Thursday 1 January 2015

नेपाल की विदेष नीति : आर्थिक कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य


आशीष कुमार सोनकर

किसी भी देष की विदेष नीति की भाँति नेपाल की विदेष नीति को निर्धारित करने वाले विविध तत्त्व है जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण इसकी सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, भौगोलिक बाध्यताएं एवं शिन्त, सुरक्षा, विकास तथा स्थायित्व आदि तत्व है। ये सभी कारक निष्चित रूप से नेपाल की विदेष नीति के विकास में प्रभाव डालने वाले हैं लेकिन ये प्रभाव इसके भौगोलिक अवस्थिति एवं आर्थिक संसाधनों के कारण परिवर्तित भी हो सकते है। नेपाल में जल-विद्युत एवं ऊर्जा, पर्यटन तथा वन संसाधन प्राकृतिक रूप से प्राप्त ऐसे आर्थिक स्रोत हैं जिनसे नेपाल की आर्थिक सुदृढ़ता सुनिश्चित की जा सकती है। इन आर्थिक श्रोतों एवं संसाधनों के विकास पर नेपाल का सामाजिक-आर्थिक ढॉंचा निर्भर है।
नेपाल में अनियमित आर्थिक विकास एवं सुधारों ने सामाजिक आंदोलनों को बढ़ावा दिया है। असमान सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था ने नेपाली जनमानस को सामंती व्यवस्था को समाप्त कर लोकतांत्रिक मूल्यों की ओर अग्रसर किया। लोकतंत्र की खोज की दिषा में नेपाली समाज ने कई आंदोलन किए जिससे नेपाल की विदेष नीति पर आधुनिक एवं विकासवादी नेपाली समाज की छाप पड़ी। इस विकास की पहल करते हुए नेपाल ने विभिन्न देषों एवं संगठनों के साथ द्विपाक्षिक सम्बन्धों को बहुआयामी तरीके से और अधिक संगठित एवं मजबूत बनाया। यद्यपि नेपाल की विदेष नीति के समक्ष इसके नीतियों को निरंतर लागू रखने एवं स्वतंत्र रूप से विदेष नीति को अग्रेसित करने की चुनौती है किन्तु विष्व भर के राज-व्यवस्थाओं में हो रहे भूमण्डलीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण के परिवर्तनों एवं प्रतिस्पर्धा से नेपाल भी लाभान्वित है।
नेपाल को भूमण्डलीकरण के पूर्व भी इसके सहयोगी राष्ट्रों से विभिन्न आर्थिक सहायता एवं सुविधाएँ मिलती रही हैं लेकिन आर्थिक सहयोग ने नेपाल की आर्थिक निर्भरता को कम करने की अपेक्षा और अधिक आर्थिक निर्भर बना दिया है। इसे अपनी विदेष नीति के संचालन के सन्दर्भ में एक मजबूत बाजार एवं अर्थव्यवस्था की आवष्यकता है जिसका स्वरूप मात्र उपभोक्तावादी संस्कृति की अपेक्षा उत्पादनमूलक हो, आश्रित की अपेक्षा आत्मनिर्भर हो जो नेपाल के विदेष नीति एवं समाज के विकास में सहायक है।

नेपाल की आर्थिक उन्नति उसे उसकी योग्यता के अनुरूप मिलने वाली चुनौतियों पर निर्भर है जिससे यदि नेपाल को पार पाना है तो अपनी घरेलू बाध्यताओं, आर्थिक उपलब्धियों एवं संसाधनों की निपुणता तथा अन्य देषों के साथ सम्बन्धों पर विषेष ध्यान देना होगा। नेपाल के पास उपलब्ध जल एवं आर्थिक संसाधनों का प्रयोग खाड़ी देषों एवं अन्य तेल उत्पादक देषों की भांति, पर्यटन का प्रयोग यूरोपीय देषों की भांति अपनी विदेष नीति एवं अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर मजबूत स्थिति प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।1
एक आधुनिक राज्य के रूप में स्थापित होने के बाद से ही नेपाल में आर्थिक कूटनीति के लक्षण इसकी विदेष नीति में परिलक्षित होने लगे थे और प्राचीन मुक्त व्यापार समझौते ने इसे वैचारिक आधार भी प्रदान किया है।2 नेपाल ने 1950 के मध्य काल में राजा महेन्द्र के शासन काल से ही नेपाल की क्षमता को मजबूत करने एवं इसे बढ़ाने हेतु व्यापार में परिवर्तन की नीति का अनुसरण शुरू कर दिया। इस प्रयास की दिशा में नेपाल ने इस दौरान चीन, पाकिस्तान, सोवियत संघ रूस एवं यूरोपीय देषों से वस्तु-विनिमय आधारित समझौते स्थापित किये। चीन एवं यूरोपीय देषों से मिलने वाले व्यापक आर्थिक सहयोग ने नेपाल की भारत पर अत्यधिक निर्भरता को कम किया है। 1960 एवं 1970 के दषकों के दौरान नेपाल में लघु व्यापारिक क्षेत्रों एवं सुधारों को भी आर्थिक कूटनीतिक प्रक्र्रिया की ओर मोड़ा जाने लगा। नेपाल ने सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व के विषयों के साथ-साथ विदेषी विनिमय अधिनियम (1962) एवं भूमि सुधार अधिनियम (1964) को प्रभावी तरीके से लागू किया।
