Thursday 1 January 2015

किशोरावस्था के छात्र-छात्राओं में अध्ययन के प्रति आदतों का : तुलनात्मक अध्ययन


अलका पाठक

      आज के वैज्ञानिक तकनीकी समाज में सभी को जीविका निर्वाह के लिए षिक्षा ग्रहण करना अत्यन्त आवष्यक हैं, क्योंकि षिक्षा ही व्यक्ति के व्यिंक्तत्व को सजाती है, सँवारती है, मनुष्य मस्तिष्क को प्रषिक्षित करती है। षिक्षा के माध्यम से छात्र व छात्राओं में अच्छी अध्ययन की आदतों को समझ उनका विकास किया जाता है व अध्ययन की अच्छी आदतों का विकास कर योग्य प्रषिक्षण दिया जाता है, परिणाम स्वरूप छात्र-छात्राओं की शैक्षिक उपलब्धि में सुधार व वृद्धि की जाती है।
     बालकां की अध्ययन सम्बन्धी आदतों का प्रभाव भी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ता है। यदि बालकों में अच्छी आदतों का विकास होगा तो वे सफलतापूर्वक किसी भी कार्य को करने का दृढ़ संकल्प कर सकें। इसके विपरीत यदि मानसिक तनाव होगा तो बालक का शैक्षिक स्तर गिरता चला जायेगा। जिससे उसकी शैक्षिक उपलब्धि कम होगी तथा शैक्षिक आदतों का भी विकास नहीं हो पाता है। बालक में बहुत सी बुरी आदतें जैसे- पढ़ने के प्रति लापरवाही, एक विषय को ज्यादा समय तक पढ़ना, कठिन विषय पर ध्यान न देना, लेटकर पढ़ना, पढ़ने के प्रति लगन नहीं होना आदि आदतें भी परिवार व विद्यालय से आती है। जिससे इनका शैक्षिक उपलब्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

अध्ययन का औचित्यः-
         ‘‘किषोरावस्था उस तालाब के समान है, जिनमें समस्या रूपी पवन की लहरे उठती हैं जिसके कारण किषोरावस्था में प्रवेष करने पर बाल्यावस्था में अर्जित स्थिरता पुनः अस्थिरता में बदलने लगती हं,ै और शारीरिक एवं मानसिक अवस्था अव्यवस्था का रूप धारण कर लेती है। इन समस्या रूपी लहरों का विवेक रूपी नौका द्वारा सामना कर उसका व्यिंतव निर्मल जल के समान झलकने लगता है।’’ निःसंदेह मानव जीवन के विकास की प्रक्रिया में किषोरावस्था का महत्वपूर्ण स्थान है। इसी अवस्था में उसमें विभिन्न प्रकार की नई-नई आदतें विकसित होती है।
      व्यक्ति जब किसी कार्य को करने की इच्छा प्रकट करता है, फिर उस कार्य को करता है, बार-बार उस क्रिया को दोहराता है, इस प्रकार उस कार्य को करने में स्थायित्व आ जाता है, अेर वह काम आदत बन जाती है। इस प्रकार आदत एक अर्जित व्यवहार है। अतः जिस कार्य को हम बार-बार करते है वह हमारी आदत बन जाती है, इसी प्रकार अध्ययन करते-करते छात्र के लिए यह अध्ययन एक आदत बन जाता है। छात्र अधिकांष समय घर के बाहर व्यतीत करते हैं व छात्राएॅ घर के अन्दर। छात्र व छात्राओं दोनों के अध्ययन करने का तरीका भी भिन्न-भिन्न होता है। अध्ययन की आदतों पर निम्न शोध कार्य हुए हैं- जैन(1967), कान्ता(1979), शेजवाल(1980), सुनन्दा(1980), तिवारी(1982), सिह(1984), चिल्मीकोल्लेड(1987), डॉ.एम. मुखोपाध्याय और डॉ.डी.एन. सनसनवाल (1983), बुद्धिसागर एम. (1979), भोगोलिवाल (1960), कापुस्ता रिक्की (1980), कॉइवो एनी पिलक (1983), पटनायक (1986), पैजुलो (1984), राजोरिया (1986), विकोप भारजरी (1980).
