Thursday 1 January 2015

भारत में धर्मान्तरण से दलित मानवाधिकारों पर चोट

ओमपाल कुमार कालावत

भारत में धर्मान्तरण महत्वपूर्ण चर्चा का विषय है। प्रत्येक धर्म अपना वर्चस्व बनाने के लिए धर्म विषेष का प्रचार व प्रसार कर अपने धर्म के अनुयायियों की संख्या बढ़ाता रहा है। धर्मान्ध लोग अपने ही धर्म को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए प्रयासरत रहे हैं, जो सही नहीं हैं। विदेषियों ने धर्म परिवर्तन के प्रयास से देष के सांस्कृतिक मूल्यों को प्रभावित किया है। इससे समाज में अषान्ति एवं तनाव पैदा हुआ है।

उत्तर प्रदेष में अलीगढ से तीस किलोमीटर दूर असरोइ नामक जगह पर एक गिरजाघर को षिव मन्दिर में बदल देने और छः दर्जन लोगों को इसाई से हिन्दू धर्म में लाने की घटना ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। अनेक हिन्दू संगठनों ने इसे धर्मांतरण के बजाय घर वापसी कहा है। अरसोइ में जो धर्मान्तरण की घटना हुई है, उसमें शामिल सभी लोग दलित वर्ग से थे। भारत में सामान्यतः धर्मान्तरण की घटनाओं में दूसरे धर्म को ग्रहण करने वाले ज्यादातर दलित वर्गों के लोग हैं। हिन्दू धर्म में किसी धर्म को स्वीकार करने की यह कोई अकेली घटना नहीं है। धर्मान्तरण का खेल भारत में प्राचीन काल से ही खेला जाता रहा है। भारत में रहने वाले मुस्लिम लोगों के पूर्वज हिन्दू ही थे, इस बारे में विभिन्न स्त्रोतों से जानकारी प्राप्त होती रही है। फ्रन्कोइस गौइटर ने अपनी पुस्तक में माना की 90 प्रतिषत से अधिक भारतीय मुस्लिम लोग हिन्दू मूल के थे जो परिवर्तित हुए। भारत में हजारों वर्षों से और उसके उपरान्त भी वर्तमान भारतीय मुस्लिमों की जनसंख्या के 95 प्रतिषत भाग के मूल हिन्दू पूर्वज ही थे, जिन्हांने धर्म परिवर्तन कर लिया था। भारत में कई जातियॉ मध्यकाल में हिन्दू धर्म छोड़ कर मुस्लिम धर्म में चली गई थी। पिनारा, वधेर, सिंधी-मुस्लिम, बोहरा, मंसुरी या रंगरेज, चेजारा और देषवली आदि जातियों ने हिन्दू धर्म छोड़ कर मुस्लिम धर्म स्वीकार किया था।
धर्म परिर्वतन को भारत में साम्राज्यवादी देषों ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रचारित किया है। अमेरिका द्वारा मैसिव इवेन्गुलाइजेषन अॅाफ इंडिया नामक संस्था धर्म परिवर्तन हेतु 1990 में शुरू की गई थी, जिसे बुष जूनियर के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद गति मिली थी। इस योजना का असली मकसद भारत को तेजी से ईसाई देष में बदलना है। इस योजना के तहत भारतीय दलितों व गरीबों का धर्म परिवर्तित कर उन्हें चर्च के लिए जगह उपलब्ध कराना है। कनाडा की डोरोथी वाट्स योजना जिसका नाम है 10 गांव और 25 घर, यह एक धर्म परिवर्तन योजना है, जो गाँवों को अपना निषाना बनाती है। 1998 में 10 गांव कार्यक्रम 17 बार चलाये गये और उससे 9337 लोगों को ईसाई बनाया गया। 1999 में यह कार्यक्रम 40 बार चलाया गया, जिससे 40 हजार लोगों को ईसाई बनाया गया है। ग्लोबल इन्वेगेलिजम के निदेषक मार्क फिन्ले ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2004 में भारत में 10 लाख 71 हजार 135 लोगों ने ईसाई धर्म ग्रहण किया।        
धर्मान्तरण का मुख्य कारण भारत में फैली जाति व्यवस्था है। मनुस्मृति में वणि्र्ात शूद्र लोगों के प्रति क्रूर आदेषों द्वारा इस वर्ग पर घोर अत्याचार किये गये। इन्हें षिक्षा व शास्त्र से वंचित रखने का निर्देष दिया गया। शूद्र द्वारा छोटे अपराधों के लिए भी भयंकर शारीरिक दण्डों का प्रावधान किया गया था। उन्हें सामाजिक और धार्मिक जीवन में निम्नता की ओर जाने पर विवष किया गया। दलितों के शोषण, दमन, बहिष्कार एवं सामाजिक दुर्व्यवहार ने उनकी गरीबी, अषिक्षा और अभाव से भरी जिन्दगी को और ज्यादा दुःखदायी बना दिया है। ऐसे में अगर किसी दूसरे मत या धर्म के प्रचारकों की और से उन्हें यह उम्मीद दिलाई जाती है कि कोई खास धर्म स्वीकार करने से इस सामाजिक त्रासदी से मुक्ति और बेहतर सम्मानजनक जीवन स्तर मिल सकता है, तो दलित वर्ग उनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। सामाजिक अपमान जैसी स्थितियों से त्रस्त दलित वर्गों ने आत्म सम्मान के लिए बौद्ध या ईसाई धर्म स्वीकार किया है।
अभी हाल ही में 8 दिसम्बर, 2014 को आगरा की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले 57 परिवारों को आधार कार्ड, राषन कार्ड, वोटर कार्ड आदि का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया गया है। गुजरात के वलसाड में करीब 100 लोगों का धर्म परिवर्तन किया गया। बिहार के भागलपुर में पॉच हिन्दू परिवारों का बीमारी से निजात दिलाने का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया गया। इससे पहले भी इस प्रकार के बहुत से कार्यक्रम मध्यप्रदेष, छत्तीसगढ़, राजस्थान और देष के विभिन्न भागों में होते रहे है। ये घटनाएँ मानवता के लिए निःसंदेह अच्छी नहीं कही जा सकती है। संसद में इन दिनों धर्मान्तरण का मुद्दा छाया हुआ है, देष के सभी राजनीतिक दलां ने काफी हंगामा किया और संसद का काम-काज भी बाधित किया गया है। देखा जाये तो धर्म पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 25 में कहा गया है कि देष का कोई भी नागरिक अपनी इच्छा से कोई भी धर्म स्वीकार कर सकता है तथा किसी भी प्रकार की पूजा पद्धति अपना सकता है। वह अपने धर्म का प्रचार प्रसार भी कर सकता है, किन्तु संविधान यह अधिकार किसी को नहीं देता है कि जबरन व लालच देकर किसी का धर्मान्तरण कराया जाये।
भारत में ईसाई मिषनरी एवं विभिन्न धार्मिक संगठन सदियों से धर्मान्तरण का प्रयास करते रहे हैं। यह तथ्य है कि इनकी दलित और आदिवासी समाज में बहुत गहरी पैठ बन चुकी है और इन वर्गों का बडे़ पैमाने पर धर्मान्तरण होता रहा है। इन मिषनरीयों ने दलितों को समाज मे फैली कुरीतियों, छुआछूत, उत्पीड़न, भेदभाव आदि का भय व प्रलोभन दिखाकर धर्म परिवर्तन कराते रहे हैं। आज दुनियां  भर के धर्म प्रचारकों की नजर भारत के 16 करोड़ दलितों पर है, जो अपने-अपने धर्मों की ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी गरीबी, असमानता एवं अषिक्षा को आधार बनाकर उनके अधिकारों पर कुठाराधात कर रहे हैं। अतः समाज में विषमता एवं दलितों के मानवाधिकारों को सुरक्षित करने हेतु धर्मान्तरण के लिये एक विषेष कानून बनाने की आवष्यकता है।
संदर्भ ग्रन्थः-                                                            
1. सिंह शैलेन्द्र, चमत्कार की आड़ में आदिवासियों का धर्म परिवर्तन।
2. फ्रांसिस आर. एल., चर्च साम्राज्यवाद की सीढी बनेंगे भारतीय दलित।
3. फ्रांसिस आर. एल., फ्रांसिस, धर्मान्तरण नहीं घर वापसी, 16.12.2014.
4. विस्फोट, ईसाईयत के अपवित्र निषान, 17.6.2008.
5. जनसत्ता, धर्मान्तरण के बहाने, 29.8.2014.
6. राजस्थान पत्रिका, धर्मान्तरण पर संसद में महाभारत, 12.12.2014.
7. दैनिक अंबर, धर्मान्तरण पर कानून की आवष्यकता, 22.12.2014.
8. राजस्थान पत्रिका, उपेक्षित जातियों की कथित उच्च जातियों में घर वापसी, 21.12.2014.
9. राजस्थान पत्रिका, धर्मान्तरण पर संसद में फिर हंगामा, 17.12.014.
ओमपाल कुमार कालावत
शोध छात्र, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय,
बीकानेर, राजस्थान।