Saturday 2 January 2010

भारत की परमाणु नीति


शिव प्रकाश राय
शोध छात्र, राजनीतिविज्ञान विभाग,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।


भारत की परमाणु नीति भगवान बुद्ध के विचारों के परिधि घूमती रहती है। बुद्ध का मध्यम मार्ग एक माॅडल है जो खुशी देता है, शान्ति, विकास और शक्ति का सन्देश देता है। भारत की परमाणु नीति को हम तीन बिन्दुओं में देख सकते हैं-(1)ठनककीं ैसममचपदह- यह परमाणु दौड़ को कम करने को बोधित करता है। यह नेहरू कालीन समय था जिसमें यह माना गया कि परमाणु दौड़ में भाग लेना भारत के लिए उचित नहीं है। (2)ठनककीं ैउपसपदह- भारत के पड़ोसी देशों की संदिग्ध गतिविधियां और वैश्विक स्तर पर शक्ति संतुलन बाध्य करता है कि परमाणु दौड़ में भाग लिया जाए। ैउपसम एक व्यंग्य भी हे, जो देश शान्ति का रट लगाए रहता है वो आज परमाणु दौड़ में कूद पड़ा है। ैउपसम एक सन्देश भी है जो पड़ोसियों को और पूरे विश्व को यह दर्शाना चाहता है की भारत इस स्थिति में है कि परमाणु दौड़ में भाग ले सकता है। (3) ठनककीं डवअपदह दृ इसमें यह माना जाता है कि जब भारत के पास परमाणु क्षमता हो गयी तो हमें यह सोचना चाहिए कि परमाणु क्षमता का उपयोग कैसे करें। शान्ति के क्षेत्र में, सैनिक क्षेत्र में, नैनो तकनीक में या ऊर्जा सुरक्षा और औद्योगिक क्षेत्र में उपयोग किया जाए।1
भारत की परमाणु नीति मे हम देखते हैं कि दुनिया में कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो शत-प्रतिशत सही हो। एक वर्ग जो अपने को बुद्धिवादी, विश्व शांति का पैरोकार मानता है वो परमाणु नीति को गलत मानता है। वही एक वर्ग जो अपने को राष्ट्रवादी मानता है वो परमाणु नीति को सही मानता है। वैसे हम देखते हैं कि भारत में इस समय इस बात पर कोई बहस नहीं है कि परमाणु नीति सही है या गलत है। भारत की जनता एकमत हैं कि यह भारत की सुरक्षा के लिए सही है। रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान जैसे पड़ोसी देशों के परमाणु सम्पन्न रहने पर भारत की परमाणु नीति पर कोई प्रश्नवाचक (?) नहीं है।
भारत की परमाणु नीति को हम पाँच चरणों में रख सकते हैं-
(क) नेहरू कालीन परमाणु नीति(1946-1964)
(ख) शास्त्री कालीन परमाणु नीति (1964-1966)
(ग) इन्दिरा कालीन परमाणु नीति (1966-1984)
(घ) राजीव व अन्य काल में परमाणु नीति (1985-1997)
(ङ) वर्तमान समय में परमाणु नीति (1998 के बाद)
(क) नेहरू कालीन परमाणु नीति (1946-1964) - नेहरू के काल मे सरकार को पूंजीपति, वैज्ञानिक और सरकार तीनों का समर्थन था, लेकिन यह आदर्शवादी सहयोग था। परमाणु नीति को मूक समर्थन मिला क्योंकि ये आदर्शवादी था इसके पीछे के कारणों को हम देखते हैं-
ंण् भारत की विदेश नीति का ऐतिहासिक पक्ष बुद्ध, महावीर, अशोक, गांधी, नेहरू से जुड़ा था, जो कि अहिंसा और शान्ति की नीति से जुड़ा था। भारत हिरोशिमा, नागासाकी की विभीषिका को देख चुका था और जो देश शान्ति का नारा लगा रहा था वो परमाणु नीति को कैसे खुलकर सामने आने दे, अतः विरोधाभास था।
इण् भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन बहुत ही शान्तिपूर्ण, रक्तहीन क्रान्ति था।
बण् नेहरू का विश्व को देखने का दृष्टिकोण जो कि पूंजीवाद और साम्यवाद से हटकर पंचशील पर आधारित था।
कण् भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी,जो परमाणु शोध पर पैसा लगा सके।
मण् यूरेनियम, थोरियम, इत्यादि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं था।
 शान्तिपूर्ण विखण्डन को वैज्ञानिकों, पूंजीपतियों और राजनीतिज्ञों तीनों का सकारात्मक सहयोग था।एक तरफ चीन अतिराष्ट्रवाद की भावना से परमाणु दौड़ में शामिल हो रहा था। वहीं भारत में ठनककीं ूंे ैसममचपदहण्  दौर था दूसरी तरफ पाकिस्तान चालाकी से परमाणु दौड़ में कदम बढ़ा रहा था। लेकिन भारत में ठनककीं ूंे ेसममचपदहए दवज कमंक जो सोया हुआ है, वह कभी भी जग सकता है। वही इसी समय कुछ लोगों का मानना था कि शान्ति का विकल्प सिर्फ शान्ति ही है। महात्मा गांधी के अनुसार शान्ति का कोई विकल्प नहीं है।3
