Saturday 2 January 2010

प्रथम आम चुनाव (1952) से चतुर्थ आम चुनाव (1967) तक के उत्तर प्रदेश विधान सभा में महिला प्रतिनिधित्व


रश्मि सिंह
शोध छात्रा, राजनीतिशास्त्र विभाग,
 सतीश चन्द्र काॅलेज, बलिया।



भारतीय संघ में उत्तर प्रदेश का विशिष्ट स्थान है। उत्तर प्रदेश का धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक और राजनैतिक महत्व सदैव से रहा है। वर्तमान भारतीय राजनीति और प्रशासन में उत्तर प्रदेश का योगदान महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश की महिला श्रीमती इन्दिरा गाँधी प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं तो श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम महिला अध्यक्षा चुनी गई। उ0 प्र0 की प्रथम महिला राज्यपाल श्रीमती सरोजिनी नायडू, प्रथम महिला मुख्यमंत्री श्रीमती सुचेता कृपलानी, चार बार मुख्यमंत्री का रिकार्ड बनाने वाली वर्तमान मुख्यमंत्री सुश्री मायावती का उ0 प्र0 की राजनीति में महिला राजनीति को दिशा तय करने में अग्रणी योगदान है। श्रीमती सोनिया गाँधी कांग्रेस (ई) अध्यक्ष और संप्रग अध्यक्ष के रूप में भारतीय राजनीति को संचालित कर रही हैं जिनका उ0 प्र0 (रायबरेली) से गहरा सम्बन्ध है। वस्तुतः उत्तर प्रदेश की राजनीति में महिलाओं को सदैव महत्व मिला है।2
भारतीय राजनीति में प्रथम आम चुनाव (1951-52) भारत की जनता और मतदाताओं के लिए सुखद क्षण और प्रयोग था। आजादी की लम्बी लड़ाई, कुर्बानी और त्याग के बाद भारतीयों ने स्वतंत्रता की देवी का हृदय से स्वागत किया और प्रथम आम चुनाव में काँग्रेस के ऋण को मतदाताओं ने चुकाया। इस चुनाव का परिणाम भारतीय मतदाताओं द्वारा काँग्रेस के प्रति आभार अभिव्यक्ति प्रदर्शित की गई। लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं में काँग्रेस उम्मीदवार अधिक संख्या में पहुँचे और विशाल बहुमत वाली काँग्रेस नीति सरकारें बनीं। स्वतंत्रता, स्वराज्य, सुराज, बलिदान, जनता की अपनी सरकार आदि की भावनाओं से ओतप्रोत भारत ने लोकतान्त्रिक प्रयोग का पहला स्वाद चखा जिसमें प्रत्याशी व मतदाता दोनों को पहली बार कुछ सीखने-करने का सुअवसर मिला। इस चुनाव में राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर महिला प्रतिनिधित्व बहुत कम मात्रा में प्राप्त हुआ। प्रथम आम चुनाव में उत्तर प्रदेश विधान सभा में महिला विधायकों की संख्या कम थीं। जो विधायिका बनकर सदन में पहुँची वे स्वतंत्रता संग्राम, आन्दोलन, शिक्षा जगत् व जनसेवा से जुड़ीं महिलाएँ। आम महिला का योगदान शून्य था। इस प्रकार प्रथम आम चुनाव में महिला नेतृत्व व प्रतिनिधित्व उत्साहवर्द्धक नहीं था।3
द्वितीय आम चुनाव (1957)4 में उत्तर प्रदेश विधान सभा में कुल 341 निर्वाचन क्षेत्र थे जिनमें 252 एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र और 89 द्विसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र थे। कुल निर्वाचन क्षेत्रों में 252 निर्वाचन क्षेत्र सामान्य और 89 अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित थे। जनजाति के लिए कोई निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित नहीं था। उ0 प्र0 में एकल निर्वाचन क्षेत्र में कुल मतदाता 20397331 थे जिनमें 20311426 सामान्य वर्ग के मतदाता थे और 85905 अनुसूचित जाति थे। द्विसदनीय निर्वाचन क्षेत्र में कुल मतदाता 14364742 थे जिनमें 158978 सामान्य और 14205764 अनुसूचित जाति के मतदाता थे। 