Friday 1 July 2011

मीडिया और सूचना का अधिकार


डा0 शिवम् चतुर्वेदी

मीडिया और सूचना का अधिकार दोनों ही बीती सदी के उत्तरार्द्ध में लोकप्रिय हुई अवधारणएं है। दोनो को अवधराणाओं के रूप में भी देखा जा सकता है और व्यवस्था के रूप में भी। सत्तर के दशक में अमेरिका और इराक-अमेरिका के 1991 कें युद्ध से उपग्रह संचार ने भारत में अपनी लोकप्रियता बढ़ानी शुरू की और आज मीडिया इतना महत्वपूर्ण कारक हो गया है कि शोध अध्ययनों में केबल टेलीविजन के पूर्व समाज और केबल टेलिविजन के बाद के समाज को आधार मानकर अघ्ययन हो रहे हैं।
मीडिया और सूचना का अधिकार का अन्योन्याश्रित संबंध हैं। मीडिया में ही सूचना का अधिकार के हनन की बात सबसे पहले उठती है दूसरे शब्दों में कहें तो व्यवस्था के मानदण्डों से या किसी निर्णय से व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से सूचना का अधिकार प्रभावित होते हैं तो सर्वप्रथम मीडिया ही वह माध्यम होता जिसके सहारे व्यक्ति या संस्थाएं अपना विरोध दर्ज करती है। अतः मीडिया और सूचना का अधिकार एक दूसरे के पूरक बन गये हैं। कई बार यह भी सवाल उठाया जाता है कि सूचना का अधिकार कार्यकर्ता मीडिया का अनुचित इस्तेमाल कर सरकार या शासन पर अनावश्यक दबाव बनाते हैं। ऐसी स्थिति में मीडिया का विशेष रूप से इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि किस प्रकार मसलोें को अठाया जाये जिससे एक ओर तो सूचना का अधिकार के हनन के मामलों में भी कमी आये, मीडिया और सूचना का अधिकार की आड़ लेकर किसी गलत बात के समर्थन में इस व्यापक तंत्र का दूरूपयोग रोका जाये।
भारत में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है जो संविधान की व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है। संविधान की धारा 19 (1) में वाक एवं अभिवयक्ति के अधिकार की स्वतंत्रता दी गयी है और धारा 19 (1) ठ में उन परिस्थितियों का वर्णन है, जिनमें वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्ति-युक्त निर्बधंन लगाये जा सकते हैं कहने का तात्पर्य है कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल मीडिया को ही प्राप्त नही, बल्कि यह प्रत्येक भारतीय नागरिक को प्राप्त है। मीडिया के संदर्भ में इसका महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि इस स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा और सबसे असरदार उपयोग मीडिया के द्वारा ही होता है।
सूचना का अधिकार मानवीय गरिमा और मूल्यों के अनुसार व्यक्ति विशेष को किसी भी व्यवस्था में सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार मुहैया कराती है। लेकिन सत्ताओं के अतिक्रमण से अनेक बार व्यक्ति और संस्थाओं के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, ऐसी दशा में यह निर्णय करना बहुत महत्वपूर्ण और संवेदनशील हो जाता है  की किसी घटना विशेष में वास्तव में सूचना
