Friday 1 July 2011

‘‘निजी महाविद्यालयों में संचालित बी0 एड0 प्रशिक्षण की दशा एंव दिशा’’


अरूण कुमार मिश्र
 प्रवक्ता-बी0 एड0 विभाग रा.ह.राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय काशीपुर,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखण्ड।

अरूण कुमार चतुर्वेदी 
प्रवक्ता बी0 एड0 विभाग
रा.ह.राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय काशीपुर, ऊधमसिंहनगर,  उत्तराखण्ड।

पृथ्वी के धरातल पर जन्म लेेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को तन ढकने के लिए वस्त्र, सिर ढकने के लिये छत, भूख मिटाने के लिये भोजन की आवश्यकता होती हैं। ऐसा माना जाता था कि प्रथम दृष्टया यह तीनो आवश्यकताएँ अत्यधिक आवश्यक थी, परन्तु एक अन्य आवश्यकता इसके समकक्ष दिखायी देने लगी हैं, वह हैं शिक्षा। शिक्षा हमें यह बताती हैं कि उपरोक्त तीनों आवश्यकताएँ केवल मानव की ही नही, वरन् समस्त प्राणियों की हैं। शिक्षा इन समस्त प्राणियों (पशुओं) में मानव को मनुष्यता की ओर अग्रसर करती हैं। शिक्षा मानव के विकास का मुख्य आधार हैं, जो उसे कुशल बनाती हैं, उसे प्रशिक्षित करती हैं तथा उसे प्रोत्साहित करते हुए उन्नति के मार्ग पर ले जाती हैं। अर्थात मानव शिक्षा के महत्व को नकार नही सकता।
पन्द्रह अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतन्त्र हुआ था। उस समय हमारे देश में साक्षरता 18.33 प्रतिशत थी। जिसमें समयानुसार लगातार वृद्धि होती चली गयी, जो बढ़कर 1971 में 34.45 प्रतिशत, 1991 में, 52.21 प्रतिशत, 2001 में बढ़कर 64.84 प्रतिशत हो गयी तथा वर्तमान समय में इसमें और अधिक वृद्धि हो चुकी हैं। अर्थात हम यह कह सकते हैं कि स्वतन्त्रता से अब तक शिक्षा के क्षेत्र में मात्रात्मक रूप में हम लगातार उन्नति करते चले आ रहे हैं। हमारी सरकार एंव समाजसेवियों ने शिक्षा प्रदान करने के लिये विभिन्न संस्थाएँ (स्कूल, विद्यालय, महाविद्यालय) खोल रखे हैं, जो हमारे देश के बालकों के सर्वागीण विकास के लिये प्रयासरत हैं। इन संस्थाओं में हमारे देश के कर्णधारों के सर्वागीण विकास की जिम्मेदारी मुख्यतः वहाँ के पथ प्रर्दशक मार्गदर्शक, एवं शक्षकों पर हैं।
वैदिक काल में समाज को कर्म के आधार पर विभाजित किया गया था जिसमें शिक्षा प्रदान करने का अधिकार ब्राहम्ण वर्ग को ही था। अर्थात ब्राहम्ण  वंश में जन्म लेने वाला व्यक्ति ही शिक्षक बन सकता था। धीरे-धीरे आधुनिक काल में मनोविज्ञान एक स्वतन्त्र विषय के रूप में उभरकर आयी, जिसने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षक जन्मजात न होकर तैयार किये जाते हैं। इसी विचार धारा को ध्यान में रखते हुए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जाने लगी और प्रशिक्षण प्रदान कर शिक्षक तैयार किये जाने लगे। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद यही शिक्षक विद्यार्थियों को बाल मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षा प्रदान कर उनके सर्वागीण विकास का प्रयास करने लगे। भारत के सभी प्रदेश व केन्द्रशासित प्रदेशों में संचालित विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा प्रतिवर्ष कई लाख शिक्षक तैयार किये जाते हैं।
