Saturday 2 January 2010

आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता का अध्ययन


श्रीमती विनिता शर्मा
प्रवक्ता, डी0ए0वी0 काॅलेज,
खरखोद, मेरठ।


योग दर्शन में योग शब्द को एक साधना के रूप में बताया जाता है। इस साधना में अपनी चित्तवृत्ति का विरोध कर आत्म-संयम के द्वारा चित्त को वृत्ति-शून्य कर देना ही ‘योग’ है। कहा जा सकता है कि शरीर और चित्त की क्रिया अथवा अभ्यास ‘योग’ है, जिसके करने से सिद्धि प्राप्त होती है।1
योग दर्शन के गुरु पतंजलि मुनि के अनुसार मानवीय प्रकृति के अलग-अलग तत्वों के नियंत्रण पूर्णता अथवा मोक्ष की प्राप्ति के लिए नियम के साथ किये जाने वाला अभ्यास अथवा विधिपूर्ण प्रयत्न ही ‘योग’ है।2
उपनिषदों तथा गीता में कहा गया है कि सांसारिक दुःख तथा पाप से छुटकारा पाने के लिए हमें आध्यात्मिक एकत्व प्राप्त करना चाहिए। इस वास्तविकता की चेतना ही ‘योग’ है।2
योगी श्री अरविन्द के अनुसार-‘‘परमदेव के साथ एकत्व की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना तथा इसे प्राप्त करना ही सब योगों का स्वरूप है।’’4
आॅक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार- ‘‘योग हिन्दू जाति की दार्शनिक ध्यान-अवस्था व संन्यासवाद की वह प्रणाली है जिसमें भक्त को परमात्मा के साथ मिलन का मार्ग बताया जाता है।’’5
वेदों के अनुसार- ‘‘योग एक ऐसी विधि है, जिसे अपना कर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकता है तथा अपनी जीव आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ सकता है।’’6
योग को मात्र शारीरिक क्रिया मानना या व्यायामों में से एक व्यायाम मान लेना तर्कसंगत नहीं है।7 योग मनुष्य को स्वयं से परिचित कराने की एक कला है, योग के माध्यम से व्यक्ति को स्वयं ज्ञात हो जाता है कि वास्तव में वह क्या है? किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मानव शरीर धारण किये है।
शोध उद्देश्य:-
किसी भी शोधकर्ती का कार्य उसके उद्देश्यों में समाहित व निर्देशित होता है। अस्तु प्रस्तुत अध्ययन के प्राप्य उद्देश्य शोधकर्ती द्वारा निम्न है-
आधुनिक शिक्षा में योग की प्रासंगिकता का अध्ययन करना।
अध्ययन की सीमायें-
शोधार्थिनी ने अध्ययन विषय को निम्न सीमाओं में सीमित किया है।
1. आधुनिक शिक्षा-प्रणाली में विद्यार्थियों पर पड़ने वाले योग एवं प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन।
2. प्रस्तुत अध्ययन में हरिद्वार जनपद के शान्तिकुंज एवं एक अन्य विद्यालय के 11वीं, 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों को लिया है। जिनकी कुल संख्या 200 है।
3. प्रस्तुत अध्ययन में आंकड़ों के संकलन का चयन बहुस्तरित दैव न्यादर्श द्वारा किया गया है।
सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन:-
गांगुली, एस0के0; बेरा टी0के0; गहलौत, एस0एल0 2003 के अध्ययन के द्वारा बताया गया कि योगाभ्यास के द्वारा बालको की एकाग्रता में वृद्धि तथा साथ ही शैक्षिक उपलब्धि पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। योग के द्वारा शारीरिक स्वस्थता तथा शैक्षिक उपलब्धि में वृद्धि की जा सकती है।8
