Wednesday, 2 July 2014

गाँधीवाद के प्रमुख जीवन.सूत्र


स्मृति उपाध्याय

महात्मा गाँधी जी की चिन्तनधारा में चौदह जीवन सूत्रों को विभिन्न उपशीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है. इनमें धर्मए धर्म.मार्गए समाजए सत्याग्रहए स्वराज्यए वाणिज्यए उद्योगए गोपालनए खादीए स्वच्छता.आरोग्यए शिक्षाए साहित्य और कलाए लोक सेवा एवं संस्थाएँ इत्यादि बिन्दुओं को विशेष रूप से उल्लेखित किया जा सकता है।

धर्म सूत्र के अन्तर्गत परमेश्वरए सत्यए अहिंसाए ब्रह्मचर्यए आस्वादनए अस्तेयए अपरिग्रहए शरीर श्रमए स्वदेशीए अभयए नम्रताए व्रतए प्रतिज्ञा एवं प्रार्थना की साधना आते हैं।
धर्म.मार्ग सूत्र के अन्तर्गत सर्वधर्म समभावए धर्म और अधर्मए सत्याग्रहए हिन्दू धर्मए गीताए रामायण आदि मार्ग विवेचित किए जा सकते हैं। इस रीति से विचार करने वाला किसी धर्म में सत्य का सर्वथा अभाव नहीं देखता। वह सभी धर्मों में परिवर्तन और विकास की गुंजाइश देखेगा। उसे दिखायी देगा कि विवेकपूर्ण अन्तःअनुकरण करने पर प्रत्येक धर्म उस प्रजा का कल्याण कर सकता है और जिसमें व्याकुलता है उसे सत्य की झाँकी कराने तथा शांति और समाधान कराने में समर्थ है।1
तीसरा सूत्र समाज सूत्र है। सामाजिक व्यवस्था में इस सूत्र का विशेष महत्त्व है। इसके अन्तर्गत वर्णाश्रम व्यवस्थाए वर्ण.धर्म व्यवस्थाए आश्रम पद्धतिए स्त्री जातिए अस्पृश्यताए खाद्याखाद्य विवेकए विवाह व्यवस्थाए संतति नियमनए पति.पत्नी में ब्रह्मचर्यए विधवा विवाहए वर्णान्तर विवाह आदि बिन्दु विचारणीय हैं। उदाहरण के लिए वर्ण धर्म का आज लोप हो गया है। कितने ही लोग अपने को ब्राह्मणए क्षत्रिय या वैश्य बताते हैं यही पर अपने को शूद्र कहते हुए सभी लजाते हैं। फिर भी व्यवहार में यदि हम वर्ण संज्ञा रख सकते हो तो हम सब शूद्र ही कहे जायेंगे।2
चौथा जीवन सूत्र सत्याग्रह है जिसमें सत्याग्रही का कर्त्तव्यए सत्याग्रही की मर्यादाए सत्याग्रह का बुनियादी सिद्धान्तए सत्याग्रह के सामान्य लक्षणए सत्याग्रह के अवसरए सत्याग्रह के प्रकारए उपवासए असहयोगए सविनय अवज्ञाए सत्याग्रही का अदालत में व्यवहारए सत्याग्रही का जेल में व्यवहारए सत्याग्रही की नियमावलीए सत्याग्रही की योग्यता तथा सामुदायिक सत्याग्रह को विवेचित किया जाता है।
पाँचवा सूत्र स्वराज्य का हैए जिसके अन्तर्गत रामराज्यए व्यवस्था एवं विधान सुधारए साम्प्रदायिक एकताए अंग्रेजों के साथ सम्बन्धए देशी राज्यए देश की रक्षा आदि बातें देखी जाती हैं। गाँधीजी का मानना है कि पुरुषार्थी और स्वतंत्र प्रजा के शिक्षित लोकमत में अत्यधिक बल होता है। पशुबल पर टिकी हुई सत्तायें भी तभी तक अपने पशुबल का सहारा ले सकती हैं जब तक कि लोकमत प्रबल न हो। जहाँ लोकमत का जबर्दस्त प्रवाह है वहाँ बड़ी से बड़ी सल्तनत भी चुक जाती है।