सन् 1973 में राष्ट्रीय अध्यापक परिषद की स्थापना हुई तथा सन् 1978 में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा अध्यापक शिक्षा का जो प्रारूप प्रस्तुत किया गया उसके द्वारा सम्पूर्ण देश में अध्यापक शिक्षा की व्यवस्था की गयी। सन् 1993 में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद एक्ट बन गया तथा 1 अप्रैल 1995 से राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का क्रियान्वयन हुआ। इसमें अध्यापक शिक्षा के लिये पाठ्यक्रम का विकास किया यह पाठ्यक्रम पूर्ण रूप से नवीन प्रकार का हैं, जिसने छात्र शिक्षण तथा शिक्षण अभ्यास को एक नयी दिशा प्रदान की। एन0 सी0 टी0 ई0 ने धीेरे-धीरे निजी महाविद्यालयों मंें बी0 एड0 पाठ्यक्रम को मान्यता देना प्रारम्भ कर दिया । सन् 1996 से लेकर अब तक अनेक महाविद्यालयों में बी0 एड0 प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा हैं। केवल उत्तर-प्रदेश के ही लगभग 850 महाविद्यालयों मंे प्रतिवर्ष लगभग 1,30,000 युवक-युवतियाँ बी0 एड0 प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इन प्रशिक्षण संस्थाओं का स्तर या तो मध्यम हैं या निम्न स्तर का हैं। जिसकें कारण इन संस्थाओं से प्रशिक्षण प्राप्त अधिकांश विद्यार्थी बेरोजगार घूम रहे हैं। बी0 एड0 ऐसा प्रशिक्षण हैं, जिसमें विद्यार्थियों को जूनियर से माध्यमिक तक की कक्षाओं में शिक्षण करने हेतु तैयार किया जाता हैं। इसके साथ-साथ प्रशिक्षण की एक वर्ष की अवधि (200 दिन) में सैद्धान्तिक तथा प्रयोगात्मक दोनों प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता हैं। इस प्रशिक्षण का स्ववित्तपोषित महाविद्यालय पूर्णतयः मखौल उड़ा रहे हैं। ये निजी महाविद्यालय इस प्रशिक्षण को केवल आमदनी का जरिया बनाये हुये हैं तथा धन के बदले उपाधियाॅ बाँट रहे हैं। और शासन मूकदर्शक बना हुआ तमाशा देख रहा हैं। हमारी सरकार ने अन्य व्यवसायिक प्रशिक्षणों की भाँति बी0 एड0 महाविद्यालयों पर नियन्त्रण हेतु कोई विशेष नियमावली नही बनायी हैं। ये महाविद्यालय नियमों की अनदेखी करते हुए अपनी मनमानी करते हैं। तथा अध्ययनरत् प्रशिक्षणार्थियों से अपने इच्छानुरूप फीस वसूलते हैं और अपने महाविद्यालय के नियमानुसार प्रशिक्षण के मध्य में भी विभिन्न प्रकार से विद्यार्थियों का शोषण भी करते हैं, फलस्वरूप बी0 एड0 प्रशिक्षण की गुणवत्ता निरन्तर गिरती जा रही हैं अधिकांश प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके विद्यार्थी शिक्षण युक्तियों के द्वारा शिक्षण कार्य करने में सक्षम नही हैं। बी0 एड0 प्रशिक्षण की घटती गुणवत्ता के कई कारण हैं उनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हो सकते हैं -
मूलभूत ढाॅचा:-राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के निर्देशानुसार बी0 एड0 पाठ्यक्रम संचालित करने वाले महाविद्यालय के पास (सौ सीटों के लिए) 2500 वर्ग मीटर भूमि, जिसमें 1500 वर्ग मीटर में भवन बना हो तथा 1000 वर्ग मीटर मैदान के रूप में होनी चाहिए। इस बने हुए भवन में दो शिक्षण कक्ष, एक बड़ा हाॅल, पुस्तकालय, वाचनालय प्राचार्य कक्ष, शिक्षक कक्ष, प्रशासनिक कक्ष, अतिथि कक्ष, सेमीनार कक्ष, कार्यालय, कैन्टीन, छात्र एंव छात्राओं के लिए पृथक शौचालय, वाहन खड़ा करने का स्थान, दो भण्डार कक्ष, आदि सुविधाएँ होनी चाहिए तथा बहुउद्देशीय खेल मैदान एंव अतिरिक्त क्रियाकलापों के लिए खुला मैदान आवश्यक हैं।