का अधिकार का हनन हुुआ है की नही। दूसरे शब्दों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यदि व्यक्ति की स्वयं की गोपनीयता में मर्यादित होती है तो सूचना का अधिकार के बारे में भी यह निर्णय कठिन होता है कि अमुख परिस्थिति में सूचना का अधिकार का अधिक हनन हो रहा है या व्यापक समाजहित में ऐसा करना आवश्यक है। इसलिए सूचना का अधिकार की व्याख्याओं पर प्रश्न उठते हैं। यह सच है कि मनमर्जी के मुताबिक होने लगता है तो इस सम्पूर्ण अवधारण में ही कुछ खोट नजर आती है, जहाॅ तक मानव को मानवीय गरिमा से जीवन जीने का मौका देने की व्यवस्था के रूप में सूचना का अधिकार का प्रश्न है यह सर्वथा उचित और अनुकरणीय है। लेकिन जब इनकी आड में किसी देश की सभ्यता और संस्कृति पर  कुठारघात या अपने आर्थिक हितों का संरक्षण किया जाता है तो इस पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
सूचना का अधिकार वस्तुतः पश्चिम की अवधारणा है क्योकि वसुधैव कुटुम्भकम को जीवन का प्रेरणा सिंद्धांत मानने वाली भारतीय संस्कृति में सिर्फ मानव ही नही प्रकृति, पर्यावरण ओर पशुओं के अधिकार के व्यापक परिप्रेक्ष में चिंतन मनन किया गया है और समग्र रूप में देखें तो सूचना का अधिकार हमारे संस्कृति में सभी के अधिकारों का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है। दूसरा सूचना का अधिकार एक व्यक्ति वादी अवधारण है जिसमें एक व्यक्ति के अधिकारों को श्रेष्ठ माना गया है। जबकि भारतीय चिंतन कहता है कि एक परिवार के लिए एक गांव को एक राष्ट्र के लिए एक राज्य को और यदि समष्टि के लिए किसी राष्ट्र को छोड़ना भी पड़े तो व्यापक हित में ऐसा करना गलत नहीं है।
सूचना के अधिकार
भारत तथा सम्पूर्ण विश्व में एक लम्बे अरसे से सूचना के अधिकार को नागरिकों की मौलिक अधिकार के रूप में परिभाषित किये जाने की कोशिशें बीते कई दशकों से जारी थी। इस अभियान में जहाॅं कई नामी स्वयंसेवी संगठन सक्रिय थे वहीं राजस्थान जैसे पिछड़े राज्य के गरीब आदिवासी भी इस मुहिम को एक नई दिशा रे रहे हैं। अभियान को चलाने वालों को रैमन मैग्सेसे एवार्ड तक मिल गया लेकिन लगता था कि सूचना का अधिकार अभी हमारे लिए दूर की कौड़ी है। केन्द्र में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की उपलब्धियों में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 भी है। जिसके माध्यम से आज जन सामान्य को देश की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों को छोड़कर अन्य सभी विषयों का सरकार से जानने का हक हासिल हो सका है।
2005 में जब सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 पारित हुआ उस समय तक शासकीय व अशासकीय दोनों ही चैनलों में इस पर आधारित कार्यक्रमों की बाढ़ सी आ गयी। निजी चैनलों द्वारा घूस को घॅंूसा अभियान के तहत इससे सम्बंधित खबरों व कार्यक्रमों का जमकर प्रसारण किया गया। इसमें एन0 डी0 टी0 वी0, इण्डिया व जी0 न्यूज की भूमिका महत्वपूर्ण थी। कालान्तर में निजी चैनलों के यह कार्यक्रम सुस्त हो गये और वर्तमान यदाकदा ही इस विषय पर कार्यक्रम अथवा रिपोर्ट निजी चैनलों में दिखई पड़ती है।
2005 में ही डी0 डी0 न्यूज पर तत्कालीन सलाहकार श्री पंकज शंकर द्वारा जानने का हम नाम का साप्ताहिक कार्यक्रम आरम्भ किया गया जो उनके चैनल छोड़ने के बाद भी अभी तक जारी है। साथ ही समय-समय पर सभी पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा इस विधेयक की जानकारी दी जाती है तथा लागों को जागरूक किया जाता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
