Wednesday, 2 July 2014

भारत का 29वां राज्य तेलंगाना : छह दशक लंबे संघर्ष का इतिहास


चन्दन कुमार

20 फरवरी, 2014 को राज्यसभा ने आन्ध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2014 ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा ने इस विधेयक को 18 फरवरी, 2014 को ही पारित कर दिया था तथा राष्ट्रपति मा0प्रणव मुखर्जी के उस पर हस्ताक्षर करने के बाद तेलंगाना भारत का 29वां राज्य बन गया है। तेलंगाना राज्य बनने के पीछे एक लंबे संघर्ष का इतिहास रहा है जो कभी-कभी हिंसक भी होता रहा है। तेलंगाना राज्य के लिए हुए संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं उसके गठन की प्रक्रिया तथा वर्तमान स्वरूप का एक समग्र विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से प्रस्तुत है-

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- माना जाता है कि त्रिलिंग देश शब्द से ‘तेलंगाना’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। मान्यता है कि तेलंगाना की सीमाओं को बनाने वाली तीन पहाड़ियों कालेश्वरम, श्रीसैलम और द्रक्षाराम में शिवलिंग स्थापित है। इन्हीं के आधार पर त्रिलिंग शब्द की व्युत्पत्ति हुई। जिस क्षेत्र को तेलंगाना कहा जाता है, उसमें आंध्र प्रदेश राज्य के 23 जिलों में से 10 जिले आते हैं, जो भौगोलिक रूप से 114,840 वर्ग किलोमीटर में फैला एक ऐसा क्षेत्र है जो साल 1948 तक निज़ाम की हैदराबाद रियासत का हिस्सा था। 1948 में निज़ाम शासन का अंत हुआ और हैदराबाद राज्य का गठन किया गया। नेहरू सरकार द्वारा वर्ष 1953 में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग जिसके अध्यक्ष फजल अली थे, ने तेलंगाना को एक अलग राज्य बनाने की सिफारिश की थी। लेकिन आंध्र प्रदेश के नेताओं का दबाव था कि तमाम तेलगुभाषी लोगों के लिए आंध्र, रायलसीमा और तेलंगाना को मिलाकर एक ही राज्य बनाया जाए। केन्द्र ने यह बात स्वीकार कर ली और 1 नवम्बर, 1956 को हैदराबाद का हिस्सा रहे तेलंगाना को नवगठित आंध्र प्रदेश में मिला दिया गया और भाषा के आधार पर गठित होने वाला आंध्र प्रदेश पहला राज्य बना लेकिन तेलंगाना के लोग कभी अपने इस विलय को स्वीकार नहीं कर पाये। तेलंगाना समर्थकों की दलील यह थी कि आंध्र और तेलंगाना की भाषा, संस्कृति एवं लोगों के मिजाज में बड़ा अंतर है। उन्होंने यह डर भी पैदा करने की कोशिश की कि आंध्र के शक्तिशाली लोग उनके साथ अन्याय करेंगे। इन्हीं आशंकाओं के मध्य नेहरू सरकार ने आंध्र एवं तेलंगाना क्षेत्र के नेताओं के बीच एक ‘शरीफाना समझौता’ करवाया। इसके अंतर्गत तेलंगाना में स्थानीय नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण के अनेक प्रावधान रखे गये इन्हें मुल्की रूल का नाम दिया गया। यह भी तय किया गया कि आंध्र और तेलंगाना क्षेत्रों पर सरकारी आय का कितना हिस्सा खर्च होगा। कुछ ही समय बाद इस समझौते का उल्लंघन शुरू हो गया। तेलंगाना के लोगों को शिकायत थी कि उनके साथ अन्याय किया जा रहा है। उनकी नौकरियां छीनी जा रही है, राजस्व का बड़ा हिस्सा आंध्र में खर्च किया जा रहा है और नदियों के पानी में भी उसी क्षेत्र को लाभ मिल रहा है।
