Friday 1 July 2011

पंचायती राज में महिलाओं की सहभागिता


                                                                                                                                                                 
  धीरेन्द्र सिंह (शोध छात्र)
   जगतपुर पी0जी0 कालेज, जगतपुर, वाराणसी

प्रस्तावना
          स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् औद्योगीकरण, नगरीकरण, शिक्षा के प्रसार, यातायात एवं संचार साधनों के विकास के परिणामस्वरूप न केवल जीवन शैली व सांस्कृतिक मूल्यों में परिवर्तन आए अपितु सामाजिक संरचना में भी व्यापक परिवर्तन हुए। नये व्यवसायों के प्रादुर्भाव से सामाजिक गतिशीलता को एक नवीन आधार मिला। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया मंे व्यक्ति की स्वतन्त्रता व सामाजिक समानता को संस्थात्मक माध्यम से क्रियान्वित किया गया। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था ने व्यक्ति को समान मताधिकार व भागीदारी का अवसर प्रदान किया है। समानता व स्वतन्त्रता की अवधारणा ने समूहों के परस्पर विभेदों को हटाकर समान अधिकारों के उपभोग की व्यवस्था प्रस्तुत की, दूसरी ओर संवैधानिक प्रावधानों, सामाजिक विधानों, नारी उत्थान से सम्बन्धित समाजवादी, उदारवादी, उग्रवादी आन्दोलनों तथा नारी कल्याण, विकास व अधिकार से सम्बन्धित कार्यक्रमों एवं नीतियों आदि ने न केवल महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक रूप से सशक्त किया वरन् राजनैतिक रूप से जागरूक भी बनाया। पंचायती राज अधिनियम (73वें संविधान संशोधन) ने सोने पर सुहागे का कार्य किया। प्रस्तुत शोधपत्र 73वें संविधान संशोधन में दिए गए एक तिहाई महिला आरक्षण के फलस्वरूप निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के व्यावहारिक कार्यकलाप एवं उनके निर्णयन पर आधारित है ।                                                                          
समग्र एवं प्रतिदर्श
प्रस्तुत शोध उŸार प्रदेश के इलाहाबाद जनपद के समस्त महिला गाम प्रधानों, महिला क्षेत्र पंचायत सदस्यों एवं महिला जिला परिषद् सदस्यों पर आधारित है । जनपद की कुल 1504 निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों मे से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन के लिये कुल 300 महिला प्रतिनिधियों का चुनाव किया। चूंकि पंचायती राज में निर्वाचित महिला ग्राम प्रधानों पर ही पंचायती राज की नींव टिकी हुई है व अपने ग्राम के विकास का गुरूतर दायित्व इन्हें ही निभाना पड़ता है। अतः शोधकर्ता ने कुल 247 महिला ग्राम प्रधानों का चुनाव सोद्देश्यमूलक कोटा निदर्शन पद्वति के आधार पर किया जिनमें से 55 महिला ग्राम प्रधान सामान्य वर्ग की, 150 अन्य पिछड़े वर्ग की थीं व 42 अनुसूचित जातियों की हैं। चूंकि क्षेत्र पंचायत सदस्यों का व्यावहारिक रूप में मुख्य कार्य केवल ब्लाक प्रमुख के निर्वाचन में मतदान करना है व चुनाव करना है, शेष कार्य सैद्वान्तिक हैं। अतः शोधकर्ता ने मात्र 48 महिला क्षेत्र पंचायत सदस्यों को अपने निदर्श में चुना, जिनमें से 10 सामान्य वर्ग की, 28 अन्य पिछड़े वर्ग की व 10 अनुसूचित जातियों की हैं। 29 महिला जिला पंचायत सदस्यों में से शोधकर्ता ने 5 महिलाओं को चुना, जिनमें 2 सामान्य, 2 अन्य पिछड़े वर्ग की व 1 अनुसूचित जाति की हैं।
शोध का उद्देश्य
प्रस्तुत शोध का उद्देश्य निम्न प्रश्नों का उŸार प्राप्त करना रहा है -
1. पंचायती राज व्यवस्था में महिलाएं निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में किस सीमा तक स्वतन्त्र हैं ?