अधिकांश महाविद्यालय एन0सी0टी0ई0 एवं विश्वविद्यालय निरीक्षण दल के द्वारा किये गये निरीक्षण में सुविधाओं के अभाव में भी बी0एड0 पाठ्यक्रम की मान्यता लेने में सफल हो जाते हैं। ये महाविद्यालय अपने यहा चल रहे अन्य पाठ्यक्रमों के लियें बनाये गये भवन को रंगा-पुताकर बी0एड0 भवन के रूप में दर्शा देते हैं। ऐसी स्थिति में उनके महाविद्यालयों में अन्य कक्षाओं के साथ बी0एड0 की कक्षाएँ भी पूरे प्रशिक्षण के दौरान उन्हंी कक्षा-कक्षों में संचालित होती रहती हैं। तथा प्रशिक्षणार्थी प्रयोगशालाओं, पुस्तकालय, आदि से वंचित रह जाते हैं। क्योकि ये महाविद्यालय अन्य पाठ्यक्रमों की प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों एंव शैक्षिक कक्षों को निरीक्षण के समय क्षणिक रूप से दर्शाकर अपना काम चला लेते हैं और ये निजी महाविद्यालय विभिन्न पाठ्यक्रमों की मान्यता एक ही छोटे से भवन में लेते रहते हैं।
निजी महाविद्यालयों में फर्नीचर एंव संस्थाओं एवं संसाधनों के नाम पर केवल खाना पूर्ति होती हैं। इन महाविद्यालयों में कुर्सी, मेज, शिक्षण सहायक सामग्री, कक्षापयोगी सामग्री, प्रयोगशाला उपकरण, परीक्षण, प्रयोग सामग्री, आदि या तो नाम मात्र के होते हैं या तो बिलकुल ही नही होते हैं। कुछ प्रबन्धकगण ऐसे भी हैं जिनके एक से अधिक महाविद्यालय भी संचालित हैं, वे भौतिक सत्यापन या निरीक्षण के समय अपने दूसरे महाविद्यालयों से फर्नीचर, संसाधन एंव खेल सामग्रियों कों मगा लेते हैं तथा बाद में फिर वापस भेज देते हैं। ऐसी स्थिति में ये निजी महाविद्यालय वही ढाक के तीन पांत रह जाते हैं।
शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारी:- एन0सी0टी0ई0 के नियमानुसार बी0एड0 पाठ्यक्रम की एक यूनिट (100 सीट के लिए) एक प्राचार्य/ विभागाध्यक्ष, सात प्रवक्ता (एक आधारित पाठ्यक्रम तथा छः विषय शिक्षण प्रवक्ता), एक कला शिक्षण प्रवक्ता, एक शारीरिक शिक्षा निदेशक,एक पुस्तकालयाध्यक्ष, एक कार्यालय-लेखा सहायक, एक कार्यालय सगंठन सहायक, एक स्टोर कीपर, एक तकनीकी सहायक, एक प्रयोगशाला सहायक, एक अनुसेवक होना चाहिए। वास्तविक्ता यह हैं कि ये निजी महाविद्यालय कागजों पर सभी पदों की नियुक्तियाँ करके मान्यता प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु अधिकांश महाविद्यालय दो या तीन प्रवक्ताओं एंव एक या दो शिक्षणेन्तर कर्मचारियांे से अपना काम चला लेते हैं। शायद ही कोई ऐसा निजी महाविद्यालय हो जिसमें उपरोक्त समस्त शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारी कार्य कर रहे हों। कुछ महाविद्यालय तो इतने महान हैं कि अनुमोदित एक भी प्राध्यापक न रख कर अपने यहाँ अन्य कक्षाओं में शिक्षण कर रहे प्राध्यापकों से ही बी0एड0 प्रशिक्षणार्थियों का भी शिक्षण करवा लेते हैं। तथा कई महाविद्यालयों में तो बी0 एड0 की कक्षाएँ ही नही चलती।

