Tuesday 31 March 2009

उत्तर प्रदेशः विकास के मार्ग को प्रशस्त करती ग्रामीण विकास कार्यक्रम


धनंजय शर्मा
शोध छात्र, समाजशास्त्र,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।

                 उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से एक विशाल, क्षेत्रीय असंन्तुलन और सामाजिक, आर्थिक एवं भौगोलिक विषमताओं की दृष्टि से एक विविधतापूर्ण प्रदेश है, वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ देश की कुल जनसंख्या का 16.17 प्रतिशत भाग निवास करता है जो कुल क्षेत्रफल की दृष्टि से अभी भी देश का पाँचवां सबसे बड़ा राज्य है। देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.33 प्रतिशत भाग उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत है। यह 2 लाख 40 हजार 928 वर्ग किलोमीटर के घेरे में 70 जिलों, 302 तहसीलों, 813 विकास खण्डों 52028 ग्राम पंचायतों और 97 हजार 942 गाँवों में फैला हुआ है। यहां जनसंख्या का घनत्व प्रतिवर्ग किलोमीटर 690 व्यक्ति है, जबकि सम्पूर्ण देश का अर्थात् अन्य सभी राज्यों का औसत घनत्व 325 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है, वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार प्रदेश की कुल जनसंख्या 16,61,97,921 है। वर्तमान में प्रदेश की कुल आबादी में 8.76 करोड़ पुरूष तथा 7.86 करोड़ महिलाएं सम्मिलित है। प्रदेश में ग्रामीण और शहरी जनसंख्या का प्रतिशत क्रमशः 80 तथा 20 के करीब है वर्ष 2005-06 में भारत में बिहार के बाद सर्वाधिक गरीबी उत्तर प्रदेश में है। जहाँ 24.25 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे है। यहाँ वर्तमान में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर (1991-2001) 25.85 प्रतिशत रही है। जो देश की सम्पूर्ण दशकीय वृद्धि दर (21.54) की तुलना में 4.31 प्रतिशत अधिक है। जनसंख्या वृद्धि की तीव्र दर का प्रदेश के विकास पर अत्यधिक विपरीत प्रभाव परिलक्षित हुआ है।
प्रदेश में व्यापक रूप से पायी जाने वाली आर्थिक, सामाजिक और क्षेत्रीय, विषमताओं ने यहाँ विकास की गति को अत्यधिक रूप से प्रभावित किया है, जैसा कि गोविन्द सहाय कमेटी में कहा गया कि विकास कार्यक्रमों का अधिकांश लाभ कुछ ही लोगों को प्राप्त होता है। बेबर के अनुसार सामाजिक, आर्थिक स्थिति एक समान नहीं होती हैं इसमें तीन अयाम होते हंै। प्रस्थिति (जाति) वर्ग तथा शक्ति ये आयाम व्यक्तियों में पीढ़ीगत् असमानता उत्पन्न करते हंै।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के सुझाव पर प्रदेश में ग्रामीण विकास का सुनियोजित कार्यक्रम निर्धारित करने और कार्यक्रम को चलाने के लिए अमेरिकन विशेषज्ञ श्री अल्बर्ट मायर को उत्तर प्रदेश सरकार का नियोजन एवं विकास सलाहकार नियुक्त किया गया। 1948-49 में इटावा जिलें के 64 गाँवों में अग्रगामी विकास परियोजना आरम्भ की गई जिसका मुख्य उद्देश्य नये प्रयोग करना, उनका मूल्यांकन करना और जिन कार्यक्रमों को जनता अपना ले और लाभकारी हो उनका सघन प्रसार करना था।
2 अक्टूबर, 1952 को प्रदेश में समुदायिक विकास कार्यक्रम चलाया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण आवास, पेयजल स्वच्छता तथा गाँवों में विद्युतीकरण पर विशेष बल दिया गया तथा इस कार्यक्रम के उद्घाटन करते हुए नेहरू जी ने कहा था, ‘‘जो कार्यक्रम हम आरम्भ कर रहे हंै वह मातृभूमि की सेवा और जिस देश के हम सब अंग है। उसकी सेवा के लिए है। हमें कठिन परिश्रम और खून-पसीना एक करके उसकी सेवा करनी चाहिए यदि आवश्यक हुआ तो उसके लिए हम अपना रक्त बहा देंगे जिससे हमारे करोड़ों देशवासी प्रगति कर सकें और उनके दर्द और परेशानियों का अंत हो सके।’’ इसके बाद विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं ने विकास को गति प्रदान करने की कोशिश की। वर्तमान में प्रदेश में निम्नलिखित ग्रामीण विकास योजनायें चलाई जा रही है। जो विकास के मार्ग में प्रशस्त कर रहीं हैं।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना ;ैळैल्द्ध