2. इन निर्णयों में उनके पति या अन्य रिश्तेदारों की क्या भूमिका है व इसमें पति या अन्य रिश्तेदार का
       हस्तक्षेप किस सीमा तक है ?
3. इस निर्णय निर्माण प्रक्रिया में महिला की साक्षरता आर्थिक व जातीय प्रस्थिति की क्या भूमिका है?
4. पंचायती राज में महिलाएं अपने राजनीतिक, आर्थिक व संवैधानिक अधिकारों का उपभोग किस सीमा तक
       कर पा रही हैं ?
5. पंचायती राज ने महिलाओं का सशक्तिकरण व सामाजिक गतिशीलता का विस्तार किस सीमा तक किया है ?
6. पंचायती राज में महिलाओं की प्रस्थिति में संरचनात्मक परिवर्तन किस सीमा तक आया है ?
7. निर्वाचित महिलाओं का अन्य महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ा है ?        
 समंक संग्रह प्रविधि                                                
समाज विज्ञान शोध की अध्ययन इकाई व्यक्ति, उसकी अन्तःक्रिया एवं अन्तःक्रिया परक सम्बन्ध, संस्थागत व्यवहार प्रतिमान, मूल्य, सामाजिक आदर्श, सन्दर्भ समूह एवं अन्य सांस्कृतिक विशिष्टताएं होती हैं। इस विशिष्ट स्थिति के साथ-साथ अध्ययन क्षेत्र में प्राप्त अनुभव, शोध विषय से सम्बन्धित साहित्य और पूर्ववर्ती अनुसंधान से शोध सामग्री प्राप्त की गई है तथा अध्ययन के लिये जिन वैयक्तिक इकाईयों का चयन किया गया है, उनसे भी तथ्य संकलित किए गये हैं। निर्धारित अध्ययन में शोध समस्या के लक्ष्य की पूर्ति हेतु तथ्यों के संकलन की विभिन्न वैज्ञानिक प्रविधियों मे से विषय एवं क्षेत्र के लिये उपयुक्त वैज्ञानिक प्रविधि का चयन किया गया है। इस शोध के लिये प्राथमिक तथ्यों के संकलन हेतु साक्षात्कार अनुसूची विधि सर्वोŸाम पायी गई। इसी के साथ अवलोकन पद्धति की उपयोगिता भी महसूस की गई, तदन्तर वैयक्तिक इतिवृŸिा का भी उपयोग किया गया है।
समंक विश्लेषण
संकलित तथ्यों  से यह स्पष्ट होता है कि अधिकांश महिला प्रतिनिधि पर्याप्त शैक्षिक योग्यता न होने के कारण नियमों, कानूनों एवं औपचारिकताओं को सुचारू रूप से समझ नहीं पाती हंै, जिससे वे अपने उŸारदायित्वों का निर्वहन उचित रूप से नहीं कर पाती हैं। निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों में 1 प्रतिशत अशिक्षित, 15.33 प्रतिशत प्राथमिक, 28 प्रतिशत जूनियर, 21.33 प्रतिशत हाईस्कूल, 21.33 प्रतिशत इण्टरमीडिएट, 12 प्रतिशत स्नातक एवं 1 प्रतिशत परास्नातक हैं।ऐसे में महिला प्रतिनिधियों का उच्च शिक्षा प्राप्त अधिकारियों से बात करने में संकोच करना स्वाभाविक है।
  महिलाओं की पारिवारिक पृष्ठभूमि उनके निर्णयन एवं कार्य क्षमता को प्रभावित करती है। एकाकी परिवार की महिलाओं के पास अवकाश का समय अधिक होता है, इन्हें कार्य करने की स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। यही कारण है कि 56.33 प्रतिशत निर्वाचित महिला प्रतिनिधि एकाकी परिवारों से सम्बन्धित हैं, 43.66 प्रतिशत संयुक्त परिवारों से। संयुक्त परिवार की महिलाएं स्वतन्त्र रूप से कार्य नहीं कर पाती, उनकी घरेलू जिम्मदारियां अधिक होती हैं। पति, देवर, श्वसुर आदि का इन पर दबाव होता है। इन परिवारों में पितृसŸाात्मक मूल्य अधिक प्रभावी होते हैं, इसीलिये इन परिवारों की महिलाएं संकुचित विचारों से ग्रसित होती हैं, पारिवारिक अन्र्तविरोध इनके विचार-विमर्श एवं वाद-विवाद का केन्द्र होता है।
