Thursday 1 January 2015

नासिरा शर्मा के कथा साहित्य में स्त्री चेतना

राजेश कुमार गर्ग एवं शालिनी सिंह

स्वातं×त्रयोतर भारत में पिछले 67 वर्षों में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक परिस्थितियों में बदलाव होते रहे हैं पर महत्वपूर्ण बदलाव महिलाओं की दशा में दृष्टिगत हुआ है। महिला-सशक्तिकरण के द्वारा महिलाओं की स्थिति में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है। हिन्दी साहित्य के समकालीन लेखकों में महिला रचनाकारों की रचनाएं स्त्री-चेतना से अछूती नहीं रही। इन महिला रचनाकारों के बहुतायत उपन्यास महिला-प्रधान रहे या उनकी परिस्थितियों से रूबरू होते रहे। मन्नू भण्डारी का ‘महाभोज’ उपन्यास राजनैतिक सन्दर्भो को उजागिर करता है तो वही प्रभा खेतान के ‘छिन्नमस्ता’ और ‘पीली ऑधी’ उपन्यास कुमारिका जीवन की विसंगतियों को दर्शाते हैं। साथ ही ममता कालिया का ‘बेघर’ ‘नरक दर नरक’ स्त्री जीवन की बिडम्बना को दर्शाता है। इन्हीं समकालीन रचनाकारों में एक शक्सियत हैं- नासिरा शर्मा। नासिरा शर्मा ने अपने कथा साहित्य में न केवल स्त्री समस्याओं का उल्लेख किया है, अपितु समाधान भी प्रस्तुत किया है। कुमार पंकज के शब्दों में- ”नासिरा शर्मा उन रचनाकारों में हैं जिन्होंने महिला मुद्दों को अपनी कलम का निशाना बनाया है यह सच है कि महिला के दर्द को महिला से बेहतर भला कौन जान सकता है।’’1 इनकी कहानियाँ मध्यम वर्ग की उस नारी की है जो नारी-त्रासदी एवं विकृत मनोवृतियां व मानसिकताओं के बीच जीती है। इनके कथा साहित्य में स्त्री की भावनाओं और संवेदनाओं का इतना मार्मिक चित्रण है कि पाठक वर्ग कहानियां के पात्रों में स्वयं की झलक देखता है।

नारी की भावनाओं की प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति से नासिरा जी ने समाज में नारी के अस्तित्व को अस्मिता प्रदान की। नारी जीवन की तमाम जटिलताओं ने उनकी लेखनी को संस्कार प्रदान किया। इनके कथा साहित्य में स्त्रियां के अनेक मुद्दों पर खुली चर्चा हुई है। वे आधुनिकता के नाम पर स्त्री स्वच्छंदता की पक्षधर नहीं हैं। इसलिये उनकी नारी मात्र आधुनिक होकर भी उच्छृंखल नहीं हैं।
पत्थरगली नासिरा जी का पंसदीदा कहानी संग्रह है। इन्हांने इस कहानी संग्रह के सम्बन्ध में लिखा है- ”यह कहानियाँ धरती पर बसे किसी भी इंसान की हो सकती है, क्योंकि दर्द सर्वव्यापी है फिर भी इन कहानियों की अभिव्यक्ति का स्रोत एक विशेष परिवेश हैं।’’2 पत्थरगली कहानी की मुख्य पात्र ‘फरीदा’ है। लेकिन पत्थरगली कहानी ‘फरीदा’ की नहीं बल्कि उस समाज की है जो रंग-बिरंगे होते हुये भी एक जैसी समस्या से जूझ रहा है। उसकी सारी सहेलियों के घर की यही कहानी है जिनके भाई कुछ नहीं करते हैं, जिनके बाप नहीं हैं, उनको अपनी जीविका के लिये दूसरों के सामने हथियार डालने पड़ते हैं पत्थरगली में ‘फरीदा’ और बडे़ भाई की टकराहट पुरानी व नई सोच के साथ आपसी अहं की टकराहट थी। ”रूढ़ियां के घटाटोप में ढका हुआ समाज विशेष का, नारी जाति की घुटन बेबसी और मुक्ति की छटपटाहट का, जैसा चित्रण इस कहानी में हुआ है अन्यत्र दुर्लभ है।’’3 इस संग्रह के विषय में नासिरा जी का कहना है- ”मेरी ये कहानियाँ दुःख और मुजरां के सुख का मोहभंग करती हुई एक ऐसी गली की सैर कराती हैं जो पत्थर की गली है। इस पत्थर की गली में रहने वाले अपने निकास के लिये छटपटाते पत्थर से टकराकर लहूलुहान हो उठते है।’’4
