Saturday 2 January 2010

इसरो को उसकी 40 वीं वर्षगांठ का अनुपम उपहार - ‘‘चाँद पर पानी’’


नम्रता बरौलिया
प्रवक्ता (भौतिक विज्ञान), राजकीय बालिका इण्टर काॅलेज,
फरह, मथुरा


भारतीय चन्द्रयान - द्वारा भेजे गए आॅकड़ों से स्पष्ट रूप से चन्द्रमा पर पानी होने के साक्ष्य मिले हैं। यानि कि चन्द्रमा पर जीवन सम्भव है। अब यह कथन कि चाँद पर न हवा है, और न ही पानी है अचानक निष्प्राण और बेदम हो गया है। किसी गीतकार की ये पंक्तियाँ अब समीचीन लग रही हैं-
’’आओ तुम्हें चाँद पे ले जाए, प्यार भरे सपने दिखाए।
छोटा सा बंगला बनाए, एक नई दुनिया बसाए।।’’
इन पंक्तियों में कहा गया एक एक शब्द आज सत्य लगता है क्योंकि चाँद पर नासा द्वारा जल होने की घोषणा ने विश्व के वैज्ञानिकों में हलचल पैदा कर दी है। भारतीय चन्द्रयान -प् द्वारा इकट्ठा किये आंकड़ों से पुख्ता तौर पर पहली बार चाँद पर पानी की मौजूदगी के स्पष्ट साक्ष्य मिल गए हैं। हांलाकि चंद्रतल पर पानी का मैचिंग करने वाला उपकरण ड.3 चन्द्रयान-प् पर नासा ने बिठाया था और उससे प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण भी नासा ने ही किया है, फिर भी यह चन्द्रयान के विशेष डिजाइन, प्रचालन तथा कार्यक्षमता के कारण से ही सफल हो पाया है। इस बात को नासा ने स्पष्ट रूप से स्वीकार भी किया है। ड.3 से जुड़े अनुसंधान प्रधान कार्ल पीटर्स ने स्पष्ट रूप से अपने वक्तत्य में कहा है कि ’’इसरो तथा चन्द्रयान के बगैर पानी की यह खोज हो ही न पाती।’’ यहाँ पर हम जिस उपकरण ड.3 की बात कर रहे है उसका पूरा नाम ’’मून मिनरोलाॅजी मैपर’’ है। इसमें उच्च विभेदन के संग चंद्र-क्रस्ट के खनिजों का मानचित्रण करने वाले प्रतिबिंबक स्पेक्ट्रोमीटर भी लगे थे। ड.3 दरअसल उन छः अन्तर्राष्ट्रीय नीतभार उपकरणों में शुरू से ही शामिल रहा है जिन्हें चन्द्रयान-प् के डिजाइन में अहम स्थान मिला है।
इसरो प्रमुख डा0 माधवन नायर का यह कथन कि चंद्रयान 95ः नही बल्कि 110ः सफल रहा है, यह इस ओर भी इशारा कर रहा है कि पानी के अन्य रूप भी चंद्रयान-प् ने खोज निकाले हैं। निश्चय ही इन प्रयासों में भारतीय ध्वज से पेंट किये स्वदेशी नीतभार डच्प् ;डववद प्उचंबज च्तवइमद्ध यानी चंद्र आघात अन्वेषक उपकरण का भी योगदान शामिल है जो 14 नवम्बर 2008 की शाम चंद्रयान से अलग कर चंद्रतल की ओर भेज दिया गया था। श्डच्प् ने भी जल के अणुओं की मौजूदगी के संकेत तो उसी दिन दे दिए थे परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी परख और पुष्टि के बिना हमने इस तथ्य को सार्वजनिक करना सही नहीं समझा।श् यह कहना है चन्द्रयान के प्रमुख अनुसंधानकत्र्ता डा0 जे0 एस0 गोस्वामी जी का। इन सभी आँकड़ों व विवरणों से संकेत मिल रहे है कि पानी की खोज के सिलसिले में चन्द्रयान-प् ने एक ऐसी क्रांति कर दिखाई है जिससे विश्व के सभी अंतरिक्ष संगठनों की नींद उड़ गयी है।
नासा चन्द्रमा पर, चन्द्रतल की खोज-परख के लिए 12 अंतरिक्ष यात्रियों को उतार चुका है। 1969 तथा 1972 के बीच की इन अपोलो-चंद्र यात्राओं के दौरान ये 12 चन्द्र पुरुष चन्द्रतल से 379 ज्ञहउण् धूल-मिट्टी-चट्टानों के नमूने भी अपने साथ लेकर वापस आए थे। इन नमूनों को फिर विश्व की अनेक प्रयोगशालाओं मंे विश्लेषित किया गया। इन परीक्षणों से नासा को चन्द्रमा पर न तो कोई अनमोल धातु मिली और नही पानी। अर्थात् इस नमूनों के विश्लेषणों से नासा के हाथ कुछ भी नहीं लगा। जिसका परिणाम, अमेरिका नें चाँद की खोज खबर लेने के लिए फिर किसी चंद्रयात्री को नहीं भेजा। मगर ..... अनमोल