Tuesday 31 March 2009

भारत में आतंकवाद और आतंकवाद के कारण उत्पन्न समस्या


राजीव कुमार
शोध छात्र, राजनीति विज्ञान विभाग,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।

                 विश्व में आतंकवाद का इतिहास काफी पुराना है। अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में आतंकवाद का जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् शीतयुद्ध के समय हुआ, जब अमेरिका एवं सोवियत संघ अपने विरोधी खेमों के देशों मंे वहां के विद्रोही संगठनों या बाहर के असैनिक दस्तों का समर्थन करते थे। वर्तमान मंे आतंक का पर्याय अलकायदा, जैश-ए-मोहम्मद, मुजाहिद्दीन आदि संगठन शीतयुद्ध की पृष्ठभूमि का परिणाम है।
आतंकवाद का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रसेल्स मंे दण्ड विधान को समेकित करने के लिए 1931 मंे बुलाए गये तीसरे सम्मेलन मंे किया गया जिसके अनुसार आतंकवाद का अर्थ, ‘‘जीवन, भौतिक अखण्डता या मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाला या बड़े पैमाने पर सम्पत्ति को हानि पहुंचाने वाला कार्य करके जान-बूझकर भय का वातावरण उत्पन्न करना है। जबकि धार्मिक आतंकवाद की उत्पत्ति इजराइल के एक संगठन ‘हागानार’ जिसकी स्थापना इजराइल के उदय से पूर्व 1920 मंे हुई थी, से हुई है। इस संगठन को आधुनिक धार्मिक आतंकवाद का पितृ संगठन माना जाता है। साधारणतया आतंकवाद का अभिप्राय आतंक उत्पन्न करने के पीछे किसी संगठन या समूह का कोई निश्चित लक्ष्य ग्रुप कार्यवाहियों द्वारा प्राप्त करना होता है। यह लक्ष्य राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक  व व्यक्तिगत भी हो सकता है। आतंकवाद मंे ऐसे बर्बर हिंसक तरीकों को अपनाया जाता है जिन्हें आज के सभ्य मानवतावादी समाज मंे स्वीकार नहीं किया जाता है। संक्षेप मंे आतंकवाद एक ऐसा आपराधिक कृत्य है जो किसी राज्य के विरुद्ध होता है तथा जिसका उद्देश्य कुछ खास लोगों या सामान्य जनमानस के मन मंे भय या आतंक पैदा कर किसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति करना होता है। यह आतंकवाद किसी भी समुदाय द्वारा हो सकता है जैसे श्रीलंका मंे तमिल विद्रोही, भारत मंे पंजाब मंे सिक्ख, पूर्वोत्तर राज्यों मंे जनजातीय आतंकवाद, कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद आदि।
जहां तक भारत में आतंकवाद के प्रारम्भ होने का प्रश्न है तो इसकी शुरुआत पाकिस्तान के अलग होने के साथ ही शुरु हो गयी। तब से आज तक पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी गतिविधियों को प्रश्रय दिया जाता रहा है। आज भारत मंे आतंकवादियों की जो गतिविधियां जारी है उसके केन्द्र में जम्मू-कश्मीर रहा है जिस पर पाकिस्तान की शुरु से ही कु-कृपादृष्टि रही है। आज तक भारत और पाकिस्तान के बीच जितने भी युद्ध हुए हैं उसमें एक युद्ध को छोड़कर शेष सभी युद्ध आतंकवाद के रूप मंे शुरू हुई हैं। जब पाकिस्तान युद्ध में सफल नहीं हुआ तो उसने छद्म युद्ध का सहारा लेना प्रारम्भ कर दिया और आतंकवाद को बढ़ावा दिया। आज भारत मंे जितने भी आतंकवादी संगठन हैं और आतंकवादी घटनाएं होती रही हैं उसको पाकिस्तान का शह प्राप्त होता है। चाहे पंजाब मंे जारी रहा सिक्ख आतंकवाद हो, या असम, मणिपुर तथा अन्य पूर्वाेत्तर राज्यों मंे जारी आतंकवाद हो, या 13 दिसम्बर 2001 की संसद पर हमला हो या 2005 वाराणसी मंे मन्दिरों और रेलवे स्टेशनों पर हुआ हमला हो या श्रमजीवी एक्सप्रेस मंे हुआ विस्फोट हो, या हाल मंे 26 दिसम्बर 2008 को बाम्बे मंे ताज, ओबेराय, नरीमन होटल तथा शिवाजी टर्मिनल स्टेशन पर हुआ हमला हो। सभी को पाकिस्तान का शह प्राप्त रहा है-
आज भारत के सामने इन आतंकी घटनाओं और आतंकवाद से अनेक तरह की चुनौतियाँ उत्पन्न हुई है जो इस प्रकार है-