यागनिक आई0 आर0 (2003), आइडेन्टिफाईंग दा इन्फ्लूएन्सिंग फैक्टर्स इन स्पोर्टस एण्ड योग कैरियर।9
योग एवं खेल पर आंतरिक नियंत्रित कारक जैसे श्रेष्ठता, अभ्यास और सक्षमता आदि के प्रभाव का पता लगाना और योग एवं खेल पर वाह्य नियंत्रित कारक जैसे आर्थिक या वित्तीय सहायक साधन, प्रशिक्षण और भाग्य आदि के प्रभाव का पता लगाना।
निष्कर्ष:-आंतरिक नियंत्रण कारक जैसे- श्रेष्ठता, अभ्यास एवं व्यक्तिगत सक्षमता आदि अर्थपूर्ण रूप से वाह्य नियंत्रण कारक जैसे- वित्तीय सहायक साधन, प्रशिक्षण एवं भाग्य आदि से अधिक शक्तिशाली थे।
खिलाडि़यों में अपनी श्रेष्ठता पर पूर्ण विश्वास करने की दृढ़ प्रवृत्ति है। जबकि योग विद्या अपने भाग्य पर पूर्ण आश्रित है और अपने योग कैरियर को विकसित करने के लिए प्रशिक्षण पर बल देते हैं।
आनन्द, एस0 घोष; एस0 के0; रघुराज पी0 एण्ड टैलीन; एस0 और भूषण टी0(2004) ने अपने अध्ययन में पाया कि यौगिक अभ्यास के द्वारा बालकों के मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य तथा प्रत्यक्षीकरण की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है तथा छात्र की शैक्षिक उपलब्धि को भी बढ़ाया जा सकता है।
सुरेश रूबिओ; एस0 द्वारा 2005 में योगाभ्यास के मनोवैज्ञानिक, ज्ञानात्मक एवं रहस्यवादी प्रभाव का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि श्वास प्रश्वास नियंत्रण के द्वारा मस्तिष्क एवं हृदय में आने वाले मनोवैज्ञानिक परिवर्तन, ज्ञानात्मक संवेदात्मक तथा रहस्यमय प्रभावों से जुड़े हुए हैं। दायां मस्तिष्क यदि अधिक जागरुक है तो व्यक्ति में आंतरिक जागरुकता अधिक पयी गयी। जिन व्यक्ति में समान मस्तिष्क जागरुकता पायी गयी वे अत्यधिक संतुलित व आंतरिक अवस्थाओं में जागरुक व प्रभाव पक्ष से युक्त पाये गये।10
कुमारी संतोष; कोहली और देवी बढ़नी ने 2005 में अन्य क्रियाओं और प्राणायाम का उच्च माध्यमिक स्तर के छात्रों में तनाव पर प्रभाव का अध्ययन किया। तथा पाया कि दोनों ही शैक्षिक तनाव को कम करने में सहायक हैं तथा आगे अध्ययन में पाया कि शैक्षिक चिन्ता को प्राणायाम के द्वारा अन्य क्रियाओं की अपेक्षा अधिक प्रभावी रूप में कम किया जा सकता है।11
शोध विधिः-शोधकर्ती ने प्रस्तुत अध्ययन के लिये तुलनात्मक कार्य कारण विधि के अन्तर्गत हरिद्वार जनपद को लेने का विचार किया है। जिसमें उन्होंने योग कराने वाले स्कूलों के विद्यार्थियों एवं योग न करने वाले विद्यार्थियों के लिये जिन्हें पुनः छात्र/छात्राओं में वर्गीकृत किया है। इनमें से विद्यार्थी छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थियों का दैव न्यादर्श विधि द्वारा चयन किया गया है। इस प्रकार 2ग2ग2 कारक प्ररचना के आधार पर 200 बहु स्तरित दैव न्यादर्श विधि का चयन किया है।
शोधकर्ती व्यक्गित रूप से अध्ययन में चयनित विद्यालयों में गयी थी और अध्ययन के उपकरणों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को एकत्रित किया। व्यक्तिगत रूप से इस उपकरण को भरने का विचार किया गया है कि उत्तरदाताओं के स्पष्टीकरणों का तत्काल निवारण किया जा सके। प्रस्तुत शोध उपकरण का फलांकन उपकरण में व्यक्त निर्देशानुसार किया गया जाएगा। प्राप्त फलांक का मास्टर शीट में दर्शाया जाएगा तथा इसके आधार पर विभिन्न प्रकार की तालिकाओं का निर्माण, सांख्यिकीय मापकों के अनुरूप किया गया।
