Tuesday 31 March 2009

संगीत चिकित्सा: एक विश्लेषण


पूजा पाण्डेय
शोध छात्रा, संगीत एवं प्रदर्शन कला विभाग,
 इ0वि0वि0, इलाहाबाद |


           संगीत मानव के अन्तर्मन से उत्पन्न एक आलौकिक ऊर्जा है, प्राणों की शक्ति है तथा परमात्मा के मिलन का एक लयात्मक सेतु है। संगीत की मधुर स्वर लहरियाँ न केवल मनुष्य को अपितु विश्व के समस्त जीवों तथा प्राकृतिक जगत् को सम्मोहित कर एक नवीन स्फूर्ति उल्लास आनंद तथा असीम शान्ति से सराबोर कर देती है।
भारतीय दर्शन में नाद की सर्वोच्च शक्ति का वर्णन प्राप्त होता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने नाद को ‘नादब्रह्म’ की संज्ञा प्रदान की है, जो सम्पूर्ण सृष्टि का मूल है। इसी नादब्रह्म से संगीत की उत्पत्ति हुई है। संगीत की स्वर साधना नाद ब्रह्म की साधना है। भारतीय ऋषि-मुनियों ने सांगितिक साधना के द्वारा अपने भीतर छिपी हुई शक्तियों को जागृत कर अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की थी। वे मंत्रों के प्रभाव को भली-भाँति जानते थे। प्राचीन काल में विभिन्न मंत्रों के सस्वर उच्चारण तथा सामवेद की ऋचाओं के गायन द्वारा जनमानस के विभिन्न रोगों का निवारण किया जाता था।
अनेक प्राचीन ग्रन्थों में संगीत द्वारा रोगोपचार की विधि वर्णित है। चरक ऋषि ने अपनी पुस्तक ‘सिद्धिनाथ’ के छठे अध्याय में संगीत के चिकित्सीय प्रभाव का वर्णन किया है आयुर्वेद के अनुसार दोष एवं धातु के असंतुलन से ही बीमारियों का जन्म होता है। शरीर और मस्तिष्क में इनका सन्तुलन बनाये रखना ही चिकित्सकों का कार्य होता है। सांगीतिक स्वर लहरियाँ इसे संतुलित करने में सक्षम हैं। अतः संगीत द्वारा चिकित्सा भी संभव है। 1
सामवेद में भी रोगों के निवारण के लिए रागों के प्रयोग का वर्णन है। आचार्य शारंगदेव ने अपने ग्रन्थ ‘संगीत रत्नाकर’ के स्वाराध्याय में स्वरों की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए विभिन्न स्वरों से सम्बन्धित स्नायुओं, चक्रों और शारीरिक अंगों का वर्णन विस्तारपूर्वक किया है। विशेषतः सामवेद की ऋचाओं का गायन हृदय रोगियों के लिए बड़ा लाभकारी होता है। सामवेद की स्वर लहरी शरीर के रक्त संचालन पर अनुकूल प्रभाव डालती है, जिससे रक्त में हीमोग्लोबिन को अधिक आॅक्सीजन मिल जाती है।2
भारतीय चिकित्सा शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उत्पन्न के तीन कारण प्रमुख मानती है। 1-वात, 2-पित्त और 3-कफ। कोई भी चिकित्सा पद्धति इन्हें ही सन्तुलित करती है। ‘प्राचीन काल के संगीतार्षि तुंबरू गांधर्व अर्थात् संगीत चिकित्सा के विद्वान थे, उन्हें प्रथम संगीत चिकित्सक कहा जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘संगीत स्वरामृत’ में लिखा है कि ऊँची और असमान ध्वनि का वायु पर गंभीर और स्थिर ध्वनियों का पित्त पर और कोमल तथा मृदु ध्वनियों का कफ के गुणों पर प्रभाव पड़ता है जो ध्वनि समूह तीनों गुणों से युक्त हो वह त्रिदोष पर प्रभाव डालता है और ऐसी ध्वनियाँ सन्निपात कहलाती हैं।’3
विदेशों में भी संगीत का प्रयोग मानव के व्याधि शमन हेतु चिकित्सीय रूप में किये जाने के अनेक उदाहरण प्राचीन काल से ही मिलते हैं जिससे यह प्रतीत होता है कि केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी संगीत की चिकित्सा पद्धति काफी समय पूर्व से ही प्रचलित थी। संगीतज्ञ टिमायियस के अनुसार एक बार अचेत सिकन्दर को होश में लाने के सभी उपाय जब व्यर्थ हो गये तब ‘लायर’ नामक वाद्य यंत्र बजाकर उसकी चेतना को वापस लाया गया।4
