Wednesday 2 January 2013

वैश्विक परिदृश्य में संस्कृत शिक्षा की उपादेयता


अंजलि यादव

एडम स्मिथ ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘वेल्थ आॅफ नेशन्स’ में लिखा है कि पहिया, लिपि और मुद्रा ये तीन ऐसे कालजयी आविष्कार हैं जिस पर सम्पूर्ण संसार का विकास निर्भर है। इन्हीं तीनों आविष्कारों के बल पर मानव अन्तरिक्ष, समुद्र एवं धरती पर विजय पताका फहराने में समर्थ हुआ है। लिपि अर्थात् भाषा एक ऐसी विधा है जो संसार के लोगों के विचारों एवं उनकी भावनाओं तथा उनके द्वारा किये गये विविध आविष्कारों को समझने में सहायक सिद्ध हुआ है। संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीनतम् भाषाओं में से एक है। इसका साहित्य एवं व्याकरण विश्व में सबसे अधिक समृद्धशाली एवं सुव्यवस्थित है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की उदात्त एवं निष्णान्त विचारधारा को चरितार्थ करने के लिए ‘‘जिओ और जीने दो’’ की परिकल्पना को साकार करने के लिए तथा दुनियों को ‘सत्य और अहिंसा’ का पाठ पढ़ाने के लिए संसार से भुखमरी, बेरोजगारी, आतंकवाद मिटाने के लिए ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए संस्कृत की शिक्षा अनिवार्य है। क्योंकि संस्कृत साहित्य के पौराणिक ग्रन्थों में मानव जाति से सम्बन्धित समस्त समस्याओं का समाधान निहित है। इतना तो दुनिया के सभी बुद्धिजीवी मुक्तकंठ से स्वीकार करते ही हैं कि अन्य विषयों के अध्ययन और अध्यापन की तुलना में संस्कृत साहित्य का अध्ययन और अध्यापन करने वाला व्यक्ति अत्यधिक संयमित और धर्मपरायण होता है। जिसमें सदाचार एवं मानवोचित संस्कार अक्षुण्य रूप में विद्यमान रहते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि संस्कृत साहित्य का सम्पूर्ण दर्शन मानवतावादी दृष्टिकोण पर आधारित है। अध्यात्म और योग दो ऐसी विधायें हैं जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ की संकल्पना को साकार कर सकते हैं।
वेदों में पीपल के वृक्ष को जल देने एवं घर के आॅगन में तुलसी का पौधा लगाने तथा घर के आस पास नीम के वृक्ष को लगाने की बात कही गयी है। वास्तव में इन बातों पर यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चिन्तन किया जाय तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि पीपल का वृक्ष समस्त वृक्षों में सबसे अधिक आक्सीजन का निष्कासन करता है जो प्राणि जीवन के लिए अमूल्य है। तुलसी के पौधे से बैक्टीरिया नाशक रसायन निकलता है इसलिए मनीषियों ने इसे घर के आॅगन में लगाने की सलाह दी। इसी प्रकार घर के आस पास नींम के पेड़ को लगाने की बात कही गयी है वास्तव में नींम का पेड़ हवा को शुद्ध करता है। भारत जैसे विकासशील देश में अधिकांश लोग अशिक्षित हैं इसलिए हमारे देश के मनीषियों ने इसे धर्म से जोड़ दिया और यह बताया कि इन वृक्षों (पीपल और तुलसी) में ईश्वर का वास होता है। इसलिए इसे जल देना चाहिए। पौराणिक ग्रंथों में नदियों को देवी की संज्ञा प्रदान की गयी है। इसके जल के सेवन एवं स्नान से बहुत से शारीरिक विकार दूर हो जाते हैं। भारत की गंगा नदी को यदि देखा जाये तो स्पष्ट पता चलता है कि यह नदी 2510 किमी0 की यात्रा करने के पश्चात बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इतने लम्बे सफर में यह नदी उन क्षेत्रों से होकर प्रवाहित होती है जहाॅ का धरातल फास्फोरस युक्त तथा हिमालय की विविध प्रकार की वनस्पतियों से स्पर्शोपरान्त गंगा नदी के जल में ऐसी जड़ी बूटियाॅ मिल जाती हैं जिससे गंगा नदी के जल में कीटाणु नहीं पनप पाते हैं। इसलिए मकर संक्रांति जैसे पर्व पर (जो कि कुछ लोग जाड़े में स्नान नहीं करते और विविध चर्म रोगों से ग्रसित हो जाते हैं) स्नान करने मात्र से उनके शरीर का चर्म रोग आदि ठीक हो जाता है। इसलिए नदियों की अविरल धारा को बनाये रखने के लिए और उन्हें प्रदूषण मुक्त करने के लिए दुनिया के लेगों में चेतना जाग्रत करने की आवश्यकता है। नदियों पर बाॅध तो बनाये पर नदियों के अस्तित्व को दाॅव पर लगाकर नहीं।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र सम्पूर्ण राजनीति का संविधान है जिसमें राजनीति के नीतिगत बातों का सुन्दर ढंग से समन्वय किया गया है। इसलिये कुशल राजनीतिज्ञ होने के लिए कौटिल्य के अर्थशास्त्र का अध्ययन विश्व में अपरिहार्य है। महाभारत और रामायण में ऐसे अनेक दृष्टान्त भरे पड़े हैं जिनके अध्ययन से मानव का कल्याण हो सकता है। हम बड़े आत्म विश्वास के साथ कह सकते हैं कि यदि विश्व में केवल गीता के बारहवें और तेरहवें अध्याय का अध्ययन और अध्यापन अनिवार्य कर दिया जाय तो मानव जाति से सम्बन्धित अनेक समस्याओं का समाधन स्वतः हो जायेगा।