1. धार्मिक, सांस्कृतिक एकता को चुनौती:- आतंकवादी न केवल हिंसा और आतंक फैलाते हैं बल्कि उसके साथ-साथ आर्य-द्रविड़ संस्कृतियों के आधार पर उत्तर और दक्षिण मंे वैमनस्य पैदा कर रहे हैं। हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म के क्रमशः मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर को अपवित्र करके एक दूसरे समुदाय के बीच सांप्रदायिक दंगे उत्पन्न करते हैं। इससे हमारी राष्ट्रीय एकता कमजोर होती है। 2006 मंे अक्षरधाम मंे स्वामी नारायण मंदिर पर हमला, 2006 मंे बनारस मंे संकटमोचन मंदिर पर हमला कर हमारी धार्मिक, सांस्कृतिक एकता को तोड़ने का प्रयास किया गया।
2. पृथक्तावाद के रुप मंे राष्ट्रीय एकता की समस्या:- भारत आजादी के बाद एक सम्प्रभु सम्पन्न राष्ट्र बना। परन्तु उसकी सम्प्रभुता को चुनौती देते हुए उत्तर पूर्व में उल्फा आतंकवादियों ने आतंकवादी घटनाओं को प्रश्रय दिया और आज भी दे रहे हैं। पंजाब मंे पृथकतावाद खालिस्तान की मांग को लेकर उत्पन्न हुआ तो कश्मीर मंे आतंकवाद स्वतंत्र कश्मीर की मांग को लेकर उभरा। आज इन सभी क्षेत्रों मंे जो आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं और आतंकवादी संगठन सक्रिय है वह पृथक क्षेत्र की मांग और क्षेत्रीय असंतोष को लेकर है और यह पृथकतावाद हमारी एकता और अखण्डता को चोट पहुुंचा रहा है। असम में 1992-2000 के बीच 3348 आतंकवादी, 954 नागरिक और 1380 सुरक्षा बल के जवान मारे गये थे, त्रिपुरा मंे 1992-2003 के बीच 2239 आतंकवादी, 465 नागरिक और 300 सुरक्षाकर्मी मारे गये थे। इस प्रकार पृथकतावाद के रुप मंे हो रहे ये आतंकवादी घटनाएं हमारी एकता और अखण्डता को दिनों दिन कमजोर करती जा रही हैं।
3. संसदीय और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चोट:-आतंकवादी संसदीय और लोकतांत्रिक व्यवस्था, राष्ट्र की संप्रभुता को खतरा पहुंचा रहे हैं। 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर आतंकवादी हमला हुआ। जहां देश के लगभग 545 नेता, नीति-निर्माता एवं देश के विकास को आगे ले जाने वाले, बैठे थे। यह न केवल देश की संसदीय और लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त करने का प्रयास था बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा पर खतरा था।
4. आर्थिक विकास मंे बाधक:-आतंकवादी घटना के बाद करोड़ों रुपये की क्षति होती है। आये दिन ट्रेनों में, स्टेशनों पर आतंकी विस्फोट होता है जिससे रेलवे को भारी क्षति उठानी पड़ती है। रेलवे को क्षति होने से माल ढुलाई प्रभावित होती ह,ै जिससे उद्योग-धंधे के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
5. भारत की बौद्धिकता को खतरा:-आतंकवाद न सिर्फ देश को आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि देश के योग्य कुशल वैज्ञानिकों को भी अपना निशाना बना रहे हैं। हाल ही मंे 2006 मंे बंगलौर मंे हुए आतंकी हमले मंे वैज्ञानिक का मारा जाना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
6. अवैध हथियारों एवं नशीले पदार्थों की तस्करी से आंतरिक सुरक्षा को खतरा:-आतंकवादी पैसे की कमी को पूरा करने और आतंक फैलाने के लिए अवैध एवं घातक हथियारों जैसे ए.के. 47, ए.के. 56 आदि की तस्करी करते हैं। इन हथियारों की अवैध तस्करी से देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त कोकिन, हेरोइन, चरस आदि नशीले पदार्थों की अवैध कमाई के लिए तस्करी करते हैं जो देश की युवा पीढ़ी को बरबाद करती है।
7. पर्यटन उद्योगों को खतरा:- 26 दिसम्बर 2008 को मुम्बई मंे होटलों पर हुए हमलों से पर्यटन उद्योग को क्षति पहुंची है। क्योंकि इन होटलों पर हमला कर वहां ठहरे विदेशी पर्यटकों मंे से कई को मार दिया गया जिससे विदेशी पर्यटकों में भय व्याप्त हो गया है और वे भारत आने से कतराने लगे हैं। जबकि मुम्बई, गोवा, आगरा, वाराणसी, बोधगया आदि जैसे भारतीय शहर विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण के केन्द्र रहे हैं। यदि इसी तरह इन शहरों पर हमला होता रहा तो भारत का पर्यटन उद्योग काफी हद तक अपनी प्रतिष्ठा खो देगा। जो न केवल भारतीय पर्यटन बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी हानि पहुंचेगा।