1957 के आम चुनाव में कुल मतदाता 34762073 थे जिनमें 2047404 सामान्य और 14291669 अनुसूचित जाति के थे। इस चुनाव में मतदान प्रतिशत 44.68 प्रतिशत था। द्वितीय आमचुनाव में 21918604 वैध मत पड़े जिनमें 10170782 सामान्य और 11747822 अनुसूचित मत थे। भारतीय जनसंघ ने 236 सी0पी0आई0 ने 90, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने 430, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 261, राम राज्य परिषद ने 14 उम्मीदवार खड़े किये और 660 निर्दलीय उम्मीदवारों ने विधान सभा के लिए अपना भाग्य आजमाया जिनमें भारतीय जनसंघ को 17, सी0पी0आई0 को 09, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को 286, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 44, राम राज्य परिषद को 34 और निर्दलीयों व अन्य को 74 स्थानों पर सफलता मिली। इन दलों को प्राप्त मत प्रतिशत क्रमशः 9.84,3.83, 42.42, 14.47, 0.76 और 28.65 प्रतिशत मत मिले। रामराज्य परिषद राज्य स्तरीय पार्टी थी जबकि जनसंघ, काँग्रेस, सी0पी0आई0 और प्र0सो0 पार्टी राष्ट्रीय दल थे। इस चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या प्रथम आम चुनाव की तुलना में बढ़ी किन्तु यह बढ़ोत्तरी उत्साहवर्द्धक नहीं थी। उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रांे में 39 महिलाएँ ही सक्रिय रूप से चुनाव लड़ी है और अन्य महिला उम्मीदवार केवल उपस्थिति दर्ज करने के लिए चुनाव मैदान में थी। कुल 18 महिलाएँ ही विधान सभा में पहुँच सकीं। ये सभी विजयी महिलाएँ भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की थीं। शेष महिला उम्मीदवार अन्य दलों की और निर्दलीय थीं।
तृतीय आम चुनाव (1962) लोकतान्त्रिक भारत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण था। भारत का मतदाता अपने मताधिकार और मतदान का महत्व समझ चुका था। मतदाता यह समझ गया था की नीतिनिर्धारकों और शासन कर्ताओं को वही ताज पहनाता है और अगले चुनाव में उसे या तो पदच्युत करता है अथवा उसके अच्छे एवं जनहित के लिए किए गए कार्यों के अगले कार्यकाल के लिए पुनः सत्ता सौंपता है। मतदाता, लोकतंत्र में अपना भाग्य विधाता होता है इसे तीसरे आमचुनाव तक वह समझ चुका था। मतदान में मतदाता केन्द्र और प्रान्तों की सरकारों का स्वरूप निर्धारित करता है। विगत दो आमचुनावों का मतदान व्यवहार मतदाताओं के लिए प्रशिक्षण का कार्यशाला प्रमाणित हुआ। तृतीय आम-चुनाव में कुल 430 निर्वाचन क्षेत्र थे जिनमें 341 सामान्य और 89 अनुसूचित जाति के लिए थे। कुल मतदाताओं की संख्या 36661578 थी जिसमें 20008182 पुरूष और 16653396 महिला मतदाता थे। इसमें 15973334 सामान्य पुरुष और 13233587 सामान्य महिला एवं 4034848 अनुसूचित पुरुष और 3419809 अनुसूचित महिला मतदाता थे। इस प्रकार कुल 29206921 सामान्य मतदाता और 7454657 अनुसूचित मतदाता अर्थात् 36661578 मतदाता थे। तृतीय आम चुनाव में 18859667 मतदाताओं ने 39121 पोलिंग स्टेशनों पर अपने मतदान का प्रयोग किया जिनमें 15718442 सामान्य एवं 3141225 अनुसूचित मतदाता थे। पुरुष मतदाताओं की संख्या 12261740 और महिला मतदाताओं की संख्या 6597927 थी। इनमें पुरुष सामान्य 10045256 और अनुसूचित 2216484 मतदाता थे। महिला सामान्य 5673186 और अनुसूचित 924741 मतदाता थी। तृतीय आम चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत 51.44 प्रतिशत था जिसमें सामान्य मतदान प्रतिशत 53.82 प्रतिशत और अनुसूचित मतदान प्रतिशत 42.14 प्रतिशत था। इस चुनाव में कुल 3418 पुरुष उम्मीदवारों ने अपना नामांकन कराया जिसमें से 24 उम्मीदवारों का पर्चा निरस्त हो गया और 774 ने अपना नाम वापस ले लिया। इस प्रकार केवल 2620 उम्मीदवार चुनाव मैदान में रह गए। इनमें से 2145 सामान्य और 475 अनुसूचित उम्मीदवार थे। 