Saturday 2 January 2010

बच्चों के व्यक्तित्व विकास में विद्यालयीय वातावरण का प्रभाव


डाॅ0 दिलीप कुमार अवस्थी
प्रवक्ता, कर्नल ईश्वरी सिंह इण्टरमीडिएट काॅलेज,
शेखपुर बुजुर्ग, जालौन।


मनोविज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार बालक के व्यक्तित्व के विकास पर अनुवांशिकता और वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है परन्तु बालक के व्यक्तित्व के विकास पर आनुवांशिकता से कहीं अधिक प्रभाव वातावरण का पड़ता है। आनुवांशिकता की विशेषतायें पारिवारिक पृष्ठभूमि से प्रभावित होती है। जन्मजात संस्कारों और आनुवंशिकता की विशेषताओं में उपर्युक्त वातावरण द्वारा संशोधन, परिवर्तन और परिष्कार किया जा सकता है। यद्यपि बालक में गुणों के विकास पर परिवार, समुदाय और विद्यालय तीनों के वातावरण/परिवेश का प्रभाव पड़ता है परन्तु विद्यालय के वातावरण का बालक के व्यक्तित्व के विकास पर प्रत्यक्ष रूप से अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि बच्चों को विद्यालय में अनुकूल वातावरण प्राप्त होता है तो वे सही दिशा में प्रगति कर सकते हैं। विचारणीय है कि विद्यालय का वातावरण बालक के व्यक्तित्व के विकास को इस सीमा तक प्रभावित करता है कि योग्य और होनहार बालक वि़द्यालय के अनुपयुक्त वातावरण के कारण समुचित विकास से वंचित हो जाते हैं। इसके विपरीत निम्न स्तर की योग्यता रखने वाले बच्चों को विद्यालय के अच्छे वातावरण द्वारा उत्कृष्ट बनाया जा सकता है। निष्कर्ष यह है कि बालक की योग्यता और क्षमता कैसी भी हो, विद्यालय का वातावरण जैसा होगा बालक के व्यक्तित्व का विकास भी उसी के अनुरूप होगा। विद्यालय का अच्छा वातावरण बालक के लिए सीखने की अनुकूल स्थितियाँ उपलब्ध कराता है।
विद्यालय का वातावरण ऐसा कारक है जो बच्चों को प्रभावित करता है और उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन लाता है। बच्चों के भविष्य की नींव घर या परिवार में रखी जाती है। विद्यालय में शिक्षक द्वारा उसे अनुकूल बनाकर उस पर विकास का भवन निर्मित किया जाता है।
शिक्षा का उद्देश्य है कि विद्यालय में पढ़ने वाले सभी बच्चों का नैतिक स्तर ऊँचा हो, सभी बच्चे संवेगात्मक रूप से स्थिर बने, वे शारीरिक रूप से स्वस्थ और सामाजिक रूप से व्यावहारिक हो ताकि वे परिवार विद्यालय और समाज में अपने को समायोजित कर सके बच्चों में उक्त योग्यताओं और क्षमताओं के विकास के लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय का वातावरण अनुकूल स्थितियों से युक्त हो। विद्यालय में वातावरण को सवांरने मंे शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ परिवारों तथा आस-पास के अवांक्षित प्रकरणों के फलस्वरूप बच्चों का सही दिशा में विकास हो जाता है और कुछ बच्चे अनेक प्रकार की कुंठाओं से ग्रस्त हो जाते हैं। विद्यालय का अच्छा वातावरण उन्हें सही दिशा में विकास की ओर उन्मुक्त करता है शिक्षक अपने प्रभावी शिक्षण उत्तम और स्नेहपूर्ण आत्मीय व्यवहार द्वारा छात्र-छात्राओं के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ता है और वे हृदय से शिक्षक को अपने हितैषी एवं मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार करते हैं। विद्यालय में शिक्षक का बच्चों के प्रति व्यवहार स्वयं का व्यक्तित्व एवं चरित्र ऐसी कई बातें हैं जो बालक के व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करती हैं। बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य उनके शारीरिक स्वास्थ्य से प्रभावित होता है। विद्यालय में स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा का होना भी जरूरी है। विद्यालय का संगठनात्मक तंत्र इस ढंग से सुव्यवस्थित होना चाहिए कि छात्र-छात्राओं में स्वानुशासन की प्रवृत्ति सहजरूप से विकसित हो। शिक्षकों का सुनियोजित नियंत्रण छात्र-छात्राओं में आत्मसंयम सहयोग और सामुदायिक प्रयास के गुण विकसित करने में सहायक हो। विद्यालय को उत्तम स्वरूप देने के लिये विद्यालय में भौतिक, शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक वातावरण का निर्माण करना आवश्यक है जिससे बच्चे विद्यालय की ओर आकृष्ट हों और सीखने में उनको प्रेरणा मिले।
