Friday 1 July 2011

यू0 पी0 में कांग्रेस कमेटी का गठन एवं तत्कालीन परिदृश्य


- प्रवीण कुमार मिश्र
शोध छात्र

ख् किसी भी कमेटी का गठन, समय की माँग पर कुछ लोगों के द्वारा किया जाता है। भारत में बड़े गंभीर विद्रोह की संभावना को देखकर ए0 ओ0 ह्यूम ने वायसराय लार्ड डफरिन की राय तथा उदारवादी भारतीय विद्वानों के सहयोग से, सेफ्टी वाल्व के रूप, सन् 1885 ई0 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की।  भारत का क्षेत्र विस्तार होने, संचार माध्यमों के अभाव तथा अपने उद्देश्य को सफल न होते देख कर यह निर्णय लिया गया कि अपने-अपने क्षेत्रों में समितियाँ गठित की जाएँ। फलस्वरूप सन् 1907 ई0 में यू0 पी0 में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया। यह राजनीतिक उथल-पुथल का युग था। बंगाल विभाजन से राजनीतिक माहौल गरम था। उधर कांग्रेस में नरम तथा गरम दल ने आपस में भिड़ कर मामले को गंभीर कर दिया। ,
भारत वर्ष के इतिहास में संयुक्त प्रान्त या उत्तर प्रदेश की अपनी सत्ता और महत्ता है। यहाँ के अनेक नेताओं ने जहाँ एक ओर राष्ट्रीयता एवं स्वतंत्रता की अलख जलाई, वहाँ तन-मन-धन से देश को समर्पित रहे। यद्यपि कांग्रेस की केन्द्रीय समिति को स्थापित हुए, कई वर्ष बीत चुके थे और ये लोग अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुए थे, अतः इन लोगों ने आवश्यकता महसूस की कि प्रान्तीय स्तर पर कांग्रेस कमेटी का संगठन किया जाए, जिससे कार्य सुचारू रूप से चल सके। उधर गरम दल का भी उदय हो चुका था, जो जल्द से जल्द देश को स्वतन्त्र देखना चाहते थे। विचारों के इस मंथन ने यू0 पी0 में कांग्रेस कमेटी की स्थापना में पृष्ठभूमि का कार्य किया।
सन् 1898 ई0 के मद्रास के कांग्रेस अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया था कि जो समितियाँ पहले से ही गठित हैं, वे अपने-अपने क्षेत्रों में कांग्रेस की कमेटियाँ गठित करें। लेकिन संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) में इसे दिसंबर, सन् 1906 तक मूत्र्त रूप नहीं दिया जा सका। 26 दिसंबर, सन् 1906 ई0 को कलकत्ता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जिसमें प्रस्ताव सं0 16 द्वारा यह निश्चय किया गया - ‘‘प्रत्येक प्रान्त अपनी राजधानी में उस तरह से प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी का संगठनकरे, जिस तरह कि सम्मेलन में निश्चय किया जाए। कांग्रेस के तमाम विषयों में प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी प्रान्त की ओर से कार्य करेगी।’’
इस क्रम में सन् 1907 ई0 में संयुक्त प्रान्त में भी कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया। कांग्रेस के जन्म के प्रारंभ से ही इस प्रान्त के कुछ गणमान्य नेता कांग्रेस की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे। कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में उत्तर प्रदेश से कुल 8 लोगों ने हिस्सा लिया - जिसमें गंगा प्रसाद वर्मा, प्राणनाथ पंडित, मंुशी ज्वाला प्रसाद, जानकीनाथ घोषाल, रामकली चैधरी, बाबू जमुनादास, बाबू शिवप्रसाद चैधरी, लाल बैजनाथ थे।
कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन में यू0 पी0 के कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह ने अपने ओजपूर्ण सारगर्भित एवं स्वाभिमानपरक भाषण से अधिवेशन में आए हुए प्रतिनिधियों में अंग्रेजी सरकार के सामने घुटना टेकू प्रवृत्ति के विरुद्ध  स्वाभिमान जगाया। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े प्रश्नों पर विचार के लिए एक समिति गठित कर सदस्यों का चुनाव किया। जिनमें लखनऊ के गंगा प्रसाद वर्मा, प्राणनाथ पंडित, नवाब रजा अली खान, हामिद अली और इलाहाबाद के मुंशी काशी प्रसाद शामिल थे। इस अधिवेशन के बाद ही विचार-विमर्श के उपरांत कांग्रेस के विचारों के भली-भांति विस्तार के लिए इलाहाबाद कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष पं0 अयोध्यानाथ और सचिव राजा रामपाल सिंह थे।
