Thursday 1 April 2010

प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण, चुनौतियां व समाधान


संजय कुमार श्रीवास्तव व जय प्रकाश पटेल
शोध छात्र, शिक्षा संकाय, उ0प्र0 राजर्षि टण्डन मुक्त वि0वि, इलाहाबाद।

पर्यावरण के दूषित होने की समस्या की कोई परिधि नहीं है यह अपनी हदे पार कर चुकी है। अभी तक पढ़ते सुनते आये थे कि हमारा जल, थल, वायु आदि प्रदूषण का शिकार है लेकिन अब तो हमारा अंतरिक्ष भी इसकी चपेट में आ गया है, और तो और प्रकृति के गौरव का प्रतीक हिमालय पर्वत भी प्रदूषण की चपेट में है। विभिन्न मानवीय क्रिया-कलापों से मानव अस्तित्व की आधारभूत आवश्यकतायें भी प्रदूषित हो चुकी है। पृथ्वी पर सम्पूर्ण ‘‘जीवन’’ ही प्रदूषण के कारण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। बढ़ती जनसंख्या, सुख-सुविधाओं को बढ़ाने के लिए दिन-प्रतिदिन हो रहे नये-नये आविष्कारों और मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से आज प्रदूषण की समस्या बहुत विकराल हो चुकी है।
जिन वस्तुओं या पदार्थों से पर्यावरण प्रदूषित होता उन्हें ‘‘प्रदूषक’’ कहा जाता है हमारे चारों ओर प्रदूषकों की एक विस्तृत श्रृंखला मौजूद है कल-कारखानों से निकलने वाला विषाक्त धुँआ, इनका अपशिष्ट, ‘‘जल’’ मल मूत्र (सीवेज) विभिन्न प्रकार की गैस व रासायनिक पदार्थ, उर्वरक खरपतवार नाशक, कीटनाशक, वाहनों से निकलता जहरीला धुँआ, कुछ भारी धातुएं, काँच आदि मुख्य पर्यावरण-प्रदूषक है।
प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषणः- पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्लास्टिक और इससे व्युत्पन्न विभिन्न प्रकार की प्लास्टिक-पदार्थ एक अत्यंत गंभीर पर्यावरण प्रदूषक के रूप में उभरे हैं। आदमी के रोजमर्रा की जिन्दगी के हर क्षेत्र में प्लास्टिक ने घुसपैठ कर ली है। प्लास्टिक ने आम जिन्दगी में एक क्रान्ति ला दी है आज हर वस्तु यहाँ तक कि चाय, दूध तथा तेल जैसे तरल एवं गर्म पदार्थ भी प्लास्टिक की थैलियों में मिलती है।
परिणामतः जहाँ इसने आदमी की जिन्दगी को सरल एवं आसान बनाया है वहीं इसके घातक कुपरिणामों से भी दो चार होना पड़ रहा है। कारण यह कि प्लास्टिक एक ऐसा संश्लेषित रासायनिक बहुलक है जो प्रकृति में अपघटित नहीं होता है यह पदार्थ व रसायन, दो सौ, तीन सौ सालों तक पर्यावरण मंे ज्यों के त्यों पड़े रह जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप इससे उत्सर्जित अत्यन्त घातक रसायनों से पर्यावरण के प्रदूषण की विकराल समस्या उत्पन्न हुई है। इसके अतिरिक्त अत्यधिक मात्रा में रोज उपयोग होने वाले प्लास्टिक के थैले (कैरी बैग) से आये दिन नाली-नाले जाम हो जाते है। जो शहरों में जल निकास के लिए अभिशाप सिद्ध हो रहा है यही नहीं सड़कों पर पड़े प्लास्टिक के थैलों को खाकर मवेशी असमय ही काल के शिकार बने जाते हैं इसके आलावा इस कचरे से नदी, नाले और समुद्र भी प्रदूषित हो रहे हैं जिससे मछलियाँ, कछुओं, सीलों एवं अन्य जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। प्लास्टिक के कचरा का भूमि पर लम्बे समय तक ज्यों का त्यों पड़ा रहने की वजह से भूमि की उर्वरता भी प्रभावित है।