नागरिकों के सूचना के अधिकार हेतु व्यावहारिक राज्यक्रम स्थापित करने, लोक प्राधिकारों के नियंत्रणाधीन सूचना तक पहुॅंच सुनिश्चित करने, प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कार्यों की पारदर्शिता और जबाबदेही हेतु केन्द्रिय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, भारत के संविधान में लोकतंत्रात्मक  गणतंत्र को स्थापित किया, लोकतंत्र की मांग की एक संसूचित नागरिक और सूचना की पारदर्शिता जो कि इसके कार्यकरण हेतु प्राणभूत है और भ्रष्टाचार को रोकने तथा सरकार और उसके अंगो को शासितों के प्रति जबाबदेही बनाने हेतु ऐसी अवस्था में सूचना के प्रकटीकरण के वास्तविक व्यवहार में दूसरे हितों से संघर्ष हो सकता है। जिसके अन्तर्गत सरकारों के पर्याप्त अभियानों सीमित वित्तीय साधनों का उपयोग तथा संवेदनशील सूचना की गोपनीयता के संरक्षण सम्मिलित है।
ऐसी अवस्था में यह आवश्यक है कि इन विरोधी हितों में समन्वय बनाया जाए। लोकतांत्रिक मूल्यों की सर्वश्रेष्ठता को संरक्षित किया जाय। अब इसलिए यह समीचीन है कि कुछ निश्चित सूचनाओं को नागरिकों को प्रदत्त किया जाये, जो इसे पाना चाहते है। सूचना के अधिकार के मुख्य प्रावधान इस प्रकार स्पष्ट किये जो सकते हैं।
संक्षिप्त नाम, विस्तार और आरम्भ
1. यह अधिनियम सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 कहा जा सकेगा।
2. यह जम्मू-कश्मीर के शिवाय सम्पूर्ण भारत पर लागू होगा।
3. धारा 4 की उपधारा (1) धारा 5 की उपधारा (1) व (2) धारायें 12, 13, 15, 16, 24, 27 व 28 के प्रावधान तत्काल प्रभावी होगें और इस अधिनियम के शेष प्रावधान इसके अधिनियम के (एक सौ बीसवें दिन) प्रभावी होगंे।
परिभाषायें- इस अधिनियम में जबतक की सन्दर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो-
(क) ‘‘समुचित सरकार‘‘ से किसी लोक प्राधिकारी से सम्बन्ध में जो कि स्थापित, गठित स्वामित्ववाली नियंत्रित या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रदत्त निधियों द्वारा वित्तपोषित -
1- केन्द्र सरकार या केन्द्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा केन्द्रीय सरकार से।
2- राज्य सरकार द्वारा राज्य सरकार से अभिप्रेत।

(ख) केन्द्रिय सूचना आयोग से तात्पर्य धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन गठित केन्द्रिय सूचना आयोग से है।
(ग) केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से तात्पर्य धारा 5 की उपधारा (ं1) के अधीन परिभाषित केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से है तथा इसके अन्तर्गत धारा 5 की उपधारा (2) के अधीन वैसे ही परिभाषित केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी है।
(घ) मुख्य सूचना अधिकारी से तात्पर्य धारा 12 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्त से है।
(ड) सक्षम प्राधिकारी से निम्न अभिप्रेत है-
1- लोक सभा या राज्य सभा की विधान सभा या ऐसा केन्द्र शासित प्रदेश जहाॅ पर विधान सभा है कि दशा में स्वीकार और राज्य सभा या राज्यों की विधान परिषद का सभापति।
2- उच्चतम न्यायालय की दशा में भारत के मुख्य न्यायाधीश।
3- उच्च न्यायालय की दशा में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।
4- संविधान द्वारा या उसके अधीन स्थापित या सृजित अन्य प्राधिकारियों की दशा में राष्ट®पति या राज्यपाल जैसी भी स्थित हो।
5- सविधान के अनुच्छेद 239 में अधीन नियुक्त प्रशासक।
