Wednesday 2 July 2014

अशिक्षित गढ़वाली महिलाओं की सामान्य हिन्दी विषयक दक्षता उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद के रिखणीखाल प्रखण्ड का एक अध्ययन


कपिल देव थपलियाल

राष्ट्रगीत, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रभाषा किसी भी देश के गौरव के प्रतीक हैं। राष्ट्रभाषा वह भाषा है जिसमें पूरा देश भावों और विचारों का परस्पर आदान-प्रदान करता है। इक्कीसवीं सदी में यदि कोई भारतवासी अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी के बोल-व्यवहार में अक्षम हो तो उसकी निरक्षरता और अशिक्षा सहित तमाम परिस्थितियों के लिए राष्ट्र और उसके नियामक उत्तरदायी हैं। हिन्दी भाषी क्षेत्र गढ़वाल की महिलाओं की इस समस्या को शिक्षाविदों के सम्मुख रखना और इसके निदान के विषय में एक सूक्ष्म अध्ययन इस शोध-पत्र का उद्देश्य है।

किसी देश के विकास के निर्धारण में महिलाओं की स्थिति उसके सामाजिक-आर्थिक विकास की द्योतक है। किसी भी समाज की लगभग आधी जनसंख्या अर्थात् महिलाओं का विकास किए बिना सम्पन्न और सुखी समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। क्योंकि जब तक महिलाएँ जागरूक और विकास के पथ पर अग्रसर नहीं होगी तब तक समाज का विकास अपूर्ण है।
उत्तराखण्ड जो कि एक दशक पूर्व उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, उस समय भी यह पिछड़े हिस्से में परिगणित होता था। आज जबकि उत्तराखण्ड स्वयं राज्य बन चुका है, यह अभी भी उस पिछड़ेपन से स्वयं को पूर्णरूपेण मुक्त नहीं कर पाया है। यदि भाषा की बात की जाय तो राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया के संदर्भ में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका की बात को समाजशास्त्री और भाषा वैज्ञानिक समान रूप से स्वीकार करते हैं। इसके साथ ही भाषा विषयक दक्षता को क्षेत्र के विकास से जोड़कर देखने की आवश्यकता है। एक ओर जहाँ महिला सशक्तीकरण की बात हो रही है वहीं उत्तराखण्ड में महिलाएँ इस स्थिति में हैं कि उनकी सामान्य हिन्दी विषयक क्षमताओं पर तमाम प्रश्न चिह्न हैं। जो व्यक्ति अपनी मातृभाषा को ठीक से समझ बोल नहीं पाता, स्वयं और राष्ट्र के विकास में वह किस प्रकार योगदान सुनिश्चित कर सकता है। सर्वप्रथम समस्या अशिक्षा की है, किन्तु उससे पूर्व भाषा विषयक अक्षमताएँ हमारे समाज को मुँह चिढ़ाती खड़ी हैं।
अशिक्षित का तात्पर्य जनसंख्या के उस वर्ग से है जिसने औपचारिक रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं की अथवा कोई परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है। साथ ही साक्षर से तात्पर्य उस वर्ग से है जो एक अथवा एक से अधिक भाषा में अपने विचार लिखकर व्यक्त कर सके तथा लिखे हुए को पढ़कर समझ सके। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कमीशन ने किसी भाषा में साधारण संदेश को समझने के साथ पढ़ने और लिखने की योग्यता को साक्षरता माना है। भारतीय जनगणना निर्देशिका में किसी भाषा में पत्र लिखने और उसके उत्तर पढ़ने की योग्यता को साक्षरता का मापदण्ड माना गया है। वर्तमान समय में भारत में विश्व के अन्य कुछ राष्ट्रों की भाँति संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित साक्षरता के आधार पर मान्यता प्रदान की है। वह व्यक्ति जो केवल पढ़ता है लेकिन लिख नहीं सकता, साक्षर नहीं माना जाता है।