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना गाँवों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 1 अप्रैल 1999 को प्रारम्भ की गई। इस योजना में पहले से चल रही 6 योजनाओं का विलय कर दिया गया। जो इस प्रकार हैं- (1) समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम (प्त्क्च्) (2) स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण कार्यक्रम (ज्त्ल्ैम्ड) (3) ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं एवं बाल विकास कार्यक्रम (क्ॅब्त्।) (4) ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजारों की किट की आपूर्ति का कार्यक्रम (ैप्ज्त्।), (5) गंगा कल्याण योजना (ळज्ञल्) तथा (6) दस लाख कुँआ योजना (डॅै)। इस योजना के अन्तर्गत बैंक ऋण और सरकारी अनुदान के माध्यम से स्वा सृजन करने वाली परिसम्पत्तियां गरीब परिवारों को उपलब्ध कराकर उन्हें स्वरोजगार में लगाने का कार्य किया जा रहा है। इसमें केन्द्र सरकार और राज्य सरकार का क्रमशः 75 और 25 प्रतिशत अंश का योगदान है। योजनान्तर्गत सामूहिक दृष्टिकोण पर बल दिया जाता है। 50 प्रतिशत समूह महिलाओं 50 प्रतिशत अनुसूचित जाति/जनजाति एवं 3 प्रतिशत विकलांग को दिया जाता है। योजना में सामान्य वर्ग को 30 प्रतिशत (अधिकतम रूपये 7500.00) अनुसूचित जाति/जनजाति एवं विकलांग व्यक्तियों को 50 प्रतिशत (अधिकतम रुपये 10000.00) तथा सामूहिक ऋण हेतु 50 प्रतिशत (प्रति स्वरोगार रुपये 10000.00 अथवा रुपये 1.25 लाख जो भी कम हो) अनुदान दिया जाता है। वर्ष 2006-07 में 2.95 लाख व्यक्तियों को स्वतः रोजगार में स्थापित किया गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ;छत्म्ळ।द्ध
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम (छत्म्ळ।) 7 सितम्बर 2005 को संसद में पारित किया गया था। जिसमें 100 दिन की रोजगार की गांरटी दी गयी है। इस योजना का प्रारम्भ 2 फरवरी 2006 को आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले में किया गया पहले चरण में यह सुविधा 200 जिलों में उपलब्ध कराई गई थी। 2007-08 में इस कानून का विस्तार 330 अतिरिक्त जिलों में किया गया जबकि बाकी जिलों को इसमें शामिल करने की अधिसूचना 1 अप्रैल, 2008 को जारी कि गयी। इसमें काम के बदले अनाज कार्यक्रम व सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का विलय कर दिया गया है। इस योजना में परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जायेगा। जिसमें 33 प्रतिशत लाभार्थी महिलायें होंगी। रोजगार के इच्छुक एवं पात्र व्यक्ति द्वारा पंजीकरण कराने के 15 दिन के भीतर रोजगार न दिये जाने पर निर्धारित दर से बेरोजगारी भत्ता सरकार द्वारा प्रदान किया जायेगा। प्रदेश में वर्तमान मजदूरी दर रू0 58.00 प्रति मानव दिवस निर्धारित है। प्रदेश के कुल रोजगार सृजन 4.53 करोड़ की कार्य दिवस की मांग थी जिसमें 4.28 करोड़ मानव दिवस का रोजगार सृजन किया गया।
सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (ैळत्ल्)