430 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए तृतीय आम चुनाव (1962) में कुल 29206921 सामान्य एवं 7454657 अनुसूचित मतदाता थे अर्थात् कुल 36661578 मतदाता थे जिसमें मात्र 18859667 ने मतदान किया। इस चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई 1957 के आमचुनाव की अपेक्षा डेढ़ गुनी हुई। महिला प्रत्याशियों में से 61 ने दमखम के साथ चुनाव मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज किया जिनमें से 20 ही सफल हो सकी। 20 महिला विधायकों में 19 भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और मात्र 01 भारतीय जनसंघ की थी। अन्य दलों व निर्दलीय महिला प्रत्याशी विजयी नहीं हुई। तृतीय आम चुनाव में सी0पी0आई0 ने 147, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने 429, जनसंघ ने 377, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 288, सोशलिस्ट पार्टी ने 273, स्वतंत्र पार्टी ने 167, रामराज्य परिषद ने 41, रिपब्लिकन पार्टी ने 123, और निर्दलीय व अन्य ने 775 उम्मीदवार खड़े किए। चुनाव परिणाम के अनुसार सी0पी0आई0 के 14, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के 249, जनसंघ के49, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के 38, सोशलिस्ट पार्टी के 24, स्वतंत्र पार्टी के 15, रामराज्य परिषद के कोई नहीं, रिपब्लिकन पार्टी के 8 और निर्दलीय व अन्य 33 उम्मीदवार विजयी हुए जिनका मत प्रतिशत क्रमशः 5.08, 36.33,16.46,16.46, 11.52, 8.21, 4.60, 0.29, 3.74, और 23.57 प्रतिशत रहा। इस चुनाव में महिला उम्मीदवारों और महिला विधायकों की संख्या में वृद्धि हुई जो महिलाओं की जागरुकता को प्रदर्शित करता है।
चतुर्थ आम चुनाव (1967)6 का भारतीय शासन और राजनीति तथा प्रान्तों की राजनीति में महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्थान है। 1962 के भारत-चीन युद्ध ने समूचे राष्ट्र को झकझोर कर रख दिया। हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा देकर चीन ने ‘नेफा’ और ‘लद्दाख’ की ओर से भारत पर आक्रमण कर दिया। अस्त्र, शस्त्र और भोजन पानी के अभाव में हमारे सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए या पीछे हटने को मजबूर हुए। चीन ने भारत के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया जिस पर वह आज भी कायम है। युद्ध की भयावह स्थिति से मंहगाई, जमाखोरी और जनता की परेशानियों का दौर शुरू हुआ। चीन के चाऊ एन लाई और माओं के विश्वासघात की गहरी चोट भारत के प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू के दिल और दिमाग में घर कर गई जिसे वे अधिक समय तक सहन न कर सके और 27 मई 1964 को असमय स्वर्गवासी हो गए। इस प्रकार भारत को दुर्दिन में छोड़कर पं0 नेहरू दुनिया से चले गए। पं0 नेहरू के साथ ही कांग्रेस में एकछत्र शासन के युग का अन्त हो गया। कांग्रेस के कर्णधार एवं खेवनहार बने- कामराज, निजलिंगप्पा, नीलम संजीव रेड्डी, अतुल्य घोष, एस0 के0 पाटिल, चन्द्रभानु गुप्त एवं मोरारजी देसाई बगैरह। ‘‘नेहरू के बाद, कौन?’’ की दौड़ में नेताओं ने अपनी-अपनी गोटियां बिछानी शुरू कर दिया। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नन्दा के स्थान पर लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री पद का गुरुत्तर भार सौंप दिया। शास्त्री जी, पं0 नेहरू के उत्तराधिकारी बने। 