(ख) शास्त्री कालीन परमाणु नीति (1964-1966)- 1962 में चीन के साथ और 1965 में पाकिस्तान के साथ भारत दो युद्धों का सामना कर चुका था। इसलिए भारत में परमाणु दौड़ में शामिल होने की भावना बढ़ी। नींद टूटने वाली स्थिति आ गयी। शास्त्रीजी, नेहरूजी के नीतियों में विश्वास तो रखते थे लेकिन परिस्थिति के अनुसार परमाणु नीति के धीमी गति को सक्रिय किया।
1966 में शास्त्री जी एवं डाॅ0 भाभा दोनों का ही निधन हो गया और देश में राजनैतिक अस्थिरता की शुरूआत हुई। प्रतिबद्ध नौकरशाही की बात उठने लगी। समस्याओं को देश हित में देखने के बजाए व्यक्ति विशेष पर देखा जाने लगा। उस समय मद्रासी बनाम पारसी का विवाद भी जोरों पर था जिससे भारतीय परमाणु नीति को नुकसान हुआ। आपसी सहयोग का अभाव था नहीं तो हम 1960 के दशक में ही परमाणु शक्ति होते। उसी समय इंजीनियर बनाम भौतिकज्ञ, विशेषज्ञ बनाम सामान्य प्रशासक का विवाद और भारत में राष्ट्र विरोधी गुट ज्यादा सक्रिय होने लगे। परमाणु दौड़ पर कोई बहस नहीं हो रही थी। (जनता का सहयोग है कि नहीं ये नहीं पता था)।
(ग) इन्दिरा कालीन परमाणु नीति (1966-1984)- छच्ज् पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किया क्योंकि यह विश्व को दो भागों परमाणु क्षमता और अपरमाणु क्षमता वाले देशों के बीच बाँटता था। उसी समय 1971 में भारत-पाक के बीच युद्ध होता है और भारत में इस बात पर बहस शुरू होता है कि परमाणु बम क्यों नहीं? परमाणु दौड़ में जाना हमारी आवश्यकता/मजबूरी हो गयी। 18 मई 1974 को भारत का पहला परमाणु परीक्षण होता है। इन्दिरा जी ने कहा कि शान्ति के लिए शक्ति की जरूरत होती है (च्मंबम ूपजी च्वूमत)। भारत परमाणु क्षमता से लैस हो गया, यह शान्तिपूर्ण विखण्डन था। इस परमाणु विस्फोट से नाराज होकर कनाडा ने परमाणु क्षेत्र में सहयोग बन्द कर दिया। अमेरिका नाराज हुआ जो कि स्वाभाविक था, सोवियत संघ भी खुश नहीं था, पाकिस्तान का कहना था कि भारत हमारे ऊपर आक्रमण की तैयारी कर रहा है। वहीं दक्षिण एशिया में ‘ैमंतबी वित छनबसमंत थ्तमर्म वदम’ की बात होने लगी।4
(घ) राजीव व अन्य काल में परमाणु नीति (1985-1997)- राजीव गांधी,चन्द्रशेखर और राव के समय में परमाणु नीति पर चुप्पी थी। 1974 के बाद 1998 तक फिर ठनककीं ूंे ैसममचपदहण् क्योंकि राजनैतिक अस्थिरता, राजीव गांधी का कम्प्यूटर पर विशेष जोर, राव का स्ववा म्ंेज च्वसपबल तथा गुजराल का गुजराल डाॅक्ट्रिन। उसी समय राजीव गाँधी को ष्ठमलवदक ॅंत ।ूंतकष् दिया गया।5
(ङ) वर्तमान समय में परमाणु नीति (1998 के बाद)- विश्व परिस्थितियों में काफी बदलाव आया, अमेरिका और चीन के संबंधों में प्रगाढ़ता आई और पाक भी परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनने के कगार पर था। भारत की सुरक्षा की समस्या और समय की मांग भी थी। 11 मई व 13 मई 1998 को भारत ने पोखरण में दूसरा परमाणु विस्फोट किया। भारत ने परमाणु दबाव (।जवउपब च्तमेेनतम) का प्रयोग कैसे किया जाए और ‘प्रथम प्रयोग नहीं’ की बात की। परमाणु शक्ति का उपयोग शान्तिपूर्ण कार्यों में हो या सैनिक क्षेत्रों में भी। भारत की परमाणु नीति को जनता का भरपूर सहयोग रहा। भारत अभी भी आत्मरक्षात्मक उद्देश्य से परमाणु नीति अपनाए हुए है। छच्ज्ध्ब्ज्ठज् को सहयोग करते हुए भी भारत ने परमाणु दौड़ में शामिल हुआ। यह सशर्तता छच्ज्ध्ब्ज्ठज् के प्रति है और अपनी सुरक्षा के प्रति अधिक जागरूक है। भारत की परमाणु नीति 80 प्रतिशत शान्ति के लिए तथा 20 प्रतिशत आत्मरक्षात्मक है।6