इस योजना का शुभारम्भ प्रधानमंत्री द्वारा 25 सितम्बर 2001 को किया गया। जिसमें रोजगार आश्वासन योजना (म्।ै) और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (श्रळैल्) को मिला दिया गया था। इसका खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन तथा स्थायी परिसम्पत्तियों का सृजन करना ा मुख्य उद्देश्य है। इस योजना के अन्तर्गत टिकाऊ ग्रामीण परिसम्पत्तियों के निर्माण से सम्बन्धित परियोजना के लिए त्रिस्तरीय पंचायतों के माध्यम से रोजगार के अवसर सृजित किये जाते हैं। इस योजना के अन्तर्गत लाभार्थियों को न्यूनतम 5 किलो अनाज और कम से कम 25 प्रतिशत मजदूरी नकद दी जाती है। इस कार्यक्रम का खर्च (नकद भाग) केन्द्र तथा राज्यों में 75ः25 अनुपात के आधार पर बाँटा जाता है। इस कार्यक्रम के लिए संसाधनों का आंवटन पंचायती राज के तीनों स्तरों यानी जिला पंचायत, पंचायत समिति तथा ग्राम पंचायत द्वारा 20ः30ः50 के अनुपात में किया जाता है। 2007 तक 6.10 करोड़ मानव दिवस का रोजगार सृजन किया गया जिससे काम की तलाश में भटकने वाले बेरोजगार को विशेष सम्बल प्राप्त हुआ है।


इन्दिरा आवास योजना (प्।ल्)
इन्दिरा आवास योजना वर्ष 1985-86 में (मई 1985 में) त्स्म्ळच् की एक उप योजना के रूप में आरम्भ की गयी थी। इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले आवास हीन ग्रामीण परिवारों को निःशुल्क आवास उपलब्ध कराना है। जिसमें केन्द्र और राज्य का 75ः25 प्रतिशत का योगदान होता है। भवन-निर्माण की उच्च लागत को देखते हुए, 1 अप्रैल 2008 के पश्चात् स्वीकृत नये मकानों के संबंध में मैदानी इलाकों में प्रति इकाई सब्सिडी को 25000 रुपये से बढ़ाकर 35000 रू0 और पर्वतीय/दुर्गम इलाकों में 27500 रुपये से बढ़ाकर 38500 रुपये करने का प्रस्ताव है। मकानों के उत्पादन के लिए सब्सिडी 12500 रू0 प्रति यूनिट से बढ़ाकर 15000 रुपये की गयी है। वर्ष 2006-07 में 2,65,613 आवासों का निर्माण किया गया। जिससे लाखों लोगों को खुले आसमान में सोने से बचाया जा सका है। जिससे उनके मन में आत्मविश्वास पैदा हुआ है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (च्डळैल्)
ग्रामीण सड़कों द्वारा गाँवों को जोड़ने का उद्देश्य ने केवल देश के ग्रामीण विकास में सहायक है बल्कि इसे गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में एक प्रभावी घटक स्वीकार किया गया है। स्वतंत्रता के 6 दशकों के बाद भी लगभग 40 प्रतिशत भारत के गाॅव अच्छी सड़कों से जुड़े हुए नही हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु 25 दिसम्बर 2000 से यह योजना प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भ में यह योजना केवल 1000 आबादी वाले गाँवों के लिए था लेकिन 2003 से 500 तक आबादी वाले गाॅव को भी शामिल कर लिया गया। प्रदेश में राज्य योजना आयोग के आंकड़ों के अनुसार 1000 या उससे अधिक आबादी वर्ग की कुल 39139 ग्रामीण बसावटे्र थी, जिसमें से 10.898 सर्वऋतु मार्गो से गैर जुड़ी हुई थी। इसी प्रकार 500-999 आबादी वर्ग की कुल 41.452 ग्रामीण गाॅवों में से 17944 गाँवों को सभी वस्तु मार्गो से जोड़ा जाना शेष था। ‘‘प्रदेश में निर्मित की गयी सड़कों के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वर्ष 2005-06 में सम्पूर्ण भारत वर्ष में निर्माण की गुणवत्ता के सन्दर्भ में प्रदेश का स्थान प्रथम रहा हैं।’’
ग्रामीण पेयजल योजना