कांग्रेस के मद्रास में सम्पन्न तीसरे अधिवेशन के अध्यक्ष बदरूद्दीन तैय्यब अली द्वारा घोषित सब्जेक्ट्स कमेटी में संयुक्त प्रान्त से राजारामपाल सिंह, पं0 मदन मोहन मालवीय, रामकली चैधरी एवं मौल्लवी हामिद अली को स्थान मिला। मद्रास अधिवेशन में ही पार्टी की कार्यपद्धति तथा संविधान को निर्माण करने के लिए एक विधि समिति का गठन हुआ जिसमें यू0 पी0 से गंगा प्रसाद वर्मा, मौलवी हामिद अली एवं विशन नारायण दर को सम्मिलित किया गया। इसके उपरांत सन् 1888 एवं सन् 1892 में इलाहाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन ने संयुक्त प्रान्त में कांग्रेसी विचारधारा में नई जान फूंक दी,  क्योंकि इस अधिवेशन में उपस्थित प्रतिनिधियों में से लगभग आधे संयुक्त प्रान्त के ही थे। यू0 पी0 में ही आयोजित वर्ष 1899 के लखनऊ अधिवेशन में जिसमें 82 प्रतिशत से भी अधिक उ0 प्र0 के ही प्रतिनिधियों का सहभाग रहा। इसी अधिवेशन में कांग्रेस का प्रथम संविधान स्वीकार हुआ। इस संविधान के अनुसार प्रादेशिक कमेटियों के गठन का भी निश्चय किया गया तथा साथ ही साथ इन कमेटियों के लिए दायित्व का भी निर्धारण किया गया। जिसके अनुसार कमेटी पूरे वर्ष बैठक, सम्मेलन इत्यादि करके संवैधानिक ढंग से सरकारी नियमों में कमियों को दूर कराने का प्रयत्न करेगी।
कांग्रेस के प्रतिनिधि स्थानीय स्तर पर अपने ढंग से कार्यक्रम का संचालन करते रहे लेकिन विशेषकर यू0 पी0 में प्रादेशिक समिति के गठन में थोड़ा विलम्ब हुआ। इधर सन् 1905 में बंगाल का विभाजन हो गया जिससे देश में एक नया विप्लव उठ खड़ा हुआ। ऐसी स्थिति में राजनीतिक गतिविधि के संचालन के लिए स्थानीय स्तर पर कमेटियों का गठन प्रासंगिक एवं आवश्यक हो गया था। वर्ष 1906 के कलकत्ता अधिवेशन मे ंयह प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि जहाँ प्रादेशिक कमेटियों का गठन नहीं हुआ है, वहाँ-वहाँ कमेटियों का गठन किया जाए ताकि समकालीन राजनीतिक परिदृश्य के माँग के अनुसार राजनीति के अनुरूप यू0 पी0 में विधिवत रूप से प्रादेशिक कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया।
बनारस (1905) एवं कलकत्ता (1906) के कांग्रेस अधिवेशनों में अंग्रेजों की असह्य क्रियाकलापों के विरुद्ध तिलक, लाला लाजपत राय जैसे नेताओं के समर्थकों ने जमकर प्रतिरोध किया जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है। कांग्रेस के अधिवेशनों में उ0 प्र0 के सर्वाधिक प्रतिनिधि भाग लेते रहे। अतएव अधिवेशनों में लिए गए निर्णय तथा नेताओं के भाषण से निर्मित मनोवृत्ति का प्रवाह उ0 प्र0 में सर्वाधिक होना स्वाभाविक था। हालांकि उ0 प्र0 में इलाहाबाद कांग्रेस समिति के नाम से कांग्रेस का संगठन 1886 के बाद से ही कार्यरत था किन्तु इसको व्यापक बनाने एवं कांग्रेस के विचारों को दु्रतगति से आम लोगों तक पहुँचाने के लिए 1906 के कलकत्ता अधिवेशन में किए गए निर्णय के अनुरूप 1907 में औपचारिक रूप से ए0आई0सी0सी0 के उ0 प्र0 में प्रादेशिक इकाई का गठन किया गया। उ0 प्र0 कांग्रेस के स्थापना के साथ कांग्रेस के नेताओं में उदारवादी और कट्टरपंथी नेताओं के बीच में स्पष्ट विभाजक रेखा खिंच गई थी। अतिवादी विचारधारा के लोग कांग्रेसी संगठन पर अपना अधिपत्य चाहते थे जबकि उदारवादी इनको प्रत्येक दशा में संगठन के पद से दूर रखना चाहते थे। कलकत्ता अधिवेशन में सर सुन्दर लाल ने लोकमान्य तिलक से इलाहाबाद आकर व्याख्यान देने का अनुरोध किया। तद्नुरूप 6 जनवरी 1907 को तिलक ने ऐग्लो बंगाली इण्टर काॅलेज, इलाहाबाद के मैदान में व्याख्यान दिया।