1981 मे विदेष मंत्रालय एवं ट्रेड प्रमोषन सेन्टर ने मिलकर काम करना शुरू किया तथा नेपाल के आर्थिक सम्बन्ध से जुड़े विदेष में अपने सभी अधिकारियां को एक निर्देष जारी किया। इस निर्देष में उन्हें समुचित धन एवं सुविधाएं उपलब्ध करायी जायेंगी। यह निर्देष नेपाल में व्यापार, पर्यटन, संयुक्त विदेषी उपक्रमों को बढ़ावा देने, बाजार क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने, व्यापार मेलों एवं प्रदर्षनियों में सहभागिता तथा व्यापार से जुड़ी षिकायतों को दूर करने आदि के प्रयासों एवं उद्देष्यों से परिपूर्ण था। लेकिन उस समय नेपाल की आर्थिक कूटनीति को गंभीरतापूर्वक लागू न कर पाने के कारण यह नीति असहाय हो गई।
नेपाल में 1990 में गिरिजा प्रसाद कोईराला के नेतृत्व मे सरकार गठन के बाद भी आर्थिक कूटनीति पर नेपाल सरकार का विषेष ध्यान था। प्रधानमंत्री कोईराला ने, जो स्वयं विदेष मंत्रालय संभाल रहे थे, वैदेषिक सम्बन्ध संस्थान, नीति-नियामक इकाई एवं आर्थिक विष्लेषक ईकाई को संयुक्त रूप से विदेष मंत्रालय के साथ मिलाकर कार्य करने का प्रयास प्रारंभ किया। दुर्भाग्यवष यह कार्यबल भी समुचित कार्मिक एवं आर्थिक प्रबंधन के अभाव में अक्रियाषील ही रहा।
नेपाल सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध में आर्थिक कूटनीति के बढ़ते महत्व को बखूबी जान लिया था अतः इसने विदेष मंत्रालय को पुनः अधिक क्रियाषील बनाने के उद्देष्य से एक उच्चस्तरीय कार्यबल का नवम्बर, 1995 में गठन किया। इस कार्यबल का उद्देष्य विदेष मंत्रालय के सांगठनिक ढाँचे, इसके कार्य एवं भूमिका, इसके अपने दूतावासों से सम्बन्धों का गहन अध्ययन एवं विष्लेषण करना था। इस कार्यबल ने भी अपने अध्ययन के बाद प्रमुख रूप से विदेष मंत्रालय की संरचना में सुधार एवं नये आर्थिक सम्बन्धां और समन्वयक ईकाईयां की स्थापना के साथ-साथ विदेषां में नेपाल के दूतावासों एवं मिषनों को अधिक मजबूत करने का सुझाव दिया।
नेपाल सरकार के इन प्रयासों का सीधा अर्थ था कि नेपाल अपनी आर्थिक कूटनीति को लेकर काफी संवेदनषील था। इन सुधारवादी नीतियों एवं प्रयासों का लक्ष्य विदेषी व्यापार, पर्यटन एवं पूंजी निवेष को आकर्षित करने के साथ-साथ नेपाल की छवि को भूमण्डलीकरण से ओत-प्रोत आर्थिक व्यवस्था के रूप में प्रदर्षित करने का प्रयास था। नेपाल जैसी अर्थव्यवस्था के लिए सम्भवतः यह एक चुनौतीपूर्ण विषय था जबकि भूमण्डलीकरण ने पूरी दुनिया के बाजार एवं अर्थव्यवस्था को प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ अवसर भी सुलभ कराया है।
भूमण्डलीकरण एवं खुली बाजार व्यवस्था ने दुनिया भर के लोगों के लिए बाजार ही नही सामाजिक दायरों को भी बढ़ा दिया था। नेपाल में संपूर्ण लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग होने लगी थी। 1996 के जनांदोलन ने स्पष्ट कर दिया था कि नेपाल में किसी वर्ग के हितों की अनदेखी करते हुए नेपाल की विदेष नीति एवं आर्थिक कूटनीति को संचालित एवं सफल बनाने का प्रयास असफल होगा।
1996 में माओवादी संगठनों द्वारा सामाजिक-आर्थिक आंदोलन की शुरूआत ने नेपाल के आर्थिक प्रयासों को दबाव में ला दिया था क्योंकि माओवादी आंदोलनकारियों के अनुसार अनियमित विकास एवं भ्रष्ट प्रषासन सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के लिए दोषी थे। 2001 में राजमहल हत्याकांड ने नेपाल के साथ-साथ पूरी दुनिया को स्तब्ध किया। राजषाही के विरुद्ध अविष्वास एवं राजमहल हत्याकांड के बाद आंदोलन ने और तेजी पकड़ी थी। अप्रैल, 2006 में आंदोलनकारियों ने राजषाही को समाप्त करने और नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना को लेकर समूचे नेपाल मे बंद का आह्वान किया और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन को सफलता की ओर ले गये। यद्यपि माओवादी आंदोलनकारियों के कारण नेपाल में अनिश्चितता का दौर था तथापि समूची दुनिया से नेपाल में होने वाले व्यापार, पूंजी निवेष एवं लेन-देन का क्रम निरन्तर जारी रहा। हालांकि इस पर न्यूनाधिक असर अवष्य पड़ा तथा इस दौरान व्यापक राजनीतिक परिवर्तन भी हुए।
