Wednesday 2 January 2013

महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु भारत में संचालित आर्थिक कार्यक्रम




अभिषेक त्रिपाठी

भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु सरकारी योजना की स्थिति स्पष्ट नहीं है। यहाँ कुछ महिलाओं को सशक्त कहा जा सकता है किन्तु अधिकांश महिलाएँ अपने पति, पिता अथवा भाइयों पर आश्रित हैं। बहुत सी स्त्रियाँ ऐसी भी है, जिनकों विचार तक व्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं है और यहां ऐसी महिलाएं भी मिल जायेंगी जो अकेली ही घर-गृहस्थी की गाड़ी चलाती हैं। यह इसलिए नहीं कि वे अपने पति के द्वारा त्याग दी गई हैं अथवा विधवा है, बल्कि इसलिए कि उनके पति उनसे इसी की अपेक्षा रखते हैं। गरीबी-रेखा से नीचे के परिवारों में यह आम बात है।

उच्च वर्ग की महिलाएँ छोटे परिवार के लाभों को बेहतर समझती हैं। जो महिलाएँ नितान्त गरीब है, परिवार नियोजन के मामले में उनकी कम चलती है। संयोग से गर्भ ठहर जाता है फिर उसे नियति समझ कर निभा लिया जाता है। इससे भी बुरी बात यह है कि ऐसे परिवार संतति नियंत्रण के साधनों को अपनाने की इच्छा भी नहीं रखते, क्योंकि हर बच्चा खेत, दुकान या घर में काम करके, यहाँ तक कि भीख माँग कर भी उनके लिए अतिरिक्त आमदनी का साधन बन जाता है। ऐसे बच्चों को पालने का खर्चा नही ंके बराबर होता है और उनके स्वास्थ्य तथा जीवन मूल्यों की जो अवहेलना की जाती है, वह सचमुच एक अपराध है।
शिक्षा अभियान और साक्षरता आन्दोलनों के माध्यम से महिलाओं को सीमित परिवार के प्रति अधिक जागरूक बनाया जा सकता है। स्त्रियों को संगठित करके उनकी आर्थिक हालत, उनके शोषण के प्रकार और कारकों के बारे में जागरूकता पैदा करना। साथ ही उस जागरूक निर्णय को वे लागू कर सके यह अधिकार उन्हें सौंपना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सुदृढ़ पारिवारिक बंधन भावनात्मक तथा आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। अपर्याप्त आय के कारण स्त्री को बच्चों के पालन-पोषण में कठिनाई हो तो यह भावना कमजोर पड़ जाती है। नौकरी की तलाश स्त्री को घर से दूर ले जाती है। जिसके परिणाम स्वरूप बच्चे उपेक्षा, भूख, बीमारी और शोषण के शिकार हो जाते हैं। कई मामलों में तो महिलाएं वेश्यावृत्ति तक अपनाने को मजबूर हो जाती है।
इस समस्या का समाधान नौकरियाँ महिलाओं तक ले जाना क्यों ही न हो, लेकिन यदि घर के पास ही रोजगार के पर्याप्त अवसरों और प्रशिक्षक कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा उनके लिए एक निश्चित आमदनी की व्यवस्था कर दी जाए तो आज बोझ काफी हद तक कम किया जा सकता है। सुविधाजनक स्थानों पर बालवाडि़यों का निर्माण, व्यापारिक स्थानों पर बालवाडि़यों का निर्माण, व्यापारिक स्थलों के लिए नियमित रेल या बस सेवा, कार्यस्थल पर अधिक अनुकूल वातावरण आदि ऐसी बातें है जिन पर ध्यान देकर कामकाजी महिलाओं की संख्या में वृद्धि की जा सकती है तथा उनकी क्षमता और कार्य कुशलता बढ़ाई जा सकती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती, वह है महिलाओं का स्वास्थ्य, आर्थिक समस्या और काम के बोझ के कारण वे अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहती है। खासतौर पर गरीब घरों में जब खर्च कम करने की बात उठती है तो इसका पहला शिकार लड़कियाँ होती ह। ज्यों-ज्यों वे बड़ी होती जाती है, जिम्मेवारियों के कारण विवश होकर स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होती जाती हैं। परिणामस्वरूप उनकी सन्तानोत्पत्ति क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। कुपोषण माँ-बाप द्वारा उचित देखभाल की कमी और सन्तानोत्पत्ति क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। कुपोषण, माँ-बाप द्वारा उचित देखभाल की कमी और सन्तानोत्पत्ति के दौरान चिकित्सा की कमी से खतरे और बढ़ जाते हैं। एक महिला कल्याण संगठन के अनुसार देश में उचित चिकित्सा देखभाल के अन्तर्गत केवल 25 प्रतिशत बच्चों का जन्म होता है।