छठें जीवन सूत्र के अन्तर्गत वाणिज्य विषयक स्थितियाँ आती हैं जिसमें भारतीय अर्थशास्त्रए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारए ग्रामदृष्टिए धनेच्छाए व्यापारए साहूकारीए मजदूर के प्रश्नए स्वावलंबन और श्रम विभागए यांत्रिक साधनए आदि विषयों को समाहित किया जा सकता है। उनका मानना है कि जब अर्थशास्त्र एवं जीवन में ग्राम दृष्टि का प्रवेश होगा तब देहात की बनी चीजों का अधिकाधिक उपयोग करने की ओर जनता का मन झुकेगाए इसके फलस्वरूप देहात की कला और औजारों को सुधारने कीए देहाती जंगल और देहातों में बेकार चले जाने वाले सम्पत्ति के अनेक प्राकृतिक साधनों की जाँच.पड़ताल करने की प्रवृत्ति पैदा होगी।
गाँधीवाद का सातवाँ जीवन सूत्र उद्योग है। जिसके अन्तर्गत गाँधीजी ने स्वदेशी आन्दोलन पर जोर दिया है। उनके अनुसार खादीए गुड़ए देहाती शक्करए हाथ कुटा चावलए देहाती कागजए बैल के कोल्हू का तेलए देहाती मसालेए रीठाए सिरकाए दतौनए देहाती झाडू़ए चटाईए टोकरियाँए रस्सीए जाजिमए चमड़े की चीजें आदि देहात के सैकड़ों उद्योग जो प्रोत्साहन के अभाव में मर गए या मृतवत जीवित है उनका संजीवन करने की आवश्यकता है।
गाँधी जी ने आठवें जीवन सूत्र में गो.सेवा को धार्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण माना है। इसके इतर अन्य प्राणियों का पालन करनाए प्राणियों के प्रति क्रूरता से परहेज करना और मरे हुए प्राणी के शरीर का भी सद्उपयोग करना आदि बातें इस सूत्र में है।
नवां जीवन सूत्र खादी का है। इसके अन्तर्गत खादी और मिल का कपड़ाए चरखा और हथकरघाए खादी उत्पादन की क्रियायेंए स्वावलम्बी और व्यापारी खादीए यज्ञार्थ कताईए खादी के कार्य इत्यादि बातें आती हैं। खादी और मिल के कपड़े के सम्बन्ध में उनका अभिमत है कि व्यक्तिगत नहीं बल्कि राष्ट्रीय अर्थशास्त्र की दृष्टि से विचार करें तो किसी भी वस्तु की लागत कीमत आँकने में सिर्फ उसके उत्पादक के मालए पूँजी और मजदूरी में लगे हुए खर्च का ही विचार नहीं करना चाहिएए बल्कि इस रीति से वह चीज बनाने से अगर बेकारों की तादाद बढ़ती है तो उन बेकारों के खाना.खुराक का खर्च जनता के सिर पड़ता है इसलिए उस खर्च को भी इस वस्तु की तैयारी पर पड़ा समझना चाहिए। इस दृष्टि से देखने पर खादी की अपेक्षा मिले देश को महँगी पड़ती जान पड़ेगी।
गाँधीवाद के दसवां जीवन सूत्र स्वच्छता और आरोग्य है। इस बिन्दु में शारीरिक एवं मानसिक स्वच्छताए साफ.सुथरी आदतेंए बाह्य स्वच्छताए रोगए इलाजए आहारए व्यायाम आदि विषयों को समाहित करते हुए जीवन को उपयोगी बनाया जा सकता है। व्यायाम के सम्बन्ध में उनका मानना है कि सात्त्विक कसरतों में शरीर की तंदुरस्ती के लिए महत्त्व की कसरत ष्चलनाष् है। यह जो ष्व्यायामों का राजाष् कहा गया हैए यथार्थ है। इसके बाद आसन और प्राणायाम सात्त्विक व्यायाम माने जा सकते हैंए क्योंकि इन व्यायामों का प्रधान उद्देश्य शरीर को भोगी नहीं बल्कि शुद्ध बनाना है।