चन्द्र मिट्टी चट्टानों का विश्लेषण, और व्यापक और गहन कर दिया गया। अमेरिका ने स्वयं के बूते पर विश्लेषण की कवायद को जारी रखा और तब उन्हें दो अहम चीजों के सुराग मिले। एक था भ्म3 यानी द्रव्यमान सं0 3 वाला हीलियम आइसोटोप जोकि संलयन द्वारा असीमित ऊर्जा दे सकता है तथा दूसरा संकेत यह मिला कि जल सामान्य अणुओं के तौर पर तो नहीं, परंतु विशेष रासायनिक बंधनों के रूप में इन सैम्पलों में मौजूद हो सकता है। यह बात 1986 के आसपास की है। अब क्या था नासा के वैज्ञानिकों में जोश भर गया और उन्होंने सुझाव दिया कि जल के अणुओं की खोज के लिए पूरे चन्द्रमा की मैपिंग की जाए। तब 1994 तथा 1998 में अमेरिका ने क्लेमेंटाइन तथा ल्यूनर प्राॅस्पेक्अर यान भेजे। इन मिशनों से अमेरिका को चन्द्रमा पर ध्रुवीय इलाकों में पानी की बर्फ होने के साक्ष्य मिले परन्तु यह पुख्ता नहीं थे। पक्की तौर पर बर्फ की खोज के उद्देश्य से ही अमेरिका ने इस ल्यूनर प्रोस्पेक्अर आर्बिटर यान को चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव वाले बर्फ सम्भावित इलाके में क्रेश भी किया गया। इसके पीछे विचार यह था कि इस आघात से गहरे, शांत छायादार गड्ढों में सदियों से जमी बर्फ के असंख्य कण फिर चन्द्रतल के ऊपर दूर-दूर तक छिटक कर बिखर जाएंगे जिन्हें अमेरिका उपकरण आसानी से देख लेंगे। मगर साक्ष्य की पुष्टि इससे भी नहीं हुई। ऐसे में जल की खोज हेतु अमेरिका नें एक सस्ता और बेहतर उपाय चुना और वह था चन्द्रयान-प्। मैत्री और सहयोग का हाथ बढाते हुए उन्होंने दो उपकरण चन्द्रयान पर चढ़ा दिए जिसने अपने 10 माह के कार्यकाल में चन्द्रमा के 97ः भाग का मानचित्रण कर पानी के पुख्ता सबूत जुटा दिए हैं। अब अमेरिका तो खुश है, भारत और भी ज्यादा खुश है क्योंकि अपने शुरुआती चन्द्रमिशनों में ऐसी जबर्दस्त कामयाबी आज तक किसी देश को नहीं मिली जो कि भारत ने हासिल की। तभी तो अधिकांश लेाग कह रहे हैं कि जल की पुख्ता खोज चन्द्रयान-प् द्वारा 17,000 कर्मचारियों व एक बिलियन अमेरिकी डाॅलर के बजट वाली भारतीय संस्था इसरो को उसकी 40 वीं वर्षगांठ पर एक अनुपम उपहार है।
जहाँ तक पानी के स्वरूप का प्रश्न है, इस विषय पर नासा का कहना है कि परावर्तित प्रकाश की तरंगदैध्र्य से हाइड्रोजन तथा आॅक्सीजन के जो बन्ध है वे भ्.व्.भ् तथा व्.भ् यानी जल तथा हाइड्राॅक्सिल की मौजूदगी के साक्ष्य हैं। यह नमी चन्द्रक्रस्ट के खनिज का हिस्सा है। नासा के इस कथन पर मशहूर वैज्ञानिक प्रो0 यशपाल ने कहा है - कि श्जल से जुड़े ये वैज्ञानिक प्रयोग पुख्ता है अब चाँद पर जल की उपस्थिति पर संदेह करना व्यर्थ है।श्
जल के इस स्वरूप की मात्रा के बारे में गणनाये बतलाती हैं कि एक टन चंद्र मिट्टी से करीब एक लीटर जल उपलब्ध हो सकेगा। ज्ञातव्य है कि ये आॅकड़ें ऊपरी सतह के है, तभी पूर्व राष्ट्रपति महामहिम डाॅ0 ए0 पी0 जे0 अब्दुल कलाम ने सुझाया है कि चन्द्रयान-प्प् की बग्धी में सरफेस रोबोटिक पेनीट्रेटर लगा कर इस सतह के नीचे भी पानी की मौजूदगी को मालूम करना चाहिए। चन्द्रक्रस्ट में तथा ध्रुवों में छायादार गडढों में जल की उपस्थिति के सम्बन्ध में कई कारणों का जिक्र अब जोर पकड़ रहा है। यानी पानी धुमकेतु लाये सौर हवाओं में मौजूद प्रोट्रीनों की चंद खनिजों में मौजूद आॅक्सीजन में हुई क्रियाओं से पैदा हुआ अथवा स्थानीय कारक इसके लिए जिम्मेदार है, इन सम्भावनाओं पर नई दिशा से दृष्टिपात किया जा रहा है। इसमें संदेह नहीं कि चंद्रयान.प् पर मौजूद सभी 11 नीतभार उपकरणों के आॅकड़ों का पूरा विश्लेषण हो जाने पर चंद्रमा के विषय में हमारे विचारों में विशाल परिवर्तन आने की सम्भावना है।