‘बाइबिल में भी संगीत चिकित्सा का वर्णन है। उसमें डेविड नामक एक संगीतज्ञ का संदर्भ देते हुए कहा गया है कि जब राजा साओल का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरने लगा तब डेविड नामक संगीतज्ञ ने संगीत चिकित्सा द्वारा उसे स्वस्थ किया था।’5
‘ग्रीक सभ्यता में भी संगीत द्वारा चिकित्सा के प्रमाण प्राप्त होते हैं। डाॅ0 पोडोलास्की के अनुसार प्राचीन ग्रीक निवासी भी संगीत के चिकित्सीय गुणधर्म को जानते थे। इसी तरह पश्चिमी जर्मनी में भी संगीत चिकित्सा का इतिहास काफी पुराना माना जाता है।’6
  आज पुनः मनुष्य का ध्यान संगीत में निहित रोग निवारण की क्षमता की ओर आकृष्ट हुआ है। संगीत द्वारा चिकित्सा हेतु नये-नये शोध एवं प्रयोग हो रहे हैं एवं उन्हें (संगीतज्ञों को) सफलता भी मिल रही है। संगीतज्ञ, मनोवैज्ञानिक तथा चिकित्सा शास्त्री आज इस बात को स्वीकार करने लगे हैं कि संगीत मनुष्य के सम्पूर्ण शरीर पर चिकित्सीय प्रभाव डालता है, उनका मानना है कि संगीत से मानसिक तनाव को कम करने दर्द निवारण करने उच्च एवं निम्न रक्त को नियंत्रित करने थकान को दूर कर कार्य क्षमता में वृद्धि करने, श्वाँस क्रिया का नियमन करने अनिद्रा रोग का निवारण करने स्मरण शक्ति को बढ़ाने तथा शरीर एवं मन को सन्तुलित करने की चमत्कारी शक्ति है।
संगीत की चिकित्सा पद्धति शरीर एवं आत्मा के सम्बन्ध से जुड़ी हुई है। नाद के उचित प्रयोग से स्वर, ताल, लय और एकाग्रता का सम्मिश्रण होता है और यह सम्मिश्रण मानसिक व शारीरिक चिकित्सा में सहायक होता है क्योंकि मनुष्य के शरीर के अवयव पंचभूतों के अवयवों से ही निर्मित होते हैं। ‘‘सामगान के विधिवत उच्चारण अथवा नियमित श्रवण से हृदय रोग और कैंसर जैसे जानलेवा रोगों के ठीक होने की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं। विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक और ‘ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय’ के विभागाध्यक्ष डाॅ0 हरि मोहन शर्मा ने अपने प्रयोग में इसे सिद्ध कर दिखाया है। वह सामगान के नियमित सुनने के हिमायती हैं, उन्होंने अपने शोध में हनुमान चलीसा पढ़ने पर भी जोर दिया है और पाया है कि इससे कैंसर से बढ़ती कोशिकायें ठहर गयी, शरीर का रक्त संचार धीरे-धीरे सही होने लगा।’’7
रूसी वैज्ञानिक डाॅ0 बोर्खनिस्की ने अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि कुछ रागात्मक बन्दिशों (मुख्यतः चोपिन की धुनों) द्वारा अनिद्रा दूर की जा सकती है इस प्रकार पाश्चात्य देशों में सांगितिक ध्वनियों का प्रयोग मानसिक रोगियों के उपचार हेतु किया जा रहा है। वहाँ अस्पतालों में रोगियों को संगीत सुनाया जाता है जिससे वे शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ करते हैं।
