Wednesday 2 January 2013

नवमानववाद की प्रासंगिकता


पूजा पाण्डेय

नवमानववाद सिद्धान्त की अवधारणा मानवेन्द्र नाथ राॅय ने दी। नवमानववाद एक लोकतान्त्रिक और नौतिक जीवन का सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त मनुष्य की प्रज्ञा व मुक्त अन्वेषण जैसे प्राकृतिक गुणों को केन्द्र मंे रखकर मानवीय भावना का निर्माण करता है। मानववाद शुद्ध रूप से तर्कबृद्धि और वुद्धि वैषिष्ट्य को स्वीकार करता है। ध्यातव्य है कि मनुष्य की प्रज्ञा व मुक्त अन्वेषण इत्यादि ऐसे गुण है जो मनुष्य को प्राकृतिक रूप से प्रदत्त है यही राॅय के नवमानववादी सिद्धान्त का आधार है।

नवमानववाद के अनुसार मनुष्य ही सभी मूल्यों का निर्माता है। इसे हम इस तरह से भी समझ सकते हैं कि कोई भी प्रत्यय मूल्यवान तभी बनती है जब यह मनुष्य द्वारा इच्छित हो। मानव जिसको प्राथमिकता देता है वह अधिक मूल्यवान तथा जिसका महत्व मानवीय दृष्टि से कम होता हैं वह कम महत्वपूर्ण मानी जाती है। मनुष्य जब भी पुराने मूल्यों से असन्तुष्ट होता है वह नये मूल्यों का निर्माण कर लेता है। इसे हम अपने अनुभवों द्वारा सत्यापित भी कर सकते है। यही कारण है कि भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में भिन्न-भिन्न मानवीय मूल्यों को स्वीकार किया जाता है। यहाॅ इस बात की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि सम्पूर्ण विष्व में एक संस्कृति हो तो सम्पूर्ण विष्व में एक ही प्रकार का मानवीय मूल्य होगा जिसे सभी मनुष्यों द्वारा स्वीकार किया जायेगा। चूॅकि वर्तमान समय वैष्वीकरण का समय है इसलिए कोई भी समस्या है वह किसी एक देष धर्म की न होकर सम्पूर्ण विष्व की समस्या है। मानव जाति के प्रत्येक क्रिया कलापों से सम्पूर्ण विष्व प्रभावित होता है।
नवमानववादी दर्षन की मूल अवधारणा है कि मनुष्य ही अपने भाग्य का निर्माता व स्वामी दोनो है। यह दृष्टिकोण मानव गरिमा को स्वीकार करते हुए मानव की सृजनषीलता को महत्वपूर्ण मानता हैं। यह एक ऐसा क्रियात्मक दर्षन है जो कि मानव अधिकारों तथा मानव मूल्यों की स्थापना पर बल देता है। कल मानव जीवन कैसा होगा? कल का वैष्विक परदिृष्य क्या होगा? वह आज के मानवीय प्रयासों पर निर्भर करता है इस प्रकार मनुष्य अपने तथा अपने समाज का भविष्य निर्माता स्वयं है।
नवमानववाद सिद्धान्त किसी एक देश जाति, धर्म का दर्शन न होकर वैश्विक दार्शनिक सिद्धान्त है। जो राजनौतिक, अर्थिक, सामाजिक, लगभग प्रत्येक क्षेत्र में संशोधन की बात करता है तथा नैतिक मूल्यों की पुनस्र्थापना की बात करता है। जैसे राजनैतिक क्षेत्र में यह सहकारी लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाने की बात करता है। साधारण भाषा में कहें तो इसे साझेदारी का लोकतंत्र कह सकते हैं। इसके अनुसार सत्ता जनता में निहित होगी योग्य व्यक्तियों के समूह द्वारा एक सहकारी कमेटी बनाई जायेगी, इस परिवार सदृश सहयोगी परिमंडल द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को उपयोगी काम सौपा जायेगा। राॅय ने यह स्पष्ट रूप से कहा हैं कि ऐसी व्यवस्था मंे नवमानववादी राजनीतिक दल के रूप से संगठित नहीं हांेगे वह सत्ता की राजनीति में भाग नहीं लंेगे इस प्रकार इस व्यवस्था को अपनाने पर व्यक्ति द्वारा व्यक्ति के शोषण में कमी आयेगी। सत्ता योग्य व्यक्तियोें के हाथ में रहेगी तथा सत्ता का विकेन्द्रीकरण होने से भ्रष्टाचार समाप्त होने की संभावना होगी ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था व्यक्ति की संप्रभुता तथा स्वतंत्रता की पोषक होगी। राॅय का विश्वास है कि यह व्यवस्था व्यक्ति की गरिमा केा स्थापित करने में सफल होगी। इस प्रकार की प्रणाली में कोई व्यक्ति अपना प्रभाव दूसरे व्यक्ति पर डालने का प्रयास नहीं करेगा। यह व्यवस्था स्वतंत्रता प्रगति स्थिरता तथा विकास का पोषण करेगी।
आज उदारवाद तथा वैश्वीकरण के नाम पर बहुराष्ट्रीय एवं अन्य बड़ी उत्पादक इकाइयों की संख्या में बढ़ोत्तरी के साथ व्यापारिक नौतिकता का स्तर गिरा हैं। ईमानदारी अब सर्वोत्तम नीति नहीं रह गई। नित्य नये उजागर होने वाले घोटाले सत्ता में बैठे लोगो के भ्रष्ट आचरण का प्रतीक बन गये हैं। आज विश्व नैतिक पतन के दौर से गुजर रहा हैं। इसी का परिणाम आतंकवाद, नक्सलवाद, इत्यादि समस्याएॅं भी हैं जो मानव को ही मानव का दुश्मन बना रहीं हैं।
