Thursday 1 April 2010

दक्षता आधारित शिक्षक शिक्षा


अरुण कुमार मिश्र एवं दिलीप कुमार अवस्थी
प्रवक्ता, शिक्षा विभाग, फोर्ट इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलाॅजी, मेरठ।
प्रवक्ता, कर्नल ईश्वरी सिंह काॅलेज, जालौन।


अध्यापन के प्रदर्शन को बेहतर और प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यक है कि शैक्षिक समस्याओं का समाधान किया जाय। इस सम्बन्ध में विश्व भर के शिक्षाविद्ों का यह मानना है कि मात्र पर्याप्त शिक्षक ही शिक्षा का समाधान नहीं है इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि शिक्षक शिक्षण कला में निपुण, कार्य कुशल, अच्छा ज्ञान, उचित एवं नवीन दृष्टिकोण हो। शिक्षक के कार्य कुशल बनाने के लिए एवं प्रभाविता के लिए व्यवस्थित रूप से दक्षता आधारित शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम लागू करने का प्रावधान किया गयाहै।
दक्षता का अभिप्राय व्यावसायिक योग्यता, जिसमें अर्जित ज्ञान एवं उच्च स्तर की अवधारण प्रस्तुत करने की योग्यता शामिल है। दक्षता का अर्थ है छात्रों को कार्यकुशलता और संरक्षण का सम्यक् ज्ञान देना। दक्षता का प्रशिक्षण इसलिए दिया जाता है कि प्रशिक्षित शिक्षक क्रियाशील योग्यताओं या गुणों के द्वारा विकास कर सके। शिक्षक शिक्षा सामान्यतः एक व्यावसायिक कार्यक्रम प्रणाली है जो प्रमाणीकरण की ओर ले जाता है। और इसमें शिक्षा, मनोविज्ञान, दर्शन एवं कक्षा प्रबन्ध हैं तथा इसके कार्य कलाप, शिक्षण विधि, अध्यापन अभ्यास आदि शिक्षण दक्षता में शामिल है। शिक्षा में वर्तमान परिवर्तन समाज के अन्दर उप संस्कृति की जागृति, उनकी समस्याएँ और शिक्षा के अवसर के बारे में जानकारी प्रदान करना। वर्तमान समय में पारगमन का अनुभव तथा संवाद में, धोखा और तनाव में, समय और स्थान में हमारी संस्थागत कार्य क्षमता में कमी ला दी है जिससे हम परम्परागत कार्य नहीं कर पा रहे हैं। नवीन अन्तज्र्ञान, निर्देशन, तकनीकी और विधियों में एवं मानवहीन समाज की प्रवृत्तियों पर विशेष जोर देता है। और साथ ही साथ सामाजिक और भौतिक परिस्थितिकी के परिवर्तन के बारे में बढ़ती हुई चिन्ता भी शामिल है।
नव परिवर्तनवाद और प्रसारवार के बीच में आवश्यकता और उत्तरदायित्व चिन्ताजनक स्थिति में है। इस चुनौती को दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा बहुत सक्षमता से निपटा गया है, लेकिन शैक्षिक क्षेत्र में ये बदलाव अधिक कठिन और जटिल है। शैक्षिक लक्ष्य साक्ष्य कम है और शैक्षिक कार्यों पर दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले में समाधान और परिणाम अस्पष्ट हैं।