इस योजना का प्रारम्भ प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (2000) के अन्तर्गत ग्रामीण लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किया गया। स्वजल धारा के अतिरिक्त (1) त्वरित ग्रामीण पेयजल योजना (2) ग्रामीण जल सम्पूर्ति-जलोत्सारण योजना (3) गुणवत्ता प्रभावित बस्तियों में शुद्ध पेयजल इन तीनों योजनाओं में प्रदेश को 2006-07 के बजट प्राविधान के अनुसार 871.43 रुपये करोड़ निर्धारित किया गया था। वर्ष 2006-07 में कुल सम्भावित हैण्डपम्पों के सापेक्ष दिनाँक 15.07.06 तक एक लाख हैण्डपम्प जलनिगम द्वारा (90000 हैण्डपम्प ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 10000 नगरीय क्षेत्रों में) तथा 10000 हैण्डपम्प यू0पी0एग्रो द्वारा लगायी जा चुकी है। जिससे प्रदेश के अधिकांश जिलों में स्वच्छ पेयजल कि समस्या का निदान हो रहा है।
स्वजल धारा कार्यक्रम
ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की समस्या के समाधान के लिए स्वजल धारा कार्यक्रम की शुरुआत केन्द्र सरकार ने दिसम्बर 2002 में की थी। इसका उद्घाटन 25 दिसम्बर 2002 को विडियों कान्फ्रेसिंग के जरिये उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के गोहाकलाँ गाँव में किया गया। ग्राम पंचायतों के माध्यम से लागू किये जाने वाले इस कार्यक्रम के तहत गाँव-वासियों को कुएँ, बावडी बनाने व हैण्डपम्प लगाने की सुविधा प्रदान की गई हैं। योजना लागत का केवल 10 प्रतिशत भाग ही गाँव वासियों को वहन करना होगा, शेष 90 प्रतिशत राशि की भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा की जायेगी। सभी गाॅवों में 2004 तक पेयजल उपलब्ध कराने के लक्ष्य वाले इस कार्यक्रम का संचालन ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्वाधान में किया जायेगा।
राष्ट्रीय सम विकास योजना
यह योजना वर्ष 2003-04 के दौरान योजना आयोग द्वारा शुरू की गई। इस योजना के तीन अंग हैं- (1) बिहार के लिए विशेष योजना (2) उड़ीसा के ज्ञठज्ञ (कालाहांडी -बोलंगीर- कोरापुट) जिलों के लिए विशेष (3) पिछड़े जिलों के लिए पहल। इस कार्यक्रम की वित्त व्यवस्था केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है। क्रियान्वयनकत्र्ता राज्यों को शत-प्रतिशत अनुदान के रूप में सहायता दी जाती है।
पिछड़े जिलों के लिए पहल के दायरे में 100 पिछड़े जिले आते हैं। उत्तर प्रदेश में 21 जिले (रायबरेली, हरदोई, सोनभद्र, उन्नाव, सीतापुर, फतेहपुर, बांदा, चित्रकूट, मीरजापुर, बाराबंकी, चन्दौली, महोबा, प्रतापगढ़, जालौन, हमीरपुर, जौनपुर, कौशाम्बी, ललितपुर, कुशीनगर, गोरखपुर, आजमगढ़) शामिल है। जिनका चयन पिछड़ापन सूचकांक के आधार पर तीन पैरामीट्र्स पर किया जाता है। (1) अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के आधार पर गरीबी के आंकड़े (2) प्रतिश्रमिक कृषि उत्पादकता (3) कृषि मजदूरी की दरें। जिनका प्रभारी जिले के जिलाधिकारी होता है। जिले को तीन वर्ष तक 15 करोड़ प्रति वर्ष दिया जाता है। इसके अन्तर्गत सर्वऋतु सड़कों का निर्माण, पुलिया निर्माण, स्कूल/कालेज की बाउन्ड्रीवाल का निर्माण, कम्प्यूटर कक्षों का निर्माण, स्वच्छ पेयजल के ओवरहैड टैक का निर्माण, तालाबों की खुदाई का कार्य, नहरों की क्षमता वृद्धि, अस्पताल भवन का निर्माण, पोस्टमार्टम भवन का निर्माण, आंगनवाडी केन्द्र, सोलर स्ट्रीट लाईट का निर्माण, विद्युत उपकेन्द्रों का निर्माण, कृषि विकास से सम्बन्धित परियोजनायें, पम्पिंग कैनाल का निर्माण आदि कार्य निर्धारित हैं।

विधायक निधि
यह योजना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1998-99 में प्रारम्भ की गयी। इस योजना का उद्देश्य क्षेत्र का सन्तुलित विकास करते हुए जनता की विभिन्न कार्यो की तत्कालिक माँग की पूर्ति करना है, प्रारम्भ में विधायक निधि 1998-99 में 25 लाख निर्धारित था जो 1999-2000 में बढ़ाकर 50 लाख, तथा 2001-2002 में 75 लाख किया गया। पुनः 2004-05 में बढ़ाकर 1 करोड़ कर दिया गया था।
