापन किया जाना चाहिए। महिलाओं पर प्रथम विश्व सम्मेलन; 1975-संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने वर्ष 1975 को ‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष’ के रूप में घोषित किया जिसका उद्देश्य पुरूषों और महिलाओं के समानता के सिद्धान्त, सार्वभौम मान्यता विधित और तथ्यतः को बल प्रदान करना था। मैक्सिको में आयोजित इस सम्मेलन की विषयवस्तु ‘समानता, विकास और शान्ति’ था। सम्मेलन में यह भी संस्तुति की गई कि 1975-85 को ‘महिला और विकास का दशक’ घोषित किया जाये जिसे 1976 में महासभा ने घोषित किया। 1976 में ही महासभा ने महिलाओं के विकास के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय शोध और प्रशिक्षण संस्थान जिसका मुख्यालय सैन्टोडोमिंगो, डोमिनिकन रिपब्लिक में होगा, के निर्माण को स्वीकृति प्रदान की। इसी क्रम में महिलाओं के लिए ‘‘संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कोष’’ की स्थापना की गई।
कोपेनहेगन में महिलाओं पर द्वितीय विश्व सम्मेलन 1980: इस सम्मेलन की विषयवस्तु ‘समानता, विकास और शान्ति’ थी जिसके साथ तीन उपविषय ‘शिक्षा, नियोजन एवं स्वास्थ्य’ जोड़े गये। इस सम्मेलन के प्रथम भाग में दक्षिणी अफ्रीका में स्त्रियों की रंगभेद नीति के प्रभाव तथा फिलिस्तीनी स्त्रियों पर इजराइल अधिभाग पर विचार किया गया। द्वितीय भाग में स्त्रियों के पूर्ण एवं समान विकास पर जोर दिया गया।
नैरोबी में महिलाओं पर तृतीय विश्व सम्मेलन 1985: संयुक्त राष्ट्र दशक की उपलब्धियों का पुनर्विलोकन एवं मूल्यांकन करने के लिए महिलाओं पर तृतीय विश्व सम्मेलन नैरोबी में 15 से 26 जुलाई, 1985 में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन द्वारा वर्ष 2000 तक महिलाओं की स्थिति के विकास के लिए रणनीति तैयार की गई इसका केन्द्र बिन्दु महिलाओं की कानूनी दशा सुधारना और विकास के सभी क्रियाकलापों में उनकी भूमिका तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का सम्वर्धन करना था।10
महिलाओं पर चतुर्थ विश्व सम्मेलन 1995: संयुक्त राष्ट्र द्वारा चतुर्थ विश्व सम्मेलन बीजिंग (चीन) में 4 सितम्बर से 15 सितम्बर 1995 तक आयोजित किया गया। यह सम्मेलन विश्व स्तर पर आयोजित दुनिया के विशालतम सम्मेलनों में से एक था। इस सम्मेलन का नारा था कि ‘दुनिया को महिलाओं की दृष्टि से देखो’ (लुक एट द वल्र्ड थ्रू वोमेंस आईज) इस सम्मेलन का मुख्य कार्यक्रम था ‘विश्व मे सब जगह महिलाओं के लिए-‘समानता, विकास और शान्ति।’ इस सम्मेलन में एक ‘बीजिंग घोषणा’ और ‘कार्य के लिए प्लेटफार्म’ अंगीकृत किया। इसके द्वारा दुनिया की महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सामथ्र्य की वृद्धि के लिए एक कार्ययोजना प्रस्तुत की गई।11 बीजिंग सम्मेलन में एक कार्ययोजना का प्रारूप तैयार किया गया जिसमें महिलाओं की उन्नति के लिए बाधक 12 नाजुक क्षेत्रों की समालोचना की गई ये क्षेत्र निम्नलिखित हैं- गरीबी, अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य, हिंसा, संघर्ष, आर्थिक असमानता, शक्ति में गैर-हिस्सेदारी, मानव अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय संधियों के अनुसर्मथन को हतोत्साहन, उनके कार्यान्वयन की अवनति, सूचना एवं माध्यम में समानता के आधार पर महिलाओं की पहुँच नहीं, निर्णय लेने में महिलाओं का भागीदारी न होना, सभी प्रकार के भेदभाव एवं बालिकाओं के प्रति नकारात्मक संकीर्ण दृष्टिकोण एवं अभ्यासों की पुनरावृत्ति।
संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने वर्ष 2000 में एक विशेष सत्र का आयोजन इस बात का मूल्यांकन करने के लिए किया कि बीजिंग सम्मेलन के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में कितना सुधार हुआ है। जिसको साधारणतया बीजिंग5 (ठमपरपदह ़5) कहा जाता है।
अतः 21वीं शताब्दी में प्रवेश की ओर अग्रसर होने के साथ-साथ महिला अधिकारों के आन्दोलन ने तीव्र गति पकड़ ली है तथा समूचे विश्व को इसने प्रभावित किया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि ये सुधार संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों के परिणाम स्वरूप ही संभव हुआ। विभिन्न अभिसमय एवं महत्त्वपूर्ण विश्व सम्मेलन जिनके माध्यम से स्त्रियों की प्रास्थिति को दृढ़ता प्रदान किया गया उससे आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। इस अमूल्य योगदान के फलस्वरूप महिलाएँ विश्व स्तर पर राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी निभा रही है। आज महिलाओं को जो सम्मान एवं अधिकार विभिन्न राष्ट्रों की विधियों द्वारा प्रदान किए गए हैं उसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय विधि की महत्त्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। निश्चित रूप से महिलाओं के हितों का संरक्षण एवं उनके विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय विधि सतत् कटिबद्ध है।
संदर्भ ग्रन्थ -
1. डाॅ0 एच0ओ0 अग्रवाल, अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं मानवाधिकार, संस्करण, 2001
2. राष्ट्र संघ प्रसंविदा का अनुच्छेद 7, पैरा-3
3. अनुच्छेद 1, मान्टी विडियो अभिसमय, 1933
4. अनुच्छेद 1, व्यक्तियों के अवैध-व्यापार पर रोक एवं वेश्यावृत्ति द्वारा शोषण पर अभिसमय, 1933
5. अनुच्छेद 2, व्यक्तियों के अवैध-व्यापार पर रोक एवं वेश्यावृत्ति द्वारा शोषण पर अभिसमय, 1949
6. अनुच्छेद 1, विवाहित महिलाओं की राष्ट्रीयता पर अभिसमय: 1957
7. अनुच्छेद 10, महिलाओं के विरूद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर अभिसमय: 1979
8. अनुच्छेद 12, महिलाओं के विरूद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर अभिसमय: 1979
9. अनुच्छेद 3, सिविल तथा राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, 1966
10. टी0पी0 त्रिपाठी, मानवाधिकार, पृ0-131
11. प्लेटफार्म आॅफ एक्सन एण्ड दी बीजिंग डिक्लेरेशन (1996), पृ0-3
12. डाॅ0 यू0एन0 चन्द्रा, मानवाधिकार
13. डाॅ0 एच0ओ0 अग्रवाल, मानव अधिकार, चतुर्थ संस्करण, 2008
14. डाॅ0 एस0के0 कपूर, मानव अधिकार, द्वितीय संस्करण, 2005
15. जय जय राम उपाध्याय, मानव अधिकार द्वितीय संस्करण, 2002

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