अप्रैल, 2006 में राजा ज्ञानेन्द्र (तत्कालीन नेपाल नरेष) ने नेपाल सरकार की बागडोर सात दलों के समूह को सौंप दिया। किसी भी प्रकार के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए शांति एवं स्थायित्व एक आवष्यक तत्व है जिसकी स्थापना के उद्देष्य से 8 नवम्बर, 2006 को सात दलां एवं माओवादियां ने शांति समझौता किया। इस शांति समझौता का उद्देष्य नेपाल को उसके चिरस्थायी हितों की ओर अग्रसर करना एवं संविधान सभा का चुनाव कराना था।
नेपाल में इस प्रकार की एक दषक तक राजनीतिक अस्थिरता ने विदेषी व्यापार एवं निवेष को बढ़ाने के प्रयासों मे व्यापक परिवर्तन किये। राजनीतिक दलों के द्वारा अपने-अपने दलगत नीतियों के आधार पर विदेषों से सम्बन्ध, व्यापार एवं वस्तु-विनिमय पर जोर दिया जाने लगा। इससे नेपाल के आर्थिक कूटनीतिक प्रयासां को बहुआयामी स्वरूप प्राप्त हुआ। अर्थव्यवस्था एवं बाजार में और अधिक प्रतिस्पर्धाएं एवं चुनौतियाँ उभरने लगी। अब यह व्यवस्था न सिर्फ नेपाल की विदेष नीति तक सिमित थी वरन यह नये गणतांत्रिक नेपाल की नयी संरचना मे भी सहयोग मूलक साबित होने लगा। नेपाल में उस प्रकार का आर्थिक ढॉंचा उपलब्ध नही था जैसा कि उसके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये आवश्यक था। अतएव नेपाल में बाह्य पूॅंजी निवेश को बढ़ावा देने एवं आर्थिक गतिकी को तेज करने के उद्देश्य से नेपाल ने अपनी सरकार एवं अर्थव्यवस्था का ध्यान केन्द्रित किया।
     प्रत्यक्ष पूंजी निवेष- नेपाल में पूँजी निवेष के इतिहास का प्रारम्भ 1951-1952 में तब शुरू हुआ जब नेपाल वाणिज्यिक निगम ने भारत के साथ मिलकर एक संयुक्त उपक्रम की स्थापना की जिसमें भारत का 67٪ हिस्सा था। यह शुरूआत काफी धीमी थी क्योंकि 1960 तक नेपाल में मात्र 10 औद्योगिक ईकाइयॉं ही पंजीकृत हो सकी थी। 1961 में नेपाल में पूँजी निवेष के निमित्त एक प्रावधान बनाया गया जिसमें मध्यम एवं भारी उद्योगों का प्रावधान शामिल था। यह नेपाल में आर्थिक ढाँचे को सुधारने एवं विष्व की अर्थव्यवस्था से लाभ प्राप्त करने का प्रयास था। 1974 में विदेषी निवेष को आधारभूत उद्योगों की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया गया लेकिन नेपाली निवेषकां को बाहरी निवेषकां की तुलना में वरीयता प्राप्त थी।
विदेषी निवेष एवं तकनीकी अधिनियम, 1981 ने विदेषी निवेषकों को और अधिक प्रोत्साहित किया जिसमें उन्हें भारी उद्योगों की लागत में पूरी स्वायत्तता एवं मध्यम उद्योगों में अधिकतम भागीदारी का प्रस्ताव था। इसके साथ-साथ पाँच वर्षां तक उत्पादन से जुड़े उद्योगों को आयकर से मुक्त रखा गया जबकि पर्यटन से जुड़े क्षेत्र सात वर्षां तक आयकर मुक्त होंगे। इसके अतिरिक्त मुद्रा विनिमय, मषीनों को लाने, कच्चे माल एवं प्रबंधन शुल्क आदि में तमाम रियायतें उपलब्ध थी। नेपाल सरकार ने अब तक लघु एवं कुटीर उद्योगों को निवेष प्रतिस्पर्धा से मुक्त रखा था जिस पर पूर्णतया नेपालियों का वर्चस्व था।
अभी भी नेपाल (1989 से पूर्व तक) एक बन्द अर्थव्यवस्था के रूप में विद्यमान था जहाँ बाह्य पूँजी निवेष के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं थे, आयात दरें काफी ऊँची और प्रावधान काफी पेंचीदा थे। यह सभी कारण पूँजी निवेष को हतोत्साहित करने के लिये काफी थे। जुलाई, 1989 तक मात्र 59 परियोजनाओं के साथ कुल बाह्य पूँजी निवेष रू04668.4 लाख रूपये ही था। नेपाल द्वारा किये गये प्रयासों का प्रभाव धीर-धीरे बढ़ा जबकि वर्ष 1989-90 में रू0 3985.1 लाख, 1990-91 में रू0 4062.8 लाख तथा 1999-92 में रू0 5978.4 लाख का कुल वार्षिक पूँजी निवेष हुआ।3