     उपरोक्त अध्ययनों का प्रभाव किषारावस्था में अध्ययन की आदतों पर है। आज षिक्षा का दिन-प्रतिदिन विकास होता जा रहा है वो विद्यार्थी भी स्वयं में अध्ययन के प्रति नई-नई आदतों का विकास कर रहा है। छात्र अपनी अलग योजना बनाकर अध्ययन करते हैं, तो छात्राएॅ भी अलग योजना बनाकर अध्ययन करती है। अध्ययन की आदतों के दिन-प्रतिदिन छात्र-छात्राओं में बढ़ते विकास के कारण शोधकर्ता के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि छात्र-छात्राओं में अध्ययन के प्रति ऐसी कौन-सी आदतें है जिनके कारण उनमें निरन्तर विकास हो रहा है और परिवर्तन भी हो रहा है। अतः इसी जिज्ञासा को शांत करने हेतु शोधकर्ता द्वारा उक्त समस्या का चयन किया गया। भारत में अधिकांष छात्र-छात्राएॅ ऐसे है। जो अध्ययन के प्रति नई आदतों का विकास स्वयं में कर रहे हैं, एक प्रकार की भिन्नता प्रदर्षित होती है। अतः वर्तमान समस्या को ध्यान में रखकर अध्ययनकर्ता ने इस विषय का चुनाव किया, जिससे आने वाले समय में षिक्षा के क्षेत्र में और विकास संभव हो सकें। इसलिए माध्यमिक स्तर पर छात्र-छात्राओं का शोधकर्ता ने शोध कार्य हेतु अध्ययन की आदतों के आधार पर चयन किया।
अध्ययन के उद्देष्यः-
किशोरावस्था के छात्र-छात्राओं में अध्ययन के प्रति आदतों का एक तुलनात्मक अध्ययन।
किषोरावस्था के छात्र-छात्राओं में अध्ययन संबंधी आदतों के निर्माण का अध्ययन।
किषोरावस्था के छात्र-छात्राओं की अध्ययन की आदत में षिक्षक की भूमिका का अध्ययन।
किषोरावस्था के छात्र-छात्राओं में पायी जाने वाली अध्ययन की आदत का उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन।
अध्ययन की परिकल्पनाएॅः-
किषोरावस्था के छात्र व छात्राओं की अध्ययन संबंधी आदतों में कोई सार्थक अंतर नहीं होगा।
छात्र-छात्राओं में अध्ययन संबंधी आदतों के निर्माण पर कोई सार्थक प्रभाव नहीं होगा।
किशोरावस्था के छात्र-छात्राओं के अध्ययन की आदत में विद्यालय के अंतर्गत षिक्षक की भूमिका में कोई सार्थक अंतर नहीं होगा।
किषोरावस्था के छा-छात्राओं में पायी जाने वाली अध्ययन की आदत का उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव में कोई सार्थक अंतर नहीं होगा।
शोध विधिः- समस्या की आवष्यकतानुसार प्रस्तुत अध्ययन को सर्वेक्षण विधि के अन्तर्गत रखा जाएगा क्योंकि वर्तमान क्रिया की सार्थकता सिद्ध करने अथवा इसमें सुधार व विकास के लिए वर्तमान समय में संबंधित आँकडें़ एकत्र करने के लिए सर्वेक्षण विधि के अंतर्गत विद्यालयी व प्रतिदर्ष सर्वेक्षण को लिया जाएगा।
न्यादर्ष का चयनः- न्यादर्षन समूह आधारित होता है और यह समूह इकाइयों का होता है, ये इकाइयाँ चुनी हुई होती है। इस प्रकार न्यादर्ष ऐसी इकाइयों का समूह है जो समूह जनसंख्या का पर्याप्त प्रतिनिधित्व करता है।
       शोधकर्ता द्वारा इन्दौर शहर के ‘इषहाक पटेल पब्लिक स्कूल’ (आई.पी.पी.एस.) में अध्ययनरत् कक्षा दसवीं के छात्र-छात्राओं का प्रतिदर्ष के रूप में यादृच्छिक विधि से चयन किया गया और उसमें 50 विद्यार्थी (25 छात्र व 25 छात्राएँ) को न्यादर्ष के लिए चयनित किया गया।
उपकरणः- प्रस्तुत शोध के अध्ययन के अन्तर्गत शोधार्थी द्वारा मुखोपाध्याय एवं सनसनवाल निर्मित अध्ययन की आदतों की सूची का प्रयोग किया गया है। इसके अंतर्गत 52 प्रष्न है व प्रष्नों को नौ घटकों- (1) समझने की योग्यता (2) एकाग्रता (3) कार्य प्रतिस्थापन (4) सैट्स (5) अर्न्तक्रिया (6) अभ्यास (7) सहारा देना (8) नोट करना (9) भाषा के अन्तर्गत रखकर मूल्यांकन किया गया है। छात्र-छात्रा को एक खाने में क्रॉस (ग) का चिन्ह लगा देना है।
प्रदत्तों का संकलनः- चयनित विषय के संदर्भ में प्रधानाध्यापक से अनुमति प्राप्त कर शोध कार्य की प्रक्रिया का क्रियान्वयन किया गया है।