संगीत चिकित्सा में हमारे देश की सदैव से आस्था रही है, किन्तु पश्चिमी देशों में इसे गत पचास वर्षों से ही मान्यता प्राप्त हुई है। संगीत चिकित्सा (म्यूजिक थेरपी) चिकित्सा विज्ञान का ही एक विभाग है जो मनुष्यों की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है। संगीत चिकित्सा द्वारा रोगियों के पुनर्वास, उपचार के लिए उत्प्रेरणा, भावनात्मक सहयोग और भावाभिव्यक्ति में काफी सहायता मिलती है इन्हीं कार्यों के लिए ‘‘संयुक्त राज्य अमेरिका में सन् 1950 में ‘नेशनल एसोसियेशन फाॅर म्यूजिक थैरेपी’ की स्थापना की गयी थी। इसके द्वारा संचालित पाठ्यक्रम अनेक विश्वविद्यालयों में चल रहे हैं जो स्नातक की डिग्री देते हैं। ‘संगीत चिकित्सा’ को अन्वेषकों ने निम्नलिखित वर्गों के रोगियों के लिए मुख्यतः उपयोगी पाया है-
1. मानसिक रोगी 2.अपंग व्यक्ति 3. एलजीयर के रोगी 4. मस्तिष्क की चोट के रोगी 5. जीर्ण व्याधियों से ग्रसित रोगी।’’8
संगीत के माध्यम से ध्वनि तरंगे कानों के द्वारा ग्रहण किये जाने के पश्चात संवेदी तन्त्रिकाओं से मस्तिष्क के मध्य तक पहुँचती है और वहीं से न्यूरान की संरचना द्वारा मस्तिष्क के अन्य भागों में अपना प्रभाव डालती है। ‘फ्राँसीसी प्राणीशास्त्री वास्तोव आन्द्रे ने जलचरों, थलचरों और नभचरों पर विभिन्न ध्वनि प्रवाहों की स्वर लहरियों की होने वाली प्रतिक्रियाओं का गहरा अन्वेषण किया है तदनुसार वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संगीत प्रायः प्रत्येक जीवधारी के मस्तिष्क एवं नाड़ी संस्थान पर आश्चर्यजनक प्रभाव डालता है। संगीत यदि उनकी प्रकृति और मनः स्थिति के अनुरूप हो तो उन्हे मानसिक प्रसन्नता और शारीरिक उत्साह प्राप्त होता है। किन्तु उनकी कर्णेन्द्रिय को कर्कश लगने वाली अरुचिकर ध्वनियाँ सुनाई जाय तो उससे उन्हें अप्रसन्नता होती है और उनका स्वास्थ्य-सन्तुलन भी बिगड़ता है।9
‘प्रसिद्ध संगीत चिकित्सक रिक वीस के अनुसार, सम्पूर्ण मानव शरीर ही संगीतमय है। हृदय की धड़कन, नाड़ी का फड़कना, मस्तिष्क की तरंगें, हारमोन्स का प्रवाह, मस्तिष्क की तरंगें, साँस की लय- सभी कुछ तो एक वृहत् संगीत है।’9
आस्ट्रियाई वैज्ञानिकों के अनुसार संगीत सुनने से पीठ दर्द से छुटकारा मिलता है अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि यह हवाई बातें नहीं है बल्कि हकीकत है। वैज्ञानिकों के अनुसार संगीत हमारे अॅाटोनोमिक नर्वस सिस्टम पर असर डालता है। गौरतलब है कि यह नर्वस सिस्टम हमारे ब्लडप्रेशर, हार्टबीट और ब्रेन फंक्शन से जुड़ा हुआ है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि संगीत विशेषरूप से गर्दन, कंधों, पेट और पीठ दर्द से रहत दिलाने में अहम् भूमिका निभाता है। उन्होंने (वैज्ञानिकों) साल्जवर्ग के एक अस्पताल में लगातार एक वर्ष से अधिक अध्ययन किया। इस अध्ययन में 18-65 वर्ष की आयु तक के लोग शामिल थे। दर्द से पीडि़त एक ग्रुप के लोगों को दवा देकर एक ऐसे रूम में बैठाया जाता था जहाँ विभिन्न प्रकार का संगीत बजता रहता था जबकि दूसरे ग्रुप के लोगों को केवल दवा देकर एक सामान्य रूम में बैठाया जाता था। कुछ समय पश्चात परीक्षणों से ज्ञात हुआ कि जिन लोगों को संगीत का आनन्द दिया गया था उन्हें दर्द से जल्दी छुटकारा मिल गया जबकि ऐसा न करने वाले लोग लम्बे समय तक दर्द से पीडि़त बने रहे थे।’10
पूर्वी जर्मनी के ‘कार्लमारिया बोन बेवर संगीत काॅलेज में एक अलग विभाग है जिसमें बुखार तथा दूसरी पीड़ादायक बीमारियों के निवारण हेतु संगीत ही प्रयुक्त होता है। वहाँ के हृदय और दंत चिकित्सा विभाग में भी दर्द निवारण हेतु संगीत की स्वर लहरियों का प्रयोग होता है।