समग्र ग्राम विकास योजना
प्रदेश के ग्रामों के सर्वांगीण एवं बहुआयामी विकास हेतु 09.12.2003 से 70 जिलों में यह योजना लागू किया गया था। ग्राम विकास विभाग द्वारा ग्रामों में तीन कार्यक्रमों स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, इन्दिरा आवास योजना एवं स्वच्छ पेयजल योजना का संचालन किया जा रहा है।
1. स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
वर्ष 2004-05 में 4039 गाँवों में 34102 स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया जिसमें 4028 गाँवों में 34032 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया गया। 2005-06 में 4158 गाँवों में 32494 स्वरोजगार के जगह 4005 ग्रावों में 31221 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया गया जबकि 2006-07 में 5084 गाँवों में 41080 स्वरोजगार उपलब्धता का लक्ष्य निर्धारित किया गया जिसमें 1411 गाँवों को 14367 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया गया।
2. इन्दिरा आवास योजना
गरीबों का आवास उपलब्ध कराने के लिए 2004-05 में 4580 गाँवों में 125271 आवासों का लक्ष्य निर्धारित किया गया जिसमें 4503 गाँवों में 114956 आवासों का निर्माण हो चुका। 2005-06 में 4439 गाँवों में 116576 आवासों के लक्ष्य के सापेक्ष 3979 गाँवों में 92096 आवासों का निर्माण हो चुका है। 2006-07 में लक्ष्य 4946 ग्रामों में 121276 आवासों के निर्माण का लक्ष्य के सापेक्ष 661 गाँवों में 20626 आवासों का निर्माण हो चुका है।
3. स्वच्छ पेयजल योजना
ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2004-05 में 368 गाँवों में 1313 इण्डिया मार्का-2 हैण्डपम्पों की स्थापना के लक्ष्य के सापेक्ष शतप्रतिशत ग्रामों 1313 हैण्डपम्प लगाकर पूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया। जबकि 210 गाँवों में 544 इण्डिया मार्का हैण्डपम्प लगाने का लक्ष्य रखा गया था जो कि शत प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त किया गया जबकि 2006-07 में 139 गाँवों में 310 हैण्डपम्प लगाने का लक्ष्य रखा गया जिसमें 99 ग्रामों में 189 हैण्डपम्प स्थापित कराये गये हैं।
उपर्युक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि योजनाओं की सफलता दर समय के साथ घटती गयी है। प्रारम्भ में योजनायें ठीक ढंग से चली जबकि बाद में अपने लक्ष्य से भटकती हुई लग रही है।
नक्सल प्रभावित समग्र ग्राम विकास योजना
पूर्वी उत्तर प्रदेश के 4 मण्डलों (आजमगढ़, वाराणसी, मीरजापुर एवं गोरखपुर) के 8 जिले (मऊ, बलिया, गाजीपुर, चन्दौली, मीरजापुर, देवरियां, कुशीनगर एवम् सोनभद्र) के अन्तर्गत कुल 679 चिन्हित नक्सल प्रभावित ग्रामों में 2005-06 समग्र ग्राम्य विकास योजना लागू है। इस योजना के अन्तर्गत चिन्हित ग्रामों में ग्राम्य विकास विभाग द्वारा संचालित तीन कार्यक्रमों-स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, इन्दिरा आवास योजना एवं स्वच्छ पेयजल योजना को शामिल किया गया है। जिससे इन क्षेत्रों के विकास की गति अत्यधिक तीव्र किया जा सके।
1. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
2005-06 में निर्धारित लक्ष्य 205 गाँवों में 3420 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया गया जबकि 2006-07 में निर्धारित लक्ष्य 400 गाँवों में 3439 स्वरोजगार के सापेक्ष 249 गाँवों में 1384 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया गया।