       शोधार्थी ने आई.पी.पी.एस विद्यालय के कक्षा दसवीं के 25 छात्र व 25 छात्राओं से आदत की सूची द्वारा प्रदत्त संकलन किया गया है।
प्रदत्तों का विष्लेषणः- विष्लेषण के लिए माध्य, मानक विचलन व ‘ज’ मूल्य ज्ञात कर छात्र-छात्राओं की अध्ययन की आदत का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। जिसके उपरांत प्राप्त परिणामों का उल्लेख निम्नांकित तालिका में किया गया है।
       छात्र व छात्राओं की अध्ययन संबंधी आदतों के फलांको का माध्य, मानक विचलन व ‘ज’ मूल्य संबंधित परिणाम तालिकाः-
समूह आवृत्ति माध्य समन्वित मानक विचलन ‘‘ज’’ मूल्य
छात्र 25 130.68 3.108 -16.36
छात्राएँ 25 145.08
0.5 स्तर पर सार्थक
       उपर्युक्त तालिका से विदित होता है कि, प्राप्त ‘ज’ मूल्य -16.36 सार्थकता के स्तर .05 स्तर पर सार्थक अंतर नहीं है।
    अतः शून्य परिकल्पना ‘किषोरावस्था के छात्र-छात्राओं में अध्ययन के प्रति आदतों के फलांकों के माध्यों में सार्थक अंतर नहीं होगा’ को स्वीकार किया जाता हैं।
    अतः किषोरावस्था के छात्र व छात्राओं के मध्य अध्ययन संबंधी आदतों के प्राप्तांकों में सार्थक अंतर नहीं पाया गया है।
परिणामः- किषोरावस्था के छात्र-छात्राओं की अध्ययन की आदतों का तुलनात्मक अध्ययन ‘ज’ परीक्षण द्वारा ज्ञात किया गया। ‘ज’ मूल्य-16.36 सार्थकता के स्तर .05 स्तर पर सार्थक नहीं है। अतः शून्य परिकल्पना ‘किषोरावस्था के छात्र-छात्राओं में अध्ययन के प्रति आदतों के फलांकों के माध्यों में सार्थक अंतर नहीं होगा’ को स्वीकार किया जाता है।
     अतः किषोरावस्था के छात्र व छात्राओं के मध्य अध्ययन संबंधी आदतों के प्राप्तांकों में सार्थक अंतर नहीं पाया गया है व इसका प्रमुख कारण यह हो सकता है कि, दोनों समूह किषोरावस्था के कक्षा दसवीं के हैं, दोनों ही समूहों की औसत आयु भी लगभग बराबर थी, अतः दोनों वर्ग छात्र व छात्राओं को एक ही प्रकार का उच्च शैक्षिक वातावरण उपलब्ध था। समस्त छात्र-छात्राएॅ सम्पूर्ण सत्र सतत् मूल्यांकन व अध्ययन में व्यस्त थे, अतः दोनों वर्गो की अध्ययन की आदतें अच्छी व समान रही।
सुझावः- प्रस्तुत शोध प्रबंध में किषोरावस्था के छात्र व छात्राओं की अध्ययन की आदतों का तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रयास किया गया है, भविष्य में इस संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए निम्न क्षेत्र लाभदायक होंगे।
अध्ययन की सीमा को देखते हुए व्यापक सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता। अतः यह आवष्यक है कि, इस समस्या का अध्ययन एक बडे न्यादर्ष को लेकर किया जाना चाहिए।
बाल्यावस्था के छात्र-छात्राओं में अध्ययन की आदतों का तुलनात्मक अध्ययन।
किषोरावस्था के छात्ऱ-छात्राओं की सामान्य आदतों का अध्ययन।
किषोरावस्था के छात्र-छात्राओं की अच्छी बुरी आदतों का अध्ययन।
शहरी छात्र-छात्राओं की अध्ययन की आदतों का तुलनात्मक अध्ययन।
ग्रामीण छात्र-छात्राओं की अध्ययन की आदतों का तुलनात्मक अध्ययन।
हरिजन छात्र-छात्राओं व सवर्ण छात्र-छात्राओं की अध्ययन की आदतों का अध्ययन।
घर परिवार में रहने वाले व घर से बाहर रहने वाले (होस्टल) छात्र-छात्राओं की अध्ययन की आदतो का तुलनात्मक अध्ययन।
उच्च बुद्धि व निम्न बुद्धि वाले किषोर व किषोरियों की अध्ययन की आदतों का तुलनात्मक अध्ययन।
भारतीय किषोर-किषोरियों की अध्ययन की आदतों की अन्य देषों के किषोर किषोरियों से तुलना।
अपंग किषोर-किषोरियों व सामान्य किषोर-किषोरियों की अध्ययन की आदतों का तुलनात्मक अध्ययन।
झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले किषोर-किषोरियों की अध्ययन की आदतों में अंतर।
संदर्भ ग्रंथ सूची
(भाग-अ)
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डॉ0 अलका पाठक 
एम.ए., एम.एड., पी.-एच.डी. (षिक्षा)
      प्राचार्या, उमिया कन्या षिक्षा महाविद्यालय
मण्डलेष्वर, जिला-खरगोन (म.प्र.)