न्यादर्शः-प्रस्तुत अध्ययन के लिए उपरोक्त वर्णित न्यादर्श पद्धतियों में से जिस महत्वपूर्ण पद्धति का अनुगम किया गया है उसको बहुस्तरीय दैव न्यादर्श नाम दिया गया है। इस प्रकार से प्रस्तुत अध्ययन के लिए (2ग2्रग2) कारक संरचना पर आधारित बहुस्तरीय न्यादर्श द्वारा 200 विद्याार्थियों का चयन किया गया है और 200 को निम्न चरणों में विभक्त किया गया है, जिसका विवरण तालिका में दिया गया है।
वर्ग योग करने वाले योग न करने वाले योग
छात्रावास में रहने वाले महिला पुरुष महिला पुरुष
छात्रावास में रहने वाले 25 25 25 25 100
छात्रावास में न रहने वाले 25 25 25 25 100
योग 50 50 50 50 200

अध्ययन उपकरणः-प्रस्तुत अध्ययन में एक उपकरण का प्रयोग किया गया है। जिसको आधुनिक शिक्षा में योग की प्रासंगिकता मापनी नाम दिया गया है। शोधकर्ती ने यह मापनी स्वनिर्मित एवं प्रमापीकृत की है। जिसकी विश्वसनीयता एवं वैधता क्रमशः 0.81 और 0.72 से ऊपर प्राप्त की गयी है। जो शोध की दृष्टि से सार्थक मानी जाती है। इस मापनी में 30 कथन दिये गये हैं। सभी कथन धनात्मक है।
अस्तु इसका निर्माण लिकर्ट की योग निर्धारण विधि 1932 के आधार पर किया गया है। इस उपक्रम के विकास में इस विधि के अन्तर्गत अधोलिखित, महत्वपूर्ण एवं आवश्यक चरणों को समाहित किया गया है। उपकरणों को अधिकतम श्रेष्ठ, उपयोगी, वैध एवं विश्वसनीय बनाने के उद्देश्य से उसके तकनीकी पक्षों पर अतिशय विशेष ध्यान दिया गया है।
अध्ययन चर:- प्रस्तुत अध्ययन में दो प्रकार के चर का प्रयोग किया है-1. आश्रित चर, तथा 2. स्वतंत्र चर।
1. आश्रित चर:- आश्रित चर वह चर होते हैं जिन पर चरों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। प्रस्तुत अध्ययन में आश्रित चर के अन्तर्गत आधुनिक शिक्षा में योग की प्रासंगिकता को लिया गया है।
2. स्वतंत्र चर:- जिनका प्रभाव जानने के लिए शोधकर्ती उनका चयन करती है। प्रस्तुत अध्ययन  में स्वतंत्र चर के रूप में 3 चरों यथा योग करने और न करने वाले छात्रावास में रहने वाले और न रहने वाले, लिंग के आधार पर पुरुष एवं महिला के आधार पर को लिया गया है।12
समंक संग्रह:- इस अध्ययन में प्रयुक्त उपकरण में 30 कथन लिये गये हैं। जो ऋणात्मक एवं धनात्मक हैं। जिनका अत्यधिक अधिभार 150 जिसकी माध्यिका 75 है। इस अध्ययन में प्रयुक्त उपकरणों के 15 कथन धनात्मक एवं 15 कथन ऋणात्मक लिये हैं जिसमें धनात्मक कथनों का प्रतिभार पूर्णतः सहमत - 5, सहमत 4, कुछ नहीं कह सकते 3, असहमत का 2 और पूर्णतः असहमत का 1 है जबकि ऋणात्मक कथनों का प्रतिभार पूर्णतः सहमत - 1, सहमत 2, कुछ नहीं कह सकते 3, असहमत का 4 और पूर्णतः असहमत का 5 है प्रस्तुत अध्ययन में शोधकर्ती द्वारा व्यक्तिगत रूप से एक-एक करके प्रत्येक उपकरण भरवाया गया। अध्ययन उपकरण में वर्णित फलांकन कुंजी के आधार पर मास्टर शीट तैयार की गयी। जिसमें उपकरण के प्राप्तांकों सभी 200 उत्तरदाता के संदर्भ में दर्शाया जायेगा।13
सांख्यिकी मापक एवं अर्थापन:-