सुरक्षित मातृत्व, सार्वभौमिक टीकाकरण और बाल सुरक्षा आदि को एक समन्वित बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम से जोड़ दिया गया है, जिसमें यौन तथा प्रजनन सम्बन्धी संक्रामक रोगों की चिकित्सा भी शामिल है। यह स्वीकार किया गया है कि महिलाओं की स्वास्थ्य तथा पोषक सम्बन्धी समस्याओं को कम आयु वर्ग के लिए निर्धारित सस्ती दवाओं के माध्यम से काफी हद तक रोक कर समाप्त किया जा सकता है। नीति में प्रजनन तथा बाल स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी शिक्षा और वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाओं की उच्च कारीदारी आदि क्षेत्रों में स्वयंसेवी गैर सरकारी संगठनों तथा निजी क्षेत्र का सक्रिय सहयोग प्राप्त करने की बात की कही गई है।
सीमित आय वाला वह परिवार जो हर अदायगी के घेरे में नहीं आता, बचत न करने के कारण अक्सर कर्ज और विपदा में डूब जाता है। समाज के गरीब वर्ग के यह भावना पैदा करना अति आवश्यक है कि यह देश उनका भी है और यह तभी सम्भव है जब हरेक वयस्क व्यक्ति को मेहनत करने और उसके एवज में वेतन प्राप्ति का अवसर दिया जाए। ऐसे वातावरण के निर्माण से अपराध और भ्रष्टाचार में कमी आती है और आर्थिक समृद्धि बड़ती है।
सरकार ने कुछ अच्छी योजनाएं बनाई हैं और वे महिलाओं के संगठित व असंगठित कार्यक्षेत्र (घरेलू कामगारों) सहित सामाजिक-आर्थिक विकास में सहायक कर्मचारियों के रूप में महिलाओं के योगदान को पहचाना जाएगा तथा उनके रोजगार और कार्य स्थितियों से सम्बन्धित उपयुक्त नीतियाँ बनाई जाएंगी। अच्छी योजनाएं बनाई है और वे महिलाओं के आर्थिक तथा सामाजिक स्तर में बदलाव भी ला रही है। विभिन्न राज्यों के सामान्य इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कारपोरेशन, नेशनलाइज्ड बैक और एन0जी0ओ0 एंटरप्रिन्योरशिप डेवलपमेंट महिलाओं के लिए रोजगार परक योजनाएं चला रहे हैं। (महिला व बाल विकास मंत्रालय की जरूरतमंद महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षक के साथ आय अर्जित करने की योजनाएं चला रहा है। इसी तरह स्माल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक आॅफ इंडिया, की ‘महिला उद्यम निधि’ और ‘महिला विकास निधि’ नाम से दो योजनाएं है जो महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षित करती है। उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्राइवेट सेक्टर के बैंक भी महिलाओं को लोन देने लगे हैं, जिसकी ब्याज दरें काफी कम हैं। जिनकी प्रोसेसिंग फीस भी नहीं है। कई बैंक तो महिला प्रोफेशनल व उद्यमियों से 5 लाख के लोन पर सिक्योरिटी की चार्ज नहीं करते हैं। औरिएंटल बैंक आॅफ कामर्स महिला-उद्यमियों के फायदे के लिए ‘ओरिएंटल महिला विकास’ योजना चलाता है। इनमें 2 से 10 लाख तक के बीच में लोन दिया जाता है और व्याज पर 2 प्रतिशत तक की छूट थी। जिन उद्यमों में महिलाओं की भागीदारी 51 प्रतिशत हो, वे इस लोन को ले सकती है। सेंट्रल बैंक आॅफ इंडिया ‘सेंट कल्याणी’ नामक योजना के तहत इंडस्ट्री, एग्रीकल्चर और एलाइड एक्विटीज बिजनेस या प्रोफेसन में महिलाओं को आर्थिक