एक मानववादी दार्शनिक सिद्धान्त का मुख्य लक्ष्य मानव गरिमा की स्थापना कर मानव हित के लिए मार्ग प्रशस्त करते हुए एक अच्छे वातावरण का निर्माण करना है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने विकास के लिए निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र हो तथा स्वतंत्रता समानता तथा विश्व बन्धुत्व जैसे आदर्शो की प्राप्ति के लिये प्रयास कर सके। राजनैतिक क्षेत्र की ही भाॅति राॅय एक ऐसे आर्थिक तंत्र की वकालत करते हैं, जो मानव की स्वतंत्रता को बनाये रखने में सक्षम हो। एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिये समाज में सुचारू आर्थिक व्यवस्था का होना अत्यन्त्यावश्यक हैं। वह एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था की वकालत करते हैं जिसमें आर्थिक असमानताओं को कठोरता से परिसीमित किया जायेगा। वह सहकारी लोकतंत्र की भाॅति ही सहकारी अर्थव्यवस्था को अपनाने का विकल्प प्रस्तुत करते है। यह एक ऐसी व्यवस्था होगी जो कि व्यक्ति के स्वतंत्रता समानता तथा भाईचारे के प्रत्यय के साथ सुसंगत होगी। राॅय मानव प्रकृति में मूल रूप से विद्यमान सहयोग की भावना का प्रयोग आर्थिक निकाय के आधार निर्माण में करने का मार्ग बताते हैं। उन्होंने प्रापर्टी के सहकारी स्वामित्व का सिद्धान्त दिया। यह स्वामित्व व्यक्तियों के आपसी सहयोग पर आधारित होगा। इस व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति का काॅमन स्टाॅक में कुछ अंश होगा इससे प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता पूर्ति संभव हो सकेगी। नवमानववाद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु दुसरे व्यक्तियों पर निर्भर होता हैं। इसलिये यदि बुद्धिमत्ता पूर्ण सहयोगी प्रवृत्ति का उपयोग किया जाये तो समाज में एक सुदृढ़ आर्थिक तंत्र की स्थापना संभव हो सकती हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति सन्तुष्ट होगा ।
सामाजिक क्षेत्र में नवमानववाद एक ऐसे समाज निर्माण की बात करता हैं जो व्यक्तियों को स्वतन्त्रता, समानता, विवके, सहयोग, आत्मानुशासन आदि के प्रति जागरूक बनाए तथा इन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु समाज को नैतिकता पर आधारित शिक्षा व्यवस्था को लागू करना होगा क्यांेकि शिक्षा ही व्यक्ति का निर्माण करती है। प्रकृति और समाज के संबंध में ज्ञान देने के अतिरिक्त शिक्षा को मानसिक स्वतंत्रता तथा नैतिक संवेदनशीलता का उत्पादक होना चाहिए। इसी के आधार पर उसके चरित्र का निर्माण होता है।
इस प्रकार नवमानववादी दर्शन एक सर्वव्यापक राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र के रूप में विभिन्न प्रकार की वैश्विक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। नवमानववादी दर्शन जीवन का आन्नद लेने तथा अपने रचानात्मक प्रयासो द्वारा इसे और अधिक अच्छा बनाने का प्रयास करता है। यह प्रत्येक व्यक्ति का कत्र्तव्य है कि वह इस ब्रहृमाण्ड को रहने हेतु और अच्छा बनाने का प्रयास करता रहे। एक ऐसा वातावरण जिसमें प्रत्येक मनुष्य अपनी गरिमा के साथ जीवन यापन कर सकें।  मानववाद एक महत्वपूर्ण समकालीन दार्षनिक सिद्धान्त है। इसकी महत्ता इस बात से भी आंकी जा सकती हैं कि यह मात्र एक दार्षनिक सिद्धान्त न होकर जीवन जीने की कला है। यह एक ऐसा सिद्धान्त हैं जिसका संबंध मानवहित से है। यह एक ऐसा दर्षन है, जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से वैष्विक स्तर के सभी निर्णयों पर अपना प्रभाव डालता है, आज बुद्धिजीवियों तथा दार्षनिको में यह चर्चा है कि यदि वैज्ञानिक विकास को मानवीय मूल्यों के साथ सम्बद्ध नहीं किया गया तो यह विकास सम्पूर्ण विष्व को पतन की ओर ले जायेगा।
संदर्भ
1. सत्तार, एस0 अब्दुल, ह्यूमैनिस्म आॅफ महात्मा गाॅधी एण्ड एम0एन0राॅय, दि एसोसिएट पब्लि0, 2007
2. तलवार सदानन्द, रेडिकल ह्यूमैनिस्म, के0के0 पब्लि0 न्यू दिल्ली, 2006
3. तारकुण्डे,बी.एम. नवमानववाद, वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर, 2006
4. बन्डिस्टे, डी0डी0 ह्यूमैनिस्म थाॅट इन कन्टम्परेरी इन्डिया, बी0 आर0 पब्लि0 दिल्ली, 2008

पूजा पाण्डेय
शोध छात्रा, दर्शनशास्त्र विभाग
इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद।