Wednesday 2 January 2013

आधुनिक हिन्दी साहित्य में स्त्रियों का योगदान


जय प्रकाश पटेल एवं अन्जू सिंह पटेल

‘रेषा-रेषा धुनी जाती, पुर्जा-पुर्जा नुचती और देहरी-देहरी पर अपमानित होती हुई औरत की वे खौफनाक कथायें क्यों नही लिखी जाती जो आजाद भारत के चप्पे-चप्पे पर चस्पा है’ मैंत्रेयी पुष्पा के ये शब्द हिन्दी कहानी के इस पहलू को उजागिर कर रहे हैं कि अभी भी बहुत से कथानकों के दम कहानी के इतिहास में घुॅटे हुए से हैं। आधुनिक काल में कथा साहित्य की दुनिया में स्त्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और बढ़ रही है स्त्रियों की अभिव्यक्ति का गान।

हिन्दी कथा साहित्य में नारी जागरुकता एवं दलित चेतना को स्वर देने वाली लेखिका चित्रा मुद्गल ने लक्षागृह, अपनी वापसी, इस हमाम में, जिनावर, भूख, लपटें जैसी कहानियाॅ लिखकर सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक समस्याओं को निर्भीकता से उजागर किया।1 मुद्गल अपने कलम की धार से समाज के क्रुरतम स्वरूप पर प्रहार करती है। महिला कहानीकारों में नमिता सिंह की कहानी निकम्मा लड़का, जंगल गाथा, खुले आकाष के नीचे, राजा का चैक आदि विषेष सराहनीय है। इसी तरह मणिक मोहनी ने अपना अपना सच, अभी तलाषी जारी है, अन्वेणी, ढाई आखर प्रेम का कहानी लिखकर समाज का दर्षन कराया। महान कहानीकार ममता कालिया की कहानियां छुटकारा, एक अदद औरत, सीन नं0 6, उसका यौवन मुखौटा हिन्दी पाठकों की संख्या बढ़ा रही है। लेखिका का मानना है कि आज सम्बन्धों के मूल्य और अर्थ बदले नहंी बल्कि नष्ट हो गए हंै5। शषि प्रभा शास्त्री की कहानियां उस दिन भी, पतझड़, अनुत्तरित, धुली हुई शाम एक टुकड़ा शान्तिरथ साहित्य जगत में अपना स्थान बना ली है। नारी के प्रसव पीड़ा का मार्मिक वर्णन जया जादवानी के कहानी संग्रह अन्दर की पानियों से झांकता पानी में मिलता है। किस प्रकार स्त्री प्रसव की असहनीय पीड़ा को झेलकर सृष्टि क्रम को आगे बढ़ातीे है।
राजनीतिक बिन्दुओं पर पुरुषों का एकाधिकार माना जाता था। लेकिन मन्नू भण्डारी ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए आज के राजनैतिक मुखौटों को प्याज की पत्तों की तरह उधेड़ दिया है’’6। भण्डारी द्वारा रचित कहानी के क्षेत्र में उन्होंने मैं हार गयी, यही सच है, तीन निगाहों की एक तस्वीर, त्रिशंकु, रानी मां का चबूतरा आदि लोकप्रिय कहानियां लिखी। जब कहानियों की बात चल रही है तो उषा प्रियंवदा का नाम सम्मान सहित लिया जाता है। उन्होंने अपनी कहानियों में देषी- विदेषी संस्कृति की टकराहट, आदमी का अकेलापन, विघटित परिवार की छटपटाहट जैसी समस्याओं को विषेष स्थान दिया है। रिटायर्ड गजाधर बाबू के जीवन पर आधारित कहानी ‘वापसी’ पर 1960 में सर्वश्रेष्ठ कहानीकार का पुरस्कार मिला। इसके अतरिक्त उन्होंने जिन्दगी और गुलाब के फूल, एक कोई दूसरा, कितना बड़ा झूठा लिखकर साहित्य के क्षेत्र में तहलका मचा दिया। कहानी के क्षेत्र में षिवानी के महत्वपूर्ण