मदद देता है। ‘राष्ट्रीय महिला कोष’ गरीब महिलाओं को माइक्रो क्रेडिट उपलब्ध कराने के उद्देश्य से गठित किया गया है। महिला व बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत चलने वाली यह योजना रियायती दरों पर गरीब महिलाओं को लोन उपलब्ध करा उनके सामाजिक व आथर््िाक स्तर को बेहतर बनाने में मदद करती है। अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं को सेल्फ-हैल्प ग्रुप्स गठित करने व माइक्रो क्रेडिट सहायता प्रदान करने के लिए नेशनल माइनोरिटीज डेवलपमेंट ऐंड फाइनेंस कारपोरेशन ‘महिला समृद्धि’ योजना चलाता है। इसके तहत महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है और इसी दौरन सेल्फ-हेल्प ग्रुप (एसएचजी) गठित किया जाता है। यह संस्था कोई भी रोजगार शुरू करने के लिए 4 प्रतिशत ब्याज दर पर लोन उपलब्ध करवाती है। इसी तरह महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए इन्कम टैक्स, प्राॅपर्टी रजिस्ट्रेंशन इत्यादि में भी भारी छूट दी गई है। अनेक वित्तीय संस्थान महिलाओं को सस्ते ऋण लाॅकर और बीमा की सुविधाएं दे रहे हैं।
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए दिल्ली सरकार लड़की के जन्म पर रजिस्ट्रेशन होने के तुरंत बाद कन्या शिशु के नाम बैंक एकाउन्ट खोल 10,000 रूपये जमा करा देती है। फिर उसी एकाउंट में उसके क्लास पहली, पांचवी, नवी, दसवीं और बारहवीं पर पहुंचने पर 5000 रूपये जमा कराती है।
महिलाओं के लिए कर योग्य आय वर्ग-
1,90,000 रूपये तक टैक्स, सरचार्ज व एजुकेशन सेस कुछ नहीं।
1,90,000 से  5 लाख तक, टैक्स 10 प्रतिशत
5,00,001 से 8 लाख तक टैक्स 20 प्रतिशत
8 लाख से ऊपर टैक्स 30 प्रतिशत
हेल्थ कवर में की छूट (मुकेश गुप्ता डायरेक्टर, हेल्थ केयर सिक्योरिटीज के अनुसार- ‘गर्भवती महिलाओं के लिए कई मेडिकल पाॅलिसी है, जो किसी ग्रुप, परिवार या कारपोरेट स्कीम के अंतर्गत मैटरनेटी कवरेज देती है। मैटरनिटी कवरेज केवल अचानक आने वाले जोखिम पर दिया जाता है। युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस अपनी ग्रुप पाॅलिसी के तहत मैटरनिटी कवर देती है। एल0आई0सी0 इंडिया महिलाओं के लिए ‘जीवन भारती’ नामक स्पेशल मनी बैक प्लान चलाता है। महिलाओं की जरूरतों को घ्यान रखते हुए इसे तैयार किया गया है। इसमें एक्सीडेंट सहायता, गंभीर बीमारी आदि की सहायता की दी जाती है।
वे आत्मनिर्भर माताएं जो कुशलतापूर्वक अपना घर चलाती है और साथ ही खाने की चीजों के पैकेज बनाकर या कार्यलयों में कम्प्यूटरों पर काम करके परिवार के लिए अतिरिक्त आय भी जुटाती है, अपने युवा बच्चों में आत्म-विश्वास और आत्म गौरव की भावना सरलता से विकसित कर सकती है। इस तरह से आत्म-विश्वास से पूर्व आगामी पीढ़ी देश के लिए बोझ न होकर उसके लिए एक अमूल्य निधि सिद्ध होगी।
संदर्भ
1. भारत-2001: प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली।
2. धुरपे, जी0एस0: काॅस्ट, क्लास एण्ड आक्यूपेशन इन इंडिया।
3. पन्निकर, के0एम0 हिन्दू समाज निर्णय के द्वार पर
4. कुरूक्षेत्र मार्च 2001
5. योजना फरवरी, 2001
6. योजना जुलाई 2011 - पृष्ठ संख्या -29
7. प्रेम नारायण शर्मा, म्हिला सशक्तिकरण एवं समग्र विकास, पृष्ठ संख्या- 37
8. उजाला रूपायन - 12 अगस्त - 2011 पृष्ठ संख्या-4
9. मनीष कुमार, म्हिला सशक्तीकरण दशा और दिशा, पृष्ठ संख्या - 46
10. प्रतियोगिता दर्पण दिसम्बर 2010, पृष्ठ संख्या- 913

अभिषेक त्रिपाठी- शोध-छात्र
डाॅ0 के0के0 तिवारी - शोध निदेशक
नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय, इलाहाबाद