उद्देश्य- एन0सीटी0ई0 ने दक्षता शिक्षा के उद्देश्यों को सुनिश्चित करते हुए बताया कि केवल तीन उद्देश्य, जो सामान्यतया, संज्ञानात्मक, बोधात्मक और भावात्मक उद्देश्य तक ही सीमित न करके दो अन्य उद्देश्य परिणामात्मक और अन्वेषणात्मक उद्देश्य को भी सम्मिलित किया है। परिणामात्मक उद्देश्य शिक्षक के निर्देशन में छा़त्रों के निष्पादन स्तर को व्यक्त करता है तथा अन्वेषणात्मक उद्देश्य के अन्तर्गत छात्रों के लिए शिक्षक अन्वेषणात्मक परिस्थिति का निर्माण करता है। जिसके परिणामस्वरूप ज्ञान के प्रति जिज्ञासु होकर स्वयं क्रियाशील रहते हैं। ऐसे में शिक्षक छात्रों के प्रयास का दिशात्मक निरीक्षण करता है। इसका अन्तिम उद्देश्य छात्रों में अत्यधिक ज्ञान का सफलता पूर्वक उपयोग करने में सामथ्र्य बनाना है।
शिक्षक में कक्षा दक्षता, प्रशासन और प्रबन्ध सम्बन्धी दक्षता विद्यालय और समाज सम्बन्धी दक्षता, सूची और पठ्यक्रम सम्बन्धी दक्षता तथा अभिप्रेरणा और मूल्य सम्बन्धी दक्षताएं होनी चाहिए। ये दक्षताएं सामान्यतयाः 5 वर्गों में विभाजित की जाती हैं- संज्ञान आधारित दक्षता, प्रदर्शन आधारित दक्षता, परिणाम आधारित दक्षता, प्रभावात्मक और अन्वेषणात्मक आधारित दक्षता। ये अपने अभियोजन के आधार पर लागू हो सकती है।
एन0सी0टी0ई0 ने 1988 में दक्ष शिक्षकों के लिए दक्षता क्षेत्र का निर्धारण किया है, वे इस प्रकार हैं-
सीखने के संसाधनों का संगठन, पाठ्यचर्या के आदान-प्रदान की योजना, परिणाम का मूल्यांकन, संात्वना शिक्षा कार्यक्रमों एवं पर्यावरण जागरूकता को बढ़ाना, शिक्षकों को नवीन भूमिकाओं के निर्वहन हेतु तैयार करना, समस्याओं के समाधान के लिए छात्रों को प्रशिक्षण एवं अनुपूरक शिक्षा देना, लोकतांत्रिक नागरिकता हेतु सामूहिक सेवा और विकास कार्यक्रमों का आयोजन एवं क्रियान्वयन करना।
दक्षता आधारित शिक्षक शिक्षा के कुछ आधार इस प्रकार हैं- नैतिक और वैधानिक जवाबदेही को पूरा करना, उपयुक्त शिक्षण, प्रविधियों का आवश्यकतानुसार चयन करना, विद्यालय एवं छात्रों के बीच समन्वय स्थापित करना, पर्यावरण एवं समाज उपयोगी कार्यों के प्रति छात्रों को क्रियाशील बनाये रखना तथा आचरण की शुद्धता एवं स्वस्थ नागरिकता की भावना जागृत करना।
इसके अतिरिक्त दक्षता आधारित शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम के द्वारा छात्राध्यापकों में व्यवहार, कार्यकुशलता, शिक्षण व्यवहार, ज्ञान पदार्पण आदि का विकास करके परिवर्तन लाया जा सकता है।
पेशागत दक्षता में परिवर्तन की आवश्यकता- (1)शिक्षक शिक्षा सूची में परिवर्तन और शिक्षकों की कार्य कुशलता को विकसित करके सुधार किया जा सकता है। (2) वर्तमान नित्यिक शिक्षण अभ्यास कार्यक्रम में गुणात्मक तथा प्रयोगात्मक अनुभव का ज्ञान देकर सुधार किया जा सकता है। व्याख्या पद्धति से आगे जाने की आवश्यकता है और सेमिनार, समूह वाद-विवाद और पुस्तकालयों के कार्यों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। नव परिवर्तन और क्रियात्यक प्रयासों को मान्यता प्रदान करने की आवश्यकता है। शिक्षक को अध्यापन से पूर्व अध्यापन किये जाने वाले विषय बस्तु की एक रूपरेखा बनाकर शिक्षण कार्य करने की आवश्यकता है।
