Wednesday 2 January 2013

राष्ट्रीय आन्दोलन पर स्वामी विवेकानन्द के विचारों का प्रभाव


ओम वीर सिंह

स्वामी रामकृष्ण परम हंस के शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय सामाजिक तथा राजनीतिक चिंतन में उग्र राष्ट्रवाद का समावेश किया। इनका ध्येय भारतीयों के मानस में आत्म विश्वास उत्पन्न करना था ताकि वे स्वतंत्रता का वरण कर सकें। वे विप्लववाद के प्रेरणाश्रोत थे। भारत के सहस्त्रों क्रान्तिकारियों ने उनके भाषणों तथा लेखों को अपना प्रकाश स्तम्भ बना रखा था।

प्रत्येक राष्ट्र की अपनी एक निजी विशिष्टता होती हैं। भारत की विशिष्टता धर्म है।1 स्वामी जी के अनुसार- ‘देश का प्राण धर्म है, भाषा धर्म है तथा भाव धर्म है। तुम्हारी राजनीति समाजनीति, अर्थनीति आदि आदि चिरकाल से इस देश में जैसे हुआ है, वैसे ही होगा अर्थात् धर्म के द्वारा यदि होगा तो होगा अन्यथा नहीं।’2 ‘लोग चिरकाल से चुपचाप काम करते जा रहे है, देश का धन-धान्य उत्पन्न कर रहे हैं, पर अपने मुॅंह से शिकायत नहीं करते।’3 उन्होंने तुम लोगों की तरह पुस्तके नहीं पढ़ी हैं, तुम्हारी तरह कोट-कमीज पहनकर सभ्य बनना उन्होंने नहीं सीखा पर इससे क्या? वास्तव में वे राष्ट्र की रीढ़ है।4 जीवन का अर्थ ही वृद्धि-विस्तार यानी प्रेम है। प्रेम ही जीवन है, यही जीवन का एक मात्र नियम हैं, और स्वार्थपरता ही मृत्यु है। इस लोक तथा परलोक में भी यही बात सत्य है।5
मैं जाति-पाॅंति के मामले में किसी भी वर्ग के प्रति कोई पक्षपात नहीं रखता, क्योंकि मै जानता हॅू कि यह एक सामाजिक नियम है और गुण एवं कर्म के भेद पर आधारित है।6 शिक्षा और अधिकार के तारतम्य के अनुसार सभ्यता सीखने की सीढ़ी थी। यूरोप में बलवानों की जय और निर्बलों की मृत्यु होती है। भारत में प्रत्येक सामाजिक नियम दुर्बलों की रक्षा करने के लिये ही बनाया गया है।7
यदि आप भारत को समझना चाहते है तो विवेकानन्द का अध्ययन कीजिए उनमें सब कुछ विधेयात्मक है, निषेधात्मक कुछ भी नही है।8 स्वामी जी ने कहा था कि प्रत्येक मनुष्य में ब्रह्म की शक्ति विद्यमान है। निर्धन के माध्यम से नारयण हमारी सेवा पाना चाहते हैं। इसी को मैं सच्चा सन्देश कहता हूॅू। इस सन्देश ने व्यक्ति को उसकी स्वार्थपरता की सीमा से बहार निकालकर आत्मबोध को असीम मुक्ति का मार्ग दिखाया। स्वामी विवेकानन्द मनुष्यों के बीच एक साक्षात सिंह थे। उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा और क्षमता के बारे में हमारे मन में जो धारणा है, उसकी तुलना में, अपने पीछे वे जो एक सुनिश्चित कार्य छोड़ गये है। वह अन्तः प्रेरक उन्नायक वस्तु भारत की अन्तरात्मा में प्रविष्ट हो गयी है।9
स्वामी विवेकानन्द का स्वाधीनता का संन्देश नकारात्मक नहीं है, अपितु सकारात्मक तथा परम सर्वागीण तात्पर्यो से युक्त है। स्वाधीनता का अर्थ सारे बाह्य बन्धनों का निवारण है। परन्तु हमारा ऐसा निर्माण हुआ है कि हम अपने बाह्य सम्बन्धों से प्रकृतिक या सामाजिक परिवेश से स्वयं को अलग नहीं कर सकते। ऐसा अलगाव भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से घातक होता है। जीवन का नियम अलगाव नहीं बल्कि मेल जोल है, असहयोग नहीं, बल्कि सहयोग है। सच्ची स्वाधीनता युद्ध के द्वारा नहीं बल्कि शान्ति के द्वारा ही पायी जा सकती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जीवन योजना मेे युद्ध त्याग तथा अलगाव का भी स्थान है।
स्वाधीनता एक है। अपनी कामनाओं तथा वासनाओं के चंगुल से मुक्ति पाना ही लक्ष्य की प्राप्ति की ओर पहला कदम है। अगला कदम है अपने मानव भाइयों के भय से मुक्ति। इसके बाद आता है किसी बाह्य सत्ता के अधिकार से मुक्ति। इस प्रकार मनुष्य को अपनी व्यक्तिगत स्वाधीनता से आरम्भ करके, सामाजिक तथा राजनीतिक स्वाधीनताओं से होकर गुजरते हुए अपनी वास्तविक स्वाधीनता प्राप्त कर लेनी चाहिए। जब उसे इसकी उपलब्धि हो जाती है तब अन्ततः उसे बोध होता है कि वह तथा ईश्वर से अभिन्न है। यही वस्तुतः आधुनिक जगत् को उनके गुरूदेव का सन्देश है।10