अध्ययन में समंकों का अर्थापन करने हेतु शोधकर्ती ने सांख्यिकीय मापक के रूप में उच्च स्तरीय तकनीक का प्रयोग किया है। जिसमें सांख्यिकीय परिकलन पेन्टीयम 4 कम्प्यूटर द्वारा शोधकर्ती ने कराया है। प्रस्तुत अध्ययन में समंक विश्लेषण हेतु सांख्यिकीय मापन के रूप में स्तंभाकृति एवं टी-टैस्ट विधि का प्रयोग किया गया है।
प्रदत्तों का सांख्यिकीय विश्लेषण एवं परिणामों की व्याख्या:
प्रस्तुत अध्याय में शोधकर्ता ने अध्ययन का मूल्यांकन करने के लिए टी-परीक्षण विधि का प्रयोग किया है। सांख्यिकीय मापक के रूप में यह विधि शोध के क्षेत्र में उच्च कोटि की तकनीक सर्वाभौमिक रूप से स्वीकार की जाती है। इस विधि के माध्यम से शोधकर्ती ने समंक विश्लेषण को सरल, प्रभावी व उपयोगी बनाने का प्रयास किया है। टी-परीक्षण का उपयोग उद्देश्यों का मूल्यांकन के लिए किया गया है। इस प्रकार के अध्ययन के उद्देश्य का यथावत् मूल्यांकन किया गया है।
आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग करने वाले विद्यार्थी जो हाॅस्टल में रहते हैं हेतु तुलनात्मक अध्ययन करना:-
वर्ग σक् ज़्ज्मेज त्मेनसज
योग करने वाले छात्र जो हास्टल में रहते हैं 25 145 9.92 1.55 सार्थक
योग करने वाली छात्रायें जो हास्टल में रहती हैं 25 141.60 4.70

उपरोक्त तालिका का अवलोकन करने से ज्ञात हुआ है कि आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल मं रहने वालों का अन्तर का ब्त् मान 1.55 है जो .1 स्तर (2.58) एवं .5 (1.96) स्तर से अधिक होने के कारण कम है। इससे यह अर्थ निकलता है कि आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में रहते हैं में अन्तर सार्थक नहीं है।
आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग करने वाले विद्यार्थी जो हाॅस्टल में नहीं रहते हैं, हेतु तुलनात्मक अध्ययन करनाः-
वर्ग σक् ज़्ज्मेज त्मेनसज
योग करने वाले छात्र जो हास्टल में नहीं रहते हैं 25 131.58 9.81 2.30 सार्थक
योग करने वाली छात्रायें जो हास्टल में नहीं रहती हैं 25 126.72 6.74
उपरोक्त तालिका का अवलोकन करने से ज्ञात हुआ है कि आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में नहीं रहने वालों का अन्तर का ब्त् मान 2.30 है जो .1 स्तर (2.58) से कम एवं .5 (1.96) स्तर से अधिक है। इससे यह अर्थ निकलता है कि आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में नहीं रहते हैं में .5 (1.96) स्तर से अधिक होने के कारण अन्तर है, परन्तु .1 (2.58) स्तर से कम होने के कारण अन्तर नहीं है।
आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग न करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में रहते हैं हेतु तुलनात्मक अध्ययन करनाः-
वर्ग क् σक् ज़्ज्मेज त्मेनसज
योग करने वाले छात्र जो हास्टल में रहते हैं 25 69.48 7.56 1.32 सार्थक अन्तर
नही
योग करने वाली छात्रायें जो हास्टल में रहती हैं 25 72.03 5.98