वर्ष 1991 के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया ने बाजार एवं आर्थिक जगत में नया उत्साह संचरित किया। नेपाल द्वारा आर्थिक क्षेत्र में किये प्रयासों का सुपरिणाम उसे मिलने वाला था। नेपाल ने पूँजी निवेष तकनीकी स्थानान्तरण अधिनियम, 1992 द्वारा पूर्व में मध्यम एवं भारी उद्योगों को दी गई छूट को और अधिक बढ़ा दिया। विदेषी उद्योगों को लघु एवं कुटीर उद्योगों की तरफ निवेष के लिए प्रेरित किया जिससे छोटी पूँजी एवं लागत के भी विदेषी निवेष अधिक संख्या ने प्राप्त हो सके। इसका परिणाम यह रहा कि वर्ष 1992-93 में जबदस्त पूँजी निवेष (कुल रू0 30836.7 लाख) प्राप्त हुआ।4 यह नेपाली अर्थव्यवस्था एवं सरकार को काफी प्रोत्साहित करने वाला था। नेपाल ने अनुकूल समय में पूँजी निवेष अधिनियम में संषोधन करके विदेषी निवेष को बढ़ावा देने का प्रयास किया जिसे वैष्वीकरण ने खूब सहारा दिया। वर्ष 1996 में पूँजी निवेष अधिनियम में पुनः संषोधन करके नेपाल सरकार ने सभी क्षेत्रों में (लघु एवं कुटीर, मध्यम तथा भारी उद्योगों) 100٪ तक निवेषकर्ताओं की हिस्सेदारी तय कर दी। उद्योग विभाग के आंकड़ों का यदि आकलन करें तो वर्ष 1994-95 को यदि छोड़ दिया जाय तो नेपाल ने प्रत्येक वर्ष (1997-2003) भरपूर पॅूंजी निवेष प्राप्त किया है।
यह परिर्वतन लगातार बाजारीकरण के दौर से गुजर रही समूची दुनिया के साथ-साथ नेपाल के अपने आर्थिक प्रयासों के परिणाम थे जिसने अपने प्रयास में आषातीत सफलता अर्जित की। जहांँ यह 1999 में 44 लाख डालर थी वही 2001 में 209 लाख डालर तक पहुँच गई। लेकिन राजमहल हत्याकांड जैसी अप्रत्याषित घटना ने इसे घटा कर 2002 में 92 लाख डालर पर ला खड़ा किया जो अपेक्षाकृत 1995 व इससे पूर्व के आंकड़ों की तुलना में बेहतर ही था। यह कहना उचित होगा कि प्रत्यक्ष पॅूंजी निवेष के क्षेत्र में नेपाल के नीतियों की सकारात्मक शुरूआत रही जिसके लाभप्रद परिणामस्वरूप नेपाल में 2008 तक कुल 124 संयुक्त उपक्रम विभिन्न देषों द्वारा स्थापित किये जा चुके हैं जिनकी कुल लागत रू0 103880.9 लाख है। इनमें सर्वाधिक उपक्रम निर्माण क्षेत्र से जुड़े हैं जिनकी संख्या 54 तथा लागत रू0 35362.4 लाख है। इसके बाद पर्यटन एवं सेवा क्षेत्र है जहाँ क्रमषः 30 उपक्रम (कुल लागत रू0 19741.7 लाख) एवं 28 उपक्रम (कुल लागत रु0 19038.1 लाख) स्थापित किये गये हैं। नेपाल में भारत सबसे बड़े पूंॅजी निवेष कर्ता देषों में से एक है जिसके 39 उपक्रम (कुल लागत रू0 27877.7 लाख) और कुल उपक्रमों का लगभग 30٪ हिस्सा है।5 वहीं अपने साम्यवादी पड़ोसी देष चीन को भी नेपाल ने 11 उपक्रमों (रू0 21797.1 लाख) के साथ दूसरा बड़ा सहयोगी बनाया है अर्थात अपनी आर्थिक कूटनीतियों में दो बड़े एषियाई महाषक्तियों एवं पड़ोसियों को अधिक अवसर दिये हैं।
व्यापार क्षेत्र - दक्षिण एषिया मे श्रीलंका, पाकिस्तान एवं बांग्लादेष की तुलना में यदि भूटान व मालदीव को छोड़ दिया जाय तो नेपाल उतनी अधिक आर्थिक मजबूती प्राप्त नहीं कर सका जितना की अन्य देषों ने प्राप्त की। चूंकि नेपाल एक भू-सम्बद्ध राष्ट्र है जिस कारण उसकी अपनी आर्थिक विवषताएं भी रही है लेकिन इसकी भू-सामरिक स्थिति ने इसे आर्थिक लाभ भी दिया हैं। यद्यपि इस आर्थिक लाभ ने नेपाल की नीतियों पर व्यापक असर डाला है जो नेपाल के निरंतर बदलते राजनीतिक परिवेष एवं सामाजिक-आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण कारक साबित हुए हैं। नेपाल द्वारा किये जाने वाले व्यापारिक लेन-देन के विष्लेषणों से हमे पता चलता है कि भारत-चीन की आर्थिक-सामरिक प्रतिस्पर्धा ने विषेष रूप से नेपाल में इनके व्यापारिक हितो एवं निवेष अन्य देषों की अपेक्षा अधिक आकर्षित किया है।
नेपाल के कुल व्यापार में अकेले भारत ने 1980-81 के दौरान 52.5٪ का व्यापार किया जबकि अन्य देषों द्वारा यह 47.5٪ ही था किन्तु उदारीकरण एवं खुली बाजार व्यवस्था ने इसे प्रभावित करते हुए इसमें व्यापक परिवर्तन किये। 1990-91 में यह बदल गया जिसमें भारत से कुल व्यापार का 29٪ हिस्सा था तो अन्य देषों का 71.0٪  हिस्सा था।  इसने भारत पर नेपाल की निर्भरता को कम करते हुए नेपाल का भारत से जो व्यापारिक घाटा 1980-81 में 42.1٪ (रू0 11868 लाख) था, से घटकर 1990-91 में 36.4٪ (रू057709 लाख), 1996-97 में 27.7٪ (रू0196271लाख) तक पहुँचा दिया जबकि अन्य देषों पर नेपाल की व्यापारिक निर्भरता में व्यापक वृद्धि हुई। 1996 से 1998 तक भारत में भी अस्थिर सरकारों के कारण पूंजी एवं बाजार क्षेत्र में भी अस्थिरता रही। नेपाल को भारत के अलावा अन्य अर्थव्यवस्थाओं ने भले ही आकर्षित किया हो लेकिन सन् 2000 से भारत-नेपाल व्यापारिक सम्बन्ध पुनः अन्य देषों की तुलना में काफी मजबूत हुए। 1998-99 में यदि आकड़ों का आंकलन करे तो पता चलता है कि भारत से नेपाल का कुल व्यापार 36.2٪ ( रू0 44654 लाख) था जबकि अन्य देषों से यह 63.8٪ (रू0 785512 लाख) था जो पाँच वर्षो बाद 2000-01 में बदल गया। भारत-नेपाल का कुल व्यापारिक लेनदेन अन्य देषों से 42.4٪ (रू0 806712 लाख) की तुलना में 15.2٪ अधिक होकर 57.6٪ (रू0 1095166 लाख पर) जा पहुँचा।6