नेहरू जी ने कहा था मुझे पता नहीं कि आज की युवा पीढ़ी में से कितने लोग स्वामी विवेकानन्द के लेख तथा व्याख्यान पढ़ते हैं, पर मैं अपने काल की बात कह सकता हॅू। मेरी पीढ़ी के अनेक युवक उनसे अत्यधिक प्रभावित हुए थे और मेरा विचार है कि वर्तमान पीढ़ी भी यदि स्वामीजी के व्याख्यान और उनकी रचनाओं का अनुशीलन करें तो वे काफी कुछ सीख सकेंगे। स्वामी जी की वाणी थोथे शब्द मात्र न थे बल्कि उनमें मन प्राण में प्रज्ज्वलित होने वाली उस अग्नि की झलक मिल जाती है।11
स्वामी विवेकानन्द ने जो कुछ भी लिखा या कहा है, वह हमारे हित में है और होना भी चाहिए तथा वह आने वाले लम्बे अरसे तक हमें प्रभावित करता रहेगा। वे साधारण अर्थ में कोई राजनीतिज्ञ नही थे फिर भी वे भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के महान संस्थापकों में से एक थे और आगे चल कर जिन लोगों ने उस आन्दोलन में थोड़ा या अधिक सक्रिय भाग लिया उनमें से अनेकों ने स्वामी विवेकानन्द से ही प्रेरणा ग्रहण की थी। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप उन्होंने वर्तमान भारत को सशक्त रूप से प्रभावित किया था और विश्वास है कि हमारी युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानन्द के अन्तर से प्रवाहमान ज्ञान प्रेरणा और उत्साह के श्रोत से लाभ उठायेगी। विश्व के प्रति उनके दृष्टिकोण तथा इस पर जाने या अनजाने पड़ने वाला उनका प्रभाव हमारे लिये सर्वाधिक महत्व की चीज है।
सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था कि श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द के प्रति मैं कितना ऋणी हॅू। इसे मैं शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर सकता उन्हीं के पुण्य प्रभाव से मेरे जीवन में चेतना का प्रादुर्भाव हुआ था। निवेदिता के समान ही मेरा भी विश्वास है कि रामकृष्ण और विवेकानन्द एक ही अखण्ड व्यक्तित्व के दो पहलू है। आज यदि स्वामी जी जीवित होते तो निश्चय ही मेरे गुरू होते अर्थात् मैनें अवश्य ही उनका गुरू रूप वरण कर लिया होता। भारतवर्ष को यदि स्वाधीन होना है, तो उसमें हिन्दुत्व या इस्लाम का प्रभुत्व होने से काम न होगा। उसे राष्ट्रीयता के आदर्श से अनुप्राणित कर विभिन्न सम्प्रदायों का सम्मिलित निवास स्थान बनाना होगा।
भारत में मुक्ति-कामना की आकांक्षा 19वीं शताब्दी के चिन्तन तथा सामाजिक सुधारों में दीख पड़ी थी परन्तु यह राजनैतिक क्षेत्र में कभी प्रकट नहीं हुई इसका कारण यह था कि तब भी भारतवासी पराधीनता की मोहनिद्रा मंे डूबे हुए थे और सोचते थे कि अंग्रेजों का भारत विजय एक दैवी वरदान है। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में स्वाधीनता के अखण्ड रूप का आभास विवेकानन्द के मध्य से झलकता है। ‘फ्रीडम इज दी सांग आफ दी सोल’- स्वाधीनता हमारी आत्मा का संगीत है।
स्वामी विवेकानन्द स्वयं एक क्रांतिकारी नहीं थे तथापि क्रांतिकारियों ;त्मअंसंजपवदंतपेद्ध के ऊपर उनका जबर्दस्त प्रभाव पड़ा। बहुत से ऐसे व्यक्ति जिन्होंने कि बंगाल में राष्ट्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन का नेतृत्व किया अपनी तरूणावस्था में उनसे मिलने के लिये आते थे। उनके व्याख्यानों तथा भाषणों ने बंगाल के नौजवानों को प्रेरित किया उनके कमरों में कोलम्बों से अल्मोड़ा तक व्याख्यान ;स्मबजनतम तिवउ बवसवउइव जव ।सउवतंद्ध की प्रतियाॅं आमतौर से पाई जाती थी। बहुत लम्बे समय तक उन्होंने क्रांतिकारियों को आध्यात्मिक भोजन प्रदान किया।
सन्दर्भ ग्रन्थ
1. विवेकानन्द, विवेकानन्द राष्ट्र को आह्ान
2. स्वामी विवेकानन्द, मेरा भारत अमर भारत
3. वर्मा डा0 विश्वनाथ प्रसाद, आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन
4. श्री अरविन्द, दी आइडियल आॅफ हफयूमन यूनीर्टी, श्री अरविन्द लाइब्रेरी न्यूयार्क 1950
5. ठाकुर रवीन्द्र नाथ, मेकमिलन लन्दन 1920, पृ0 56
6. रोला रोम्या, दी लाइफ स्वामी आॅफ राम कृष्ण (कलकत्ता अद्वैत आश्रम 1974)
7. राबटर्स पी0ई0, हिस्ट्री आॅफ ब्रिटिश इण्डिया
8. सीतारमैया पट्टाभि, हिस्ट्री आॅफ द कांग्रेस (इलाहाबाद कांग्रेस समिति 1935
9. विवेकानन्द, स्वाधीन भारत जय हो
10. चन्द्र विपिन एवं त्रिपाठी अमलेश, स्वतंत्रता संग्राम
11. आल्विग डब्ल्यू, पब्लिक ओपीनियन पृ0 102

ओम वीर सिंह
शोध छात्र, राजनीति विज्ञान विभाग
हण्डिया पी0जी0 कालेज हण्डिया,
इलाहाबाद, उ0प्र0।