Thursday 1 January 2015

जनपद जौनपुर से प्राप्त कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड (बी0आर0डब्ल्यू0) परम्परा


प्रवीन कुमार मिश्र

कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड परम्परा से तात्पर्य उस पात्र परम्परा से है जिसके अन्दर तथा मुँह के पास काल्ो रंग के तथा श्ोष भाग (बाह्य) लाल रंग का होता है। विभिन्न प्रयोगशालाओं में किये गये अनुसंधानों से यह स्पष्ट होता है कि इन पात्रों को पकाने के समय भठ्ठी (आवों) में इनको उलटकर रखा जाता था जिससे अंदर और मुँह का भाग अपचयन के कारण काला और बाह्य भाग ऑक्सीकरण के फलस्वरूप लाल हो जाता था। इस प्रकार का मृद्भाण्ड सर्वप्रथम ह्वीलर2 को ब्रह्मगिरि (14032’ उ0, 76047’’ पू0) जिला चित्रदुर्ग कर्नाटक के उत्त्खनन से महापाषाणकालीन शवाधानों से सम्बद्ध प्राप्त हुआ था। ह्वीलर ने स्तर विन्यास के आधार पर कृष्ण एवं लोहित मृद्भाण्ड का समय द्वितीय शताब्दी ई0पू0 प्रथम शताब्दी ई0 निर्धारित किया। कालान्तर में 1954-55 में दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में उदयपुर जिल्ो में स्थित अहाड़3 (240 42’ उ0, 730 46’’ पू0) के उत्त्खनन से 7 मीटर मोटे सांस्कृतिक जमाव से कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड का प्रमाण मिला जिसकी प्राचीनता लगभग 2000 ई0पू0 निर्धारित की गयी। इसके पश्चात् लोथल 4 (220 31’ उ0, 750 12’ पू0) जिला अहमदनगर गुजरात के उत्त्खनन से इसके प्रारंभिक हड़प्पीय स्तर से कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड परम्परा का प्रमाण मिला। कार्बन तिथि के आधार पर लोथल से प्राप्त इन प्रारंभिक अवश्ोषों का समय 2450 ई0पू0 निर्धारित किया गया। इस प्रकार कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड की प्राचीनता ताम्रपाषाण संस्कृति एवं आद्य ऐतिहासिक काल तक निर्धारित की गयी।

कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड परम्परा का प्रमाण उ0प्र0, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, हरियाणा पंजाब के विभिन्न पुरास्थलों के उत्त्खनन से चित्रित धूसर मृद्भाण्ड के साथ सम्बद्ध मिला है। राजस्थान के नोह1 (जिला भरतपुर) एवं पश्चिमी उ0प्र0 के अतरंजीख्ोड़ा2 (जिला एटा) के उत्त्खनन से इस प्रकार के मृद्भाण्ड का प्रमाण स्वतंत्र रूप से चित्रित धूसर मृद्भाण्ड परंपरा के नीचे के स्तर से प्राप्त हुआ है। अतरंजीख्ोड़ा के चित्रित धूसर मृद्भाण्ड का समय लगभग 1100 ई0पू0 निर्धारित किया गया है। यहाँ उल्ल्ोखनीय है कि नोह एवं अतरंजीख्ोड़ा से प्राप्त कृष्ण-लोहित मृद्भाण्डों पर चित्रण नहीं है।
चित्रित कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिमी बंगाल से प्राप्त हुये हैं। उत्तर-प्रदेश में कौशाम्बी (इलाहाबाद), सोहगौरा (गोरखपुर), ख्ौराडीह (बलिया), बिहार में चिरांद (सारन), सोनपुर (गया) एवं पश्चिमी बंगाल में पाण्डराजारधीबी (बर्दवान) से प्राप्त हुये हैं।3 चिरांद (सारन) में कार्बन तिथि के आधार पर इसकी प्राचीनता 1600 ई0पू0 निर्धारित की गयी है तथा नरहन4 (गोरखपुर) से प्राप्त मृद्भाण्डों जिस पर सफेद रंग से चित्रकारी है इसका समय लगभग 1300 ई0पू0-700 ई0पू0 निर्धारित किया गया है।
जैसा कि पहल्ो उल्ल्ोख किया जा चुका है कि यह मृद्भाण्ड कर्नाटक की महापाषाण संस्कृति से सामान्य रूप से सम्बद्ध है। इन पुरास्थलों में तेक्कलकोटा5 (बेल्लारी) आदि स्थलों का नाम प्रमुख है। कर्नाटक में ही एक दूसरा प्रमुख स्थल पिण्डलीहल6 है जहाँ कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड नवपाषाण कालीन स्तर से प्राप्त हुआ है।
के0एम0 श्रीवास्तव7 ने कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड परम्परा को प्राप्ति के आधार पर भारतवर्ष को छः भौगोलिक इकाइयों में विभाजित किया है- (1) गुजरात, (2) द0पू0 राजस्थान एवं मध्य प्रदेश, (3) पूर्वी उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं पश्चिमी बंगाल, (4) पंजाब, पश्चिमी उ0प्र0 एवं उत्तरी पश्चिमी राजस्थान, (5) महाराष्ट्र एवं उत्तरी कर्नाटक, (6) दक्षिणी कर्नाटक, आन्ध्र-प्रदेश, तमिलनाडु, केरल एवं उड़ीसा।
कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड परम्परा को मुख्य दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- (अ) सादा कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड,(ब) चित्रित कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड। चित्रित कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है- (अ) दक्षिण-पूर्वी राजस्थान एवं मध्य भारत की चित्रित कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड, (ब) पूर्वी उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं बंगाल का चित्रित कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड।
इसी प्रकार सादे कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड को पुनः चार उपसमूहों में विभाजित किया गया है8- (अ) प्राक् चित्रित धूसर मृद्भाण्ड के सन्दर्भ में। (ब) प्राक् उत्तरी काली चमकीली मृद्भाण्ड के सन्दर्भ में। (स) चित्रित धूसर मृद्भाण्ड एवं उ0का0 चमकीली मृद्भाण्ड के साथ सम्बद्ध। (द) महापाषाणकालीन संस्कृति के साथ सम्बद्ध।
इसी प्रकार विंध्य-मध्य गंगा के मैदानी भाग से सम्बद्ध पुरास्थलों से कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड तीन स्तर विन्यासिक सन्दर्भ में प्राप्त हुये हैं- (1) विंध्य एवं मध्यगंगा के पुरास्थलों से नवपाषाणिक संदर्भ में कोलडिहवा, लहुरादेवा एवं चिरांद। (2) ताम्र-पाषाणकाल के सन्दर्भ में सोहगौरा, नरहन, ख्ौराडीह सेनुवार, ताराडीह, चिरांद एवं चेचर आदि। (3) प्राक् उत्तरी-काली चमकीली मृद्भाण्ड संस्कृति के सन्दर्भ में श्रणवेरपुर, प्रह्लादपुर, राजस्थान, श्रावस्ती, सोनपुर आदि।
जौनपुर में भी अनेक पुरास्थलों से विवेच्य पात्र परम्परा के साक्ष्य प्रस्तुत हुये हैं जिनमें प्रमुख रूप से लोहे का डीह, बिलोई, सियराराड़, डाडी, सरायभोगी, चौवान, कुड़ियाघाट (कठवतिया गाँव), सारीपुर, मौरी, बजरा टीकर, भरहीकोट, माझीपुर की कोट, महादेवा, किराकत आदि उल्ल्ोखनीय हैं। इन सभी पुरास्थलों के सर्वेक्षण के दौरान पर्याप्त संख्या में कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड परम्परा के पात्र उपलब्ध हुये हैं