संस्कृत भाषा में निबद्ध काव्यों में ह्नदय के भावों की उतनी ही स्वाभाविक अभिव्यक्ति है जितनी किसी की प्रौढ़ साहित्य के माननीय काव्यों में हो सकती है। संस्कृत साहित्य को भारतीय संस्कृति का प्रधान वाहन कह सकते हैं क्योंकि संस्कृत के काव्यों में ही संस्कृति का वास्तविक दर्शन हमें प्राप्त होता है। त्याग से अनुप्राणित, तपस्या से पोषित तथा तपोवन में संवर्धित भारतीय संस्कृति का रमणीय आध्यात्मिक रूप संस्कृति तथा जनजागरण का अग्रदूत संस्कृत कवि तात्विक रूप से जीवन के अन्तस्तल को परखता है और उसका सच्चा वर्णन प्रस्तुत करता है, परन्तु जीवन का मंगलमय पर्यवसान तथा कल्याणमय उद्देश्य होने के कारण वह दुःखपर्यवसायी काव्यों तथा नाटकों की रचना से सर्वदा परांमुख होता है। संस्कृत साहित्य का यही मौलिक वैशिष्ट्य है।
हमारी संस्कृत भाषा संसार की सभी भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ है। संस्कृत साहित्य समग्र सभ्य साहित्य से प्राचीनता, व्यापकता, तथा अभिरामता में बढ़कर है। यदि इस भूमि पर कोई भी भाषा सबसे प्राचीन होने की अधिकारिणी है, तो वह संस्कृत भाषा ही है। सबसे प्राचीन ग्रन्थ और हमारे धर्म-सर्वस्व वेद भगवान् इसी गौरवमयी गीर्वाणवाणी आराधीनय ऋषियों के द्वारा परमात्मा की आन्तरिक प्रेरणा से ‘दृष्ट’ हुए हैं। अध्यात्म की गुत्थियों को सुलझाने वाले तथा मानव मस्तिष्क के चरम विकास को प्रकट करने वाले उपनिषद् भी इसी भाषा में अभिव्यक्त किये गये हैं। पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर प्रलय तक का विस्तृत तथा विविध इतिहास प्रस्तुत करने वाले पुराणों की रचना इसी सुन्दर भाषा में की गयी है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि लौकिक अभ्युदय तथा पारलैकिक निःश्रेयस की सिद्धि के साधक जितने ज्ञान और विज्ञान है, जितने कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड हैं, इन सबको अवगत करने का उपाय यही संस्कृत भाषा है।
संस्कृत साहित्य की महत्ता को प्रदर्शित करने वाले अनेक कारणों में एक कारण इसकी प्राचीनता है, क्योंकि इतना प्राचीन साहित्य कहीं भी उपलब्ध नहीं है। संस्कृत साहित्य की अविच्छिन्न परम्परा आठ अहार वर्षाें से निरन्तर चली आ रही है, प्राचीनता की दृष्टि से यदि विचार किया जाए अथवा अविच्छिन्नता की कसौटी पर इसे कसा जाए तो यह साहित्य आधुनिक युग में नितान्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है।
संस्कृत साहित्य सर्वांगीण है। यह सब अंगों से परिपूर्ण है। मानव-जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का विवेचन संस्कृत साहित्य में विस्तार से प्राप्त होता है।
संसार में सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, अध्यात्मिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, वैज्ञानिक एवं दार्शनिक प्रगति के लिए संस्कृत शिक्षा की आवश्यकता है। विश्व में यही एक ऐसा साहित्य है जिसमें विकास के समस्त सोपानों पर बड़े ही विधिसम्मत ढंग से विवेचना की गयी है। आज जब विश्व आर्थिक मन्दी के दौर से गुजर रहा है तो ऐसे में संस्कृत शिक्षा की अनिवार्यता और भी बढ़ जाती है। संसार से आतंकवाद मिटाने के लिए पारिस्थितिकी संतुलन को बनाये रखने के लिए तथा नक्सलवाद एवं नस्लवाद की समस्याओं के समाधान के लिए संसार में संस्कृत शिक्षा की अनिवार्यता एवं आवश्यकता बढ़ जाती है।
संदर्भ गं्रथ सूची
1. शर्मा चन्द्रधर, भारतीय दर्शन, प्रका0 मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली, 1990
2. श्रीमद्भगवद्गीता, गीता प्रेस गोरखपुर, उ0प्र0
3. उपाध्याय बलदेव, संस्कृत साहित्य का इतिहास, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, 1980
4. द्विवेदी आचार्य कपिलदेव, संस्कृत साहित्य का इतिहास, ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, 1998
5. बंदिष्टे डी0डी0, भारतीय दार्शनिक निबंध, मध्य प्रदेश ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, म0प्र0, 1999

डाॅ अंजलि यादव
प्रवक्ता, संस्कृत विभाग,
ज्वाला देवी विद्यामन्दिर स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
कनपुर, उ0प्र0