योगदान दिया है उन्होंने लाल हवेली, पुष्पहार, अपराधिनी, रतिविलाप, रथ्या, स्वंयसिद्धा लिखा। षिवानी के सम्बन्ध में अरुणा कपूर जी ने लिखा है कि- ‘‘षिवानी की लोकप्रियता का प्रमुख कारण है- कथा तत्व एवं रस दोनों तत्व पाठक को रचना में बांधे रहते हैं। उनकी हर नायिका अत्यधिक सुन्दरी होती है और रचनाओं में वैभव का चित्रण होता है। वस्तुतः उनकी रचनाओं में वैभव के साथ-साथ सामान्य जीवन स्थितियों का चित्रण भी हुआ है।’’7
स्त्री समस्याओं को चित्रित करने में मैंत्रेयी पुष्पा ने गहनता का परिचय दिया है। स्वंय उन्हीं के शब्दों में ‘रेषा-रेषा धुनी जाती, पुर्जा-पुर्जा नुचती और देहरी-देहरी पर अपमानित होती हुई औरत की वे खौफनाक कथायें क्यों नही लिखी जाती जो आजाद भारत के चप्पे-चप्पे पर चस्पा है।’8 मैत्रेयी पुष्पा के प्रमुख कहानियों में चिन्हार ललमनियां, गोमा हंसती है। जिसमें नारी की समस्याओं के साथ-साथ कोमलता का चित्रण भी मिलता है। निर्भीक अभिव्यक्ति के कारण कभी चर्चा एवं विवाद में रहने वाली मृदुला गर्ग नें कितनी कैदे, टुकड़ा-टुकड़ा आदमी, ग्लेषियर से, विनाष दूत, अगली सुबह, वेनकाब जैसी कहानियां लिखी। ‘‘व्यक्ति दो हिस्सों में बॅटकर जीता है, तो क्या दोनों के प्रति न्याय कर सकता है ? व्यक्ति की स्वतन्त्रता क्या आवष्यक रूप से समाज विरोधी होती है ? भीतर की आदिम और उद्दाम जिज्ञासाओं को घोंटकर जीना और बस जीते रहना ही क्या समाज के प्रति उत्तरदायी होना है ? आदि अनेक प्रष्नों से लिपटी जीवन व्यक्ति से ओत-प्रोत एक प्रेम कथा है।’’8
अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों एवं अलंकारों से सम्मानित कृष्णा सोबती ने स्त्री जीवन एवं आंचलिकता पर विषेष ध्यान दिया। बादलों के घेरे, सिक्का बदल गया कहानी लिखी। इनकी कहानियां सेक्स जन्य भावुकता से युक्त है। सोबती जी साहित्य वर्गीकरण को पुरूष लेख और स्त्री लेख के रूप में स्वीकार नहीं करती है। उनका विचार है कि- ‘‘किसी की रचनात्मक एवं कलात्मक कृति को प्रस्तुत करने वाले लेखक कलाकार में स्त्रीत्व और पुरुषत्व दोनों का मिश्रण रहता है। बौद्धिक रूप से मानवीय संवेदना के दोनों रंग और रूप कृतित्व के स्वरूप में मिले जुले रहते है।’’9 मंजुल भगत ने आत्महत्या के पहले, गुलमोहर के गुच्छे, सफेद कौआ, बूंद, अंतिम बयान आदि कहानियां लिखकर हिन्दी की सेवा की।
मुस्लिम समाज में पुरुषों द्वारा महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचार का विरोध हिन्दी लेखिका नासिरा शर्मा ने कहानी के माध्यम से किया। नासिरा शर्मा ने पत्थर गली, शामी कागज, इब्ने मरियम, खुदा की वापसी, दूसरा ताजमहल कहानी लिखा। दूसरा ताजमहल में महिलाओं के मानसिक बलात्कार का चित्रण किया है। इन्होंने अपने कहानियों के माध्यम से ईराक एवं ईरान देष की महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को उजागर किया है। सिर्फ समस्याओं का चित्रण न करके समस्या-समाधान उषा यादव के लेखन में दिखाई देता