उपरोक्त तालिका का अवलोकन करने से ज्ञात हुआ है कि आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग न करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में रहने वालों का अन्तर का ब्त् मान 1.32 है जो .1 स्तर (2.58) एवं .5 (1.96) स्तर से अधिक होने के कारण कम है। इससे यह अर्थ निकलता है कि आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग न करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में रहते हैं में सार्थक अन्तर नहीं है।


आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग न करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में नहीं रहते हैं हेतु तुलनात्मक अध्ययन करना:-
वर्ग क् σक् ज़्ज्मेज त्मेनसज
योग करने वाले छात्र जो हास्टल में नहीं रहते हैं 25 77 6.18 5.56 सार्थक
योग करने वाली छात्रायें जो हास्टल में नहीं रहती हैं 25 57.64 12.23
उपरोक्त तालिका का अवलोकन करने से ज्ञात हुआ है कि आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग न करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में नहीं रहने वालों का अन्तर का ब्त् मान 5.56 है जो .1 स्तर (2.58) एवं .5 (1.96) स्तर से अधिक होने के कारण कम है। इससे यह अर्थ निकलता है कि आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग न करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में नहीं रहते हैं में सार्थक अन्तर है।
शोध निष्कर्ष
1. आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में रहते हैं में अन्तर सार्थक नहीं है।
2. आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में नहीं रहते हैं में .5 स्तर से अधिक होने के कारण अन्तर है, परन्तु .1 स्तर से कम होने के कारण अन्तर नहीं है।
3. आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग न करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में रहते हैं में सार्थक अन्तर नहीं है।
4. आधुनिक शिक्षा में योग शिक्षा की प्रासंगिकता हेतु योग न करने वाले विद्यार्थी जो हास्टल में नहीं रहते हैं में सार्थक अन्तर है।
संदर्भ ग्रन्थ
1. शंकर भाष्य: योग सूत्र, गीता प्रेस, गोरखपुर।
2. विश्वानन्द: योग सूत्र, वैदिक मंत्रालय, अजमेर।
3. स्वामी रामदेव: योग साधना एवं योग चिकित्सा रहस्य, दिव्य प्रकाशन, दिव्य योग, मन्दिर ट्रस्ट, हरिद्वार।
4. स्वामी रामदेव: प्राणायाम रहस्य, दिव्य प्रकाशन, दिव्य योग, मन्दिर ट्रस्ट,, कनखल हरिद्वार।
5. जयदयाल गोयनका: श्रीमद्भागवद्गीता, गोविन्द भवन कार्यालय, गीता प्रेस गोरखपुर।
6. स्वामी करपात्री जी: माक्र्सवाद और रामराज, गीता प्रेस गोरखपुर
7. बसन्त कुमार: भारतीय दर्शन, भारती भवन, पटना
8. डाॅ0 एस0के0 एण्ड डाॅ0 (श्रीमती) ऊषा मल: योग शिक्षा, आर्य बुक डिपो 30, नाईवाला, करोलबाग, दिल्ली।
9. डाॅ0 पी0डी0 शर्मा: योगासन, नवनीत पब्लि0 इण्डिया लि0, नवनीत भवन, भवानी शंकर रोड, दादर मुम्बई।
10. डाॅ0 सत्यापाल ग्रोवर: योगासन एवं साधना, पुस्तक महल, खारी बावरी, दिल्ली
11. रमेशचंद्र शुक्ल: योगासन एवं प्राणायाम, पुस्तक महल खारी बावरी, दिल्ली।
12. राजेश कुमार वैद्य,: योग शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा, सूर्य पब्लिकेशन, द्वारा- आर0 लाल बुक डिपो, मेरठ।
13. भारतीय योग संस्थान: प्राणायाम विज्ञान, ए0डी0 24, शालीमार बाग, दिल्ली।