Thursday 1 January 2015

गीता का कर्मयोग एवं तिलक-गॉधी-बिनोवा


अवनीश कुमार शुक्ल

  ‘‘कमर्णेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’’ जैसा आप्त-मन्त्र श्रीमद्भगवतगीता का वास्तविक निहितार्थ एवं मूल सिद्धान्त है। उक्त आप्त मन्त्र को आत्मसात करते हुए तिलक-गॉधी-बिनोवा जैसे संतो ने देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन को दिशा दी तथा स्वयं गीतामय जीवन की ओर अग्रसर हुए।
सन् 1908 से 1914 तक के छः वर्षीय एकान्त कारावास में बाल गंगाधर तिलक ने गीता रहस्य की रचना की। तिलक जी ने श्रीमद्भगवतगीता की व्याख्या करते हुए निवृत्ति के स्थान पर प्रवृत्ति के मार्ग को अपनाने का सन्देश दिया है। राष्ट्रीय आन्दोलन पर टीका करते हुए दिनकर ने लिखा है कि ‘‘हिन्दुत्व के भीतर प्रविष्ट जिस कालकूट (निवृत्ति के विष) को किसी भी तत्त्व चिन्तक की दृष्टि नहीं देख सकी थी, उसे तिलक की ऑखों ने देख लिया। तिलक ने उसे देखा ही नहीं प्रत्युत अपनी प्रखर बुद्धि से उसे दूर भी कर दिया। इसलिए हमारा मत है कि गीता एक बार तो भगवान श्रीकृष्ण के मुख से कही गयी थी और दूसरी बार उसका सच्चा आख्यान लोकमान्य ने किया है। इन दोनां के बीच की सारी टीकाएॅ और आख्याएॅ गीता के सत्य पर केवल बादल बनकर छाती रही है।’’1
आचार्य बिनोवा भावे के अनुसार, ‘‘इस जमाने के अनेक श्रेष्ठ लोगों ने गीता पर लिखा है उनमें मुख्य है- लोकमान्य तिलक, महात्मा गॉधी एवं श्री अरविन्द। तीनों ने गीता पर अपना जीवन सर्वस्व समझकर लिखा, तीनों के जीवन को गीता ने एक नया आकार दिया, और तीनां ने कहा है कि यह ग्रन्थ देश के उत्थान के लिये अत्यन्त उपयुक्त है।’’2 लोकमान्य तिलक ने स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय स्वराज्य प्राप्ति का नारा दिया था जिसके लिए गीता में कर्मयोग के सन्देश के अनुसार उन्होंने प्रचण्ड पुरूषार्थ क्रिया, एवं फल की इच्छा न करते हुए केवल कर्मयोग पर बल दिया।
जहॉ तक महात्मा गॉधी के कर्मवाद का सन्दर्भ है तो उन्होंने धर्माधारित राजनीति की हिमाकत की है। उन्हांने स्वयं लिखा भी है कि- ‘‘मेरी सत्यनिष्ठा ने ही मुझे राजनीति के प्रांगण में उतारा है और मैं तनिक भी संकोच किये बिना, परन्तु पूर्ण विनम्रता के साथ, कह सकता हॅू- जो यह कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है, वे वस्तुतः धर्म का अर्थ ही नहीं जानते।“3 वे श्रीमद्भगवतगीता के ‘योगः कर्मषु कौशलम्’ को आधार बनाते हुए 1920 में तिलक जी के देहावसान के बाद स्वराज्य आन्दोलन का नेत्त्व स्वयं सभालते हुए, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन एवम् भारत छोड़ो आन्दोलन को सफल परिणति तक पहुॅचाते हुए भारत को आजादी दिलायी। गांधी जी के कर्मयोग का एक अन्य सन्दर्भ बाबा बिनोवा के शब्दों में- ‘‘सन् 1916 में मैं बापू के पास पहुॅचा तब 21 साल का लड़का था। वे सब्जी काट रहे थे। मेरे लिए यह भी एक नया ही दृश्य था। यह कार्य भी राष्ट्र नेता करते हैं, यह मैं कभी नही सुना था। उन्होंने एक चाकू मेरे हाथ में भी दे दिया। मेरी यह प्रथम दीक्षा थी और मुझे श्रम का पाठ मिला।’’4
    इस प्रकार हम देखते है कि गांधी जी विशुद्ध राजनीतिक विचारक ही नही, अपितु सच्चे कर्मयोगी थे। गीता के कर्मयोग की प्रेरणास्पद कड़ी में एक नाम आचार्य बिनोवाभावे का भी जुड़ा है- ‘‘सन् 1932 में बिनोवा जी जब धुलिया जेल में थे उसी समय जेलर सहित अन्य कैदियों के अनुनय-विनय पर उन्होंने गीता पर अट्ठारह प्रवचन दिये, जिसे साने गुरू ने लिपिबद्ध कर लिया, वही ग्रन्थ ‘गीता-प्रवचन’ के नाम से घर-घर में सरल भाषा में सन्देश सुना रहे हैं।’’ जहॉ तक श्रीमद्भगवतगीता की बात है तो आचार्य बिनोवा ने गीता को मॉं का स्थान देते हुए गीता माता कहा है उन्होंने  ‘गीता प्रवचन’ के प्रथम अध्याय में लिखा है कि- ‘‘मेरा शरीर मंॉ के दूध पर जितना पला है उससे कहीं अधिक मेरे हृदय एवं बुद्धि का पोषण गीता के दूध पर हुआ है। जहॉ हार्दिक सम्बन्ध होता है वहां तर्क की गुंजाइश नहीं रहती। तर्क को काटकर श्रद्धा एवं प्रयोग इन दो पंखो से ही मैं गीता-गगन में यथाशक्ति उड़ान भरता रहता हॅू, मैं प्रायः गीता के ही वातावरण में रहता हॅू, क्यांकि गीता ही मेरा प्राणतत्व है।’’5
इस प्रकार हम देखते हैं कि वे गीता कें कर्मयोग से अतिशत प्रभावित थे। अपनी जीवन यात्रा में कर्मयोग के आदर्शो को संजोकर भूदान, ग्रामदान, धनदान, श्रमदान, आदि के माध्यम से भारत भूमि सहित सम्पूर्ण विश्व जन मानस को कर्मशील रहने का कालजयी सन्देश दिया।
सन्दर्भ ग्रन्थ-
1 जैन, डॉ0 पुखराज, राजनीति विज्ञान, साहित्य भवन  पब्लिकेशन्स  आगरा,संस्करण2003,पृ0 136
2 पत्रिका-मैत्री, सितम्बर2004, प्रकाशन-चेन्नमा हल्लीकेरी ब्रह्म विद्यामंदिर पवनार, वर्धा महाराष्ट्र पृ0 276
3 गावा, ओ0पी0, राजनीति-चिन्तन की रूपरेखा,  प्रकाशन  मयूर पेपर बैक्स, नोयडा। पृ0 411
4 पत्रिका- मैत्री, सितम्बर 2004, चेन्नम्मा हल्लीकेरी ब्रह्म विद्यामंदिर, पवनार, वर्धा  महाराष्ट्र, पृ0 277
5 भावे, बिनोवा, गीता प्रवचन, सर्व संघ प्रकाशन, राजघाट, वाराणसी, पृ0 91
डॉ0 अवनीश कुमार शुक्ल
प्रधानाचार्य,  जन कल्याण इण्टर कालेज,
उरसान, कानपुर देहात।