डॉ0 बच्चन लाल के शोध-पत्र में प्रस्तुत तालिका में उत्तराखण्ड की साक्षरता का प्रतिशत इस प्रकार दिया गया है।-
वर्ग वर्ष 1981 वर्ष 1991 वर्ष 2001
कुल जनसंख्या 46.06 : 57.75 : 72.28 :
पुरुष 62.35 : 72.79 : 84.01 :
महिला 25.00 : 41.63 : 60.26 :
(सांख्यिकी पत्रिका गढ़वाल मण्डल 2001 द्वारा संकलित)1
अपने शोध-पत्र में डॉ0 बच्चन लाल ने वर्ष 2001 में जिला उत्तरकाशा में महिला साक्षरता 46.69ः दिखाई है। इसके साथ ही श्रीमती राखी पंचोला ने अपने ‘महिला सशक्तीकरण : दशा और दिशा’ नामक शोध-पत्र में महिलाओं की साक्षरता पर तालिका प्रस्तुत करते हुए इसे बढ़ाने हेतु किए जाने वाले प्रयासों को दृष्टिगत किया है।2 इनका उद्देश्य राष्ट्र के विकास में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने हेतु किए जाने वाले प्रयासों की तीव्र करने हेतु प्रेरित किया जाना है। किन्तु इससे पहले यह तथ्य जानने की आवश्यकता है कि ये महिलाएँ अपनी मातृभाषा हिन्दी में कितनी दक्ष हैं, क्योंकि इसके पश्चात् ही अन्य बातों पर विचार, तथ्य तथा तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
हमारा अध्ययन क्षेत्र रिखणीखाल प्रखण्ड पौड़ी गढ़वाल का सीमान्त विकास खण्ड है। यहाँ का अधिकांश क्षेत्र पहाड़ी है तथा वनों से आच्छादित है, जिस कारण जनसंख्या घनत्व काफी कम है। विकासखण्ड मुख्यालय रिखणीखाल कस्बे में हालांकि सन् 1928 ई0 में माध्यमिक विद्यालय (जो वर्तमान में इण्टरमीडिएट कॉलेज बन चुका है) की स्थापना हो चुकी थी, किन्तु जागरूकता के अभाव में यहाँ की महिलाओं की जनसंख्या का 70ः आज भी अशिक्षित है। यहाँ का समाज आज भी पुराने ढर्रे पर चल रहा है। महिलाओं का मुख्य कार्य घरेलू काम-काज, कृषि, पशु और जंगल तक ही सीमित है। इस क्षेत्र में महिला साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है। इसके कारणों की पड़ताल तथा शिक्षा और साक्षरता बढ़ाने के लिए संभव प्रयासों पर एक दृष्टि इस अध्ययन का उद्देश्य है। ये कुछ प्रश्न विचारणीय हैंः-
1. महिलाओं की यह स्थिति विकासशील भारत का कौन सा चेहरा प्रस्तुत कर रही है?
2. क्या किसी क्षेत्र विशेष की महिलाओं की हिन्दी विषयक अक्षमता समाज के विकास में बाधक नहीं है?
3. भूमण्डलीकरण के इस दौर में ये महिलाएँ कहाँ खड़ी हैं?
अध्ययन हेतु रिखणीखाल प्रखण्ड के 10 गाँवों का चयन किया गया। अशिक्षित ग्रामीण महिलाओं को तीन आयु-वर्गों में विभाजित कर स्वयं निर्मित एक सामान्य प्रश्नावली प्रपत्र के माध्यम से वार्ता की गयी। साक्षर महिलाओं ने प्रपत्र पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिख और पढ़कर दिए। किन्तु निरक्षर महिलाओं की पढ़ने विषयक अक्षमता के चलते हिन्दी तथा गढ़वाली भाषा में वार्तालाप किया गया। अध्ययन के पश्चात् कुछ आंकड़े हमें प्राप्त हुए जो इन महिलाओं की सामान्य हिन्दी विषयक क्षमता को प्रस्तुत करते हैं, सारणी के माध्यम से निम्नवत् हैः-
आयु वर्ग म्हिलाओं की संख्या हिन्दी समझना हिन्दी बोलना हिन्दी पढ़ना हिन्दी लिखना