समाधानः-इस समस्या के समाधान के लिए क्या प्लास्टिक के उपयोग को पूर्णतः बन्द कर दिया जाय? न जाने कितनी बार इस दिशा में प्रयास किया गया लेकिन मानव अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते ऐसा नहीं कर पा रहा है। चूँकि प्लास्टिक ने आम जिन्दगी में इतना पैठ बना लिया है कि इसका उपयोग पूर्णतः बन्द नहीं किया जा सकता, फिर क्या हो? कहा जा सकता है कि क्यों न ऐसी प्लास्टिक बनाई जाय जो प्रकृति में आसानी से विघटित हो जाय। यही प्लास्टिक के प्रदूषण का उचित समाधान होगा। दुनियाँ के वैज्ञानिक इसी प्रयास में जुटे हैं वे अपने शोधों से ऐसा प्लास्टिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो कागज़ या पत्तों की तरह आसानी से अपघटित हो जाये इन कोशिशों में कुछ सफलता भी प्राप्त हुई है।
इंग्लैण्ड में कई वर्षों के अनुसंधान के पश्चात् वहाँ की एक कम्पनी ने इस दिशा में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। कम्पनी ने जैविक रूप से शीघ्र अपघटित होने वाले प्लास्टिक का आविष्कार किया है इसका नाम उस कम्पनी ने टफ्फी रखा यह प्लास्टिक 60 दिनों से 6 वर्षों में जैविक रूप में अपघटित हो जाता है। इस प्लास्टिक के अपघटन हो जाने के बाद कोई विषैला पदार्थ नहीं उत्पन्न होता। जिससे स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इस प्रकार के प्लास्टिक को दुबारा प्रयोग में लाया जा सकता है (प्लास्टिक को पर्यावरण के लिए खतरा मानने वाले देशों के लिए यह बहुत अच्छी खबर है।) ऐसा ही कुछ प्रयास जापान के रसायन शास्त्री उमीची और उनके सहयोगियों ने किया। इन्होंने पाॅलीमर्स की विघटित करने की एक नई विधि को खोजा इस विधि द्वारा पाॅलीमर्स को बहुत महत्वपूर्ण रसायनों में बदला जा सकता है इन रसायनों से दवा बनाने एवं वस्त्रो के निर्माण में किया जा सकता है पहले पाॅलिमर्स को विघटित करने की विधि से मात्र एक अत्यन्त जटिल एवं मिश्रित हाइड्रोकार्बन ही मिल पाता था जिसको ईंधन के रूप में भी नहीं प्रयोग किया जा सकता था। इन वैज्ञानिको ने नई विधि से गैलियम एवं सिलीकट से निर्मित एक उत्प्रेरक की मदद से पाॅलीथीन को सुंगन्धित यौगिको में बदलने में महारत हासिल की है। इसी क्रम में नीदरलैण्ड के अनुसंधान और विकास संगठन टी0एन0 ओ0 ने शोध कार्यक्रम के उपरान्त एक नया जैव बहुलक तैयार किया जो स्टार्च तथा चिकनी मिट्टी से बनाया गया। यह बहुलक प्लास्टिक की तरह मजबूत लचीला है तथा कागज की तरह शीघ्र अपघटित हो जाता है। अभी हाल ही में आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने खतरनाक प्लास्टिक का सुरक्षित विकल्प खोजा है जिसका नाम बायो प्लास्टिक है इस प्लास्टिक से न तो पर्यावरण को कोई नुकसान पहुँचेगा और ना ही खाने से जानवरों के हाजमें में क्योंकि यह स्टार्च (माड़ी) से बनाया गया है। बायो-प्लास्टिक 33 डिग्री फारेनहाइट के तापमान पर ही जैविक तरीके से विघटित होने लगता है। मिट्टी के नमी के सम्पर्क में आते ही इसका विघटन शुरू हो जाता है जिससे भूमि का उर्वरता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा बायो प्लास्टिक मामूली सी बारिश में मुश्किल से एक घण्टे में ही घुल जायेगी, बायो-प्लास्टिक, प्लास्टिक के सुरक्षित विकल्प के रूप में 21वीं शताब्दी के लिए नई क्रान्ति साबित होगी।