है। उषा यादव ने ज्वलंत विषयों पर पुस्तक लिखकर जन-जन का ध्यान आकर्षित किया। इसके साथ-साथ बाल कहानियां लिखकर हिन्दी साहित्य के साथ-साथ समाज में भी अमूल्य योगदान दिया। उषा यादव का कहना है कि- महिलाएं आज निर्भीकता पूर्वक लेखनी चला रही है। आज महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में अपना योगदान सिद्ध कर रही है। इसके लिए महिला संगठन सहयोग प्रदान कर रहा है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि आज महिलायें प्रत्येक क्षेत्र की तरह हिन्दी साहित्य में भी योगदान कर रही है। हाथ में कलम लिए महिला साहित्यकारों की एक विषाल फौज सामने खड़ी है। उनमें प्रमुख है- मधु ककरिया (अंतहीन मरूस्थल, बीतते हुए), लवलीन (चक्रवात), साराराय (अबाबील की उड़ान, बिपावन), ऋता शुक्ला (कासौ कहौं में दर दिया, मानुष तन, क्रौचवध), चन्द्रकान्ता (सलाखों के पीछे, सूरज उगने तक, काली बर्फ), इन्दुबाली (अंधेरे की लहर, धरातल, चुभन, पांचवा युग), सूर्यबाला (थाली भर चांद, दिषाहीन में, मानुष गंध, मुडेर पर) मेहरूनिसां परवेज (टहनियों पर धूप, फालगुनी, अंतिम चढ़ाई, समर, लाल गुलाब), राजी सेठ (अंधे मोड़ से आगे, गमे हयात ने मारा, तीसरी हथेली), मृणाल पाण्डेय (दरम्यान, शब्दबेधी, पंडरपुर पुराण, रास्तों पर भटकते हुए)  एवं कांता भारती (रेत की मछली) महिला साहित्यकार अपने साहित्य में गुणात्मकता के स्तर को बढ़ाने के लिए विज्ञान एवं तकनीकी का सहयोग ले रही है, इन्हें अब मानवीय मूल्यों के साथ-साथ आर्थिक एवं राजनैतिक विषयों को बढ़ाना होगा। समाज में सिर्फ स्त्री परक विचारों से ऊपर उठकर सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर विचार करना होगा। वर्तमान युग में पर्यावरण प्रदूषण मानव जीवन के लिए खतरा बन चुका है। इसे हिन्दी साहित्य के सहारे जन-जन को सचेत करना होगा। अब सिर्फ हंगामा खेज लोकप्रियता के अपेक्षा सार्वभौमिक गुणों का तराषना होगा। जिससे समाज एवं देष के साथ-साथ हिन्दी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।
सन्दर्भ
1. मिश्र, डाॅ0 प्रतीक एवं चैहान सुभद्रा कुमारी, उत्तर प्रदेष हिन्दी संस्थान लखनऊ, पृष्ठ- 31
2. वर्मा, धीरेन्द्र, हिन्दी साहित्य कोरा भाग-2, प्रकाषन ज्ञान मण्डल लि0 वाराणसी, 1986, पृष्ठ-639
3. श्रीवास्तव रंजना, नया ज्ञानोदय, भारतीय ज्ञानपीठ अंक-91, 2010, पृष्ठ 40
4. कालिया ममता, दौड़, वाणी प्रकाषन, नई दिल्ली, 2000
5. सिंह बच्चन, आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास, लोक भारती प्रकाषन इलाहाबाद, 1999, पृष्ठ- 355
6. कपूर अरूणा, नारी मन की अद्भुत चितेरी षिवानी, नागरिक उ0प्र0 षिवानी स्मृति विषेषांक, पृष्ठ- 35
7. पुष्पा, मैत्रेयी, आजाद भारत और महिला लेखन, नया पथः स्वाधीनता विषेषांक, पृष्ठ- 112
8. गर्ग, मृदुला, चितकोबरा, नेषनल पब्लिषिंग हाउस, नई दिल्ली, 1998
9. सोबती, कृष्णा, एक साक्षात्कार से।

जय प्रकाश पटेल एवं अन्जू सिंह पटेल
इलाहाबाद उ0प्र0