नेपाल ने पुनः भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति झुकाव को महत्व देते हुए भारत के साथ आर्थिक सम्बन्धों को अन्य देषों की तुलना में अधिक महत्व दिया। 2001-02 में भारत-नेपाल ने कुल 54.8٪ (रू0 845783 लाख) का व्यापार किया जो जनांदोलन 2006 के बाद बढ़कर 2006-07 में 63.2٪ (रू01596152 लाख) तथा नेपाल में संविधान सभा चुनाव के बाद तक 2007-08 में 64.3٪ (रू01809322 लाख) तक हो गया। नेपाल में हो रहे व्यापक समाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के बाद माओवादियों की सक्रिय राजनीति में बड़ी भागीदारी प्राप्त करने के बावजूद 2008-09 मे यह व्यापारिक लेनदेन 58.2٪ (रु0 2048565 लाख) तक पहुंचा दिया।7 इन आकड़ो ने यह स्पष्ट किया है कि नेपाल ने अपने संक्रमण काल के दौरान चतुर आर्थिक कूटनीति का प्रयोग करते हुए पड़ोसी भारत से परस्पर आर्थिक सम्बन्धों को क्षीण नही होने दिया है। यही नहीं नेपाल की लगातार बहुआयामी अनुदानों एवं चीन तथा अन्य देषों की आर्थिक व्यवस्थाओ के प्रति बढ़ती अभिरूचि के बाद भी नेपाल ने भारत को अपना व्यापारिक साझेदार बनाये रखा है। लेकिन यह एक स्वस्थ एवं स्वावलम्बी अर्थव्यवस्था एवं स्वतंत्र विदेष नीति के पालन में नेपाल की बड़ी कमजोरी है। नेपाल स्वयं के आर्थिक ढाँचे एवं स्वावलम्बन को संसाधनो से निपुण होकर इस कमजोरी को समाप्त कर सकता है। संभवतः नेपाल में हुए लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास के साथ-साथ आर्थिक निर्भरता एवं संसाधनों का भी विकास अवष्यंभावी है।
विदेषी अनुदान - शीतयुद्ध काल में प्रमुख शक्तियों की विदेष नीति के एक प्रमुख अंग के रूप में अनुदानों को प्रयोग किया जा रहा था। नेपाल भी शीघ्र ही इस कूटनीति का एक हिस्सा हो गया और लगभग चार दषकों तक इसकी आर्थिक कूटनीति ने विदेषी अनुदानों को सर्वाधिक प्राथमिकता दी। नेपाल शीघ्र ही प्रमुख एषियाई शक्तियों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा एवं मतभेदों का केन्द्र हो गया। नेपाल में अनुदान श्रोतां का मुंह और खुल गया। भविष्य में अपने उपर बढ़ते वैयक्तिक राष्ट्र विषेष के अनुदानों के दबाव से उबरने के प्रयास के कारण नेपाल ने बहुपाक्षिक अनुदान संगठनों एवं देषों की ओर रूख किया। नेपाल की सातवी पंचवर्षीय योजना 1985-90 के कुल विकास खर्च का 49.8٪ राषि अनुदान के द्वारा प्राप्त थी जिसका लगभग 27.5٪ अनुदान राषि एवं 72.5٪ ऋृण राषि था। यही हाल आठवी पंचवर्षीय योजना (1992-97) का भी रहा जिसमें 30٪ अनुदान राषि एवं 70٪ ऋृण राषि, नौवी योजना (1997-2002) में 47٪ अनुदान एवं 53٪ ऋृण राषियां शामिल थी। (हरिबहादुर थापा, 2004) आंतरिक रूप से उदारवाद केन्द्रित अनियमितताओं एवं बाध्यताओं से खुली नीतियों के नेपाल में 1992 से ही अनुदानों का क्रम लगातार बढ़ता रहा। इस दौरान नेपाल में बाजार केन्द्रित नीतियों को पीछे छोड़कर एवं आधरभूत ढाँचों को महत्व देने की बजाय गरीबी उन्मूलन, क्षेत्रीय एवं दीर्घ विकास को अधिक महत्व दिया गया। हालांकि दसवी पंचवर्षीय योजना में नेपाल में अनुदान राषि 62.5٪ एवं ऋृणों में कमी करते हुए इसे 38٪ पिछले आकलनों की तुलना में कम, करने का प्रयास किया है लेकिन यह नही भूल सकते कि अभी भी नेपाल अपने आधारभूत ढाँचो एवं संसाधनों की कमी के कारण अनुदानों पर अधिक आश्रित दिखता है।8