  निर्वाचित महिलाओं के निर्णयन को परिवार प्रमुख भी प्रभावित करते हैं, केवल 19 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जो अपने परिवार की प्रमुख हैं तथा शेष 44.66ः में पति, 17ः में श्वसुर, 5.33ः में देवर, 3.67ः में बेटा, 8ः में सास, 2.33ः में बहू परिवार प्रमुख हैं। इससे स्पष्ट है कि 70.67ः निर्वाचित महिला प्रतिनिधि परिवार के पुरूष प्रधान के अधीन हैं। 17ः महिला प्रतिनिधियों का मत है कि उनके परिवार के प्रमुख उनके समस्त निर्णयों को प्रभावित करते हैं, 37.33ः का मत है कि उनके निर्णय परिवार प्रमुख द्वारा कभी कभी प्रभावित किये जाते हैं, 32.33ः का मानना है कि परिवार प्रमुख सलाहकारी भूमिका अदा करते हैं, मात्र 13.33ः महिलाएं स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय ले पाती हैं।
  महिलाओं की आर्थिक स्थिति उनके निर्णयन को प्रभावित करती है, शायद यही कारण है कि आर्थिक रूप से सम्पन्न महिलाएं ही चुनाव लड़ पाती हैं। चयनित महिला प्रतिनिधियों में 60.66 प्रतिशत ऐसी हैं जिनके परिवार की आय दो लाख रूपये वार्षिक से अधिक है और ये महिलाएं अपने चुनावी खर्चे परिवार से ही लेती हैं। शेष 39.33ः महिलाएं अपने चुनावी खर्चे चन्दा या अन्य स्त्रोतों से प्राप्त करती हैं।
  महिलाओं का राजनीति में प्रवेश तथा उनकी राजनैतिक दल से सम्बद्धता भी उनके निर्णयन को प्रभावित करती है। जो महिलाएं स्वेच्छा से राजनीति में प्रवेश करती हैं, वे स्वतः निर्णय लेने में सक्षम होती हैं किन्तु ऐसी महिलाओं की संख्या मात्र 22ः है। शेष महिलाएं किसी व्यक्ति के दबाव (24ः), पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण (18.67ः) और महिला आरक्षण के कारण (20ः) या अन्य किसी कारण (15.33ः) से राजनीति में प्रवेश करती हैं। राजनैतिक दल से सम्बद्ध महिलाएं अपने निर्णयों को कार्य रूप देने में अधिक सक्षम होती हैं क्योंकि यदि कोई कर्मचारी या अधिकारी उनके कार्यों को नहीं करता है तो वे अपने दल के बड़े नेताओं से उन पर दबाव डलवाने में सक्षम होती हैं। निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों में ऐसी महिला प्रतिनिधियों की संख्या 53.33ः है। किन्तु इन सभी प्रतिनिधियों के परिवार का कोई न कोई सदस्य पूर्व में, उस राजनैतिक दल से सम्बद्ध रहा है, जिनसे वे सम्बन्धित हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि इन महिलाओं की राजनैतिक दल से सम्बद्धता द्वितीयक है, अतः स्वाभाविक है कि इन महिलाओं का उस राजनैतिक दल में प्रभाव व सहयोग भी उतना नहीं होगा जितना प्राथमिक सदस्य का होता है। इस स्थिति में इन महिला प्रतिनिधियों को अपना कार्य करवाने में अपने परिवार के उस सदस्य की सहायता लेनी पड़ती है जो कि राजनैतिक दल से सम्बद्ध है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि कुछ महिलाओं को छोड़कर अधिकांश महिलाएं स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय नहीं ले पा रही हैं। फिर भी इन निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों पर पंचायती राज अधिनियम 1992 का सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। 