(च) सूचना से तात्पर्य किसी भी सामग्री से है जो किसी भी प्रारूप में हो जिसके अन्तर्गत अभिलेख, दस्तावेज, मेमोज, ई-मेल्स, सलाह, प्रेस रिलीज, परिपत्र आदेश, लाॅग बुक्स, संविदायें, रिपोर्टस, नमूने, पेपर्स, माॅडल्स, आंकड़े जो कि इलेक्ट्रानिक प्रारूप में है तथा सूचना जो कि किसी भी प्राइवेट व्यक्ति से सम्बन्धित है जिस तक लोक पदाधिकारी की पहुच किसी अन्य विधि के अधीन जो तत्समय प्रवृत्त हो।
(छ) ‘विहित‘ से तात्पर्य समुचित सरकार या सक्षम पदाधिकारी जैसी भी स्थिति हो द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाये गये नियमों द्वारा विहित किये जाने से अभिप्रेत है।
(ज) लोक पदाधिकारी से तात्पर्य कोई पदाधिकारी या निकाय या स्वशासी गठित संस्था-
1- संविधान के द्वारा या उसके अधीन
2- किसी अन्य विधि के द्वारा जो संसद द्वारा जो संसद द्वारा बनायी गयी है।
3- किसी अन्य विधि के द्वारा जो राज्य विधायिका द्वारा बनायी गई है।
4- समुचित सरकार द्वारा निर्गत अघिसूचना या  आदेश और जिसके अन्र्गत कोई-
स्वामित्व वाला निकाय, नियंत्रित या आनुषंगिकतः वित्तपोषित,
गैर सरकारी संगठन जो कि अनुषंगिकताः वित्तपोषित है।
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समुचित सरकार द्वारा प्रदत्त निधि से पोषित है इसके अन्तर्गत आता है।
(झ) अभिलेख के अन्तर्गत
1- कोई दस्तावेज पाण्डुलिपि एवं फाइल
2- किसी दस्तावेज की माक्रोफिल्म
3- उस माइक्रो फिल्म् चाहे वे बड़े आकार में हो या नहीं में समाविष्ट छवि या छवियों का कोई प्रतिरूप
4- कम्प्यूटर या किसी अन्य उपकरण द्वारा उत्पन्न अन्य कोई सामग्री
(´) सूचना का अधिकार से तात्पर्य उस सूचना के अधिकार से है जो इस       अधिनियम के अधीन  पहुंच के अन्तर्गत है तथा जो लोक पदाधिकारी द्वारा निर्धारित है या उसके नियंत्रणाधीन है और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित    अधिकार भी है।
1- कार्य दस्तावेजों, अभिलेखों का निरीक्षण।
2- टिप्पणियों, लेखांशों या दस्तावेजों अथवा अभिलेखों की प्रमाणित प्रतिलिपि लेना ।
3- नमूने सामग्री की प्रमाणित प्रतिलिपि लेना।
4- डिस्केट्स फ्लापियां टेप्स, विडियों कैसेट्स या अन्य किसी इलेक्ट्रानिक माध्यम से अथवा प्रिंट आउट के माध्य से जहां वह सूचना कम्प्यूटर या अन्य किसी उपकरण में संग्रहित प्राप्त करना है।
(ट)- राज्य सूचना आयोग से तात्पर्य धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन सृजित राज्य सूचना आयोग से है
(ठ)- राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त से तात्पर्य धारा 15 की उपधरा (3) के अधीन नियुक्त राज्य मुख्य सूचना आयुक्ति और राज्य सूचना आयुक्त से है।
(ड) राज्य लोक सूचना अधिकारी से तात्पर्य धारा (1) के अधीन पदाभिरित राज्य लोक सूचना अधिकारी से है। तथा इसके अन्तर्गत धारा 5 की उपधारा (2) के अधीन पदासीन सहायक लोक सूचना अधिकारी भी सम्मिलित है।
(ट) पर व्यक्ति से तात्पर्य सूचना की प्रार्थना करने वाले व्यक्ति से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति से है तथा इसके अन्तर्गत लोक प्राधिकारी सम्मिलित है।
केन्द्रीय सूचना आयोग की गतिविधि
(1) केन्द्रीय सरकार शासकीय गजट में अधिसूचना द्वारा केन्द्रीय सूचना आयोग नामक निकाय का गठन इस अधिनियम के अधीन दी गयी शक्तियों के प्रयोग और दिए गए कार्यों को सम्पादित करने के लिए करेगी।
(2) केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन निम्नलिखित से  होगा-
(क) मुख्य सूचना आयुक्त और