1962 के भारत-चीन युद्ध के संकटों से अभी भारत उबर नहीं पाया था कि 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण करके अवांछित युद्ध थोप दिया। इस युद्ध में भारत की अपार क्षति हुई और एकबार फिर भारत पर संकटों का दौर शुरू होगया। मंहगाई, भूखमरी, गरीबी, लाचारी, खाद्यान्न का संकट और युद्ध की विभीषिका से जनजीवन त्रस्त हो गया। अब कांग्रेस और कांग्रेसी सरकारों से लोगों का विश्वास हटने लगा। सोवियत संघ के निमंत्रण पर युद्ध समाप्ति व समाधान के लिए प्रधानमंत्री शास्त्री मास्को गए और ताशकन्द समझौता पर पाकिस्तान के साथ 10 जनवरी, 1966 को हस्ताक्षर किए। 10-11 जनवरी, 1966 को ताशकन्द में ही प्रधानमंत्री शास्त्री जी का प्राणान्त हो गया। दो युद्धों की विभीषिकाओं अकाल, सूखा, अतिवृष्टि, बाढ़, मंहगाई, खाद्यान्न समस्या व मजबूत नेतृत्वविहीन कांग्रेस के कारण भारत की स्थिति भयंकर, सोचनीय और दयनीय हो गई थी। कांग्रेस के क्ष़त्रपों के बीच प्रधानमंत्री पद को लेकर खींचतान शुरू हो गई। प्रधानमंत्री पद के दो उम्मीदवार श्री मोरार जी देसाई और श्रीमती इन्दिरा गाँधी मैदान में थे। कांग्रेस सांसदों के मत विभाजन द्वारा श्रीमती इन्दिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनीं और मोरार जी देसाई उप प्रधानमंत्री एवं वित्तमंत्री बने। इसका प्रभाव यह हुआ कि केन्द्र और प्रान्तों में आपसी कलह, गुटबाजी और खींचतान प्रारम्भ हो गया।7 उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं रहा। उत्तर प्रदेश के क्षत्रपों में सर्वश्री चन्द्रभानु गुप्त, कमलापति त्रिपाठी, चैधरी चरण सिंह, उमाशंकर दीक्षित, मोहन लाल गौतम, रामचन्द्र विकल, चै0 गिरधारी लाल, हेमवती नन्दन बहुगुणा, त्रिभुवन नारायण सिंह वगैरह की गुटीय राजनीति शुरू हुई जिसका प्रभाव प्रदेश राजनीति कंे साथ-साथ जिलों की राजनीति व स्थानीय राजनीति पर भी पड़ा। 1967 की ऐतिहासिक विनाशकारी बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि आदि के कारण सम्पूर्ण भारत त्रस्त था। उत्तर प्रदेश की जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। अमेरिका से मंगाए गए मोटे अनाज मक्का, बाजरा आदि को सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से जनता को उपलब्ध कराया जाता था जिसके लिए अफरा-तफरी मचती थी। क्षुब्ध जनता कांग्रेस सरकार को कोस रही थी। कांग्रेस सरकारों की बदइन्तजामी से जनता में कांग्रेस पार्टी और शासन की छवि धूमिल  हो रही थी। ऐसे वातावरण में हुए चतुर्थ आम चुनाव (1967) में केन्द्र और उत्तर प्रदेश दोनों में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई। कांग्रेस में प्रान्तीय, जिले और स्थानीय स्तर पर कांग्रेसी नेताओं की भितरघात और गुटबाजी ने चुनाव को अधिक प्रभावित किया और कांग्रेस को नुकसान पहुँचाया। उत्तर प्रदेश विधान सभा के 425 सीटों में कांग्रेस को मात्र 199 सीटों पर ही सन्तोष करना पड़ा। यह संख्या बल सदन में स्पष्ट बहुमत से भी 14 कम था। लोकसभा में भी कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं थी। चतुर्थ आम चुनाव में कांग्रेस ने 512 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए जिसमें से मात्र 279 उम्मीदवार ही विजयी हुए। इस चुनाव में पहली बार कांग्रेस 300 के आँकड़े को भी न छू सकी। श्रीमती इन्दिरा गाँधी की अनुभवहीनता, कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक व्याप्त घोर गुटबन्दी, दैवी प्रकोप और कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व के रूप में एकगुट का प्रभाव आदि ने कांग्रेस की स्थित को दयनीय बना दिया।