सर्वेक्षित पुरास्थलों से प्राप्त कृष्ण लोहित (बी0आर0डब्ल्यू0) मृद्भाण्ड-

सरायभोगी कोट से कृष्ण लेपित मृद्भाण्ड परम्परा का एक घड़ा, जिसकी अवठ (रीम) बाहर को निकली हुई है। गढ़न रूक्ष, ग्रीवा न के समान तथा व्यास 20.2 सेमी0 है।






सराय चौहान डीह पात्र संख्या 1-4, सरायभोगी कोट पात्र संख्या 5-8.
बजरा टीकर से कृष्ण ल्ोपित मृद्भाण्ड परम्परा का एक छिछला कटोरा, जिसका अवठ विश्ोषतारहित एवं गढ़न उच्च कोटि की है। व्यास 16.2 सेमी0 है। इस प्रकार के पात्र खण्ड अगियावीर (मिर्जापुर) नामक पुरास्थल के तृतीय काल से प्राप्त होते हैं।9






बजरा टीकर पात्र संख्या 1-8
जफराबाद पुरास्थल से कृष्ण ल्ोपित मृद्भाण्ड परम्परा का एक कटोरा, जिसकी अवठ कील शीर्षयुक्त प्रकार की है। जिसका बाह्य भाग उन्नतोदर है। इसका व्यास 20.4 सेमी0 है। इस प्रकार के पात्र नरहन संस्कृति में तृतीय काल से प्राप्त होते हैं।10




जफराबाद डीह पात्र संख्या 1-8
इस प्रकार इस तथ्य की पुष्टि होती है कि कृष्ण लोहित (बी0आर0डब्ल्यू0) मृद्भाण्ड परंपरा जनपद की एक प्रमुख मृद्भाण्ड परंपरा थी। इन मृद्भाण्ड परम्पराओं में प्रमुख प्रकार घड़े, कटोरे एवं थालियाँ हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ-
1. इण्डियन आर्कियोलॉजी ए रिव्यू, 1963-64, पृ0 28-29, 1964-65, पृ0 34-35, 1970-71, पृ0 31-32.
2. इण्डियन आर्कियोलॉजी ए रिव्यू, 1963-64, पृ0 28-29, 1962-63, पृ0 34-35, 1963-64, पृ0 44-49, 1965-66, पृ0 44-49.
3. मिश्र,अशोक के0, 1989, ‘द इण्डियन ब्ल्ौक वेयरस् फर्स्ट मिलिनियम बी0सी0’, दिल्ली,पृ041.
4. सिंह, पुरुषोत्तम, 1994, ‘एक्सकवेशन्स एट नरहन’ (1984-89), दिल्ली, पृ0 38.
5. राव, नागराजा, एम0एस0, 1965, दि स्टोन एज हिल-डेवलर्स ऑफ टेक्कलकोटा, पूना।
6. अल्चिन, एफ0आर0, 1960, पिक्कलिहल एक्सकवेशन्स, हैदराबाद।
7. श्रीवास्तव, के0एम0, 1980, कम्युनिटी मूवमेंट्स इन प्रोटो हिस्टारिक इण्डिया, पृ0 48-129.
8. मिश्र, अशोक के0, पूर्वोक्त, पृ0 43.
9. अगियावीर का उत्त्खनन 2005-06, त्रिपाठी विभा एवं अशोक कुमार सिंह, भारती, अंक 30, पृ0सं0 18, चित्र सं0 10, पात्र सं0 13)
10. नरहन उत्खनन 1984-89, सिंह पुरुषोत्तम, ए0 के0 सिंह, पृ0 सं0 108, चित्र सं0 41, पात्र सं0 02)
डॉ0 प्रवीन कुमार मिश्र
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष,
प्रा0भा0इ0सं0 एवं पुरातत्त्व विभाग,
डीन, कला संकाय,
नेहरू ग्राम भारती डीम्ड विश्वविद्यालय,
इलाहाबाद।