नेपाल की सातवी पंचवर्षीय योजना में 1985-90 के दौरान कुल विकास खर्च (रू0327720 लाख) का 49.8٪ अनुदान से प्राप्त था। विदेषी अनुदान लगातार आगामी पंचवर्षीय योजनाओं में बढ़ता जा रहा है जो नेपाल की आर्थिक निर्भरता को दर्षाता है। आठवीं पंचवर्षीय योजना (रू0 870520 लाख) का 54.5٪, नवीं पंचवर्षीय योजना (रू01287730 लाख) का 53.0٪ तथा दसवीं पंचवर्षीय योजना (रू0 900820 लाख) का 59.2٪ खर्च, अनुदान आधारित था। यद्यपि नेपाल ने अपनी विदेष नीति के आर्थिक कूटनीतिक परिचालन में अनुदानों को काफी आकर्षित किया लेकिन बढ़ते व्यापार घाटे एवं विदेषी अनुदान पर निर्भरता ने अनुदान क्षेत्र में नेपाल की विदेष नीति पर प्रष्न चिन्ह लगा दिया। नेपाल के नीति निर्माताओं को इससे उबरते हुए अपने निजी संसाधनों को विकसित करके आत्मनिर्भरता पर जोर देना होगा।
पयर्टन - हिमालय की पर्वतमालाओं ने नेपाल को एक आधुनिक एवं सुन्दर प्रकृति दी है जिसे नेपाल को अपनी अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ योगदान के लिए तैयार करने की जरूरत है। इसके लिए प्रतियोगी रूप से नीतियों की योजना एवं संचालन आवष्यक है। नेपाल पर्यटन के लिए एक प्रमुख केन्द्र है जहाँ पर्यटन एवं इससे जुड़ी आर्थिक गतिविधियों की अपार संभावनाएं है। इसके लिए नेपाल सरकार ने निजी क्षेत्रों एवं अपने मित्र देषों के साथ मिलकर पांरपरिक पर्यटकों के साथ-साथ नई बाजार संभावनाओं को बनाना शुरू किया है।
नेपाल सरकार पर्यटन क्षेत्र के विकास एवं इसमे हो रहे इजाफे के बावजूद पर्याप्त सालाना पर्यटन बजट नही दे सकी जो पर्यटन क्षेत्र में हो रहे विकास के लिहाज से पर्याप्त था। 1990-91 में 21.8٪  पर्यटन अवाप्ति ने नेपाल के सकल घरेलू उत्पाद में 3.2٪ का योगदान किया। क्रमषः 1991-92 में 20.6٪, 1992-93 में 17.6٪, 1993-94 में 18.9٪ तथा 1994-95 में 17.2٪ सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन अवाप्ति का योगदान रहा।9 पर्यटन उद्योग एवं इससे जुड़े कुछ क्षेत्रों मे हो रहे विदेशी पूंजी निवेश ने भी निष्चित रूप से नेपाल की आर्थिक कूटनीति को आकर्षक उपकरण उपलब्ध कराया है। वर्ष 2003 तक आषानुरूप प्रगति बढ़ते हुए नेपाल ने रू0 157095 लाख की पर्यटक परियोजनाओं मे रू0 44058.00 लाख का विदेषी निवेष हासिल किया। इन परियोजनाओं से 14421 लोगों को रोजगार के अवसर सुलभ हुए हैं। नेपाल ने अगले वित्तीय वर्ष 2004-05 में लगभग रू0 1379.2 लाख की पर्यटन अवाप्ति   के साथ-साथ 343 और लोगों को रोजगार उपलब्ध हुआ।10 वर्ष 2007-08 तक नेपाल को पर्यटन क्षेत्र मे व्यापक निवेष एवं रोजगार प्राप्त हुए। 2007-08 तक कुल 368 पर्यटन आधारित उद्योग स्थापित किये जा चुके थे जिनसे नेपाल सरकार को रू0 54753.1 लाख का पूंजी निवेष प्राप्त हुआ। यही नही 2004-05 से लेकर 2007-08 के बीच पर्यटन के क्षेत्र में 4067 और लोगों को रोजगार उपलब्ध हुआ।11 यह निष्चित रूप से नेपाल की अर्थव्यवस्था एवं आंतरिक हितो की पूर्ति के साथ-साथ नेपाल की विदेष नीति को प्रेरित करने वाला है।
नेपाल में आर्थिक श्रोत का बड़ा हिस्सा पर्यटन से आने के कारण इसे विदेषों से सम्बन्धों की तरफ भी मोड़ कर देखा जाने लगा। नेपाल के घनिष्ठ सहयोगी भारत से नेपाल के सम्बन्धों के उतार-चढ़ाव को इन्ही प्रयासों के अन्तर्गत नेपाल द्वारा समय-समय पर नियंत्रित किया जाता रहा है क्योंकि आज भी नेपाल में सर्वाधिक पर्यटकों की संख्या भारत से रही है जो 2007 में 96010 है। यह उसके अन्य एषियाई पड़ोसी देषों (जापान, चीन, कोरिया, हांगकांग तथा ताइवान), दक्षिण एषियाई देष (श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान) हो अथवा अमेरिकी देष (संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, घाना, बरमूडा) एवं अन्य पष्चिमी देषों (स्विट्जरलैण्ड, जर्मनी, स्पेन, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, पोलोड, नॉर्वे और रूस आदि) की तुलना में अधिक है।12 ऐसा नही कि मात्र भारत से ही वरन् जापान, चीन एवं अन्य बौद्ध देषों से नेपाल में पर्यटकों की आवक पर्याप्त संख्या दर्ज कराती है क्योंकि नेपाल के पर्यटन मंत्रालय ने लुम्बिनी में बुद्ध के जन्म स्थली और नेपाल के प्राकृतिक सौन्दर्य को विष्व पटल पर एक आदर्ष पर्यटन के रूप में प्रस्तुत किया है। (हीराबहादुर थापा, 2009) बौद्ध धर्म की ही भांति हिन्दू धर्म तथा  भारत के लिए पषुपति नाथ के धार्मिक महत्व ने भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया है। हालांकि 2007 की तुलना में 2008 में कुल पहुचने वाले (32665) पर्यटकों की संख्या में 1٪ की कमी आयी है लेकिन यह मात्र संविधान सभा चुनाव के कारण था।13