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 1967 में 425 सदस्यीय विधान सभा में 336 सामान्य और 89 अनुसूचित निर्वाचन क्षेत्र थे। इस चुनाव में 421448100 मतदाता पंजीकृत थे जिनमें 33398160 सामान्य और 8749940 अनुसूचित मतदाता पंजीकृत थे। सामान्य मतदाताओं में 18006125 सामान्य पुरुष और 15392035 सामान्य महिला मतदाता थे। इसी प्रकार 4711888 अनुसूचित पुरुष एवं 4038052 अनुसूचित महिला मतदाता पंजीकृत थे। कुल 22989751 मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया जिनमें 13725449 पुरुष और 9264302 महिला मतदाता थे। मतदान प्रतिशत 54.55 प्रतिशत था जिसमें सामान्य मतदान प्रतिशत 56.59 प्रतिशत और अनुसूचित मतदान प्रतिशत 46.72 प्रतिशत था। सफल मतदान संचालन के लिए 42369 मतदेय स्थल बनाए गए थे।
चतुर्थ आम-चुनाव उठापटक और गुटीय जीत के उद्देश्य से पूरे देश में लड़ा गया जिसका उद्धरणीय अखाड़ा उत्तर प्रदेश बिहार, पं0 बंगाल आदि रहे। महिला प्रधानमंत्री के बावजूद किसी भी दल ने महिला उम्मीदवारों को चुनाव में खड़ा कर जोखिम लेने की भूल नहीं किया फिर भी महिलाएँ चुनाव में उतरीं। उत्तर प्रदेश विधानसभा के 425 सदस्यों के चुनाव के लिए महिलाएँ चुनाव लड़ीं किन्तु उनमें से मात्र 39 महिलाओं ने दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतरीं। किन्तु मात्र 06 महिलाएँ ही विधानसभा में पहुँच सकीं। ये सभी अखिल भारतीय कांग्रेस की थीं। इस चुनाव में भारतीय जनसंघ ने 401, सी0पी0आई0 ने 96, सी0पी0एम0 ने 57, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 425, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 167, रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इण्डिया ने 168, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी नपे 254, और स्वतंत्र पार्टी ने 207 प्रत्याशी खड़े किए। साथ ही 1239 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में उतरे। इनमें से भारतीय जनसंघ 98, सी0पी0 आई0 13, सी0पी0एम0 01, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 199, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी 11, रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इण्डिया 10, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी44, स्वतंत्र पार्टी 12 और निर्दलीय 37 स्थानों पर विजयी रहे। इन्हें क्रमशः 21.67, 3.23, 1.27, 32.20, 4.09, 4.14, 9.97, 4.73 और 18.70 प्रतिशत मत प्राप्त हुए।
चतुर्थ आम चुनाव 1967 महिला प्रधानमंत्री के नेतृत्व में लड़ा गया। किन्तु इस चुनाव में महिलाओं को महत्व नहीं दिया गया। उ0 प्र0विधान सभा में मात्र 06 महिलाएँ ही चुनकर पहुँची जो महिलाओं के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। जिताऊ प्रत्याशी की चाहत में महिलाओं की उपेक्षा हुई। 1967 के बाद शुरू हुआ ‘दल-बदल’, जातीय राजनीति, क्षेत्रीय राजनीति आदि। पुनः 1969 से और तदन्तर महिलाओं की भूमिका को महत्व दिया जाने लगा जिसका सुखद परिणाम आज दिखाई दे रहा है।8
संदर्भ ग्रन्थ
1. पाण्डे एस0 के0, आधुनिक भारत, प्रयाग एकेडमी, इलाहाबाद, 2002, पृ0-431
2. दैनिक जागरण, दैनिक समाचार पत्र, बलिया संस्करण, 10 मई, 2009, पृ0-10
3. पाण्डे एस0 के0, आधुनिक भारत, प्रयाग एकेडमी, इलाहाबाद, 2002, पृ0-484
4. पाण्डे एस0 के0, आधुनिक भारत, प्रयाग एकेडमी, इलाहाबाद, 2002, पृ0-431
5. दैनिक जागरण, दैनिक समाचार पत्र, बलिया संस्करण, 10 मई, 2009, पृ0-10
6. पाण्डे एस0 के0, आधुनिक भारत, प्रयाग एकेडमी, इलाहाबाद, 2002, पृ0-484
7. पाण्डे एस0 के0, आधुनिक भारत, प्रयाग एकेडमी, इलाहाबाद, 2002, पृ0-431
8. डाॅ0 मिश्रा प्रभा का शोध प्रबन्ध, भारतीय संविधान में महिलाओं की स्थिति, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद वर्ष 2005 से साभार।