54.33ः महिलाओं ने यह स्वीकार किया कि महिलाओं की राजनैतिक सहभागिता में वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त 65.66ः ने महिलाओं की स्वतन्त्रता में वृद्धि, 72ः ने राजनैतिक सहभागिता के प्रति जागरूकता में वृद्धि, 96ः ने पूर्व की तुलना में महिला-पुरूष समानता में वृद्धि को स्वीकारा। यद्यपि 69.67ः महिला प्रतिनिधि यह मानती हैं कि पुरूष आज भी प्रभावी हैं व 86.67ः का यह मत है कि महिलाएं स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय नहीं ले पा रही हैं किन्तु स्त्री-पुरूष के मध्य समानता में वृद्धि हुई है। महिलाओं द्वारा स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय न लिये जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण उनकी अशिक्षा एवं वाह्य समाज की जानकारी न होना है। महिलाओं की राजनैतिक सहभागिता का सबसे बड़ा प्रभाव सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक अन्तःक्रिया एवं सामाजिक गतिशीलता पर पड़ा। इससे पति-पत्नी, भाई-बहन के सम्बन्धों में बराबरी का उदय हुआ, निर्वाचित महिलाओं में 60ः महिलाओं ने यह माना कि स्त्री-पुरूष के मध्य समानता का उदय हुआ किन्तु 40ः महिलाओं का यह मानना है कि अभी स्त्री-पुरूष समानता कोसों दूर है, इसका कारण पितृसŸाात्मक मूल्य, महिला अशिक्षा, पुरूषों की राजनैतिक खुरपेंच एवं हेकड़ी है। इसके बाद भी 76.66ः महिलाओं का यह मानना है कि वे पुरूषों की मोहरा मात्र नहीं हैं। वे स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हैं। उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि महिलाएं अपने निर्णयन के सम्बन्ध में न तो पूर्णतया स्वतन्त्र हैं, न ही परतन्त्र।                                      
सामाजिक अन्तःक्रिया के सम्बन्ध में महिलाओं का यह मत है कि इस अधिनियम के लागू होने के बाद उनकी सामाजिक अन्तःक्रिया में वृद्धि हुई है। यद्यपि सभी महिलाएं इससे पूर्णतः सहमत नहीं हैं किन्तु 65ः इससे पूर्णतः सहमत थीं, 11.33ः दुविधा की स्थिति में थीं एवं 23.66ः ने यह माना कि समाजिक अन्तःक्रिया में कोई परिवर्तन नहीं आया है। चूँकि अधिकंाश महिलाएं ये मानती हंै कि सामाजिक अन्तःक्रिया में वृद्धि हुई प्रणाली के परिणामस्वरूप महिलाओं में सामाजिक अन्तःक्रिया का विकास हुआ है। चूँकि सामाजिक अन्तःक्रिया में वृद्धि हुई है तो यह स्वाभाविक है कि सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि होगी।
  महिलाओं की सामाजिक अन्तःक्रिया में वृद्धि से पारिवारिक समायोजन पर भी प्रभाव पड़ा है। 56ः महिलाओं का मत है कि पारिवारिक समायोजन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, पति-पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों के मध्य अच्छे सम्बन्धों का उदय हुआ है, 27.33ः का मत है कि इसका पारिवारिक सम्बन्धों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। नातेदारी सम्बन्धों पर प्रभाव के बारे में इन महिलाओं का मत मिला जुला रहा किन्तु सर्वाधिक संख्या (81ः) सकारात्मक प्रभाव मानने वाली महिलाओं की रही, केवल 9.67ः महिलाएं इसे नकारात्मक मानती हैं, इनका यह मानना है कि निर्वाचन के बाद नातेदारों ने पारिवारिक प्रतिष्ठा के विरूद्ध मानते हुए उनसे दूरी बना ली, जबकि 9.33ः का यह मानना है कि नातेदारी सम्बन्धों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