इसी समय तिलक ने अपने समर्थकों में सर्वश्री चारूचन्द्र मित्रा, ईश्वर शरण, श्रीकृष्ण जोशी जैसे इलाहाबाद के जाने माने लोगों से मुलाकात की। ज्ञातव्य है कि तिलक की उक्त सार्वजनिक सभा से तथाकथित उदारवादी दूर-दूर ही रहे। हालांकि तिलक की इस सभा मेें छात्रों का प्रबल सहभाग एवं समर्थन रहा।  इसके उपरांत मार्च 1907 में विपिन चन्द्र पाल और अप्रैल 1907 में लाला लाजपत राय ने इलाहाबाद में अपने व्याख्यान दिए। इस प्रकार इलाहाबाद के रास्ते सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में लाल, बाल, पाल ने प्रखर राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रसारकिया। उदारवादी नेताओं ने प्रदेश कांग्रेस पर प्रत्येक दशा में अपना प्रभावी नियंत्रण करना चाहते थे। कलकत्ता अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया था कि प्रादेशिक अधिवेशनों के जरिए प्रादेशिक कांग्रेस कमेटियों का गठन किया जाए। अतः प्रादेशिक कांगे्रस कमेटी का अधिेवेशन आयोजित किया जाना अवश्यंभावी हो गया। हालांकि उदारवादियों की यह सतत् मंशा रही कि प्रखर राष्ट्रवादी लोग इससे दूर ही रहे।
उदारवादी प्रादेशिक कांग्रेस अधिवेशन को अपनी छत्रछाया में करना चाहते थे। अधिवेशन के आयोजन पर विचार करने हेतु आनन्द भवन, इलाहाबाद में एक बैठक हुई जिसमें पंडित प्राणनाथ की अध्यक्षता में 13 सदस्यी कार्यसमिति संगठन हुआ। इस कमेटी पर प्रादेशिक अधिवेशन पूर्व कराने का दायित्व सौंपा गया। यहाँ उल्लेखनीय है कि इस कमेटी में पूर्णतः उदारवादी लोगों को ही स्थान मिला। जिसमें राय रामचरण, दास बहादुर को कोषाध्यक्ष, डाॅ0 सतीश चन्द्र बनर्जी, तेज बहादुर सप्रू, ईश्वर नारायण और राजनारायण गुर्टू को सचिव बनाया गया।
उ0 प्र0 कांग्रेस कमेटी की स्थापना के प्रथम अधिवेशन में आंतरिक मतभेद के अलावा तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियाँ भी एक समस्या रही। बंगाल का कांग्रेस और उसके समान विचारों वाले भारत के राष्ट्रीय गौरव से अभिप्रेरित लोगों ने जहाँ बंगाल विभाजन का सब प्रकार से विरोध किया, वहीं सर सैय्यद अहमद खाँ एवं उनके समान विचार रखने वाले मुस्लिम नेताओं के जिनमें सैय्यद अमीर अली, नवाब अब्दुल लतीफ और मेहदी अली प्रमुख थे के नेतृत्व में मुस्लिम लीग एवं उसके विचारों से प्रभावित मुस्लिम जनता कांग्रेस के गतिविधियों का विरोध करने लगे।
बहरहाल 28 मार्च 1907 को इलाहाबाद में उत्तर प्रदेश कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन होना सुनिश्चित हुआ।  कांग्रेस का अधिवेशन प्रारंभ होने के दिनों में भी भारी उहा-पोह की स्थिति रही। जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है कि लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं की यात्रा इलाहाबाद में उ0 प्र0 कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के आस-पास ही हुई थी। जिससे इलाहाबाद का प्रखर राष्ट्रवादी वातावरण प्रौढ़ होने लगा था। ज्योतिन्द्रनाथ सेन जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं ने अनुभव किया कि कांग्रेस के पास अधिवेशन के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना आवश्यक है। इसके लिए शहर के प्रत्येक वार्ड में तहसील के प्रत्येक गांव में यथा संभव लोगों को अधिवेशन के संबंध में जागरूक किया जाए।  प्रखर राष्ट्रवादियों ने इलाहाबाद के रेलवे थियेटर में अधिवेशन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों का चुनाव किया।  जिसमें ध्यान रखा गया कि प्रत्येक वर्ग के तथा प्रत्येक क्षेत्र के लोगों का इसमें प्रतिनिधित्व हो सके। 200 लोगों को अधिवेशन में भाग लेने के लिए चुना गया। अंततः उदारवादियों के प्रभाव वाली कांग्रेस की कार्यसमिति ने इन लोगों को प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया।