जल शक्ति एवं उर्जा - नेपाल में अनुमानतः लगभग 83000 मेगावाट जल शक्ति एवं उर्जा की संभावनाएं है जो ब्राजील के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जलविद्युत क्षमता है। तकनीकि एवं आर्थिक कमी के कारण नेपाल अभी तक बमुष्किल 500 मेगावाट (लगभग 1٪ से भी कम) विद्युत उत्पादन कर सका है जबकि नेपाल के दक्षिण एषियाई पड़ोसी देष भूटान में मात्र दो जलशक्ति परियोजनाओं से ही 1380 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा रहा है। नेपाल में तकनीकी एवं निजी संसाधनों के विकास का अभाव प्रमुख रूप से आर्थिक रूग्णता एवं विदेषी अनुदानों पर निर्भरता का कारण है। आज नेपाल 50-150 मेगावाट बिजली भारत को निर्यात कर पा रहा है। (एम0पी0लामा, 2006) यदि नेपाल इस क्षेत्र में व्यापक तौर पर काम करे और अपने जल शक्ति का दोहन समुचित तरीके से प्रारंभ कर दे तो संभवतः इसकी आर्थिक निर्भरता एवं व्यापार घाटे को लगभग समाप्त किया जा सकता है। यही नही नेपाल के आधारभूत आर्थिक ढाँचे के विकास में क्रांतिक सहयोग भी मिल सकेगा।
नेपाल ने जलषक्ति के क्षेत्र में पूँजी निवेष 1911 में फार्पिंग जल विद्युत परियोजना (500 किलोवाट) के साथ शुरू हुई थी जो 1970 तक द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय अनुदानों की सहायता से काफी तेजी से बढ़ा है। 1960 के पूर्व तक प्रमुख अनुदानकर्ता के रूप में सोवियत संघ रूस, भारत एवं चीन थे लेकिन 1970 तक जलषक्ति के विकास ने नया मोड़ लिया और द्विपाक्षिक एवं बहुपाक्षिक अनुदानकर्त्ता देषों में जापान, जर्मनी, नार्वे, दक्षिण कोरिया, कनाडा, फिनलैण्ड, डेनमार्क, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका का भी नाम जुड़ चुका था। अन्य वित्तीय ऋणदाताओं में विष्व बैंक, एषियाई विकास बैंक, जपानीज बैंक फॉर इन्टरनेषनल कोआपरेषन, सऊदी फण्ड फॉर डेवलपमेन्ट, कुवैत फण्ड आदि शामिल थे। अभी 14 मार्च, 2010 को एषियाई विकास बैंक के साथ नेपाल सरकार ने ऊर्जा संवर्धन एवं क्षमता विकास समझौता पर हस्ताक्षर किये जिससे नेपाल सरकार को इसके लिए रू0 47140 लाख ऋण एवं रू0 3260 लाख अनुदान निवेष के रूप में प्राप्त हुए। इसके अलावा नेपाल सरकार ने 22 अगस्त, 2010 को विष्व बैंक के साथ जलशक्ति विकास परियोजना के निमित्त 892 लाख अमेरिकी डालर का सहयोग प्राप्त किया है फिर भी सर्वाधिक जल शक्ति परियोजनाएँ भारत अथवा भारत-नेपाल संयुक्त उपक्रम द्वारा ही स्थापित की गयी है।14
जल शक्ति के विकास के अतिरिक्त परिवहन, घरेलू उपयोग एवं यातायात की सुविधा के लिए अन्य ऊर्जा संसाधनों की आवष्यकता भी नेपाल के लिए आवष्यक है। इस दिषा में नेपाल जल शक्ति की भांति उल्लेखनीय वृद्धि नहीं कर सका है। अपने राजनीतिक एवं आर्थिक सहयोगियों से मिलने वाले पूँजी निवेष के माध्यम से नेपाल ने वर्ष 2008 तक कुल 32 ऊर्जा आधारित औद्योगिक ईकाईयों की स्थापना की है। यद्यपि यह समूचे नेपाल की आवष्यकता के लिए काफी कम है तथापि न्यूनाधिक यह नेपाल की आवष्यकताओं की पूर्ति कर सकता है। पेट्रोलियम एवं गैस ऊर्जा आधारित इन उद्योगों से नेपाल को कुल रूॉ 59950.5 लाख का विदेषी पूँजी निवेष प्राप्त हुआ।15 यह ऊर्जा आधारित निवेष मात्र आर्थिक दृष्टि से ही नही वरन् नेपाल के संचार की दृष्टि से भी अतिमहत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पड़ोसी भारत एवं अन्य देषों से मिलने वाले निवेष से इनका संवर्धन होता है। यदि इस प्रकार के ऊर्जा आधारित उद्योग में निवेष नहीं होगे तो नेपाल पूर्णतया पड़ोसी भारत पर निर्भर होगा जो पुनः उसकी विदेष नीति एवं सरकार के लिए निर्भरता का वायस होगी।