अमेरिका जानता है कि अब विश्व के कई देश चाॅद की ओर एक टकटकी निगाह से निहारने लगे है, इसलिए वहाॅ सबसे पहले मानव बस्ती का निर्माण भी अमेरिका स्वयं ही करना चाहता है और वह भी सन् 2024 तक। इसके लिए वह एक अत्यंत आवश्यक चीज के प्रति पूरी तरह निश्चिंत होना चाहता है और वह है जल। क्योंकि पानी न केवल पीने, खाना बनाने, स्नान करने के काम आता है बल्कि पानी से ही प्राण वायु-आॅक्सीजन तैयार होगी तथा पानी के विद्युत विच्छेदन से ही ज्वलनशील हाइड्रोजन यानी कि ऊर्जा मिलेगी और हाॅ कुछ समयांतराल में हर तरह कि औद्योगिक उत्पादन के लिए पानी की जरूरत पड़ेगी, तो चंन्द्रमा से राॅकेट भेजने के लिए द्रव आॅक्सीजन तथा द्रव हाइड्रोजन भी चाहिए होगी। यानी चन्द्रमा पर पानी है तो समझ लीजिए बहुत कुछ है, नहीं तो बिना पानी के सब सुना है।
दूरगामी आर्थिक लाभ - चाॅद की ओर दौड़ के इस खेल में क्या इसका कोई और मकसद भी है या बस हमें गुरूत्व, चुंबकत्व, मैपिंग, जल और मिट्टी आदि का अध्ययन करना है। जैसा कि सभी कहते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि चाॅद के कम गुरूत्व के कारण चन्द्रतल पर सहज ही अनेकों ऐसे उत्पादों व जीव-जन्तुओं की रचना की जा सकेगी जो पृथ्वी के लिए सदैव नए व आकर्षक होंगे और जिनसे बड़े आर्थिक लाभ होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिक इससे भी आगे की बात करते हुए यह भी कह रहे हैं श्कि पृथ्वी पर बसने वाले मनुष्य का लक्ष्य आज पूरा सौर-मंडल हैश् तब इसके लिए देर सबेर चन्द्रमा को एक विशाल प्रशिक्षण केन्द्र के रूप मंे विकसित करना होगा। निश्चय ही चन्द्रतल पर पहँुच कर ही इस दिशा में कुछ हासिल किया जा सकता है वरना ये सब असम्भव है।
मून-टूरिज्म - चन्द्र अभियान का एक नया और अहम पहलू है मून टूरिज्म यानी चंद्र पर्यटन। पृथ्वी से कुछ ही मील ऊपर से पृथ्वी को देखने के लिए यदि कोई लाखों डाॅलर दे सकता है तो चन्द्रमा तक चक्कर लगाने के लिए कोई व्यक्ति इससे भी अधिक पैसे देने को क्यों तैयार न होगा? आज ये बात तो सभी जानते है कि अब तक कई टूरिज्म अंतरिक्ष स्टेशन तक की सैर कर आए हैं जिनमें अनूशा अंसारी नाम की महिला उद्योगपति भी शामिल हैं और इसके लिए सैकड़ों लाइन में लगे हैं। स्पेस एडवेंचर्स नाम की इस मार्केटिंग कम्पनी ने रूसी अंतरिक्ष संस्था के सहयोग से इस टूरिज्म को साकार किया है। यह कम्पनी अब अमेंरिका और चीन अंतरिक्ष संस्थानों से भी गठबंधन की कोशिश में है। चाॅद पर सैर और नई दुनिया बसाने की बात चली तो बता दें कि चन्द्रमा पर प्लाटों की बिक्री भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में कई नए राष्ट्र इस ओर उन्मुख हो अंतरिक्ष अनुसंधान में अपना निवेश बढाएगें और इस प्रकार अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने 80 के दशक में कहा था कि श्पृथ्वी का भविष्य अंतरिक्ष में है।श् आज उनके ये वाक्य एक नया अर्थ और एक नये स्वरूप को ले रहा है। वाकई चंद्र-युग आज साकार देखा जा सकता है।
संदर्भ ग्रन्थ
1. दास विश्वेशर, सामान्य विज्ञान, सेन्ट्रल बुक ऐजेन्सी, पटना, 1994
2. सामान्य विज्ञान, लूसेन्ट पब्लिकेशन, पटना, 2006
3. ग्लोबल ग्रीन, हिन्दी मासिक पत्रिका, ईजी ग्लोबल आर्गेनाईजेशन, नोएडा, जून-जुलाई, 2009
4. इॅकोनाॅमी इंडिया, जून जुलाई संयुक्तांक, 2006
5. योजना, प्रकाशन विभाग, नई दिल्ली, जुलाई, 2004
6    समसामयिकी अर्धवार्षिकी, विवास पैनोरमा प्रकाशन, दिल्ली, 2009