 20-40वर्ष 58 58(100ः) 53(90ः) 15(25ः) 12 (20ः)
 40-60वर्ष 50 50(100ः) 34(68ः) 8(16ः) 5 (10ः)
 60-80वर्ष 55 55(100ः) 17(27ः) 7(12ः) 4(10ःसे कम
आंकड़ों से स्पष्ट है कि शत-प्रतिशत महिलाएँ हिन्दी समझने में सक्षम हैं। यदि विचारों को हिन्दी में बोलकर व्यक्त करने की बात की जाए तो 20-40 वर्ष की 90ः, 40-60 वर्ष आयु वर्ग की 68ः एवं 60-80 वर्ष आयु वर्ग की मात्र 27ः महिलाएँ ही इसमें सक्षम हैं। इसके साथ ही इन वर्गां में क्रमशः 25, 16 एवं 17ः महिलाएँ हिन्दी पढ़ने में सक्षम हैं। अब यदि साक्षर महिलाओं की बात की जाए जो हिन्दी पढ़ने और लिखने में सक्षम हैं उनका प्रतिशत भारी निराशा ही उत्पन्न करता है। 20-40 आयु वर्ग में 12ः, 40-60 वर्ष आयु वर्ग में 10ः तथा 60-80 वर्ष आयु वर्ग में 10ः से कम महिलाएँ ही साक्षर हैं।
प्रस्तुत अध्ययन में साक्षर और निरक्षर दो श्रेणियाँ बनाकर सामान्य हिन्दी विषयक समताओं का अध्ययन-अनुशीलन किया जा सकता था, किन्तु इस क्षेत्र की साक्षर महिलाओं (जिनका : अत्यन्त न्यून है) की हिन्दी विषयक दक्षता भी बहुत सीमित है; जिस कारण उन्हें पूर्ण साक्षर की श्रेणी में परिगणित नहीं किया जा सकता। तीनों वर्गों की साक्षर महिलाओं की विशिष्ट भाषा विषयक दक्षता की जानकारी प्राप्त करने हेतु एक परीक्षण किया गया-
आयु वर्ग महिलाओं की संख्या सामान्य फॉर्म भरने विषयक दक्षता
20-40 वर्ष 12 08 (66 :)
40-60 वर्ष 05 02 (40 :)
60-80 वर्ष 04 01 (25 :)
20-40 वर्ष आयु वर्ग की महिलाएँ, जिन्हें युवाशक्ति कहा जाता है, इस वर्ग की साक्षर महिलाओं में 12 में से 08 महिलाएँ ही हिन्दी का सामान्य फॉर्म सर्वशुद्ध भरने मे सक्षम हैं। 40-60 वर्ष आयु वर्ग में 05 में से 02 तथा 60-80 वर्ष आयु वर्ग में 04 में से 01 महिला ही इस कार्य में सक्षम हैं। इसके साथ ही निरक्षर महिलाओं का एक परीक्षण किया गयाः-
आयु वर्ग महिलाओं की संख्या हस्ताक्षर करने की क्षमता
20-40 वर्ष 46 40 (86 :)
40-60 वर्ष 45 30 (66 :)
60-80 वर्ष 51 20 (39 :)
हस्ताक्षर करने विषयक दक्षता से तात्पर्य मात्र अपने नाम के वर्णों को लिखने से है। शेष समस्त महिलाएँ अंगूठे का प्रयोग करती हैं।
प्रस्तुत आंकड़े 21वीं सदी में भारत के एक हिस्से के हैं। एक ओर जहाँ भारत विकसित राष्ट्रों में अपना स्थान बनाने को अग्रसर है वहीं गढ़वाल में महिलाओं की यह स्थिति है कि उन्हें मातृभाषा बोलने और लिखने में भी समस्या है। प्रौद्योगिकी और तकनीक के चलते आज शिक्षा, वाणिज्य, व्यापार, मनोरंजन लगभग समस्त भारतवासियों की पहुँच में है। आज की इन परिस्थितियों में रिखणीखाल सहित भारत के अन्य कई हिस्सों में महिलाएँ पोस्ट ऑफिस तथा बैंक जैसे संस्थानों में फॉर्म भरवाने के लिए दूसरों का मुख देखने को बाध्य हैं। हस्ताक्षर के स्थान पर अंगूठे का प्रयोग उन्हें मानसिक रूप से भी दूसरों की तुलना में दुर्बल सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। यह वही भारत है जहाँ शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार जैसे हथियार जनता को दिए गये हैं। वास्तविक धरातल पर ये हथियार तभी कारगर हो सकते हैं जब देश का अंतिम व्यक्ति इनका प्रयोग करने योग्य बन सकेगा।