भारतवर्ष में भी अनेक चिकित्सक, संगीतज्ञ तथा वैज्ञानिक संगीत की चिकित्सा द्वारा रोगों का निवारण करने की दशा में निरन्तर शोध एवं प्रयोग कर रहे हैं भारत के सुप्रसिद्ध संगीत चिकित्सक भास्कर खाण्डेकर विगत छह वर्षों से संगीत चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य करते हुये हजारों रोगियों की चिकित्सा कर चुके हैं।12
डाॅ0 वी0 चैधरी वरिष्ठ मनोचिकित्सक, अपोलो अस्पताल, दिल्ली के अनुसार संगीत चिकित्सा आत्म विनोद, गाझोफ्रेनिया, मंदबुद्धि अथवा मानसिक विकृतियों वाले बाल, युवा और वृद्ध सभी आयु वर्ग के रोगियों के लिए उपयोग में लाई जा रही है। यह पद्धति सुनने या बोलने में अक्षम या दृष्टिदोष वाले अथवा तालु में छिद्र वाले रोगियों के लिए भी उपयुक्त साबित हुई है।13
जोधपुर मेडिकल काॅलेज के चिकित्सकों ने भी रोगियों पर संगीत चिकित्सा का प्रभाव का अध्ययन किया। उनके अनुसार-संगीत के मधुर स्वर प्रभाव के कारण रोगी अपनी चिंता तथा दुःख भूल जाते हैं तथा जल्दी ठीक हो जाते हैं।14
संगीत से मानसिक तथा शारीरिक रोगों की चिकित्सा का एक केन्द्र ‘आत्म संतुलन’ डाॅ0 ताम्बे द्वारा संचालित किया जा रहा है। अपने प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर डाॅ0 ताम्बे बताते हैं कि भारतीय संगीत के राग मानसिक रोगों एवं अन्य रोगों के उपचार हेतु बहुत प्रभावी सिद्ध हुए हैं।15 ‘डाॅ0 एन0 किंजल (जो कि एक कुशल सितारवादक है) के अनुसार आपरेशन थियेटर के लिए संगीत औषधि का काम करता है। यह डाॅक्टर तथा अन्य स्टाफ के तनाव को तो कम करता है साथ ही रोगियों के भय तथा तनाव को भी कम करता है इससे मरीज की तबीयत जल्द ठीक हो जाती है।16
कतिपय रागों द्वारा रोगों के उपचार की संक्षिप्त सारणी संगीत प्रेमियों के अवलोकनार्थ एवं प्रयोगार्थ प्रस्तुत है-
1. अहीर भैरव अपच, संधिवात या जोड़ों का दर्द, गठिया, हाइपरटेन्शन।
2. भैरवी जोड़ों का दर्द, रक्तदाब, तनाव, अनिद्रा।
3. मालकौस एनोरोक्सिया।
4. दरबारी कान्हड़ा सिरदर्द, रक्तदाब।
5. दीपक अपच, एनोरोक्सिया, हायपरएसिडिटी, पथरी।
6. गुजरी तोड़ी कफ जनित रोग, उच्चरक्तचाप।
7. गुणकली जोड़ों का दर्द, कब्ज, सिरदर्द, बवासीर।
8. हिण्डोल ’’ ’’ ’’ ’’
9. जैजवन्ती सन्धिवात रोग, अतिसार, सिरदर्द।
10. कौसी कान्हड़ा हाइपरटेंशन, सर्दी, जुकाम।
11. केदार सिरदर्द, कमरदर्द, कफ, दमा।
12. मधुवन्ती बवासीर।
13. जौनपुरी आॅतों का वात, अतिसार, सिरदर्द, कब्ज।
14. मालकौस आॅतों का वात।
15. आसावरी निम्न रक्त चाप।
16. यमन कल्याण तनाव।
संगीत का प्रभाव मनुष्य पर ही नहीं समस्त जीवमण्डल तथा वनस्पतियों पर भी स्पष्ट रूप से दर्शाया जा चुका है। प्राचीनकाल में पागल हाथी को ताल गंजझंम्पा बजाकर बस में करना, खोये हिरन को राग तोड़ी सुनाकर बुलाना बैजूबावरा द्वारा, तानसेन के द्वारा मियाँमल्हार से वर्षा कराना, तथा रागदीपक से दीप जलवाना सभी संगीत के माध्यम से ही सम्भव हुआ करता था।
एस0 कुमार ने अपने एक लेख ‘संगीत जानवरों पर भी असर डालता है, में यह बताया है कि बत्तख, बंदर, उकाव, आदि पक्षी और दरियाई घोड़ा, शेरनी, वनविलाव और मगरमच्छ पर विभिन्न वाद्यों को सुनाकर परीक्षण किये गये और उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त की गयी। प्रसिद्ध वैज्ञानिक चाल्र्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धान्त के अनुसार पशु मानवों के पूर्वज हैं अग्रज पूर्वजों के गुणों के संवाहक होते हैं। इसलिए जब पशुओं पर संगीत का प्रभाव पड़ सकता है तो मनुष्य पर उनका प्रभाव पशुओं से कई गुना अधिक माना जा सकता है।’’17