दक्षता आधारित शिक्षक शिक्षा में सुधार-सभी छात्राध्यापकों को जो उच्च शिक्षा स्तर पर तैयारी कर रहे हैं उन्हें निम्न दक्षताओं का प्रशिक्षण देकर सुधार किया जा सकता है-
व्यावहार के सम्बन्ध में संवाद करके।
अकादमिक गतिविधियों का आयोजन किया जाना चाहिए।
छात्रों के कार्य कलापों का निरीक्षण करके सुधार किया जा सकता है।
सीखने के परिणाम के बारे में संवाद करके।
विषेष आवश्यकताओं का चिन्हीकरण करके।
स्वयं निर्देशन सामग्री का विकास करके सुधार किया जा सकता है।
कार्य कलाप आधारित सोच का अभ्यास कराकर।
अनुकूल वातावरण तैयार करके सुधार किया जा सकता है।
सुझाव-
शिक्षक का ज्ञान प्राथमिक स्रोत न होकर सामाजिक मुद्दे और व्यक्तिगत समस्या के समाधान पूर्ण होनी चाहिए।
अध्यापक मनोवैज्ञानिक, उन्मुख और पेशेवर दृष्टिकोण युक्त होना चाहिए।
शिक्षण कार्य करने वाले को अधिक स्वतंत्रता और जिम्मेदारियां दी जानी चाहिए।
शैक्षणिक कार्य कलापों में समुदायों का और अधिक सहयोग लेना चाहिए।
समूह समस्याओं के समाधान और सामाजिक सामन्जस्य बनाने के लिए निर्देशन तकनीकी का विकास किया जाना चाहिए।
शिक्षक शिक्षा में व्यक्तिगत और आत्मगत निर्देशन होना चाहिए।
सूचनाओं का वितरण, संग्रहण एक बड़े उद्यम के रूप में होना चाहिए।
सीखने वाले को शैक्षणिक फैसले में जिम्मेदारी आहैर जवाबदेही होना चाहिए।
छात्र और शिक्षक के बीच आमने-सामने की अंतरंगता होनी चाहिए।
हम कह सकते हैं कि उपरोक्त बातें यदि ध्यान में रखकर दक्षता आधारित शिक्षा दी जाय तो इस पेशे के लिए योग्य व्यक्ति को अपनाने की बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है। पेशागत तैयारी में वे सभी उपकरण होने चाहिए जो ज्ञान और कुशलताओं को बढ़ाने के लिए आवश्यक होती है।
इस सम्बन्ध में आ0 राममूर्ति समिति (1990) के अनुसार आज की परिस्थितियों में प्रशिक्षण कार्यक्रम को दक्षता आधारित बनाया जाना चाहिए। इसके द्वारा शिक्षकों में निम्नलिखित गुणों का विकास हो सकते हैं।
शिक्षक में संज्ञानात्मक तथा मनः चालित पक्षों में शिक्षा देने की क्षमता।
सृजनात्मक कार्य तथा नवाचारों के लिए अभिवृत्ति।
सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया के व्यावसायीकरण के लिए तत्परता।
विशेष क्षेत्रों के लिए योग्यता।
विकेन्द्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था में अपनी भूमिका की समझदारी।
संदर्भ ग्रन्थ
1. शुक्ला, रमा शंकर, (1989) ‘शिक्षक शिक्षा’- दशा एवं दिशा, जयपुर
2. सुखिया एस0 पी0 (1997)- ‘विद्यायलय प्रशासन’, आगरा
3. ‘संशिक्षा’, वार्षिक पत्रिका (2001)- शिक्षा संकाय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी।
4. टीचर एजूकेशन- ट्रेन्ड एण्ड स्ट्रेटजिक
5. जोशी एवं मेहता (1995) - ‘शिक्षक प्रशिक्षण के सिद्धान्त और समस्याएं’, राज0 हिन्दी अकादमी, जयपुर।