निष्कर्ष - नेपाल सरकार द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों को भी निवेष के लिए खोल देने की प्रक्रिया ने नेपाल के स्थानीय व्यवसाय को हिला कर रख दिया था क्योंकि विदेषी निवेषक कम लागत एवं पूँजी में उन उद्योगों पर आसानी से बढ़त लेते जा रहे थे जिन पर कभी नेपाली जनसमाज का अधिपत्य था। इसने उनके रोजगार एवं आर्थिक विकास की गति को मंद कर दिया। इस नीति का आर्थिक-सामाजिक ही नहीं राजनीतिक प्रभाव भी रहा। 1996 में पूँजी निवेष अधिनियम में संषोधन के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों को बाहरी निवेषकों एवं उद्योगों के लिए खोला जाना माओवादी जनांदोलन को प्रेरित करने के लिए काफी था। इस सामाजिक-आर्थिक आंदोलन ने यूएमएल (संयुक्त मार्क्सवाद-लेनिनवादी) ने नेपाली कांग्रेस की सत्ता को विस्थापित करने के साथ-साथ राजनीतिक परिवर्तन भी कर दिया। इस आन्दोलन ने नेपाल में राजषाही एवं अन्य राजनीतिक दलों के साथ-साथ अपने निकट पड़ोसी देषों एवं सहयोगियों को भी यह संदेष दे दिया कि नेपाली जनमानस अपने सामाजिक-आर्थिक हितां की अनदेखी किसी भी सूरत में बर्दाष्त नहीं कर सकता जिसका प्रमाण नेपाली जनता ने संविधान सभा चुनाव, 10 अप्रैल, 2008 में दे दिया है।
नेपाल में तीव्र राजनीतिक एवं आर्थिक परिवर्तनों ने जहाँ प्राचीन शैली को पीछे छोड़ दिया वहीं नेपाल को पारंपरिक रूप से प्राप्त लाभ व उपलब्धियों को भी छोड़ना पड़ा। उदाहरणतया नेपाल पर भारत द्वारा 1989 में लगाये गये आर्थिक प्रतिबन्ध ने इसे पुनः भारत आधारित आर्थिक नीतियों की तरफ प्रेरित किया। यद्यपि यह भारत-नेपाल संधि, 1950 के समय से लेकर अब तक नेपाली जनमानस के लिए कुछ हद तक अप्रिय रही है तथापि प्रभावी रूप से बहुआयामी अनुदान अभिकर्ताओं एवं शक्तिषाली बहुराष्ट्रों ने नेपाल में व्यापक तौर पर अपनी अभिरूचि दिखाई है।
नेपाल के सभी सहयोगी देषों ने आर्थिक कूटनीति का संचालन अपनी आवष्यकताओं एवं शर्तो के आधार पर किया है जो उनके और सम्बद्ध देष की वैचारिकी की प्रकृति पर आधारित है। नेपाल की आर्थिक कूटनीति एक ऐसी कला रही है जिसने हर स्तर पर चाहे वह वैष्विक, क्षेत्रीय अथवा द्विपाक्षिक हो, अपने हितों सुरक्षित या बढ़ाने का प्रयास किया है। आर्थिक कूटनीति की सफलता नेपाल की क्षमता एवं मित्र देषों के विष्वास को जीतने पर निर्भर थी जिसे नेपाल ने आनुदानिक माध्यमों एवं व्यापारिक लेनेदेन की प्रक्रिया से पुष्ट किया है। हम पूरी तरह इसे सकारात्मक नही कह सकते लेकिन यह नेपाल की आर्थिक गतिकी के लिए आवष्यक है।
सन्दर्भ सूची :-
1. इकोनामिक सर्वे ऑफ नेपाल -1995/96, काठमांडू, केन्द्रीय तथ्यांक संस्थान, 1997.
2. उप्रेती, हरि, ‘दी याम एण्ड इट्स इकोनॉमिक्स’, द राइजिंग नेपाल, दैनिक समाचार पत्र, काठमांडू, मार्च 17, 1995.
3. केन्द्रीय तथ्यांक संस्थान, नेपाल इन फीगर्स-2007, काठमांडू, राष्ट्रीय योजना आयोग सचिवालय।
4. केन्द्रीय तथ्यांक संस्थान, स्टैटिस्टिकल बुक, काठमांडू, राष्ट्रीय योजना आयोग सचिवालय, 2008.
5. खनाल, डीॉआरॉ, लक्ष्मण आचार्य एवं डीआर उप्रेती, ‘रोल एण्ड इफेक्टिवनेस ऑफ फॉरेन एड ऐण्ड अण्डर पी.आर.एस.पी. इन नेपाल, ललितपुर, जगदम्बा प्रेस प्रा0 लि0, 2008.
6. डिपार्टमेंन्ट ऑफ इन्डस्ट्री, ‘इन्डस्ट्रियल स्टैटिस्टिक्स- 2007/08, काठमांडू, प्लानिंग, मॉनिटरिंग एंड इवोलुशन डिविजन, 2008.
7. थापा, हरिबहादुर, ‘विदेषी सहायता की विसंगति’, काठमांडू, नेषनल बुक सेन्टर, 2004.
8. थापा, हीराबहादुर, सेलेक्टेड एसेज ऑन फॉरेन रिलेशन्स, काठमांडू, एशिया पब्लि0प्रा0लि0, 2009.
9. नेपाल राष्ट्र बैंक, ‘क्वार्टरली इकोनॉमिक बुलेटिन’, वाल्युम 42, न03, मिड अपै्रल, 2008.
10. नेपाल राष्ट्र बैंक, ‘क्वार्टरली इकोनॉमिक बुलेटिन’, वाल्युम 44, न04, मिड जुलाई, 2009.
11. रिसर्च एण्ड इन्फॉर्मेषन डिविजन ऑफ थ्छब्ब्प्., नेपाल राष्ट्र बैंक, काठमांडू, 2008.
12. रिसर्चएण्ड इन्फॉर्मेषन डिविजनऑफ थ्छब्ब्प्.,डिपार्टमेन्ट ऑफ इन्डस्ट्रीज, काठमांडू,2008.
13. लामा, एम0पी0, चैलेन्जेस ऑफ डेमोक्रेशी एंड डेवलपमेन्ट इन नेपाल’, की नोट एड्रेस, वाराणसी, नेपाल अध्ययन केन्द्र, बीॉ एचॉ यूॉ, 18 दिसम्बर, 2006.
14. लीस्ट डेवलपमेंट कंट्रीज रिपोर्ट - 2004, अंकटाड
15. वर्ल्ड डेवलपमेंट रिर्पोट, 2009.
डॉॉ आशीष कुमार सोनकर
असिस्टैंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग,
बसन्त कन्या महाविद्यालय, कमच्छा, वाराणसी।