(ख) दस से अधिक उतने संख्या में केन्द्रीय सूचना आयुक्त जितना आवश्यक समझा जा सके।
(3) मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्तिम राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की संस्तुति पर की जायेगी जो अधोलिखित को मिलाकर बनेगी।
1- प्रधानमंत्री जो समिति का अध्यक्ष होगा।
2- लोक सभा में विपक्षी दल का नेता और
3- एक संघीय कैबिनेट मंत्री जो प्रधामंत्री द्वारा मान निर्देशन किया जाएगा।
4- केन्द्रीय सूचना आयोग के मामलों का सामान्य पर्यवेक्षण, निर्देशन और     प्रबंधन मुख्य सूचना आयुक्त में निहित होगा जिसकी सहायता सूचना आयुक्तों द्वारा की जायेगी और वह सभी ऐसी शक्तियों का प्रयोग और उन सभी कार्यों का, वस्तुओं का जिनका प्रयोग केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा स्वायत्तः इस अधिनियम के अधीन बिना किसी अन्य प्राधिकारी के निर्देशों के              अध्यधीन किया जा सकेगा या किया जाएगा, कर सकेगा।
5- मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तगण सार्वजनिक जीवन        ख्यातिलब्ध व्यक्ति होगे जिनके पास विधि, विज्ञान और तकनीकि, सामाजिक सेवा, प्रबन्ध, पत्रकारिता जन संचार या प्रशासन और शासन का विशद ज्ञान और अनुभव होगा।
6- मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त संसद का किसी राज्य या संघ शासित क्षेत्र के विधान मण्डल, जैसी भी स्थिति होने के सदस्य नहीं होंगे या कोई अन्य लाभ का पद या किसी राजनीतिक दल से सम्बन्धित या कोई व्यापार या कोई वृत्ति को धारण नहीं करेंगे।
7- केन्द्रीय सूचना आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा और केन्द्रीय सूचना आयोग के केन्द्र सरकार की पुर्वानुमति से भारत में अन्य स्थानों पर कार्यालयों को स्थापित कर सकेगा।
पदावधि और सेवा में-
1- मूख्य सूचना आयुक्त अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद       धारण करेगा और पुनर्नियुक्ति हेतु पात्र नही होगा। परन्तु यह कि मुख्य सूचना आयुक्त पैसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने पर अपने पद पर नही बना रहेगा
2- प्रत्येक सूचना आयुक्त अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि या जब वह पैसठ वर्ष की उम्र का हो जाए दोनों में से जो पहले तक पद पर बना रहेगा और सूचना आयुक्त के रूप में पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।
परन्तु यहाॅ कि प्रत्येक सूचना आयुक्त अपने पद को इस उपधारा के अधीन खाली करने पर धारा 12 की उपधारा (3) के अधीन उपबन्धित ढ़ग से मुख्य आयुक्त के रूप में निर्वाचन हेतु पात्र होगा।
3- मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त व्यक्ति के समक्ष प्रथम अनुसूची में इस प्रायोजन हेतु  दिये गये प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपना हस्ताक्षर करेगा।
4- मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त किसी भी समय राष्ट्रपति को   सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख् द्वारा अपना पद त्याग सकेगा। परन्तु यह कि मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त धारा 14 में उपबन्धित रीति से हटाया जा सकेगा।
5- संदेय वेतन और भत्ते तथा अन्य सेवा शर्तो के सम्बन्ध में-
(क) मुख्य सूचना आयुक्त मुख्य निर्वाचन आयुक्त से समकक्ष होगा।