28 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन इलाहाबाद में पं0 मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में शुरू हुआ, जिसमें 133 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जो उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में से आए थे। जिसमें 70 मुफस्सिल प्रतिनिधि भी थे।  इस अधिवेशन में कुल उदारवादी नेताओं की ही उपस्थिति रही जिससे अधिवेशन में उपस्थिति होने वाले प्रतिनिधियों की संख्या काफी कम थी। कार्यसमिति के सचिव ने यह स्वीकार किया कि टेलीग्राम भेजने के बावजूद प्रतिनिधियों की उपस्थिति काफी कम है। इस अधिवेशन में पं0 मोतीलाल नेहरू ने अध्यक्ष पद से बोलते हुए कांग्रेस की माँगों के संबंध में कहा कि हम संवैधानिक आन्दोलनकत्र्ता हैं और जिन सुधारों को हम लाना चाहते हैं वे वैधानिक रूप से गठित सत्ता के माध्यम से ही आने चाहिए। तुम्हारे पास शिकायते हैं और तुम्हें निश्चय ही पुरुषों के समान इन शिकायतों को दूर करने की मांग करनी चाहिए। बहादुर बनो, कभी न झुको, सुधारों को आगे बढ़ाने और उनपर अमल करने के लिए बार-बार प्रयत्नशील रहो।
इस तरह उत्तर प्रदेश के कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन केवल उदारवादियों का उत्सवबनकर रह गया। प्रखर विचारधारा का समर्थक विद्यार्थी वर्ग था जिसने पूर्णरूप से इस अधिवेशन का बहिष्कार किया था। अधिवेशन में उपस्थिति उदारवादियों के आचरण के अनुरूप ही रही, क्योंकि उदारवादियों की मंशा किसी भी प्रखर राष्ट्रवादी को अधिवेशन से दूर-दूर रखने की थी। संगठन की कमेटी पर उदारवादियों का कब्जाा था। उदारवादियों ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए प्रखर राष्ट्रवादियों को एन-केन-प्रकारेण अधिेवशन से दूर ही रखा। परिणामस्वरूप जहाँ राष्ट्रीय अधिवेशनों में उ0 प्र0 से सैकड़ों प्रतिनिधि भाग लेते थे वहीं उत्तर प्रदेश में ही हुए उ0 प्र0 के प्रान्तीय अधिवेशन में कुल 133 लोग ही आए।  इससे कांग्रेस के उद्देश्यों की नींव भले ही कमजोर पड़ी किन्तु उदारवादियों की जिद पूरी हो गई।
इस अधिवेशन में स्वदेशी से संबंधित प्रस्ताव तो पास हो गया किन्तु बहिष्कार के प्रस्ताव को बाहर ही रखा गया। हिन्दू-मुस्लिम एकता से संबंधित प्रस्ताव भी आया, इसके साथा ही साथ शिक्षा का प्रस्ताव भी आया। उ0 प्र0 कांग्रेस का यह प्रथम अधिवेशन यहीं समाप्त हो गया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि यू0 पी0 में कांग्रेस कमेटी का गठन विषम् परिस्थितियों में हुआ। सन् 1905 से ही बंगाल विभाजन से भारतीय जनता आहत थी। विद्रोह की अग्नि भीतर ही भीतर सुलग रही थी। प्रतिरोध के स्वर विभिन्न सभाओं में गूँज रहे थे। लाल बाल पाल जेसे वरिष्ठ नेता भी नयी पीढ़ी एवं उग्रवादियों के साथ थे। उधर कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर उदारवादियों तथा उग्रवादियों में मतभेद था। मुस्लिम नेता भी कांग्रेस की नीतियों का समर्थन नहीं कर रहे थे। चूँकि कांग्रेस का संविधान उदारवादियों ने बनाया था अतएव उसके अनुरूप न होने के कारण बहुत से प्रतिनिधियों को यू0 पी0 कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में भाग नहीं लेने दिया। इस प्रकार यह प्रथम अधिवेशन पूर्णतया उदारवादियों का ही अधिवेशन रहा।
- प्रवीण कुमार मिश्र, शोध छात्र
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर
ग्राम: सेमरी कला, पोस्ट: कनोखर
जिला: मीरजापुर (उ0 प्र0)