शिक्षको की योग्यता, वेतन एंव कार्य:- एन0सी0टी0ई0 के नियमानुसार बी0एड0 विभागाध्यक्ष/प्राचार्य की योग्यता परास्नातक 50 प्रतिशत, एम0एड0 55 प्रतिशत, शिक्षा शास्त्र में नेट या डाक्टरेट की उपाधि एंव दस वर्ष का शिक्षण अनुभव होना चाहिए। विषय शिक्षण प्रवक्ता हेतु परास्नातक में पचास प्रतिशत, एम0एड0 पचपन प्रतिशत एवं शिक्षाशास्त्र में नेट या डाक्टरेट की उपाधि तथा एक आधारिक पाठ्यक्रम प्रवक्ता हेतु परास्नातक में पचास प्रतिशत के साथ एम0एड/ एम0ए0 शिक्षाशास्त्र पचपन प्रतिशत एवं ंशिक्षाशास्त्र में नेट या डाक्टरेट की उपाधि होनी चाहिए। सभी शिक्षकों का उपरोक्त योग्यता के आधार पर विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदन किया जाता हैं तथा इनको यू0जी0सी0/एन0सी0टी0ई0/राज्य सरकार द्वारा निर्धारित वेतन बैंक खाते के माध्यम से दिया जाना चाहिए। प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष में कुल दौ सौ दिन कार्य दिवस निर्धारित किये गये हैं तथा प्रत्येक सप्ताह में छत्तीस घण्टे शिक्षक एंव विद्यार्थियों को उपस्थित रहना चाहिए
निजी महाविद्यालय समय-समय पर विश्वविद्यालय एंव राज्य सरकारों पर दबाव बनाकर शिक्षकों की न्यूनतम योग्यताओं को कम करवा लेते हैं तथा कम योग्यता वाले शिक्षकों का लम्बे समय के लिये अनुमोदन करा लेते हैं क्योंकि ये शिक्षक कम वेतन पर काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं तथा बी0एड0के साथ-साथ बी0ए0/बी0एस-सी0/एम0ए0/एम0एस-सी0/एम0काम आदि कक्षाओं में भी शिक्षण कार्य करते रहते हैं। इन महाविद्यालयांे में योग्य शिक्षकों का भी शोषण बड़े सुनियोजित ढ़ग से किया जाता हैं। उनकों भी निर्धारित पूरा वेतन नही दिया जाता। हमारे देश का शायद ही कोई निजी महाविद्यालय हो जो यू0जी0सी0 द्वारा निर्धारित वेतन व भत्ता देता हों। कई ऐसे भी महाविद्यालय है जो योग्य शिक्षकों का अनुमोदन करा लेते हैं और उनसें विभिन्न प्रकार के शपथ पत्र वेतन की चेक बुक पर हस्ताक्षर भी करा लेते हैं। इन निजी महाविद्यालयों में अधिकांशतः विभागाध्यक्ष/ प्राचार्य केवल कागजों पर ही नियुक्त किये जाते हैं तथा वर्ष में तीन या चार बार आने का आपसी समझौता कर लिया जाता हैं।
शिक्षण शुल्क:- शासन के नियमानुसार अलग-अलग प्रदेशों में बी0एड0 पाठ्यक्रम के लिये सरकार के द्वारा लगभग तीस हजार रूपये शिक्षण शुल्क निर्धारित किया गया हैंे परन्तु निजी महाविद्यालयों में शुल्क का ऐसा मकड़जाल बुन रखा हैं कि जो बी0एड0 प्रशिक्षणार्थी एक बार इनके चंगुल में फस जाता हैं वह इनके द्वारा बनाये गये शिक्षण शुल्क को देने के लिये मजबूर हो जाता हैं। ये निजी महाविद्यालय प्रशिक्षणार्थियों को ऐसा मीठा जहर देते रहते हैं कि इनके द्वारा समय-समय पर की गयी फरमाइशों को चुप-चाप पूरा करते रहते हैं जैसेः- प्रवेश शुल्क, यूनिफार्म शुल्क, प्रयोगात्मक पुस्तिकाओं (किट) का शुल्क, अभ्यास शिक्षण शुल्क, अनुपस्थिति शुल्क, प्रायोगिक परीक्षा शुल्क, परीक्षा शुल्क, अंकतालिका शुल्क, स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र शुल्क, चरित्र प्रमाण-पत्र शुल्क तथा सबसे बड़ा सुविधा शुल्क। कुल मिलाकर प्रत्येक प्रशिक्षणार्थी से लगभग एक लाख रूपया एंेठना इनका मुख्य लक्ष्य होता हैं। इस हिसाब से प्रत्येक निजी महाविद्यालय बी0एड0 के एक इकाई से लगभग एक करोड़ रूपये शिक्षण शुल्क के रूप में वसूल करता हैं।