वर्ष 1969 तक शिकायतों ने बढ़ते-बढ़ते ज्वालामुखी का रूप ले लिया शुरुआत में तेलंगाना को लेकर छात्रों ने आन्दोलन शुरू किया लेकिन आगे चलकर इसमें आम लोगों की भागीदारी ने इसे ऐतिहासिक बना दिया। इस आन्दोलन के दौरान पुलिस फायरिंग एवं लाठीचार्ज में साढ़े तीन सौ से अधिक छात्र मारे गए थे। उस्मानिया विश्वविद्यालय इस आन्दोलन का केन्द्र था। उस दौरान एम. चेन्ना रेड्डी ने ‘तेलंगाना प्रजा समिति’ का गठन किया एवं ‘जय तेलंगाना’ का नारा दिया। दूसरी ओर आंध्र में भी आन्दोलन छिड़ गया वहां भी कुछ लोग आंध्र राज्य की मांग करने लगे। भारी उथल-पुथल के बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद जब 1973 के चुनाव हुए तो उसमें ‘तेलंगाना प्रजा पार्टी’ को तेलंगाना की अधिकतर सीटें मिलीं। लेकिन बाद में एम. चेन्ना रेड्डी ने इंदिरा गांधी के साथ समझौता कर लिया और अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया। इससे इस आन्दोलन को भारी झटका लगा। इसके बाद इंदिरा गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था और इसी के साथ तेलंगाना की मांग एक बार फिर ठण्डे बस्ते में चली गई और इस बात से लोग इतने निराश हुए कि अगले 30 साल तक किसी ने अलग तेलंगाना राज्य का नाम नहीं लिया।
    नब्बे के दशक में के. चन्द्रशेखर राव तेलगुदेशम पार्टी का हिस्सा हुआ करते थे। 1999 के चुनावों के बाद चन्द्रशेखर राव को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री बनाया जायेगा लेकिन उन्हें डिप्टी स्पीकर बनाया गया। वर्ष 2001 में उन्होंने पृथक तेलंगाना का मुद्दा उठाते हुए तेलगुदेशम पार्टी छोड़ दी और ‘तेलंगाना राष्ट्र समिति’ का गठन कर दिया और धीरे-धीरे तेलंगाना का मुद्दा आंध्र प्रदेश की राजनीति का केन्द्र बिन्दु बन गया।
    जब 2004 और 2009 के चुनाव में तेलंगाना राज्य का वादा करने वाली कांग्रेस पार्टी ने अपना वादा पूरा नहीं किया तो चंद्रशेखर राव नवम्बर 2009 में आमरण अनशन पर बैठ गये। 11 दिन तक चलने वाली इस भूख हड़ताल ने पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया। राव की बिगड़ती हुई हालत और तनाव को देखते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने 9 दिसम्बर 2009 की रात यह घोषणा की कि केन्द्र तेलंगाना राज्य के गठन की प्रक्रिया शुरू कर रही है। इस घोषणा के बाद तो राजनीतिक अनिश्चितता का एक नया दौर शुरू हो गया। कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों के आंध्र एवं रायलसीमा क्षेत्रों के मंत्री और विधायकों ने इस घोषणा को वापस लेने की मांग करते हुए त्यागपत्र दे दिया। गृहमंत्री चिदंबरम ने एक बार फिर अपना रूख बदला और कहा कि अभी इस मुद्दे पर और सलाह मशविरा बाकी है।
मार्च 2010 में केन्द्र सरकार द्वारा पृथक तेलंगाना राज्य की मांग का जायजा लेने के लिये ‘श्रीकृष्ण समिति’ का गठन किया। इस समिति ने उसी वर्ष दिसम्बर में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए अलग तेलंगाना राज्य का विरोध किया तथा समिति ने इस बात की आशंका व्यक्त की कि छोटे राज्यों में माओवादियों की गतिविधियां बढ़ सकती है।
तेलंगाना की मांग को लेकर सभी राजनीतिक दल टूट-फूट का शिकार हुए। कई विधायक तेलगुदेशम और कांग्रेस छोड़कर टीआरएस में शामिल हो गये। तेलंगाना के पक्ष में केवल टीआरएस, सीपीआई और भाजपा का रूख स्पष्ट था जबकि कांग्रेस, तेलगुदेशम आदि ने एक अस्पष्ट नीति बनाये रखी। मई 2013 में कांग्रेस को एक धक्का लगा जब तेलंगाना के दो सांसदों मंदा जगन्नाथ और जी विवेकानन्द ने कांग्रेस नेतृत्व के तेलंगाना विरोधी रूख के खिलाफ पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और टीआरएस में शामिल हो गये। इस विषय पर टालमटोल की नीति रखने वाले कांग्रेस महासचिव गुलाम नवी आजाद को हटाकर दिग्विजय सिंह को आंध्र प्रदेश की कमान सौंप दी गई। इसके बाद 30 जुलाई, 2013 को कांग्रेस कार्य समिति ने सलाह मशविरा के बाद तेलंगाना के गठन की राह आसान कर दी।