संगसार कहानी संग्रह में कई कहानियाँ ऐसी है जो स्त्री की बुनियादी अस्मिता की दास्तान है। है। संगसार कहानी की ‘आसिया’ प्रेम की पवित्रता का सच्चा नमूना है। पति के साथ बेवफाई के बावजूद उसके विवाहेत्तर प्रेम-सम्बन्ध में जुदाई है। उसे कोर्ट द्वारा संगसार करने के सजा सुनायी भी गयी है। ”उस रात औरतों ने चूल्हें नहीं जलाए, मर्दो ने खाना नहीं खाया, सब एक दूसरे से आँख चुराते है। यदि आसिया गुनाहगार है तो उसके संगसार होने पर यह दर्द, यह कसक उनके दिलों कों क्यों मथ रही थी।’’5 गूंगा आसमान कहानी की ‘मेहरअंगीज’ अपने लंपट लेकिन सत्तापोश पति के चंगुल से तीन जवान स्त्रियों को छुटकारा दिलवाती है। यहाँ एक स्त्री के चारित्रिक बहादुरी का सहज चित्रण हैं। दरवाज-ए-कजविन की ‘मरियम’ ऐसी औरत है जो समाज की सड़ी-गली रस्मों का शिकार है। मरियम की नियति यही हैं। वह पूछती है- ”क्या बदलाव इसलिये चाहते थे ? हमारा गुनाह क्या था? क्या इस बदलाव के बावजूद स्त्री की स्थिति जस की तस है कि उसका शोषण मानसिक और शारीरिक स्तर पर लगातार होता रहे? उसकी हालत कमतर बनी रहे। ये कहानी औरत की मजबूरी की त्रासद दास्तान है।’’6 नमक का घर कहानी की ‘शहरबानां’ अपने खोए घर और गुमशुदा परिवार की त्रासदी झेलती औरत खुदा की वापसी संग्रह की कई कहानियों में दःुखियारी नायिकाएं विभिन्न कारणों से पति को छोड़कर भाई, माँ, पिता, के घर आश्रय लेने के लिये मजबूर हो जाती हैं।
नासिरा जी ने अपने आस-पड़ोस में इस माहौल को महसूस किया और इसे अपनी लेखनी से कहानियों में उकेरा है। इस संग्रह की अधिकांश कहानियॉ विभिन्न वर्गो की स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती है। मेरा घर कहाँ में लाली धोबन की बेटी ‘सोना’ हो या नई हुकूमत की ‘हजारा’ या बचाव की नायिका ‘रेहाना’ हर कहानी में नारी-संघर्ष और उत्पीड़न का जीता-जागता उदाहरण मौजूद है। चार बहनें शीशमहल की में शरीफ के घर में लड़की का पैदा होना अपशगुन माना जाता है बाहर दुकान पर चूड़ी पहनाते हुये लड़की के जख्मी हाथ देख शरीफ का दिल भी जख्मी हो जाता है। जिन औरतों व लड़कियों की बदौलत उसकी जिंदगी की गाड़ी चल रही है, रोटी नसीब़ हो रही है। उसी के घर में लड़की का पैदा होना मनहूसियत की बात हैं। बुतखाना कहानी संग्रह की कहानी अपनी कोख भू्रण परीक्षण पर लिखी गयी कहानी है। स्त्री की स्वायत्ता, उसके वजू़द व आत्मनिर्भरता की कहानी है। इसकी नायिका ‘साधना’ विवाह के उपरान्त दो बच्चियों की मॉं बन जाती है। तीसरी बार उससे अपेक्षा की जाती है कि भू्रण परीक्षण में यदि इस बार भी पुत्री हो तो गर्भपात करा लें। गर्भ में पुत्र होने पर भी वह यह सोचकर वह गर्भपात करा देती है, कि पुत्र होने पर उसकी पुत्रियों के साथ भेदभाव बढ़ जाएगा। ये कहानी एक अनकहा सत्य है। शाल्मली उपन्यास में स्त्री का शोषण, भेदभाव, अत्याचार, पत्नी की सफलता के कारण पति में कुंठा भाव, वैवाहिक औपचारिकता की अभिव्यक्ति है। ‘इसमें पंरपरागत नायिका नहीं है, बल्कि वह अपनी मौजूदगी से यह अहसास जगाती है कि परिस्थितियों के साथ व्यक्ति का सरोकार चाहे जितना गहरा हो, पर उसे तोड़ दिए जाने के प्रति मौन स्वीकार नहीं होना चाहिए।’’7 ठीकरे की मंगनी उपन्यास की नायिका ‘महरूख’ शाल्मली की तरह धीर, गम्भीर एवं आत्म-निर्भर नारी है। वह समाज के बन्धनों के कारण घुटन भरा जीवन व्यतीत करती हुई, आत्मसमर्पण नहीं करती अपितु विपरीत दिशा में उसका सामना भी करती हैं।
नासिरा शर्मा का ‘ईरान की खूनी क्रान्ति’ पर लिखा, बहुचर्चित उपन्यास सात नदियॉ एक समन्दर सात महिलाओं को केन्द्र में रखकर लिखा गया उपन्यास उनके साझे दर्द को बयान करता है। फैज ने कहा है- बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल गरीब सही। तुम्हारे नाम पर आयेंगे गम-गुसार चले।। यहीं से दर्द फैलता है पूरी कायनात पर छा जाता है। ‘ईरानी क्रान्ति’ में जनता पर होने वाले अत्याचारों का संवेदनशील चित्रण सात महिलाओं के साथ किया। नासिरा जी ने इस उपन्यास के लिए लिखा- ‘मेरे इस उपन्यास में इन्सान की आरजू, तमन्ना और इच्छा से भरे अधूरे सपनों का बयान है। जो किसी भी व्यक्ति की निजी धरोहर हो सकता है।’8
कोई भी युद्ध हो, क्रान्ति हो, उससे सबसे ज्यादा प्रभावित स्त्रियाँ ही होती हैं, सबसे अधिक पीड़ा, यंत्रणा स्त्री को ही झेलनी पड़ती है। उपन्यास, कहानी संग्रह के अलावा इनका 2003 में लेख-संग्रह औरत के लिए औरत प्रकाशित हुआ। जिसमें आपने पूरी संवेदनशीलता और आत्मीयता के साथ ना केवल देश वरन विदेश तक की औरतों की समस्याओं को दिशाबद्ध करने का प्रयास किया है। इन्होंने जाग्रत होती स्त्री चेतना में आंधियाँ ही नहीं भरी बल्कि बुद्धिमत्ता से नए रास्ते बनाने का जोश भी भरा। इनकी खुली मानसिकता, सन्तुलित दृष्टि बार-बार स्पष्ट करती हैं, कि मनोमस्तिष्क चेतना और शक्ति में औरत कमतर नहीं है। अपनी पुस्तक के हर लेख में इन्हांने स्वस्थ सम्बन्धों पर जोर दिया है। ‘समाज सिर्फ मर्दो द्वारा नहीं बना, बल्कि इसके ताने-बाने में मर्द तथा औरत दोनों का वजूद है, .........मर्द और औरत एक चने की दो दाल हैं, अर्थात दोनों इंसान का रूप हैं।’’9 नासिरा जी ने औरतों की जिंदगी की एक-एक बारीकियों को उनके परिवार के सदस्य की तरह देखा, उनके भरोसे को जीता है। त्रासद पीड़ा झेलती बेबस स्त्रियाँ ममत्व भाव व आत्मीयता में जीती है, और उनसे मुक्त होने का साहस भी नहीं कर पातीं। नासिरा जी लिखती हैं- ‘‘जिन कुरीतियों एवं परंपरा से भारत मुक्त था, वही आज की मुख्य समस्या बन चुकी हैं, जैसे बंधुऑ मजदूरी, इत्यादि लाख कानून बने मगर उसका पालन अभी पूरी तरह नहीं हो रहा है। उसी तरह महिलाओं के प्रति बने कानून, फाइलों की शोभा अवश्य बन चुके हैं। मगर समाज का दृष्टिकोण अधिक पुरातनपंथी बन गया।’’10