ऐसा नहीं है इस चुनौती के समाधान के लिए हमारे देश के वैज्ञानिक शान्ति से बैठे हो इस प्रकार की अपघटनीय प्लास्टिक तैयार करने की दिशा में हमारे देश में भी काफी प्रयास किये जा रहे हैं और सौभाग्य से वैज्ञानिक इसमें सफल भी रहे हैं। नागपुर वि0वि0 के प्रोफेसर अल्का जड़गाॅवकर ने प्लास्टिक के कचरों को तरल ईधन जैसे मिट्टी का तेल, डीजल और पेट्रोल में बदलने की तकनीक की खोज करने का दावा किया इसको परीक्षण के लिए तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओ0एन0जी0सी0) में भेजा गया है। इसका सफल परीक्षण हो जाने के बाद भारत की सबसे बड़ी आवश्यकता (ईंधन) की पूर्ति होगी। वहीं ईंधन के लिए दूसरे देशों पर अश्रित नहीं रहना पड़ेगा। इस प्रकार जून 2001 में देश के सभी प्रमुख समाचार पत्रों में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार-भारत में पहली बार प्राकृतिक रूप से नष्ट हो सकने वाला प्लास्टिक की खोज की रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में विकसित एक रसायन की दो से तीन प्रतिशत तात्रा मिला देने मात्र से प्लास्टिक, प्राकृतिक परिस्थितियों में पड़े रहने के बिना कोई भी हानिकारक अपशिष्ट छोड़े छः से आठ सप्ताह में अपघटित नष्ट हो जायेगी। इस क्षरणशील प्लास्टिक का विकास ‘‘जी टैक’’ एसोशिएट्स ने एक अमेरिकी कम्पनी के तकनीकी सहयोग से किया है यह क्षरणशील प्लास्टिक कुछ समय बाद स्वयं ही कार्बन-डाई-आॅक्साइड, पानी, और जैव-अपशिष्ट में बदल जायेगी या अपघटित हो जायेगी।
कम्पनी ने दावा किया है कि प्राकृतिक रूप से क्षरणशील इस प्लास्टिक से बने थैले, थैलियाँ आदि पटसन और कागज के थैलों की अपेक्षाकृत काफी सस्ते पडं़ेगे। इस प्लास्टिक के प्रयोग से प्लास्टिक खाने से पशुओं की मृत्यु, जल-निष्कासन में रुकावट, भूमिगत जल स्तर घटने और भूमि की उर्वरता कम जैसी समस्याओं से मुक्ति हो जायेगी।
इसी प्रकार प्लास्टिक प्रदूषण का अन्य समाधान भी है-
1. प्लास्टिक से उत्पन्न नगरीय कचरे का उचित निष्पादन किया जाय।
2. प्लास्टिक का पुनः चक्रण (रि-साइक्लिंग) किया जाय।
3. प्राकृतिक प्लास्टिक के विकास पर बल दिया जाय।
4. सीवर-तंत्र की उचित व्यवस्था किया जाय।
5. प्लास्टिक थैल एवं कैरी बैगों का प्रयोग कम किया जाय।

सन्दर्भ ग्रन्थ
1. डाॅ0 निशान्त सिंह- प्लास्टिक प्रदूषण (एक्सप्रेस बुक सर्विस, दिल्ली)
2. चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे सितम्बर-2003
3. पर्यावरण संरक्षण और विकास प्रियंक कुमार (विमल पुस्तक मन्दिर विजयनगर, दिल्ली)
4. पर्यावरण संकट और समाधान महेन्द्र शर्मा (सूर्य) चन्द्रमुखी प्रकाशन, दिल्ली।
5. पर्यावरण शिक्षा, आई0 ए0 शर्मा
6. यूनिक (दिल्ली प्रकाशन)