भारत की परमाणु नीति में अब जबर्दस्त बदलाव आया है। 18 जुलाई, 2005 को भारत और अमेरिका के बीच ‘परमाणु समझौता’ हुआ और यह भारतीय असैनिक रियक्टरों को ईंधन की आपूर्ति के लिए हुआ। साथ ही असैनिक रियक्टरों को अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजंेसी के निगरानी में लाने की बात भी थी। अन्ततः अक्टूबर 2008 में दोनों देशों के मध्य यह समझौता हो गया। इससे भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग में वृद्धि की सम्भावना है। लेकिन कुछ आलोचकों का मानना है कि इससे हमारी परमाणु नीति की स्वतंत्रता खत्म हो जायेगी। वहीं परमाणु समझौते के समर्थकों का मानना है कि इससे भारत के ऊर्जा सुरक्षा में मदद मिलेगी। इसे ईरान मुद्दे से भी जोड़ा जा रहा है।7
अमेरिकी कांग्रेस की शोध सेवा सीआरएस की रिपोर्ट ‘पाकिस्तान न्यूक्लियर वेपेंस:प्रोलीफरेशन एंड सिक्यूरिटी इश्यूज’ के मुताबिक, ‘पाकिस्तान के पास करीब 60 परमाणु हथियार हैं, और हथियार बनाने के लिए वह क्षमता बढ़ा रहा है।’ परमाणु हथियारों के संबंध में पाकिस्तान की कोई घोषित नीति नहीं है। सीआरएस रिपोर्ट में कहा गया है कि परमाणु हथियारों के मामले में भारत से आगे निकलने और पारंपरिक सैन्य ताकत में भारत से पीछे रहना ऐसे कारण हैं, जो पाकिस्तान को परमाणु हथियारों को बढ़ाने के लिए पे्ररित करते हैं।8
भारत ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल और उसके इस्तेमाल की धमकी देने पर ‘पूरी रोक’ के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय संधि का प्रस्ताव दिया है। म्यूनिख में एक अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन में भारत के सुरक्षा सलाहकार एम0के0 नारायण ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प0नेहरू के समय से ही पुष्टि, योग्य और भेदभावरहित वैश्विक परमाणु निरस्तीकरण की वकालत करता रहा है। भारत उसका एक दृढ़ पक्षधर बना हुआ है।10
भारत ने परमाणु परीक्षणों का पहले इस्तेमाल न करने तथा विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक शक्ति प्राप्त करने की नीति अपनाई। ये विचार सबसे पहले स्वतंत्र रूप से भारत में ही विकसित हुए। भारत का नाभिकीय शस्त्रागार के साथ एक महाशक्ति के रूप में उभरने को दुनिया के बाकी देशों में खतरे के रूप में नहीं देखा जाता है। पोखरण अंतर्राष्ट्रीय तंत्र में एक जिम्मेदार शक्ति संतुलनकर्ता बनने की भारत की यात्रा का उद्गम बिन्दु है। यदि इसे समझ लिया जाएगा तो फिर किसी को भारतीय परमाणु नीति पर कोई भ्रम नहीं रह जाएगा।
संदर्भ ग्रन्थ

1- George Perkovich – ‘India’s Nuclear Bomb : The Impact on Global Proliferation’, Oxford University Press, New Delhi, 2000.
2- Sekhar, Basu Ray (ed) – NEW APPROACH (Atomic India Edition, 1998), Calcutta, National Art Press, 1998.
3. एअर कमोडोर सिंह जसजीत - ‘भारतीय परमाणु शास्त्र’, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली,  2004।
4- K.Subrahmanayan – ‘Nuclear Myths and Realites : India’s Dilemma’, ABC Publishing House, New Delhi, 1981.
5. पंत पुष्पेश एवं जैन रीपाल - ‘अंतर्राष्ट्रीय संबंध’ मीनाक्षी प्रकाशन, बेगमब्रिज- मेरठ,  2000।
6- Kapur Ashok - ‘Pokhran and Beyond : India’s Nuclear Behaviour’ Oxford University Press, New Delhi, 2001.
7- Gupta U.N.– International Nuclear Diplomacy and India, ATLANTIC Publishers & Distributors (P) Ltd., New Delhi, 2007.
8- Jain B.M. & Eva – Maria Hexanner (ed) ‘Nuclearisation in South Asia : Reactions and Responses’, Rawat Publications, New Delhi, 1999.
9- Journal of Conflict Resolution, Journal of the Peace Science Society (International), California, SAGE Publications, Thousands Oaks, Volume-53, No.02, April 2009.
10- Arms Control Today, July/August 2008, Volume 38, No. 06.
11. डाॅ0 चैधरी बीरेन्द्र कुमार - ‘भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण’, अकादमिक प्रतिभा, नई दिल्ली,  2006