संगीत का प्रभाव पेड़ पौधों पर भी होता है। यह आज समस्त वैज्ञानिक एवं विद्वान एकमतेन स्वीकारते हैं। पेड़ पौधों से सम्बन्धित प्रयोग सर जे0सी0बोस जिन्होंने वनस्पतिशास्त्र पर अनुसंधान करके आधुनिक युग को यह प्रमाणित कर दिखाया था कि वनस्पति में भी जीव है। प0 ओंकार नाथ ठाकुर के अनुसार ‘‘हमने बोस जी के प्रयोगशाला में जाकर राग भैरवी गायी थी गाने से पूर्व यंत्र द्वारा पौधों की पत्ती की अवस्था देखी थी और गाने के बाद पत्तियों पर आयी चमक का भी दर्शन किया था’’ वस्तुतः मधुर स्वर सुनकर वृक्षों के प्रोटोप्लाज्म के कोष में स्थित क्लोरोप्लास्ट विचलित और गतिमान हो जाते हैं।18
दक्षिण के प्रसिद्ध ‘अन्नामलाई यूनिवर्सिटी में वनस्पति-विभाग के कुछ छात्रों ने संगीत द्वारा पौधों पर अद्भुत प्रभाव पाया। प्रयोग के लिए उन्होंने एक ही किस्म के दो पौधे तैयार किये थे। एक पौधे को स्वरों द्वारा कई दिनों तक प्रभावित किया गया तथा दूसरे को प्राकृतिक अवस्था में स्वतन्त्र रहने दिया गया। इस प्रयोग से पाया गया कि जिस पौधे को संगीत सुनवाया थ वह दूसरे पौधे की अपेक्षा सवा गुनी गति से बढ़ रहा था।19
इस प्रकार विभिन्न नगरों में चिकित्सक तथा संगीतज्ञ इस दिशा में निरन्तर प्रयासरत है, परन्तु यह पद्धति भारत में व्यवस्थित रूप से स्थापित नहीं हो सकी है। भारत वर्ष में संगीत चिकित्सा को विशेष रूप से स्वीकारा नहीं जा रहा है। जनमानस संगीत चिकित्सा से लाभान्वित हो इस हेतु सही ढंग से प्रचार-प्रसार एवं जनजागरण हेतु संगठित होने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है, ताकी मानवकल्याण के लिए संगीत चिकित्सा पद्धति सुगठित, सुव्यवस्थित रूप से पुष्पित पल्लवित हो सके।

सन्दर्भ ग्रन्थ-

1. तबला पुराण, लेखक पं0 विजय शंकर मिश्र, पृ0- 196
2. संगीत संजीवनी, लेखक-लावण्य कीर्ति सिंह, पृ0-24
3. तबला पुराण, लेखक-पं0 विजय शंकर मिश्र, पृ0- 197
4. तबला पुराण, लेखक-पं0 विजय शंकर मिश्र, पृ0- 198
5. संगीत चिकित्सा, लेखक-डाॅ0 सतीश वर्मा, पृ0- 361
6. संगीत चिकित्सा, लेखक-डाॅ0 सतीश वर्मा, पृ0- 360
7. संगीत संजीवनी, लेखक-लावण्य कीर्ति सिंह, पृ0-36
8. संगीत (मासिक पत्रिका ), अगस्त 2008, हिन्दी अनुवाद, पृ0-8
9. संगीत (मासिक पत्रिका), सितम्बर 2005, संगीता श्रीवास्तव, पृ0-41
10. दिनेश दीक्षित - दर्द को संगीत ‘दैनिक जागरण’, 1 फरवरी 09
11. तबला पुराण, लेखक-पं0 विजय शंकर मिश्र, पृ0- 198
12. संगीत संजीवनी, लेखक-लावण्य कीर्ति सिंह, पृ0-36
13. संगीत संजीवनी, लेखक-लावण्य कीर्ति सिंह, पृ0-28
14. संगीत चिकित्सा, डाॅ0 सतीश शर्मा, पृ0- 400
15. संगीत चिकित्सा, डाॅ0 सतीश शर्मा, पृ0- 414
16. समाचार पत्र (दैनिक जागरण), दिनांक 5.11.2006
17. संगीत पत्रिका, सितम्बर 1981 में प्रकाशित, एस0 कुमार का लेख ‘संगीत जानवरों पर भी असर डालता है’, पृ0- 43
18. पं0 ओंकार नाथ ठाकुर, ‘प्रणव भारती’ पृ0- 33
19. संगीत (मासिक पत्रिका), सितम्बर 2005, डाॅ0 संगीता श्रीवास्तव, पृ0-35

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