आज किसी बी0एड0 महाविद्यालयों में बी0एड0 प्रशिक्षण की हो रही दुर्दशा की पूर्ण जिम्मेदारी हमारी सरकार की है क्योंकि उसकी लचर नियमावली ने इन महाविद्यालयों को धनार्जन का अड्डा बनने के लिये पूर्ण छूट दे रखी हैं। ये महाविद्यालय जानते हैं कि नियमो तथा शासनादेशों की धज्जियाँ कैसे उड़ायी जाती हैं। जब कभी  यें किसी प्रकार से फॅस जाते हैं, तो न्यायालय की शरण में जाकर विद्यार्थियो की सहानुभूति तथा अनुकम्पा की दुहाई देकर अपने आप को बचा लेतेे हैं। धन एंव बल का सहारा लेकर महाविद्यालय को कैसे चलाया जाता हैं ये बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।
यदि सरकार को इन निजी महाविद्यालयों में चल रहें बी0एड0 प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर थोड़ा भी ध्यान देना हैं, तो उसे कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। बी0एड0 प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये निम्न बिंदुओं पर विचार किया जा सकता हैं:-
  (1.) बी0एड0 की मान्यता देने से पहले किये जाने वाले निरीक्षण में यह देखना अत्यन्त आवश्यक होता हैं कि उस महाविद्यालय में चल रहे अन्य पाठ्यक्रमों के लिए भवन, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएँ, एवं खेल के मैदान आदि कौन से है। जिससे इन सबको बी0एड0 पाठ्यक्रम के भवन एवं संसाधन के रूप में न दर्शाया जा सके।
(2) इन महाविद्यालयों के कमरों, पुस्तकालय, खेल का मैदान, छात्रावास, कैन्टीन, आदि का उसके मापदण्ड के अनुरूप गहन निरीक्षण कर फोटो ग्राफी व वीडियोग्राफी करानी चाहिए।
(3) इन निजी महाविद्यालयों के पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या उनमें लगी मुहर, स्टाक रजिस्टर तथा प्रयोगशलाओं के उपकरणों की गहन जांच करनी चाहिए इसके साथ-साथ कक्षा-कक्ष शिक्षण के लिए आवश्यक फर्नीचर एवं कक्षापयोगी सहायक सामग्री का भी निरीक्षण करना चाहिए।
(4) अनुमोदित प्राध्यापक ही शिक्षण कार्य करें इसके लिये हम महाविद्यालयों का मासिक या त्रैमासिक औचक निरीक्षण अन्य विभागीय दलों द्वारा कराया जाना चाहिए जिससे इन महाविद्यालयों को निरीक्षण की पूर्व सूचना या उनसे की जाने वाली साठ-गंाठ से बचा जा सकें।
(5) एक प्राध्यापक कई विश्वविद्यालयों एंव राज्यों मंे अनुमोदन न करा सकें इसके लिये एन0सी0टी0ई0 के द्वारा बनायी गयी पहचान संख्या का दृढ़ता  से पालन किया जाना चाहिए तथा ऐसे लोगो को चिन्हित कर उन्हें दोबारा कही भी शिक्षण कार्य का अवसर न दिया जाये।
(6) अनुमोदित प्राध्यापकों से केवल बी0एड0 का ही शिक्षण कराया जाय उन्हें अन्य कक्षाओं के शिक्षण के लिये बाध्य न किया जाय।
(7) प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों एंव महाविद्यालयों में संचालित बी0एड0 शिक्षण शुल्क एक समान निर्धारित कर उसको अपने कोष में जमा कराना चाहिए तथा उस कोष में से शिक्षक एंव शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के वेतन एंव भत्ते की धनराशि रोककर शेष धनराशि को इन निजी महाविद्यालयों को स्थानान्तरित कर देनी चाहिए।