इस प्रकार भारत के सामने आतंकवाद से उत्पन्न ये कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं जिनसे भारत को बहुत जल्द से जल्द निपटना होगा नहीं तो भारत को आगे आने वाले समयों मंे एक और विभाजन के रूप मंे बड़ा बलिदान देना होगा।
जब तक कि समस्त राष्ट्र अहिंसा एवं शांतिपूर्ण विश्व के मूल्य को न समझे और सैनिक आक्रमण, अन्यायपूर्ण एवं दोहन करने वाली नीतियों का परित्याग न करें, सभ्यताओं के मध्य अच्छी भावनाओं को जब तक पनपाया नहंी जाए, विश्व मंे निराकरण, स्वतंत्रता आदि का जब तक आदर न करें। अपनी ही इच्छाओं को दूसरे पर लादने की प्रवृत्ति का त्याग न करें तब तक किसी भी प्रकार के आतंकवाद को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
अतः आवश्यकता इस बात की है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए न केवल भारतीय समुदाय, प्रशासन और सरकार को बल्कि पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मिलकर कार्य करना होगा क्योंकि उक्त समस्याएं उन राष्ट्रों मंे भी विद्यमान है जहां आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं।
आतंकवाद से निपटने के लिए उपाय
1. आतंकवाद से निपटने के लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी को बढ़ाया जाय।
2. सेना में आतंकी संगठनांे की सेंध के प्रयास को रोका जाए।
3. पाकिस्तान की भारत विरोधी गतिविधियांे को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जनमत बनाया जाय।
4. पकड़े गये आतंकवादियों के खिलाफ दायर मुकदमों का निष्पादन त्वरित गति से किया जाय।
5. विश्व के सभी देश अपने हवाई अड्डों पर पुलिस की पुख्ता सुरक्षा, इंतजाम तथा प्रत्येक विमान के साथ कमांडों रखे।
6. विश्व के सभी देशों को इजराइल और पेरु की तरह सुपर फाइनर तकनीक को विकसित करना चाहिए।
7. विश्व मंे प्रत्येक देश सेना के तीनों अंगों को प्रयोग मंे लाएं।
8. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादियों के खिलाफ मंच तैयार करने की दिशा में दक्षेश देशों के बीच सहयोग प्रक्रिया शुरु होनी चाहिए।
9. प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपनी भूमिका सशक्त बनाना चाहिए। आतंकवाद और आतंकवादियों पर जब भी कोई कार्यक्रम प्रस्तुत हो उसकी प्रस्तुति और प्रकाशन, सही तथ्यों पर आधारित हो तथा उसमंे इससे निपटने के उपाय बताए जाने चाहिए।



संदर्भ ग्रंथ

1. बी0 एल0 फाडिया, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय संबंध’’ साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, 2007।
2. यू0 आर0 घई, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय संबंध’’, न्यू एकेडमिक पब्लिकशिंग कम्पनी, जालंधर, 2003।
3. बी0 एल0 फाडिया, ‘‘भारतीय शासन और राजनीति’’, साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, 2007।
4. गांधीजी राय, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय राजनीति’’, भारती भवन प्रकाशन, पटना 2002
5. राम आहुजा, ‘‘सामाजिक समस्याएं’’, रावत पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, 2007।
6- N.S. Saxena, “Terrorism, History and Facetsin the world and in India”, New Delhi, Abhinav Publication, 1985.
7- Naunihal Singh “The World of Terrorism”, New Delhi, South Asian Publishers, 1989.
8. प्रतियोगिता दर्पण, नवम्बर 2005।
9. योजना, अंक 11, फरवरी 2007।

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.