भौतिक वातावरण विद्यालय में भौतिक वातावरण के निर्माण के लिए आवश्यक है कि विद्यालय का भवन, स्वच्छ हो। गंदा वातावरण बच्चों के मन पर कुप्रभाव डालता है स्वच्छ वातावरण में रहने से बच्चों का मन प्रसन्न रहता है। स्वच्छता के साथ ही साथ विद्यालय के फर्नीचर एवं अन्य उपकरण स्वच्छ तथा अपने स्थान पर व्यवस्थित हो। कक्षा में सहायक सामग्री को रखने के लिए आलमारी, रैक आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए। विद्यालय में छात्र-छात्रओं और अध्यापकों की भूमिका साफ सुथरी और मर्यादित होनी चाहिए। विद्यालय में बच्चों को गणवेश में आने के लिए जोर देना चाहिए। कक्षा में महापुरुषों के चित्र लगे हों और बरामदों और बाहरी दिवारों पर बोधवाक्य लिखे हों। विद्यालय परिसर हरा भरा होना चाहिए। विद्यालय जितना साफ सुथरा-हराभरा होगा बच्चे उतना ही विद्यालय की ओर आकर्षित होंगे। विद्यालय की आवश्यक मूलभूत सुविधाएँ जैसे कि पीने का स्वस्थ पानी, शैंचालय की व्यवस्था, पुस्तकालय खेल का मैदान और खेल के उपकरण की भी व्यवस्था भी होनी चाहिए। विद्यालय को ऐसा स्वरूप प्रदान किया जाय कि उसी पहचान बने।
शैक्षिक वातावरण विद्यालय के शैक्षिक वातावरण के लिए आवश्यक है कि विद्यालय नियमित रूप से खुले और निर्धारित समय पर बंद हों प्रत्येक दिन प्रत्येक छात्र और अध्यापकों की उपस्थित सुनिश्चत हो। कक्षा-शिक्षण उद्देश्यपूर्ण और दक्षताओं की प्राप्ति पर विषेष बल दिया जाय। कक्षा शिक्षण बालकेन्द्रित और क्रिया आधारित हाने चाहिए। बच्चों को कक्षा में पढ़ते समय आनन्द भी खुशी हो। अतः कक्षा शिक्षण में आनन्दमयी शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए। शिक्षक को पढ़ते समय शुद्ध एवं सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए। कक्षा शिक्षण रोचक हो और आवश्यकता पड़ने पर बच्चां को वास्तविक स्तर पर लाना चाहिए। अध्यापक की प्रत्येक बच्चे में आशावादिता एवं आत्मविश्वास जगाना चाहिए। प्रत्येक बच्चे की प्रगति का सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन होना चाहिए। बच्चों में जिज्ञासा बहुत होती है। अतः जिज्ञासा को शांत करने का सदैव प्रयास करना चाहिए। इससे ज्ञान स्वयं विकसित होता है। कक्षा शिक्षण का प्रयोग प्रदर्शन और शैक्षिक भ्रमण आदि विधियों का प्रयोग हो।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के लिए विद्यालय परिसर में शान्ति एवं अनुशासन पर विशेष बल दिया जाय। अध्यापकों में बच्चों के प्रति सहयोग की भावना हो। शिक्षक छात्रों के साथ आत्मीय और स्नेहपूर्ण व्यवहार करें। प्रधानाचार्य एवं अध्यापकों के मध्य सौहार्दपूर्ण व्यवहार हो। अध्यापकों को सदैव मृदु वाणी का प्रयोग करना चाहिए। बच्चों की झिझक दूर की जानी चाहिए। जिससे वे खुलकर अपनी कठिनाइयों को रख सकें। विद्यालय कार्यक्रम का आरम्भ ईश वन्दना से होना चाहिए। प्रार्थना स्थल पर सामूहिक व्याख्यान और राष्ट्रगान के साथ नीति-उपदेश और प्रेरक वाक्य सुनाये जाने चाहिए। राष्ट्रीय और सामाजिक पर्वों की उपयोगिता एवं महत्त्व के विषय में बताना चाहिए। प्रत्येक सप्ताह के अंतिम दिन मनोरंजक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होना चाहिए। समय-समय पर अभिभावक सम्मेलन और मातृ-सम्मेलन का आयोजन करके समुदायों की विद्यालय के साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक वातावरण सामान्यतः बच्चे ऐसे शिक्षकों को पसंद करते हैं जो सहृदय और सकारात्मक दृष्टि रखते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि विद्यालय में बच्चों की रुचियों के अनुकूल वातावरण का निर्माण किया जाय जिसमें खेलकूद चित्र प्रदर्शन आदि विभिन्न प्रकार के क्रिया कलाप को स्थान दिया गया हो। बच्चों के विकास की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अनुकूल स्थितयों का निर्माण किया जाना चाहिए। उनके साथ इस ढंग का सहज स्नेहपूर्ण और आत्मीय व्यवहार रहे जिससे वे शिक्षक को अपना हितैषी, संरक्षक एवं पथप्रदर्शक मानने लगे।
विद्यालय जितना आकर्षक, साफ-सुथरा और शैक्षिक सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण से ओत प्रोत होगा बच्चे उतना ही विद्यालय की ओर आकर्षित होंगे। वे विद्यालय में ठहरेंगे और विषय ज्ञान के साथ जीवन मूल्यों जैसे समुदाय के साथ मिलकर काम-करना सामाजिक व्यवहार, लोकतांत्रिक जीवन शैली, अपने अधिकार एवं कत्र्तव्य के प्रति जागरुकता, स्वंय करके सीखने की आदत, नेतृत्व और निर्माण निर्णय लेने की क्षमता एक-दूसरे के साथ समन्वय के गुण बच्चों में पनपने में और अनेक व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होगा और देश के आदर्श भावी नागरिक बनेगा तथा देश के चर्तुमुखी विकास का एवं देश को एक बड़े दिशा प्रदान करेंगे।
संदर्भ ग्रन्थ
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2. डाॅ0 भट्टाचार्य जी0सी0, अध्यापक शिक्षा, विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा।
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5. डाॅ0 सारस्वत मालती ; भारतीय शिक्षा का विकास आलोक प्रकाशन, लखनऊ
6. सर्व शिक्षा अभियान, बुलेटिन, मानव संसाधन मंत्रालय, नई दिल्ली।