(8)  सरकार को शिक्षक एवं शिक्षण्ेात्तर कर्मचारियों के वेतन की जिम्मेदारी स्वयं लेनी चाहिए तथा यह धनराशि लिये गये शिक्षण शुल्क से प्रति माह स्थानान्तरित करनी चाहिए जिससे शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का आर्थिक शोषण न हो सकें।
(9) प्रत्येक राज्य एंव उसमें संचालित सभी विश्वविद्यालय के शिक्षक एंव शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की योग्यता एन0सी0टी0ई0 एंव यू0जी0सी0 के नियामानुसार एक समान होनी चाहिए।
(10) सरकार को उन सभी निजी महाविद्यालयों की मान्यता तुरन्त समाप्त कर देनी चाहिए जहाँ पर विद्यार्थियों का किसी भी प्रकार से शोषण हो रहा हैं।
(11)  शिक्षक विहीन, संसाधन विहीन तथा नियमित कक्षाएँ न चलाने वाले महाविद्यालयों के विरूद्ध सरकार को सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।
(12) प्रत्येक शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय को नैक (छ।।ब्) का प्रमाणपत्र लेना आवश्यक किया जाना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार की ढील नही दी जानी चाहिए।
(13) सरकार को सभी महाविद्यालयों से एक ऐसा शपथपत्र भी लेना चाहिए जिसमें यदि वे बनाये गये शासनादेश एंव नियमावली का उल्लघंन करें, तो उनकी मान्यता समाप्त कर दी जाय। तथा वे इसके विरूद्ध किसी भी प्रकार से न्यायिक शरण लेकर अपने को न बचा सकें।
(14)  सरकार को निजी महाविद्यालयों में संचालित बी0एड0 प्रशिक्षण हेतु किसी भी प्रकार का प्रबन्धकीय कोटा नही देना चाहिए।
पूर्वोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि उक्त सुझावों में से मुख्यतः हमारी सरकार को प्रवेश  प्रक्रिया, शिक्षण शुल्क, महाविद्यालय में भौतिक संसाधनों, शिक्षकों की गुणवत्ता, विद्यार्थियों से होने वाली धन उगाही आदि पर जल्द से जल्द ध्यानाकर्षण करना होगा और कठोर से कठोर नियम बनाकर गुणवत्ता परक प्रशिक्षपण प्रदान करने का संकल्प पूरा करना होगा, जिससे ये प्रशिक्षणार्थी गुणवत्तापरक शिक्षण कार्य करते हुए भविष्य के कर्णधारों का शिक्षा के द्वारा उन्नयन कर सके।
संन्दर्भ ग्रन्थ-
1. अग्निहोत्री, रविन्द्र ‘‘आधुनिक भारतीयशिक्षा: समस्याएँ और समाधान’’ राजस्थान ग्रन्थ अकादमी, जयपुर
2. आत्माराम भारत वर्ष में प्राइमरी शिक्षा’’, प्रथम संस्करण जीवन ज्योति प्रकाशन दिल्ली 2004
3. कुरूक्षेत्र प्रकाशन विभाग ग्रामीण विकास मन्त्रालय नई दिल्ली सितम्बर 2002, नवम्बर 2002, सितम्बर 2010 वर्ष 56 मासिक अंक 11
4. सिंह, अजीत एवं झा ब्रजभूषण प्राथमिक शिक्षकों का जीवन कला में प्रशिक्षण’’, प्राइमरी शिक्षक जुलाई 2001 पृष्ठ सं0 35 एन0सी0ई0 आर0टी0 नई दिल्ली।
5. ैपदहीए ैनदपस ज्ञनउंत रू च्तवइसमउ व िचतम ैमतअपबम जमंबीमते जतंपदममे कनतपदह चतंबजपबम जमंबीपदह व िजमंबीमते मकनबंजपवद चतवहतंउण्ष् प्दकपंद म्कनबंजपवद त्मअपमू श्रंदनंतल 2008ए च्ंहम छवण् 124 छब्म्त्ज् छमू क्मसीपण्
6. विश्वकर्मा, वी0पी0 ‘‘अध्यापक शिक्षा विश्वविद्यालय की स्थापना’’, प्राइमरी शिक्षक अक्टूबर 2004 पृष्ट सं0 25 एन0सी0आर0टी0 दिल्ली।
7. ीजजचरू ध्ध्ूूूण्दबजम.पदकपंण्वतहण्