2. इन्दिरा आवास योजना
2005-06 में 248 गाँवों में 9365 आवास निर्माण के लक्ष्य के सापेक्ष 249 गाँवों में 8322 आवासों का निर्माण किया गया जबकि 2006-07 में 427 गाँवों में 19123 आवासों के निर्माण के लक्ष्य के सापेक्ष 83 ग्रामों में 3783 आवासों का निर्माण किया गया। जो लक्ष्य से बहुत ही कम है।
3. स्वच्छ पेयजल योजना
2005-06 में निर्धारित लक्ष्य 157 गाँवों में 444 इण्डिया मार्का-2 हैण्डपम्पों की स्थापना का लक्ष्य शतप्रतिशत प्राप्त किया गया जबकि 2006-07 में 377 गाँवों में 1077 हैण्डपम्प लगाने का लक्ष्य रखा गया जिससे 186 गाँवों में 873 हैण्डपम्प स्थापित किया गया। जो लक्ष्य का 80 प्रतिशत है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है। कि स्वतंत्रता के पहले और स्वतंत्रता के बाद प्रदेश के विकास में अनेक प्रयास किये गये हैं। लेकिन इधर कुछ वर्षो में विशेष योजनायें चलायी गयी हैं। जिससे कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य संचार, यातायात और अर्थव्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में काफी तीव्र गति से विकास हुआ है। पिछले 60 वर्षो में उत्तर प्रदेश, उत्तम प्रदेश बनने के पथ पर अग्रसर हुआ है, और विकास को प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक गाँव और व्यक्ति तक पहुचाने के लिए बड़ी-बड़ी पंचवर्षीय योजनायें चलाई गई तथा प्रदेश के अत्यधिक पिछड़े जिले सोनभद्र, आजमगढ़, रायबरेली, बलिया, चन्दौली, मीरजापुर आदि जिलों को मुख्य धारा में लाने के लिए करोड़ों रुपया व्यय किया जा रहा है। तथा वहाँ स्कूलों, सड़कों, आवास, पेयजल, विजली जैसी मूलभूत सूविधाओं को काफी मात्रा में पहुचाने में सफलता भी मिली है। केन्द्र और प्रदेश सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम तथा स्वर्ण-जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना प्रदेश के पिछड़े इलाकों में एक नई किरण बन कर आयी है। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने की सम्भावनायें बढ़ गयी है। तथा शहरों के तरफ इनका पलायन भी रुक गया है। युवाओं में स्वरोजगार की भावना भी उत्पन्न हुई है जिससे आत्म निर्भरता आयी है। और ये बेरोजगार युवक स्वयं के विकास के साथ-साथ समाज, प्रदेश और देश के विकास में भी सहायता प्रदान करेंगे। उपर्युक्त कार्यक्रम और योजनाओं ने प्रदेश में आधारभूत संरचना को मजबूत बनाने का प्रयास किया है। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही, अधिकारियों, कर्मचारियों का असहयोगात्मक रवैया तथा भ्रष्टाचार पूर्ण व्यवहार इन योजनाओं में बाधक हैं। उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उपर्युक्त योजनाओं को ईमानदारी से लागू किया जाय तभी उद्देश्य को प्राप्त कर पायेंगे।

सन्दर्भ-सूची

1. भारत (2008) जनसंख्या, ग्रामीण विकास, प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार।
2. उत्तर प्रदेश (2007) सूचना जन सम्पर्क विभाग, उत्तर प्रदेश लखनऊ।
3. ग्रामीण योजनाओं की सफलता, ग्राम्य विकास विभाग, उत्तर प्रदेश शासन (2006-2007)।
4. Govind Sahay Committee: Report of the Govind Sahay Committee, in Kurukshetra, March: 1961
5. Weber, Max:, From Max Weber: Essays in Sociology Trorslated by Girth, H.S. , Mills C. wright. London Oxford university Press, (1946)
6. "Mukherjees B. Community Development in india" Bombay Orient Longmans, 1961.

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