नासिरा शर्मा का कहानी संसार मुख्यतः नारी के प्रति असमानताओं एवं उसके अस्तित्व की रक्षा के लिये लड़ा जा रहा अनवरत युद्व है। इनकी कहानियॉ अपने घर की तहजीब व समाज के अंधेरे को दूर करती वे शमाएँ हैं जिसकी रोशनी इतिहास के पन्नों तक फैली हुई है। ये कहानियाँ केवल कहने सुनने तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि अतीत व वर्तमान के तारीखी दस्तावेज़ हैं जिनकों पढ़ा व समझा जा सके। इनकी कहानियाँ में ‘नारी’ की जिंदगी का महाकाव्य है। नासिरा शर्मा स्त्री विमर्श की प्रमुख कथाकार हैं।
स्त्री विमर्श इसलिए प्रासंगिक है कि इन्होंने महिलाओं के हितों की चर्चा करते हुए, स्त्री के बहाने मानवीय सवालों से रूबरू कराया। इनकी कहानियों में नैतिकता, ईमानदारी और तहजीब की महीन बुनावट है। इन्होंने अपनी रचनाओं में नारी मन को जबरदस्त तरीके से उकेरा है। नासिरा जी इस्लाम धर्म के आधार पर नारी सशक्तीकरण के साथ-साथ भारतीय मुस्लिम परिवारों की त्रासदी की कहानियों को रेखांकित करती हैं। साथ ही मुस्लिम स्त्री अधिकार के प्रत्येक पक्ष का उद्घाटन भी करती हैं। इनकी कहानी की नायिका रोती नहीं, अकेले में भी नहीं।
वहीं प्रभा ख़ेतान की नायिका ‘आओ पेपे घरे चलें’ में कहती हैं- ‘‘औरत कब रोती और कहाँ नहीं रोती। जितना वह रोती है, और उतनी ही औरत होती जाती है।’’ दोनों की नायिकाओं में इतना फर्क है कि समाज एक अकेली किंकर्तव्यविमूढ़ औरत को रोते देखना चाहता है। इसलिए वह उसे तरह-तरह से रुलाता हैं। रोते चले जाने का संस्कार देता है। वहीं एक शिक्षित परिपक्व स्त्री स्वाभिमान की मनोदशा में किसी का कंधा नहीं तलाशती। समता एवं स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर अपने पैरों पर खड़ी होने का साहस करती है। उसे अपनी अस्मिता का बोध है, जिसकी रक्षा करने में वह सक्षम है। यश मालवीय के शब्दों में ‘‘नासिरा शर्मा के कथासाहित्य में औरत आँचल में दूध और आँखों में पानी वाली औरत नहीं है। वह पितृसत्तात्मक समाज के सामने सीना तानकर खड़ी हो जाती है, प्रतिरोध के स्वर मुखरित करने लगती है। इन कहानियों को पढ़कर नींद नहीं आती बल्कि आई हुई नींद कई-कई रातों के लिए उड़ जाती है।’’
सन्दर्भ ग्रन्थ-
1. कुमार पंकज, जिन्दगी के असली चेहरे, आजकल पत्रिका।
2. शर्मा नासिरा, मेरे जीवन पर किसी के हस्ताक्षर नहीं।
3. शर्मा डा0 नीलम, मुस्लिम कथाकारों का हिन्दी योगदान।
4. शर्मा नासिरा, पत्थरगली, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, संस्करण- 2011.
5. शर्मा नासिरा, संगसार, वाणी प्रकाशन, दिल्ली संस्करण- 2009.
6. शर्मा नासिरा, संगसार, वाणी प्रकाशन, दिल्ली संस्करण- 2009.
7. शर्मा नासिरा, शाल्मली, किताबघर, प्रकाशन, नई दिल्ली, सं0-2013.
8. शर्मा नासिरा, सात नदियॉ एक समन्दर।
9. शर्मा नासिरा, औरत के लिए औरत, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, सं0-2002.
10. शर्मा नासिरा, किताब के बहाने, सं0 2001.
डॉ0 राजेश कुमार गर्ग
असिस्टैन्ट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग,
ई0सी0सी0, इलाहाबाद (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
शालिनी िंसंह
 शोधच्छात्रा, हिन्दी विभाग,
महात्मा गॉधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय,
 चित्रकूट सतना (मध्य प्रदेश)