और अंततः 18 फरवरी, 2014 को लोकसभा एवं 20 फरवरी, 2014 को राज्य सभा द्वारा ध्वनिमत से आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन- संसद, विधि द्वारा) पास कर दिया गया तथा राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के उपरांत तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग होकर भारत का 29वां राज्य बन गया।


 भारत के नवनिर्मित 29 वें राज्य तेलंगाना से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं-
तेलंगाना का गठन आंध्र प्रदेश के विभाजन से हो रहा है। तेलंगाना राज्य में 10 जिले शामिल होंगे- 1. हैदराबाद (राजधानी) 2. आदिलाबाद 3. खम्मम 4. करीमनगर 5. महबूब नगर 6. मेढ़क 7. नलगोंड़ा 8. निजामाबाद 9. रंगा रेड्डी और 10. वारंगल।
आंध्र प्रदेश के 23 जिलों में से सीमांध्र में 13 जिले होंगे- 1. कुरनूल 2. चित्तूर 3. कडापा 4. अनंतपुर 5. पूर्वी गोदावरी 6. पश्चिमी गोदावरी 7. कृष्णा 8. गुंटूर 9. प्रकाशम 10. नेल्लोर 11.श्रीकाकाकुलम 12. विजियांग्राम और 13. विशाखापट्टनम।
आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद अगले 10 सालों के लिए दोनों राज्यों के लिए राजधानी रहेगी, क्योंकि हैदराबाद नवगठित तेलंगाना राज्य में है। इसलिए सरकार विशेषज्ञों की एक समिति बनायेगी जो अपने गठन के 45 दिनों के भीतर आंध्र प्रदेश के लिये नयी राजधानी सुझाएगी।
तेलंगाना राज्य की सीमाएं सीमांध्र प्रदेश के अलावा अन्य चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और ओडिशा से लगेंगी।
आंध्र प्रदेश के राज्यपाल तेलंगाना के भी राज्यपाल होंगे।
आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 42 सीटें है तेलंगाना राज्य बनने के बाद सीमांध्र में लोकसभा की 25 सीटें होगीं और शेष 17 सीटें तेलंगाना राज्य में चली जायेगी।
इसी प्रकार विधान सभा की सीटों का भी बंटवारा होगा। अविभाजित आंध्र प्रदेश में विधान सभा की 294 सीटें है। तेलंगाना बनने के बाद सीमांध्र में विधान सभा की 175 तथा तेलंगाना में विधान सभा की 119 सीटें होगी।
दोनों ही राज्यों में विधान सभा एवं विधान परिषद् का गठन किया जायेगा।
कृष्णा और गोदावरी यहां की प्रमुख नदियां है। इन नदियों का पानी दोनों राज्यों में विभाजित होगा। इसकी निगरानी करने के लिए केन्द्र सरकार एक परिषद का गठन करेगी।
पोलावरम सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया जायेगा। इस पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण होगा।
सरकारी-निजी शिक्षा संस्थानों में दाखिले के संबंध में मौजूदा आरक्षण व्यवस्था अगले 10 वर्ष तक जारी रहेगी।
दोनों राज्यों के लिए उच्च न्यायालय फिलहाल हैदराबाद में रहेगा एक अलग उच्च न्यायालय बाद में बनाया जायेगा।
दोनों राज्यों के बीच लेन देन संबंधी कोई विवाद होता है तो उसका समाधान दोनों पक्षों को मान्य समझौते के जरिये किया जायेगा।
दोनों राज्यों के बीच समझौता नहीं हो पाता है तो केन्द्र सरकार इसमें दखल देगी और इसके लिए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से सलाह करेगी।
राज्य को विशेष सुरक्षा बलों को सलाह मशविरे के बाद दोनों राज्यों में विभाजित किया जायेगा।
13वें वित्त आयोग की सिफारिशें भी आबादी और अन्य जरूरतों के हिसाब से दोनों राज्यों पर लागू हांगी।
तेलंगाना का क्षेत्रफल 114840 वर्गकिमी. जनसंख्या 3.52 करोड़, जनघनत्व 310 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी., प्रतिव्यक्ति आय 69 हजार रूपये वार्षिक तथा साक्षरता दर 65 : है।
इसके अतिरिक्त तेलंगाना और सीमांध्र दोनों राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने का आश्वासन प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया है।
कर्मचारियों के आवंटन के लिए संसद द्वारा तेलंगाना विधेयक के पारित किये जाने के एक दिन बाद ही केन्द्र सरकार ने 21 फरवरी 2014 को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के साथ मिलकर बंटवारे की प्रक्रिया शुरू कर दी, जिसके तहत दो समितियों का गठन किया गया है। एक समिति अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों का आवंटन करेगी, जबकि दूसरी समिति राज्य स्तर के कर्मचारियों का आवंटन देखेगी। एक अनुमान के अनुसार, अविभाजित आंध्र प्रदेश में लगभग 84000 कर्मचारी है।
सीमांध्र और तेलंगाना के लिए स्थापना दिवस को इस प्रकार से तय किया जायेगा कि कैडर के विभाजन, संपत्तियों तथा देनदारियों का आवंटन और अन्य जरूरी तैयारियां पूरी हो जाये। यह काम पहले से ही शुरू हो चुका है। स्थापना दिवस के दिन से दोनों राज्यों के दो मुख्यमंत्री, दो मुख्य सचिव और दो डीजीपी आदि होंगे।
समीक्षा- तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा मिले, यह कई कारणों से जरूरी था। प्रथम, यह कि अलग राज्य की मांग वहां की ऐसी जनांकांक्षा रही है जो दिनो दिन व्यापक होती गई। इसे टालना या कुचलना लोकतांत्रिक नहीं होता। दूसरे, तेलंगाना की उपेक्षा और संसाधनों का तटीय आंध्र और रायलसीमा के लोगों के वर्चस्व ने राज्य के गठन के भाषायी आधार की विसंगति को बार-बार उजागर किया। तीसरे, बड़े राज्य विकास और प्रशासन की दृष्टि से उपयुक्त नहीं होते।
तेलंगाना राज्य का निर्माण समय की आवश्यकता थी लेकिन इसके निर्माण की प्रक्रिया उचित नहीं थी। विधेयक जिस तरह से लोकसभा में पास हुआ वह संसदीय प्रक्रिया पर एक प्रश्नचिन्ह लगाती है। सदन के दरवाजे बंद कर एवं टीवी प्रसारण बन्द कर हंगामें के बीच ध्वनिमत से विधेयक पास करा लिया गया, उसे उचित प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता है। इस अहम विधेयक को जिस तरह पारित किया गया उसे लेकर आगे भी सवाल उठते रहेंगे।
पुनर्गठन के विरोध एवं समर्थन में जिस तरह तलवारे खिंची रही, उससे साफ है कि तेलंगाना के गठन में वहां की जन आकांक्षाओं एवं विकास को नहीं अपितु चुनावी हानि-लाभ का विशेष ध्यान रखा गया है। बहरहाल, तेलंगाना को लेकर चला विवाद एक सबक है कि केवल चुनावी गरज से अलग राज्य की बात नहीं की जानी चाहिए। अगर नया राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया होता और उसकी सिफारिश पर तेलंगाना राज्य बना होता तो शायद इतना विवाद न होता।
संदर्भ ग्रंथ
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चन्दन कुमार
शोध छात्र, राजनीति विज्ञान विभाग,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।