वस्तुतः रिखणीखाल प्रखण्ड में महिलाओं की सामान्य हिन्दी विषयक दक्षता नही के बराबर है। इसका अपना कारण भी है। यहाँ बोल-व्यवहार में मात्र गढ़वाली भाषा का प्रयोग किया जाता है। साथ ही पहाड़ी जीवन की कठिनाइयाँ इन्हें शिक्षा और साक्षरता जैसे विषयों पर मनन करने का अवकाश नहीं देती। शायद ही ऐसा कोई दिवस हो जब ये महिलाएँ अपने दैनिक कार्यों से पूर्णतः निवृत्त हो पाती हों। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि साक्षरता और शिक्षा की आवश्यकता इन्हें कभी महसूस नहीं होती।
गणतंत्र भारत में नारी शिक्षा और जागरूकता की इस दुःखद अवस्था को सुधारने तथा उन्हें शिक्षित करने के लिए जनता और सरकार दोनों को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। हमारे देश में पुरुषों के समान ही स्त्रियों को मत का अधिकार प्राप्त है। ऐसी स्थिति में स्त्रियों को अशिक्षित छोड़कर आगे बढ़ने की कल्पना नहीं की जा सकती। इस प्रकार क्षेत्रों में नागरिकों को यह बताए जाने की आवश्यकता है कि साक्षरता और शिक्षा के अभाव में वे कितने पिछड़ चुके हैं। जागरूकता के अभाव में वे अपने कितने हितों से वंचित हैं। उन्हें वर्तमान परिदृश्य सहित देश और दुनिया के विषय में जानकारी दिए जाने की आवश्यकता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वे अपने भीतर इस कमी को महसूस करें और इसे दूर करने हेतु दृढ़-प्रतिज्ञ हों।
यद्यपि सरकार द्वारा इस ओर अनेक कदम उठाये जा रहे हैं तथापि और प्रयासों की आवश्यकता है। ग्रामीणों को जागरूक करने हेतु प्रत्येक ग्रामसभा में सामुदायिक केन्द्र खोले जाने की जरूरत है, जहाँ ग्राम प्रधान व अन्य जनप्रतिनिधियों के माध्यम से सप्ताह में कम से कम एक दिन ग्रामीणों को एकत्र कर उन्हें देश, दुनिया, समाज, शिक्षा आदि विषयों पर जानकारी दी जाए। इसके लिए उस क्षेत्र के पढ़े-लिखे नागरिकों, उस क्षेत्र में कार्यरत राजकीय कर्मचारियों तथा अध्यापकों की सहायता ली जा सकती है। इन्हें स्वयं सहायता समूह भी अपना प्रमुख योगदान दे सकते हैं। इसके साथ ही प्रौढ़ शिक्षा अभियान को और तीव्र तथा प्रभावी बनाने की जरूरत है। ग्रामीणों को नवीन तकनीकों के माध्यम से रोचकता के साथ यदि जानकारी दी जाय तो यह उपयोगी हो सकता है। जो महिलाएँ स्वयं पढ़ नहीं पायीं उन्हें स्वयं सहित अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। स्वामी विवेकानन्द का कथन है तुम मुझे सौ अच्छी माताएँ दो, मैं तुम्हें एक श्रेष्ठ राष्ट्र दूँगा। वस्तुतः समाज में महिलाओं का शिक्षित और जागरूक होना समूचे राष्ट्र के गौरव और विकास की निशानी है।
धन्यवाद ज्ञापन : मैं डॉ0 ज्ञानेन्द्र कुमार राउत जी को धन्यवाद ज्ञापित करना अपना कर्तव्य समझता हूॅँ, जिनके दिशा-निर्देशों में मैं यह शोध-पत्र पूर्ण कर सका।
संदर्भ-
1.डॉ0 लाल, बच्चन, शोध-पत्र जनपद उत्तरकाशी में विकास खण्डवार साक्षरता का क्षेत्रीय विश्लेषण, अनुसंधान वाटिका, अंक -01, 2011, पृ0 -29
2.पंचोली, राखी, शोध-पत्र, महिला सशक्तीकरण : दशा और दिशा, अनुसंधान वाटिका, अंक-01 2011, पृ0- 69
डॉ0 कपिल देव थपलियाल
प्रवक्ता, हिन्दी विभाग,
राजकीय महाविद्यालय रिखणीखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।