  इस अधिनियम ने महिलाओं को आर्थिक निर्णयों में भी सहभागी बना दिया। यद्यपि अधिकांश महिलाओं का यह मानना है कि वे आर्थिक निर्णयों में पहले अप्रत्यक्ष रूप से या समाज की आड़ में सहभागी होती थीं किन्तु अब वे परिवार के साथ ही साथ समाज के भी आर्थिक निर्णयों में सहभागी होने लगी हैं। 85.66ः महिलाओं का यह मत है कि आर्थिक निर्णयों में उनकी सहभागिता बढ़ी है, मात्र 5ः  महिलाएं यह मानती हैं कि इसका आर्थिक निर्णयों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जबकि 11.33ः का यह मानना है कि राजनीतिक सहभागिता का आर्थिक सहभागिता या निर्णयन से कोई सम्बन्ध नहीं है। इतना ही नहीं निर्वाचित महिलाएं सम्पŸिा सम्बन्धी निर्णयों के सम्बन्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगी हैं। 61.66ः का यह मानना है कि वे सम्पŸिा सम्बन्धी निर्णय लेती हैं या ऐसे निर्णयन में पूर्णतः सहभागी होती हैं, जबकि 38.33ः का मत है कि सम्पŸिा सम्बन्धी निर्णयों से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है।
  उपरोक्त विश्लेषण एवं तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 73वें संविधान संशोधन ने महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण प्रदान कर एक सामाजिक क्रान्ति ला दी है।                                                  
 निष्कर्ष                                                                  
निष्कर्ष यह है कि पंचायती राज में महिलाओं की सहभागिता में वृद्धि हुई है। शिक्षित महिलाएँ अशिक्षित महिलाओं की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हंै, महिला व पुरूष के मध्य बराबरी के सम्बन्धों का उदय हुआ है, यद्यपि कुछ स्थानों पर श्रेष्ठता के लिये संघर्ष भी दृष्टिगत हुआ है, महिलाओं की राजनैतिक अन्तःक्रिया के साथ ही साथ सामाजिक अन्तःक्रिया में भी वृद्धि हुई है। महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हंै किन्तु अशिक्षा एवं पितृसŸाात्मक मूल्य आज भी उनपर प्रभावी हंै।                                                            
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. महात्मा गांधी, नये युग का सूत्रपात (प्रस्तुति-शरद कुमार साधक) आचार्यकुल, वाराणसी, 2003।
2. सुरेन्द्र कटारिया,  भारत में प्रशासन, मलिक एण्ड कम्पनी जयपुर, 2005।
3. पंचायती राज संस्थाओं का सशक्तिकरण, (संकलन), इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान,
     जयपुर, जून-जुलाई 2003।
4. भारत (वार्षिकी) प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, 2006-07।
5. योजना, (मासिक) प्रकाशन विभाग, भारत सरकार 2006-07।
6. कुरूक्षेत्र (मासिक) प्रकाशन विभाग, भारत सरकार 2006-07।
7. पंचायती राज अपडेट (मासिक), इंस्टीट्यूट आफ नेशनल साइंसेज, नई दिल्ली, 2006-07।
8. भारत का संविधान, विधि एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार।
9. राज्य के पंचायती राज अधिनियम, 1994।
10. वार्षिक रिपोर्ट, पंचायती राज मन्त्रालय, भारत सरकार, 2007-08।
11. वार्षिक रिपोर्ट, ग्रामीण विकास मन्त्रालय, भारत सरकार, 2007-08।