गाँधी जी चिन्तनधारा के ग्यारहवें जीवन सूत्र में शिक्षा के विविध आयामों की चर्चा होती हैं। जिसमें शिक्षा का ध्येयए राष्ट्रीय शिक्षाए अंतर्राष्ट्रीय शिक्षाए औद्योगिक शिक्षाए बाल शिक्षाए ग्रामवासी शिक्षाए स्त्री शिक्षाए धार्मिक शिक्षाए भाषा ज्ञानए राष्ट्रभाषाए अंग्रेजी भाषाए इतिहासए शिक्षा के अन्य विषयए शिक्षक.शिक्षार्थीए शिक्षालयए शिक्षा का खर्च इत्यादि बातें समाहित होती हैं। इसके सम्बन्ध में गाँधीजी ने काल.क्रमानुसार बच्चां को शिक्षा देने की तथा शिक्षकों के सम्बन्ध में सम्बन्धित आचार के विषय में कहा है कि सोलह वर्ष की उम्र तक बालक.बालिका को दुनिया के इतिहासए भूगोल और वनस्पति शास्त्रए खगोलए गणितए भूमिति और बीजगणित का सामान्य ज्ञान हो जाना चाहिए। शिक्षकों की तनख्वाह मोटी नहीं हो सकतीए पर उन्हें पेट भरने भर पैसा मिलना चाहिए। उसमें सेवा वृत्ति होनी चाहिए। प्राथमिक शिक्षा के लिए चाहें जैसे शिक्षक से काम चला लेने का रिवाज निंद्य है। शिक्षक मात्र को चरित्रवान होना चाहिए। अंग्रेजी की पढ़ाई एक भाषा के रूप में होनी चाहिए।3
गाँधीवाद का बारहवां सूत्र साहित्य और कला विषयक है जिसमें साधारण टीकाए साहित्य की शैलीए अनुवादए वर्ण.विन्यासए अखबारए कला इत्यादि विषयों का अध्ययन सम्मिलित है।
जीवन सूत्रों का तेरहवाँ भाग लोक सेवा है जिसमें लोकसेवक के सामान्य लक्षणए ग्राम सेवक कर्त्तव्य आदि को विवेचित किया जाता है। इस सम्बन्ध में वे मानते है कि निःस्वार्थए नम्रए सच्चा व चरित्रवान लोक सेवक लोकप्रिय होता है। लोक सेवक किसी के अप्रीति या ईर्ष्या का पात्र नहीं होताए न किसी को कष्ट देने वाला मालूम होता है।
गाँधी जी द्वारा प्रतिपादित जीवन सूत्रों के अन्तिम एवं चौदहवें सूत्र में संस्थायें आती है। इसके अन्तर्गत उन्होंने संस्था की सफलताए संस्था का संचालनए संस्था का आर्थिक व्यवहारए संस्था के सदस्यों में सभ्यता आदि बिन्दुओं पर विचार किया गया है। वे मानते है कि किसी संस्था की सफलता के लिए जिन बातों पर विशेष बल दिया जाना चाहिए वे हैं. संस्था के उद्देश्य के प्रति अत्यन्त वफादारी.भरी निष्ठा और उसकी सिद्धि के लिए उत्साह होनाए संस्था के नियमों का स्थूल पालन ही नहीं बल्कि उसके भाव का पालन होनाय संस्था के संचालकए सभ्य सेवक आदि कार्यकर्ताओं में भ्रातृभाव और एकमत्य होना।4
इस प्रकार हम देखते हैं कि गाँधीवाद के जीवन सूत्र सम्पूर्ण समाज के सर्वथा उपादेय बने हुए हैं। गाँधीजी ने इन सूत्रों के माध्यम से भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व को मानवता का ऐसा सन्देश दिया है जिसका अनुपालन से समाज पथभ्रष्ट नहीं हो सकता।
सन्दर्भ.
1ण् लाल किशोर मशरूवाला घ0ए गाँधी विचार दोहनए पृ0 30ण्
2ण् लाल किशोर मशरूवाला घ0ए गाँधी विचार दोहनए पृ0 147ण्
3ण् प्रभु डॉ0 आर0के0ए राव यू0आर0ए महात्मा गाँधी के विचार।
4ण् मिश्र प्रो0 जगदीशए गाँधी चिन्तन और विकास की चुनौती।
स्मृति उपाध्याय
शोधच्छात्राए हिन्दी विभागए
पूर्वान्चल विश्वविद्यालयए जौनपुरए उ0प्र0।