(ख) सूचना आयुक्त निर्वाचन आयुक्त के समकक्ष होगा। परन्तु यह कि अगर मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त अपने नियुक्ति के समय भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में कोई पेंशन प्राप्त करता है तो मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त के रूप में सेवा करने पर उसका वेतन उस पेंशन की धनराशि तक घटा दिया जाएगा। जिसके अन्तर्गत पेंन्शन का कोई भाग जो एक मुश्त अदा कर दिया गया था  और सेवा निवृत्ति के अन्य लाभ के तुल्य पेंन्शन जिसमें सेवा निवृत्ति की ग्रेच्यूटी के तुल्य पेन्शन सम्मिलित नही होगा।
विकास मानव समाज की मौलिक विकास की जीवन्तता है। प्रकृति अपने विकास में रूकती नही, वह सदैव गतिशील है। विकास का अर्थ परिवर्तन है जो समाजहित में अनुरूप होता है। समाज के चैमुखी विकास के लिए संचार अनिवार्य है। जन संचार के माध्यम से सूचना के आदान प्रदान की क्षमता ने मानव के सामाजिक क्षेत्र को विस्तृत किया है। परिवर्तन स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगा। मुद्रण कला का आविष्कार संचार क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति आगे चलकर विचारों की क्रान्ति सिंद्ध हुई। आकाशवाणी, दूरदर्शन तथ कम्प्यूटर  ने मनुष्य की क्षमताओं को विस्तृत करके उसे आश्वस्त किया है।
आधुनिक यांत्रिक विकास ने मनुष्य के विकास को सकारात्मक रूप से सभी आयामों पर प्रभवित किया। संचार जगत भी उससे अछूता नही रह सका। संचार के यांत्रिक विकास की यात्रा प्रिंटिंग प्रेस, फिल्म, रेडियो, टी.वी. से होती हुई उपग्रह तक पहुंच गई है। इसकी विकास यात्रा का अंत कहां होगा इस संदर्भ में कुछ भी कहना संभव नही है।
टेलविजन जन संचार का सर्वाधिक प्रभावशाली अपेक्षाकृत नया माध्यम है।   ध्वनि के साथ चित्रों को प्रेषित करने के कारण इससे मानवीय संवेदना एवं व्यक्तित्व को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए दर्शक पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। इस दृश्य श्रव्य माध्यम की कोई भौगोलिक सीमा न होने के कारण इसे सार्वभौमिक माध्यम भी कहा जाता है। टेलीविजन के आविष्कार से संचार जगत में युगान्तरकारी परिवर्तन आया है इस माध्यम के द्वारा सुदूर घटी किसी धटना का दर्शन हू-ब-हू होता है। प्रेस और रेडियों की कमियों और सीमाओं को दूरदर्शन ने लगभग खत्म कर दिया है।
भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के परिप्रेक्ष्य में देखें तो जन माध्यम अनौपचारिक शिक्षक की भूमिका निभाते हैं। पर्यावरण संरक्षण की बात हो, एड्स के प्रति जागरूकता, सृजन की बात या सूचना के अधिकार के प्रति चेतना जागृत करने का प्रश्न हो तो जन माध्यमों की भूमिका निश्चय ही महत्वपूर्ण हो जाती है। समय-समय पर जिन विषयों और क्षेत्रों के बारे में जागरूकता सृजन की चुनौती सामने आती है। जन माध्यमों ने अबतक इनका बखूबी निर्वाह किया है और इसमें कोइ संदेह नही की सूचना के अधिकार के प्रति जागरूकता और चेतना के सृजन में   जनमाध्यमों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
सूचना के अधिकार के बारे में जागरूकता सृजन के मामले में जन माध्यमों की भूमिका निश्चय ही महत्वपूण है चाहे वह निजी चैनल हो अथवा शासकीय चैनल हो। भारत में दूरदर्शन को सामुदायिक विकास के उपकरण के रूप में अपनाया गया और इसकी पहचान भी सामाजिक परिवर्तन के उपकरण के रूप में किये जाने की कोशिश सदा चलती रही।